कोरिया का इतिहास
कोरिया, पूर्वी एशिया में मुख्य स्थल से संलग्न एक छोटा सा प्रायद्वीप जो पूर्व में जापान सागर तथा दक्षिण-पश्चिम में पीतसागर से घिरा है (स्थिति : ३४० ४३ उ. अ. से १२४० १३१ पू. दे.)। उसके उत्तरपश्चिम में मंचूरिया तथा उत्तर में रूस की सीमाएँ हैं। यह प्रायद्वीप दो खंडों में बँटा हुआ है। उत्तरी कोरिया का क्षेत्रफल १,२१,००० वर्ग किलोमीटर है। इसकी राजधनी पियांगयांग है। दक्षिणी कोरिया का क्षेत्रफल ९८,००० वर्ग किलोमीटर है।
यहाँ पर ई. पू. १९१८ से १३९ ई. तक कोर-यो (Kor-Yo) वंश का राज्य था जिससे इस देश का नाम कोरिया पड़ा। चीन तथा जापान से इस देश का अधिक संपर्क रहा है। जापान निवासी इसे 'चोसेन' (Chosen) कहते रहे हैं जिसका शाब्दक अर्थ है 'सुबह की ताज़गी का देश' (Land of morning freshness)। यह देश अगणित बार बाह्य आक्रमणों से त्रस्त हुआ। फलत: इसने अनेक शताब्दयों तक राष्ट्रीय एकांतिकता की भावना अपनाना श्रेयस्कर माना। इस कारण इसे संसार में यती देश (Hermit Kingdom) कहा जाता रहा है।
अनेक शताब्दियों तक यह चीन का एक राज्य समझा जाता था। १७७६ ई. में इसने जापान के साथ संधि-संपर्क स्थापित किया। सन् १९०४-१९०५ ई. के रूसी जापानी युद्ध के पश्चात् यह जापान का संरक्षित क्षेत्र बना। २२ अगस्त् १९१० ई. को यह जापान का अंग बना लिया गया। द्वितीय महायुद्ध के समय जब जापान ने आत्मसमर्पण किया तब १९४५ ई. में याल्टा संधि के अनुसार ३८ उत्तरी अक्षांश रेखा द्वारा इस देश को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। उत्तरी भाग पर रूस का और दक्षिणी भाग पर संयुक्त राज्य अमरीका का अधिकार हुआ। पश्चात् अगस्त १९४८ ई. में दक्षिणी भाग में कोरिया गणतंत्र का तथा सितंबर, १९४८ ई. में उत्तरी कोरिया में कोरियाई जनतंत्र (Korean Peoples Democratic Republic) की स्थापना हुई। प्रथम की राजधानी सियोल और द्वितीय की पियांगयांग बनाई गई। सन् १९५३ ई. की पारस्परिक संधि के अनुसार ३८ उत्तर अक्षांश को विभाजन रेखा मानकर इन्हें अब उत्तरी तथा दक्षिणी कोरिया कहा जाने लगा है।
भौगोलिक संरचना एवं प्राकृतिक प्रदेश
कोरिया मुख्यत: पवर्तीय देश है। रीढ़ की हड्डी के समान यहाँ की पर्वतश्रेणीयाँ पश्चिमी तट की अपेक्षा पूर्वी तट के अधिक निकट हैं। पीत सागर में गिरनेवाली नदियाँ जापान की नदियों से बड़ी हैं और कुछ बहुत दूर तक, वशेषकर ज्वारभाटा के समय में नौगम्य हैं। उत्तरपूर्व का पवर्तीय प्रदेश समुद्रतल से २,६७० मीटर ऊँचा है। उसमें कहीं कहीं ज्वालामुखी शिखर हैं। पश्चिमी तटवर्ती भाग मैदानी हैं। इसमें बहनेवाली मुख्य नदियाँ ताईयोंग, हार्न, क्यूम और नाकतोंग हैं।
कोरिया को पाँच प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है-
- (१) मध्य और उत्तर के पवर्तों वाला प्रदेश- यह एक अगम्य, वरली बस्तियों का वनप्रधान पवर्तीय प्रदेश है। इन पवर्तों के शिखर १,४०० मीटर से भी ऊँचे हैं। कैमा का पठार उसी का एक अंग हे जो दक्षिण में तैहोकू श्रेणी में विलुप्त हो जाता है।
- (२) पूर्वयी तटीय पेटी- यह एक सँकरा, एकांत प्रदेश है जिसमें तट के पास मछुओं के ग्राम हैं। यहाँ के मछुए छोटी छोटी नावों तथा परंपरागत पद्धति से मछलियाँ पकड़ते हैं। तटीय पेटी के पीछे कृष्य भूमि की एक सँकरी पेटी है जिसमें चावल, ज्वार, बाजरा इत्यादि अन्न उगाए जाते हैं।
- (३) दक्षिणी पूर्वी रेशमी का क्षेत्र - यह नाकटोंग बोसिन और उसके चारों ओर की पहाड़ियों से बना है तथा ऐसा प्रदेश है जहाँ रेशम उद्योग खूब बढ़ा चढ़ा है।
- (४) दक्षिणपश्चिमी के खेतिहर बोसिन- यह देश का सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग है। हान का मध्यवर्ती बोसिन जो इंचन नदी के मुहाने पर से तीन दिशाओं में फैल जाता है, दीर्घकाल से प्रायद्वीप का आर्थिक तथा राजनैतिक स्थल रहा है। पश्चिम के सभी बोसिनों में शहतूत के वृक्ष लगाए जाते हैं और रेशम उत्पादन कार्य होता है।
- (५) पश्चिमोत्तर खेतिहर बेसिन तथा खनिज प्रदेश - सिओल के उत्तर में जाड़े में इतनी अधिक ठंड होती है कि शरद् ऋतु में बीज बोए नहीं जा सकते फलत: वर्ष में यहाँ केवल एक फसल होती है। गेहूँ, ज्वार, बाजरा तथा सोयाबीन का उत्पादन मुख्य रूप से होता है।
जलवायु
पुरातत्व नतीजों से संकेत मिलता हमें वहाँ होमो सेपियन्स के बारे में 400, 000 साल पहले कोरियाई प्रायद्वीप में बसे थे
कोरिया के प्रागितिहास: कोरिया की जलवायु उत्तरी चीन से मलती जुलती है। लगभग संपूर्ण देश में एक मास का माध्यम तापमान हमांक से नीचे चला जाता है। यहाँ मी जून में अधिकतम वर्षा होती है। दक्षिण कोरिया में अप्रैल में कुछ ही दिनों का वर्षाकाल होता है जिससे यहाँ चावल की अत्यधिक फसल होती है। वर्षा का औसत ३५ तथा ग्रीष्म का ताप ७५ फारेनहाइट रहता है। उत्तरी पूर्वी भाग में जाड़ों में खूब तुषारपात होता है किंतु दक्षिण जिनसेन और सियोल के दक्षिण वाले भाग में जाड़ों में तापमान कदाचित् ही कमी शून्य से नीचे जाता है। अत: यहाँ नौ मास उपज काल रहता है। उत्तरपश्चिमी महाद्वीपीय माग की जलवायु मंचूरिया के निकटवर्ती मागों से मिलती जुलती है।
प्राकृतिक वनस्पति
कोरिया का लगमग एक तिहाई भाग वनाच्छादित है। नदियों के मैदानों में घास होती है। दक्षिणी भाग की वनस्पतियाँ दक्षिणी जापान के पाइन्स, ओक, बालनटस इत्यादि से मिलती जुलती हैं और उत्तर में उत्तरी जापान के कोणधारी वृक्षों के वन हैं। अधिक वनों के काटे जाने से तथा उनकी उपेक्षा के कारण मध्य और दक्षिणी कोरिया के अधिकांश पवर्त अब नग्न से हो गए हैं। कहीं कहीं वनों को लगाया मी गया है। एक प्रकार से समूचा देश हरी घाटियों और घर्षित नग्न पहाड़ियों का मूलमुलैया सा है।
खनिज
उत्तरी कोरिया खनिज पदार्थों में धनी है तथा यहाँ एंथ्रासाइट कोयला, कच्चा लोहा और सोना निकाला जाता है। यहाँ टंगस्टन भी प्राप्त होता है। उंसन और सुइअन यहाँ की मुख्य सोने की खानें है। कच्चा लोहा वांधाई और श्रेष्ठतम एंथ्रासाइट पियोप्यांग से निकलता है। यहाँ खनिज लौह का सुरक्षित भण्डार १० करोड़ टन है। कोयले का उत्पादन १.५ करोड़ टन (१९६०) है जिसमें ६० लाख टन दक्षिण कोरिया से प्राप्त किया जाता है। इन खनिजों के अतिरिक्त कोरिया में जस्ता, सीसा और अभ्रक पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।
कृषि एवं औद्योगिक विकास
कोरिया कृषिप्रधान देश है। देश के संपूर्ण कृषि क्षेत्र का २१ प्रतिशत भाग कृषियोग्य है। यहाँ की मुख्य उपज चावल है। कुल कृषिभूमि के ४०% भाग पर चावल की खेती होती है और अधिकांश निवासी चावल खानेवाले हैं। शेष भाग में जौ, ज्वार, बाजरा, गेहूँ, सोयाबीन तथा लाल फली की खेती होती है। व्यापारिक फसलों में कपास, तंबाकू, सन तथा जिनसैंग पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होती है। यहाँ मूली से किंची तैयार की जाती है।
यहाँ मत्स्योत्पादन क्षेत्र विस्तृत है। जापानियों के प्रोत्साहन से यहाँ मछली पकड़ने का कार्य प्रारंभ हुआ और संपूर्ण देश की ६० प्रतिशत मछलियाँ उत्तरी कोरिया में पकड़ी जाती हैं। गाय, भैंस एवं सूअर यहाँ की जीव संपदा हैं। गाय, भैंस, विशेषकर वे जो उत्तरी कोरिया में हमक्योंग में पाले जाते हैं, अपने आकार तथा नस्ल के लिये प्रसिद्ध हैं और ये पशु अधिक मात्रा में जापान निर्यात किए जाते हैं।
उत्तरी कोरिया में मुख्य उद्योग सूती वस्त्र व्यवसाय, रेशमी वस्त्र, सीमेंट, कच्चा लोहा, रसायनक, जलविद्युत आदि हैं। यह क्षेत्र औद्योगीकरण के साथ साथ खाद्य पदार्थों के उत्पादन में भी आत्मनिर्भर है। दक्षिणी कोरिया में वस्त्रोद्योग, लोहा, सीमेंट आदि का विकास हुआ है। औद्योगिक नगरों में पुसान सिल्क के लिये, केंजिहो और इंचोन लौह इस्पात के लिये प्रसिद्ध हैं। देश की ९५ प्रतिशत जलविद्युत शक्ति का उत्पादन उत्तरी कोरिया में होता है।
उत्तरी कोरिया का लगमग ६० प्रतिशत विदेशी व्यापार रूस के साथ ३० प्रतिशत चीन के साथ और शेष व्यापार भारतवर्ष तथा अन्य देशों के साथ होता है।
विभाजन
कोरिया प्रायद्वीप 1894 से ही जापानी दबदबे में आ गया था। 1910 में जापान ने उसे अपना हिस्सा बना लिया। 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी और जापान घनिष्ठ साथी थे। युद्ध दोनो पानमुन्जोम के पास उत्तर कोरिया की भारी पराजय के साथ समाप्त हुआ। मुख्य विजेता शक्तियों अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ (आज के रूस) ने कोरिया को जापान से छीन कर जर्मनी की ही तरह उस का भी विभाजन कर दिया।
कोरिया प्रायद्वीप पर यह विभाजन रेखा थी 38 अंश अक्षांश। इस अक्षांश के उत्तर का हिस्सा रूस और चीन की पसंद के अनुसार एक कम्युनिस्ट देश बना और बोलचाल की भाषा में उत्तर कोरिया कहलाया। दक्षिण का हिस्सा अमेरिका और उसके मित्र देशों की इच्छानुसार एक पूँजीवादी देश बना और दक्षिण कोरिया कहलाया।
दोनो कोरिया अपने-अपने शुभचिंतकों पर आश्रित थे और किसी हद तक केवल शतरंजी मोहरे थे। उन्हें लड़ा रहे थे एक तरफ़ रूस और चीन और दूसरी तरफ़ अमेरिका और उसके यूरोपीय साथी।
संयुक्त राष्ट्र के नाम पर पहला युद्ध
स्क्रिप्ट त्रुटि: "main" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। कोरिया युद्ध पांच ही वर्ष पहले बने संयुक्त राष्ट्र संघ की विधिवत अनुमति से चला पहला युद्ध था जो तीन साल चला था और जिसने 35 लाख प्राणों की बलि ली थी।
सोवियत संघ (रूस) और चीन के समर्थन के बल पर उत्तर कोरिया ने 1950 में जब दक्षिण कोरिया को रौंद डाला, उस समय सुरक्षा परिषद की उस स्थायी सीट पर, जिस पर आज चीन बैठता है, उसका प्रबल विरोधी ताइवान बैठा करता था (ताइवान को हटा कर यह सीट चीन को 25 अक्टूबर 1971 को दी गयी थी)। चीन और सोवियत संघ की उस समय खूब बनती थी। इसलिए, चीन के साथ एकजुटता दिखाने के चक्कर में सोवियत संघ सुरक्षा परिषद की बैठकों का बहिष्कार कर रहा था। बहिष्कार करने के कारण ही वह किसी अमेरिकी प्रस्ताव को गिराने के लिए अपने वीटो अधिकार का उपयोग भी नहीं कर सका।
सोवियत संघ की चूक
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इस का भरपूर लाभ उठाया। कोरिया युद्ध शुरू होने के एक विभाजन रेखा महीने बाद उन्होंने सुरक्षा परिषद से वह प्रस्ताव नंबर 85 पास करवा लिया, जिस के अधीन अमेरिका और उसके कई मित्र देशों को संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले कोरिया में अपने सैनिक भेजने का अधिकार मिल गया। भारत ने भी उस समय अपनी एक मेडिकल कोर कोरिया भेजी थी।
सबसे अधिक सैनिक अमेरिका के थे। अमेरिकी सेनाओं के कंमाडर जनरल डगलस मैकआर्थर ने उत्तर कोरिया और उसका साथ दे रहे देशों के जल्द ही छक्के छुड़ा दिये। पूरा दक्षिण कोरिया लगभग खाली करवा लिया।
चीन लड़ाई में कूदा
लेकिन, जैसे ही संयुक्त राष्ट्र सैनिक चीनी सीमा के पास पहुँचे, चीन खुल कर लड़ाई में कूद पड़ा। स्वंयसेवी बताते हुए उसने लाखों लड़ाके मैदान में उतार दिये। संयुक्त राष्ट्र सैनिकों को पीछे हटना पड़ा। तब मैकआर्थर ने राष्ट्रपति ट्रूमैन से कहा कि उन्हें चीन पर परमाणु बम गिराने का अधिकार दिया जाये। ट्रूमैन यह हिम्मत नहीं कर पाये। ट्रूमैन की जगह जब ड्वाइट आइज़नहावर राष्ट्रपति बने, तब उन्होंने युद्धविराम का निर्णय किया। और इस तरह, 27 जुलाई 1953 को, दोनो कोरिया की सीमा पर के एक स्थान पानमुन्जोम में युद्धविराम का समझौता हुआ और लड़ाई रुकी। आज भी युद्धविराम ही है, युद्ध-स्थिति का विधिवत अंत नहीं हुआ है।
युद्ध-स्थिति का अंत अभी भी नहीं
युद्धविराम होने तक 40 हज़ार संयुक्त राष्ट्र सैनिक, जोकि 90 प्रतिशत अमेरिकी सैनिक थे, मारे जा चुके थे। उत्तर कोरिया और उसके साथी देशों के संभवतः 10 लाख तक सैनिक मारे गये। मारे गये असैनिक नागरिकों की संख्या 20 लाख आँकी जाती है। आज भी कई हज़ार अमेरिकी सैनिक दक्षिण कोरिया में तैनात हैं, ताकि उत्तर कोरिया अचानक फिर कोई आक्रमण करने का दुस्साहस न करे।
दूसरी ओर, भारी आर्थिक कठिनाइयों और संभवतः आंशिक भुखमरी के बावजूद उत्तर कोरिया ने भी 12 लाख सैनिकों वाली भारत के बराबर की संसार की एक सबसे बड़ी सेना पाल रखी है।
युद्धविराम के बाद से 240 किलोमीटर लंबा और चार किलोमीटर चौड़ा एक विसैन्यीकृत क्षेत्र दोनो कोरिया को अलग करता है। तटपार पीत सागर में 38 अंश अक्षांश रेखा के समानांतर 200 किलोमीटर लंबी एक जलसीमा है, जिसे उत्तर कोरिया ने कभी स्वीकार नहीं किया। वहां दोनों की नौसेनाओं के बीच अक्सर झड़प हो जाती है।
दोनों के बीच की सीमा सामान्य नागरिकों के लिए हमेशा से बंद रही। कोई डाक सेवा नहीं है, कोई टेलीफ़ोन सेवा नहीं है। विभाजित जर्मनी वाले दिनों की तरह दोनो तरफ के लाखों परिवार छह दशकों से कटे फटे हैं। जर्मनी तो इस बीच एक हो गया, कोरिया का एकीकरण अभी भी एक दिवास्वप्न ही है।
बाहरी कड़ियाँ
- Korean History onlineसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link], Korean History Information Center
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- Korea's historyसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link], Asian Info Organization
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- Kyujanggak Archiveसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link], pdf files of Korean classics in their original written classical Chinese
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