केरल में आधुनिक खेल कूद
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प्राचीन काल से ही केरल खेलकूद क्षेत्र में ख्यात है। यहाँ सैकडों वैविध्यपूर्ण खेल प्रचलित थे। उनमें से कुछ खेल अब भी शेष है। ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के साथ आए अनेक नवीन खेलों ने लोक खेल कूदों को मिटा दिया। नवीन खेलों से ऊर्जा लेकर नवीनता के कदम से कदम मिलाकर चलने में लोक क्रीडाएँ विफल हो गईं। अतः वे लुप्त हो गईं। लोक खोलों के मिटने के कई कारण थे जिनमें संगठित प्रतियोगिता का अभाव, मंचों या मैदानों का अभाव, जिलास्तर के टूर्नामेन्ट को आयोजित न करना, नियम व्यवस्था का अभाव आदि प्रमुख माने जा सकते हैं। केरल के प्रान्तीय खेल - विनोदों में एक सीमा तक कळरिप्पयट्टु ही टिक सका। आयोधन कला के रूप में प्रतिष्ठित कळरिप्पयट्टु भी नवीन आयुधों के आविर्भाव से महत्त्व हीन हो गया। आज वह मनोरंजन के साधन से बढ़कर कुछ नहीं।
क्रिकेट
प्रायः सभी नवीन मनोविनोद की सामग्री ब्रिटिशों की देन है। जैसे-जैसे केरल में अंग्रेज़ी शिक्षा लोकप्रिय हो गई वैसे-वैसे ब्रिटिशों द्वारा लाई क्रीडाएँ भी लोकप्रिय हो गईं। इस प्रकार जिस विदेशी खेल को यहाँ स्थान दिया गया वह क्रिकेट है। पष़श्शि राजा पर कब्जा करने सेनाधिपति बनकर आए आर्थर वेल्लस्ळि (ड्यूक ऑफ वेल्लिंग्टन) ने केरल में क्रिकेट आंरभ किया था। 18 वीं शताब्दी के अंतिम चरण तथा 19 वीं शताब्दी के प्रारंभिक चरण में मलाबार में कई बार आए वेल्लस्ळि ने तलश्शेरि के अपने बँगले के सामने पहली बार स्टम्प लगाए। वेल्लस्ळि से तलश्शेरि के लोगों ने क्रिकेट सीखा। तलश्शेरि में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ भी आयोजित हुईं। कई खानदानों ने अपने नाम पर क्रिकेट टीमें गठित कीं। इनमें मंपाणि खानदान प्रमुख था जो आज भी मध्य एवं दक्षिण केरल में क्रिकेट का प्रचार कर रहा है। यद्यपि केरल का अपना क्रिकेट इतिहास है फिर भी 1950 के बाद वह अपने गौरवपूर्ण पद से अपदस्थ हो गया। यहाँ तक कि रंजीत ट्रॉफी में भी केरल कोई प्रभाव नहीं डाल सका। बड़े - बड़े सितारों के रहते हुए भी केरल रंजीत प्रतियोगिता में पिछड़ गया। राष्ट्रीय टीम में मलयालियों की भागीदारी महत्वपूर्ण नहीं बनी। टिनु योहन्नान और श्रीशांत दो ही व्यक्ति हैं जिनको भारतीय टीम में खेलने का अवसर मिला।
फुटबॉल
केरल के सर्वाधिक जनप्रिय खेलों में एक है फुटबॉल। 19 वीं शताब्दी के अंत में ही मलयालियों ने फुटबॉल खेलना शुरू किया था। यद्यपि विश्व फुटबॉल जगत में केरल कोई बड़ी शक्ति नहीं है फिर भी भारतीय फुटबॉल जगत में केरल अत्यंत शक्तिशाली है। संतोष ट्रॉफी में जो रिकार्ड जीतें हुईं उनसे केरल राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं। केरल में अनेक प्रतिभावान खिलाडी हैं। पश्चिम बंगाल भी फुटबाल भी अच्छि पकड़ रखता है।
वॉलीबॉल
1920 के दशकों में वॉलीबॉल केरल में पहुँचा था। चार दशकों के अन्दर केरल भारतीय वॉलीबॉल जगत की निर्णयात्मक शक्ति बना। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात अनेक सितारों को केरल ने जन्म दिया। केरल का जिमि जॉर्ज उनमें प्रमुख हैं जिनको पश्चिमी जगत ने विश्व के दस उत्तम खिलाडियों में एक माना था। राष्ट्रीय वॉलीबॉल प्रतियोगिता में केरल कई बार चैंपियन बना।
एथलेटिक्स एथलेटिक्स को केरल में अत्यन्त प्रचार मिला है। शायद केरल ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के सर्वाधिक खिलाडियों को प्रदान किया है। सी. के. लक्ष्मणन प्रथम मलयाली थे जिन्होंने 1920 के ओलिंपिक्स में भाग लिया था। एशिया में सर्वप्रथम 8 मीटर कूदने वाले टी. सी. योहन्नान मलयाली थे। दूसरे मलयाली हैं चार किस्मों में लम्बे समय तक चैंपियन रहे सुरेश बाबु, एशिया के सर्वश्रेष्ठ एथलेटों में एक पी. टी. उषा, अनेक एशियन गेम्स मेडल प्राप्त शाइनी एब्रहाम, के. एम. बीनामोल, विश्व एथलेटिक मीट में मेडल प्राप्त प्रथम भारतीय सितारा अंजु बॉबी जॉर्ज आदि।
दूसरे खेल
बास्कट बॉल, बैडमिन्टन बॉल आदि को केरल में औसत प्रचार ही मिला है। सामान्यतया स्कूल कॉलेज टीमें और क्लब ही केरल में बास्कट बॉल खेलते हैं। यह केरल के लोगों का अपना खेल नहीं बन सका है। यद्यपि बैडमिन्टन में केरल ने यू. विमलकुमार जैसे अन्तर्राष्ट्रीय खिलाडी को जन्म दिया है फिर भी यह खेल भी औसत दर्जे में जनप्रिय बना है। आज नगरों में तो यह खेल व्यायाम से बढ़कर कुछ नहीं है। बैडमिन्टन में शट्टिल बैडमिन्टन् का ही अधिक प्रचार है। बॉल बैडमिन्टन खेलने वाले बहुत ही कम हैं।
शट्टिल बैडमिन्टन में प्रथम भारतीय जूनियर राष्ट्रीय खिलाडी जस्सी फिलिप हैं जो मलयाली हैं। लता कैलास, नोरिन पाला आदि ने अन्तर्राष्ट्रीय यूबर कम टूर्नमेन्ट में भाग लिया है। जॉर्ज थॉमस, कृष्णकुमार आदि जूनियर खिलाडियों ने एबीसी टूर्नमेन्ट में काँस्य पदक प्राप्त किए हैं। टेनिस के प्रशंसक तो अधिक हैं लेकिन खिलाडी बहुत ही कम हैं। उन्नीस सौ तीस के दशकों में तिरुवनन्तपुरम में टेनिस खेला जाता था। प्रारंभ में टेनिस का खेल तिरुवनन्तपुरम महाराजास कॉलेज (वर्तमान यूनिवर्सिटी कॉलेज) में होता था। केरल के यशस्वी समालोचक एवं अध्यापक एस. गुप्तन नायर, जो यूनिवर्सिटी कॉलेज में विद्यार्थी रहे थे, ने अपनी जीवनी 'मनसा स्मरामि' में लिखा है कि वे अपने छात्र जीवन में टेनिस खेलते थे। मई 2007 में त्रिवेन्ड्रम टेनिस क्लब ने केरल की प्रथम टेनिस प्रतियोगिता का आयोजन किया था जिसका थोडा-सा प्रभाव इस क्षेत्र में परिलक्षित होता है परंतु बुनियादी सुविधाओं की कमी तथा अधिक खर्च के कारण यह खेल अधिक लोकप्रिय नहीं हो सका।
तैराकी
केरल के दक्षिणी जिलों में तैराकी क्रीडा प्रतियोगिता का भी बड़ा महत्त्व है। इस क्षेत्र के राष्ट्रीय स्तर पर ख्यात केरलीय तैराक हैं विलसन् चेरियान्, राधाकृष्णन्, ओमना कुमारी आदि। केरल का अत्यंत प्रसिद्ध तैराकी केन्द्र पिरप्पनकोड में स्थित है। तैराकी के द्वारा एक ग्राम की खुशहाली की कहानी पिरप्पनकोड गाँव प्रस्तुत करता है। तिरुवनन्तपुरम जिला अक्वाटिक चेंपियनशिप पर पिरप्पनकोड का एकाधिकार जैसा है। मई 2007 में आयोजित चेंपियनशिप प्रतियोगिता में पिरप्पनकोड प्रियदर्शिनी क्ळब लगातार 15 वीं बार चेंपियन बना था।