कुन्थूनाथ जी मंदिर, जैसलमेर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

यह जुडवा मंदिर अपने खूबसूरत कलाकारी के लिए प्रसिद्ध है। खूबसूरत गढ़ी हुई मूर्तियाँ तथा पत्थर पर की गई नक्काशी, इस मंदिर को जैसलमेर की बहुमूल्य धरोहर बनाती है। निचलामंदिर कुंथुनाथ को समर्पित है, जो अष्टपद आधार पर बना है। शांतिनाथ की प्रतिमा मंदिर के ऊपरी भाग में स्थित है। इन मंदिरों का निर्माण जैसलमेर की चोपड़ा तथा शंखवाल परिवारों द्वारा काराया गया। मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार इन दोनों मंदिरों का निर्माण १४८० ई.में हुआ था। १५१६ ई. में मंदिरों के कुछ हिस्से में बदलाव व अन्य निर्माण कार्य किए गए।

यह मंदिर शिखर से युक्त है, इस शिखर के भीतरी गुंबदों में वाद्य यंत्रों को बजाती हुई व नृत्य करती हुई अप्सराओं को उत्कीर्ण किया गया है। इनके नीचे गंधर्वो की प्रतिमाएँ। मंदिर के सभा मंडप के चारों ओर स्तंभों के मध्य सुंदर तोरण बने हैं। गूढ़ मण्डप में एक सफेद आकार की दूसरी काले संगमरमर की कार्योत्सर्ग मुद्रा में मूर्तियाँ प्रतिष्ठित बनी है, इसके दोनों पार्श्वो में ११-११ अन्य तीर्थकरों की प्रतिमाएँ बनी हैं। इस कारण चौबीसी की संज्ञा दी गई है। हिन्दुओं की दो प्रतिमाएँ दशावतार और लक्ष्मीनारायण भी मंदिर में स्थापित हैं।

मंदिर के अन्य भाग में शायद ही ऐसा कोई पत्थर मिले जिसपर शिल्पकार ने कुछ-न-कुछ न उकेरा हो। हाथी, घोङा, सिंह, बंदर, फूल, पत्तियों से पूरा मंदिर आच्छादित है। नालियाँ भी मगरमच्छ के मुख के आकार की बनाई गई हैं। जैसलमेर पंचतीर्थी इतिहास के लेखक ने यहाँ उत्कीर्ण की गई कामनी स्रियों के अंग प्रत्यंग के सजीव सौंदर्य का वर्णन निम्न प्रकार किया है। चांदी सी गोल गुखाकृति, बंी विशाल भुजाएँ, चौङा ललाट, नागिन सी गूंथी बालों की लटें, तिरछे नयन, तोते की चोंच सी नाक, पतले व सुंदर होंठ, भरे हुए स्तन, पतली सपाट पिंडली व आभूषण से सजा पूरा शरीर आदि की सुक्ष्मता और भाव-भंगिमा युक्त प्रतिमाएँ वस्तु प्रभावोत्पादक है। कला की दृष्टि से इनको खजुराहो, कोणार्क व दिलवाङा में प्राप्त प्रतिमाओं के समकक्ष रखा जा सकता है।