कार्ल विल्हेल्म शीले

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
कपिंग में शीले की मूर्ति

कार्ल विल्हेल्म शीले (Karl Wilhelm Scheele, सन् १७४२ - १७८६), स्वीडेन के रसायनज्ञ थे।

परिचय

शीले का जन्म पॉमरेन्या (Pomerania) के श्ट्रालजुंट (Stralsund) नामक नगर में हुआ था। गोथनबर्गं (Gothenburg) में एक औषधविक्रेता के यहाँ आठ वर्ष काम करके, इन्होंने रसायन का प्रारंभिक ज्ञान पाया। बाद में ये मल्म (Malmo), स्टॉकहोम (Stockholm), अपसाला (Uppsala) तथा कपिंग (Koping) में भी सहायक रसायनज्ञ रहे।

इन्होंने अपना सारा जीवन रासायनिक प्रयोग और अनुसंधान में बिताया। आदिकालीन उपकरणों और सीमित साधान ही इन्हें उपलब्ध थे, किंतु इन्होंने इन्हीं का उपयोग कर अनेक महत्व की खोजें कीं। बिना किसी अन्य की सहायता के, इन्होंने क्लोरीन, बाराइटा, ऑक्सीजन, ग्लिसरीन तथा हाइड्रोजन सल्फाइड को विलग किया और हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल, टार्टरिक अम्ल, बेंज़ोइक अम्ल, आर्सिनियस व, मॉलिब्डिक अम्ल, लैक्टिक अम्ल, साइट्रिक व, मैलिक अम्ल, ऑक्ज़ैलिक अम्ल, गैलिक अम्ल तथा अन्य अम्ल खोज निकाले। मैंगनीज़ के लवण आपने तैयार किए और दिखाया कि इनसे काँच किस प्रकार रँगा जाता है। इन्हीं के नाम पर ताँबे के आर्सेनाइट, एक हरे वर्णक, का तथा टंग्स्टेन के अयस्क 'शेलाइट' का नाम पड़ा है।

इन्होंने स्वतंत्र रूप से यह बात खोज निकाली कि वायु का एक अंश तो ज्वलनशील पदार्थों को जलने देता है और दूसरा इसे रोकता है। प्रूसिक अम्ल का वर्णन करने के पश्चात्, इन्होंने सिद्ध किया कि प्रशियन नील का रंजक गुण इसी के कारण है।

रोग और दरिद्रता से ग्रसित रहने पर भी वैज्ञानिक अनुसंधान में तीव्र उत्साह के कारण, ये अथक परिश्रम करते रहे और विषाक्त पदार्थों से अपनी रक्षा की भी विशेष परवाह न की, जिसके कारण अल्प आयु में ही इनकी मृत्यु हो गई।