औंघड़नाथ मंदिर, मेरठ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
बाबा औंघड़नाथ मंदिर
काली पल्टन वाला मंदिर
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धतासाँचा:br separated entries
देवतामुख्य शिव-पार्वती, अन्य सभी मुख्य भगवान
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिसाँचा:if empty
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 422 पर: No value was provided for longitude।
वास्तु विवरण
शैलीहिन्दू वास्तुकला
निर्मातासाँचा:if empty
स्थापित१८५७
ध्वंससाँचा:ifempty
साँचा:designation/divbox
साँचा:designation/divbox

साँचा:template otherस्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main other

बाबा औंघड़नाथ का मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ महानगर में छावनी क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर सिद्ध क्षेत्र कहलाता है।

मान्यता

यह मान्यता है, कि इस मंदिर में शिवलिंग स्वयंभू है। यानि यह शिवलिंग स्वयं पृथ्वी से बाहर निकला है। तभी यह सद्य फलदाता है। भक्तों की मनोकामनाएं औंघड़दानी शिव स्वरूप में पूरी करने के साथ साथ ही शांति संदेश देते हैं। इसके साथ ही नटराज स्वरूप में क्रांति को भी प्रकाशित करते हैं।

चूंकि यहां भगवान शिव स्वरूप में विद्यमान हैं, इस कारण इसे औंघडनाथ मंदिर कहा जाता है। वैसे यह काली पल्टन वाला मंदिर भी कहलाता है।

स्थापना

इस मंदिर की स्थापना का कोई निश्चित समय ज्ञात नहीं है, लेकिन जनश्रुति के अनुसार यह प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से भी पहले से शहर और आसपास के लोगों के बीच वंदनीय श्रद्धास्थल के रूप में विद्यमान था। वीर मराठाओं के इतिहास में अनेकों पेशवाओं की विजय यात्राओं का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने यहाँ भगवान शंकर की पूजा अर्चना की थी।

१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस मंदिर का विशेष योगदान रहा है।

जीर्णोद्धार

सन १९४४ तक सेना के प्रशिक्षण केन्द्र से सटा यह एक छोटे से शिव मंदिर एवं कुंए के रूप में विद्यमान था। बाद में बढ़ते-बढ़ते सन २ अक्टूबर १९६८ में ब्रह्मलीन ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य कृष्णबोधाश्रम जी महाराज ने नवीन मंदिर का शिलान्यास किया।

वर्तमान रूप

आज यह मंदिर कांवड़ियों की श्रद्धा का केन्द्र बन गया है। लाखों कांवड़िये मंदिर पहुँच कर बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं, व स्वयं को धन्य मानते हैं।

मंदिर

यह मंदिर श्वेत संगमरमर से निर्मित है, जिस पर यथा स्थान उत्कृष्ट नक्काशी भी की गई है। बीच में मुख्य मंदिर बाबा भोलेनाथ एवं माँ पार्वती को समर्पित है, जिसका शिखर अत्यंत ऊँचा है। उस शिखर के ऊपर कलश स्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान एवं भगवती की सौम्य आदमकद मूर्तियाँ स्थापित हैं व बीच में नीचे शिव परिवार सिद्ध शिवलिंग के साथ विद्यमान है। इसके उत्तरी द्वार के बाहर ही इनके वाहन नंदी बैल की एक विशाल मूर्ति स्थापित है। गर्भ गृह के भीतर मंडप एवं छत पर भी काँच का अत्यंत ही सुंदर काम किया हुआ है।

राधा कृष्ण मंदिर

राधाकृष्ण मन्दिर, कालीपलटन

इस मंदिर के उत्तरी ओर ही दूसरा मंदिर राधा-कृष्ण को समर्पित है, जिसका शिखर भी मुख्य मंदिर के समान ही ऊँचा है। इस मंदिर की परिक्रमा में कई सुंदर चित्र बने हुए हैं। गर्भ गृह में राधा कृष्ण की बहुत ही आकर्षक एवं भव्य मूर्तियाँ एक सुंदर रजत मंडप में स्थापित हैं। गर्भ-गृह के बाहर एक बड़ा मण्डप निर्मित है।

सतसंग भवन

मुख्य मंदिर के दक्षिण में सत्संग भवन बना हुआ है।

सन्दर्भ