ऑपरेशन चंगेज़ खान

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ऑपरेशन चंगेज़ खान
१९७१ का भारत-पाक युद्ध का भाग
तिथि 3 दिसम्बर 1971
स्थान 11 फॉरवर्ड एयरफील्ड[१]
परिणाम अनिर्णायक
योद्धा
साँचा:flagicon भारत साँचा:flagicon पाकिस्तान
  • Pakistani Air Force Ensign.svg पाकिस्तानी वायु सेना
सेनानायक
Air Force Ensign of India.svg प्रताप चंद्र लाल Pakistani Air Force Ensign.svg अब्दुर रहीम खान
शक्ति/क्षमता
Air Force Ensign of India.svg एंटी-एयरक्राफ्ट बंदूकें
सैम मिशाइल
Pakistani Air Force Ensign.svg पहले दो चरण में ३६ एयरक्राफ़्ट
तीसरे चरण में १५ एयरक्राफ़्ट
मृत्यु एवं हानि
Air Force Ensign of India.svg भारत के बहुत सारे पश्चिमी एयरक्राफ़्ट और राडार क्षतिग्रस्त। अधिकतर को उसी रात में ठीक कर लिया गया।[३] Pakistani Air Force Ensign.svg कुछ नहीं[३]

ऑपरेशन चंगेज़ खान ३ दिसम्बर १९७१ को भारतीय वायु सेना के अग्रणी युद्धपोतों और राडार पर पाकिस्तानी वायु सेना द्वारा अचानक से किये गये हमले के कुटशब्द थे। यह १९७१ के भारत-पाक युद्ध की औपचारिक शुरुआत थी। यह ऑपरेशन ११ भारतीय हवाई-क्षेत्रों और कश्मीर में स्थित तोपों पर था। भारतीय सेना ने अपने सभी युद्धपोत मजबूत बंकरों में छुपा लिये और पाकिस्तान का यह ऑपरेशन असफल रहा।

पृष्ठभूमि

साँचा:main

मार्च 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) को पाकिस्तान से बांग्लादेश मुक्ति युद्ध की शुरुआत के रूप में मुक्त घोषित कर दिया जिसका कारण पूर्वी पाकिस्तान का राजनीतिक वियोजन और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तथा पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा क्रूर दमनकारी बल प्रयोग रहा।[४][५]

इन्दिरा गांधी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य विदेशी दौरों में शर्णार्थियों की दुर्दशा और उसके भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को उजागर किया[६] जिससे भारत, सोवियत संघ, जापान और यूरोप के देशों नें पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की।[७] हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन ने इसमें थोड़ी रूचि दिखाई और सीधे तौर पर मुक्तिवाहिनी की सहयता करने से मना कर दिया और उसकी सहायता करने का विरोध किया।[८][९] (दक्षिण एशिया में सोवियत संघ के प्रभाव का सम्भावित डर[७])। भारत द्वार मुक्तिबाहीनी की सहायता जारी रही जिससे वो अटूट हो गयी और पाकिस्तानी सेना और मुक्तिवाहीनी के मध्य युद्ध बढ़ता चला गया। ९ अगलस्त १९७१ को भारत ने रूस के साथ २० वर्ष की सहयोग संधि की।[१०] जिससे किसी भी देश पर यदि हमला होता है तो एक दूसरे को हवाई सहायता देंगे। इससे यदि भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध होता है तो अमेरिका और चीन के सम्भावित हस्तक्षेप से आवरण मिल गया। पाकिस्तानी नेताओं को इससे साफ हो गया कि भारतीय सेना का सहयोग पाकिस्तान के लिए अटल हो गया।[११]

भारतीय कार्यवाही

भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मध्यरात्रि के थोड़ी देर बाद रेड़ियो पर सम्बोधित किया[१२] जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी आक्रमण की सूचना दी और भारतीय वायु सेना ने वापसी की। 21:00 बजे तक, ३५वें बेड़े, १०६वें बेड़े और साथ ही ५वें और १६वें बेड़े पाकिस्तान पर दूर तक धावा बोलने के लिए तैयार हो गये। इन्होंने पाकिस्तान के मुरीद, मियानवाली, सरगोढ़ा, चन्देर, रिसलेवाला, रफ़ीक़ी और मसरूर के सामने उड़ान भरी। कुल मिलाकर उस रात २३ जगह धावा बोला गया जिससे सरगोढ़ा और मसरूर को काफी नुकसान हुआ।

रात में भी भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी युद्धपोतों तेजगाँव और बाद में कुरमितोल्ला को भी मार गिराया। इसी समय पर भारतीय वायु सेना ने अगले दिन के लिए अपने युद्धपोतों को आगे बढ़ाया और आगे के कुछ ही दिनों में पाकिस्तानी वायुसेना पर अपनी श्रेष्टता सिद्ध कर दी।[१३][११]

सन्दर्भ

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सन्दर्भ विस्तार

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  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite book
  3. "My years with the IAF" by Air Chief Marshal P C Lal
  4. साँचा:cite web
  5. साँचा:cite web
  6. साँचा:cite news
  7. Donaldson 1972
  8. साँचा:cite book
  9. स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ़ बायोलोजिकल वेपन क्न्वेंशन में १० अप्रैल १९७१ को राष्ट्रपति एन निक्सन की टिप्पणी

    Every Great Power must follow the principle that it should not directly or indirectly allow any other nation to use force or armed aggression against one of its neighbors.

    .

    USIS Text, pp 1–2.

  10. Kapur 1972
  11. साँचा:cite news
  12. साँचा:cite news
  13. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।