पूर्वी पाकिस्तान

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पूर्वी पाकिस्तान
पूर्वतः पाकिस्तान का पश्चिमी भाग

१९५५–१९७१
राजधानी ढाका
भाषाएँ बांग्ला भाषाa (आधिकारिक)
अंग्रेज़ी
धार्मिक समूह इस्लाम
शासन साँचा:nowrapसाँचा:ns0
प्रशासक
 -  १९६०–१९६२ आज़म ख़ान
 -  १९६२–१९६९ अब्दुल मोनिम ख़ान
 -  १९६९–१९७१ सैयद मोहम्मद अहसान
 -  १९७१ आमिर अब्दुल्लाह खान नियाज़ी
मुख्यामंत्री
 -  १९५५–१९५६, १९५८ अब हुसैन सर्कार
 -  १९५६–१९५८ अताउर रहमान खान
राज्यपाल
 -  १९५५–१९५६ अमीरुद्दीन अहमद
 -  १९५६–१९५८ अब्दुल कासिम फज़लुल हक़
 -  १९५८–१९६० जकइर् हुसैन
विधायिका विधानसभा
ऐतिहासिक युग शीतयुद्ध
 -  स्थापना १९५५
 -  अंतिम समझौता २२ नवंबर १९५४
 -  बांग्लादेश मुक्ति युद्ध २६ मार्च १९७१
 -  भारत-पाकिस्तान युद्ध ३ दिसंबर १९७१
 -  पाकिस्तान का आत्मसमर्पण १६ दिसंबर १९७१
Area १४७५७० किमी ² साँचा:nowrap
मुद्रा पाकिस्तानी रुपय
आज इन देशों का हिस्सा है: साँचा:flag/core
a. पाकिस्तान अधिराज्य की द्वितीय राष्ट्रीयभाषा

पूर्वी पाकिस्तान(साँचा:lang-bn, साँचा:transl; साँचा:lang-ur, साँचा:transl; साँचा:lang-en, ईस्ट पाकिस्तान), एक इकाई व्यवस्था के तहत, तत्कालीन पाकिस्तान की पूर्वी इकाई थी।[१] यह वर्तमान बांग्लादेश के स्थान पर, १९५५ से १९७१ तक विद्यमान था। इसकी राजधनी ढाका थी, एवं राजभाषा बांग्ला थी।[२] पूर्वी पाकिस्तान का कुल भूक्षेत्र, १,४७,५७० वर्ग की•मी• था। यह पूर्व, उत्तर व पश्चिम दिशाओं में भारत से घिरा हुआ था, और दक्षिण की ओर, बंगाल की खाड़ी के तट पर था। साथ ही पूर्व में यह एक छोटी सी सीमा रेखा, बर्मा के साथ साझा करता था। यह पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रंशन में से एक रहा है, और अर्थव्यवस्था, राजनैतिक प्रतिनिधितिव व जनसंख्या के आधार पर, तत्कालीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य था। [३] अंत्यतः, १६ दिसंबर १९७१ को, नौ महीनों तक चले युद्ध के पश्चात्, पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्रता घोषित कर दी।[२]

पृष्ठभूमि

पाकिस्तान की स्थापना पाकिस्तान आंदोलन का सीधा परिणाम था, जिसके रहनुमा मुहम्मद अली जिन्नाह थे। सन 1947 में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के पारित होने के साथ ही, भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान की स्थापना हुई थी। इस विभाजन के तहत ब्रिटिश भारत के पूर्वी व पष्चिमी छोरों पर मुस्लिम बहुल इलाकों को पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया। साथ ही इसी विभाजन के तहत, ब्रिटिश-भारत के पंजाब एवं बंगाल प्रांतों को भी विभाजित कर दिया गया और पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब को पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया गया। पाकिस्तान के भूक्षेत्र में ब्रिटिश-शासित भारत के पाँच प्रांत थे: पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, बलूचिस्तान, सिंध और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत। साथ ही कुछ रियासतों ने भी पाकिस्तानी संध में शामिल होने का प्रस्ताव स्वीकार किया था।

विभाजन के बाद, धर्म के नाम पर लाखों लोगों ने इस रेखा के दोनो पार पलायन किया था। तत्पश्चात, क्योंकि उस देश में कोई भी संविधान नहिं था, इसीलिए पाकिस्तान को १९३५ के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत शासित किया जा रहाथा। संविधान नहीं बन पाने का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था, की दोनों भागों के सियासी नेतृत्व, संविधान से सम्बंधित कई अहम विषयों पर समन्वय की स्थिति में नहीं आ पा रहे थे। विभाजन व पाकिस्तान की स्थापना के पश्चात्‌, ऐसी स्थिति में, व्यवस्थापिका को पाकिस्तान के दो पृथक भागों को, जो करीब हजार मील की भारतीय भूमि से अलग-थलग थे, को एक ही जगह से, प्रशासित करने में खासी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था। इसके अलावा, पश्चिमी भाग स्वयं ही चार प्रांतों, कबाइली इलाके एवं विभिन्न रियासतों में विभाजित था, जबकी पूर्वी भाग को एक प्रांत था। इसके अलावा, पूर्वी भाग में पश्चिमी भाग के मुकाबले, व्यवस्था, नौकरशाही व सैन्य सुरक्षा की अति निष्पर्याप्ती थी। तथा, पश्चिमी भाग तुलनात्मक रूप से अधिक विकसित था एवं उसके पास बड़ी सेना व पर्याप्त नौकरशाही व व्यवस्थापिका थी। अतः पूर्वी भाग, जो पश्चिम के ही तुलनात्मक जनसंख्या रखता था, के लिये विकास व सम्पन्नता का रास्ता कठिन एवं पश्चिम के मुकाबले असाम्य था। ऐसी स्थिति में पूर्वी हिस्से की नेत्रित्व के मन में भाषा व सांस्कृतिक मुद्दों के अलावा, शक्तियों व सुविधाओं के बंटवारे व सामरिक व आर्थिक समानता के विषय को लेकर गंभीर प्रश्न थे।[४]

इस भौगोलिक स्थिति से उपजी प्रशासनिक व असमानता की कठिनाई, व आर्थिक नाउम्मीदी के समाधान के लिए एक विशेष प्रांतीय व्यवस्था का मसौदा तैयार किया गया, जिसे "एक इकाई व्यवस्था" कहा गया, जिसके तहत दोनों हिसों में केवल एक ही प्रांत होगा, अतः दोनों को बराबर की राजनीतिक शक्ति प्राप्त होगी। साथ ही, इस योजना में अन्य विकस नीतियों को भी शामिल किया गया था। प्रधानमंत्री चौधरी मुहम्मद अली ने १४ अक्टूब १९५५ को, ३० सितंबर १९५५ मे पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा में पारित, पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों को मिला देने के अधिनियम को कार्यान्वित कर, वन युनिट सिस्टम को लागू कर दिया। तत्पूर्व, प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने २२ नवंबर १९५४ को इसकी आधिकारिक घोषणा की थी।

इस सब के अतिरिक्त, इस व्यवस्था का एक और पहलू था: कई राजनीतिज्ञों का यह भी प्रयास था की पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रीय परम्पराओं व संस्कृतीयो को खत्म कर के पाकिस्तान को एक राष्ट्रीय संस्कृति के तरफ ले जाया जाये। अतः विभिन्न क्षेत्रीय प्रांतों के अंत से पूरे देश को एक सांस्कृतिक इकाई बनाने में सुविधा होती। अतः इस नीति को प्रांतीय व क्षेत्रीय संस्कृतियों को खत्म कर, एक राष्ट्रीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भी लाया गया था।

एक इकाई व्यवस्था

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स्वतंत्रता पश्चात पाकिस्तानी भूमि का मानचित्र, पाकिस्तान के दोनों भागों को दखा जा सकता है।

एक इकाई व्यवस्था अथवा वन-यूनिट सीस्टम, पाकिस्तान की एक पुर्वतः परवर्तित प्रशासनिक व्यवस्था थी, जिसके अंतर्गत, तत्कालीन पाकिस्तानी भूमि के दोनों भिन्न टुकड़ों को "एक प्रशासनिक इकाई" के रूप में ही शासित किये जाने की योजना रखी गई थी। इस तरह की प्रशासनिक नीति को अपनाने का मुख्य कारण, सर्कार द्वारा, पाकिस्तानी अधिराज्य के दो विभक्त एवं पृथक भौगोलिक आंचलों की एक ही केंद्रीय व्यवस्था के अंतर्गत शासन में आने वाली घोर प्रशासनिक असुविधाएँ, एवं भौगोलिक कठिनाईयाँ बताई गई थी। अतः इस भौगोलिक व प्रशासनिक विषय के समाधान के रूप में, सरकार ने इन दो भौगोलीय हिस्सों को ही, एक महासंघीय ढांचे के अंतर्गत, पाकिस्तान के दो वाहिद प्रशासनिक इकाइयों के रूप में स्थापित करने की नीति बनाई गई। इस्के तहत, तत्कालीन मुमलिकात-ए-पाकिस्तान के, पूर्वी भाग में मौजूद स्थिति के अनुसार ही, पश्चिमी भाग के पाँचों प्रांतों व उनकी प्रांतीय सरकारों को भंग कर, एक प्रांत, पश्चिमी पाकिस्तान गठित किया गया, वहीं पूर्वी भाग (जो अब बांग्लादेश है) को पूर्वी पाकिस्तान कह कर गठित किया गया। तत्प्रकार, पाकिस्तान, एक इकाई योजना के तहत, महज दो प्रांतों में विभाजित एक राज्य बन गया।

वन यूनिट योजना की घोषणा प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा के शासनकाल के दौरान २२ नवंबर १९५४ को की गई, और १४ अक्टूबर १९५५ को देश के पश्चिमी भाग के सभी प्रांतों को एकीकृत कर, पश्चिमी पाकिस्तान प्रांत गठित किया गया, जिसमें, सभी प्रांतों के अलावा तत्कालीन, राजशाहियों और कबाइली इलाके भी शामिल थे। इस प्रांत में १२ प्रमंडल थे, और इसकी राजधानी लाहौर थी। दूसरी ओर पूर्वी बंगाल के प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान का नाम दिया गया, जिसकी राजधानी ढाका थी। संघीय राजधानी(कार्यपालिका) को वर्ष १९५९ में कराँची से रावलपिंडी स्थानांतरित किया गया, जहां सेना मुख्यालय था, और नई राजधानी, इस्लामाबाद के पूरा होने तक यहां मौजूद रहा जबकि संघीय विधानपालिका को ढाका में स्थापित किया गया।

इस नीति का उद्देश्य बज़ाहिर प्रशासनिक सुधार लाना था लेकिन कई लिहाज से यह बहुत विनाशकारी कदम था। पश्चिमी पाकिस्तान में मौजूद बहुत सारी राज्यों ने इस आश्वासन पर विभाजन के समय पाकिस्तान में शामिल हो गए थे कि उनकी स्वायत्तता कायम रखी जाएगी लेकिन वन इकाई बना देने के फैसले से सभी स्थानीय राज्यों का अंत हो गया। इस संबंध में बहावलपुर, खीरिपोर और कलात के राज्य विशेषकर उल्लेखनीय हैं। मामले इस समय अधिक गंभीर समय १९५८ ई। के तख्तापलट के बाद मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया गया और राष्ट्रपति ने पश्चिमी पाकिस्तान के विकल्प अपने पास रख लिए। राजनीतिक विशेषज्ञों यह भी समझते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों को एकजुट करने के उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान की भाषाई और राजनीतिक इकाई का जोर तोड़ना था।

अंततः एक जुलाई १९७० को राष्ट्रपति याह्या खान ने एक इकाई का सफाया करते हुए पश्चिमी पाकिस्तान के सभी प्रांतों बहाल कर दिया।

राजनीतिक इतिहास

सन 1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान की स्थापना हुई थी। इस विभाजन के तहत ब्रिटिश भारत के पूर्वी व पष्चिमी छोरों पर मुस्लिम बहुल इलाकों को पाकिस्तान में शामिल कर दिया गया। साथ ही इसी विभाजन के तहत, ब्रिटिश-भारत के पंजाब एवं बंगाल प्रांतों को भी विभाजित कर दिया गया और पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब को पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया गया। विभाजन के समय हुई खुनी झड़पों ने बंगाली मुसलमानों और हिंदुओं को और भी विभाजित कर दिया।[५][६] उस सैमआय, बंगाल के मुस्लिम बहुल ज़िले, माउंटबैटन योजना को स्वीकृति के पश्चात्, विभाजन के पक्षधार थे, और, उनहोंने पूर्वी बंगालको पाकिस्तान अधिराज्य के साथ सम्मिलित कर दिया।[७] सन् १९४७ से १९५४ तक पूर्वी बंगाल, पाकिस्तान की ही एक स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई रहा, जो नूरुल आमीन के नेतृत्व में, पाकिस्तान मुस्लिम लीग द्वारा शासित किया जा रहा था।[७] वर्ष १९५५ में, बंगाली प्रधानमंत्री मुहम्मद अली बोगरा ने प्रान्त पूर्वी बंगाल को विस्थापित कर, एक इकाई नीति के अंतर्गत, पूर्वी पाकिस्तान को स्थापित किया, जिसकी राजधानी, ढाका थी।[२] १९५४ के चुनाव में पाकिस्तान मुस्लिम लीग को आवामी लीग द्वारा नेत्रित यूनाइटेड फ्रंट के हाथों क़रारी हार का सामना करना पड़ा था।[८][९][१०] आवामी लीग ने हुसैन शहीद सुहरावर्दी को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री नियुक्त कर, पूर्वी पाकिस्तान की बाग़-डोर अपने हाथ में ली। इसके पश्चात् आने वाली सत्तावादीकाल को, जो १९५४ से १९७१ तक अस्तित्व में रही, अक्सर बड़े पैमाने पर दमन, असंतोष, और राजनीतिक उपेक्षा और अज्ञानता का काल माना जाता है।[११][१२][१३][३] वर्ष १९६५ के राष्ट्रपतिज्ञ चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान एकमत से ने अयूब खान के विरुद्ध, फ़ातिमा जिन्नाह के पक्ष में मतदान किया।[१४] इन चुनावों को व्यापक रूप से अयूब खान के पक्ष में, धांधलीपरास्त माना गया था, एवं ऐसा भी मन गया था की उनमें, राजकीय संरक्षण में, अप्रत्यक्ष चुनाव के निर्वाचक मंडल को राजकीय संरक्षण व धमकी के माध्यम से प्रभावित करने की कोशिश की गयी थी। [१४]

पूरव और पशिम के बीच की ये आर्थिक असमानता, पष्चिमी नेतृत्व की अधिपत्यतावादि बर्ताव, और यह धारणा की अल्पसंख्यक पश्चिम, बहुसंख्यक पूर्वी हिस्से पर राज कर रहा है, तथा सम्पन्नता प्राप्त कर रहा है, ने पूर्वी पाकिस्तान में, बंगाली राष्ट्रवाद की भावना जगाना शुरू कर दी।[१५] १९६६ में, आवामी लीग द्वारा लायी गयी छह दफ़ा आंदोलन ने जनता के बीच, राज्य स्वायत्तता के लिए समर्थन बढ़ा दिया,[१६] और आवामी लीग इस्सी मुद्दे को लेकर १९७० के चुनाव में पुरज़ोर प्रदर्शन किया और पूर्वी पाकिस्तान में स्पष्ट एवं अनन्य बहुमत प्राप्त किया, और इसी के साथ, आवामी लीग ने पाकिस्तान की संसद में भी स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया[१७][१८]

आम चुनाव के पश्चात्, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी ने आवामी लीग के जनादेश को मान ने से इनकार किया, और आवामी लीग के सर्कार बनाने का विरोध करना शुरू कर दिया। इस स्थिति में, तत्कालीन सैन्य राष्ट्रपति याह्या खान ने दोनों राजनैतिक दलों के बीच सुलह करने का प्रयास किया, और केंद्र में, सहयोग से सर्कार बनाने की सलाह दी। पश्चिमी पाकिस्तान के इस रवैये ने पूर्वी पाकिस्तान में भीषण विद्रोह व विरोध प्रदर्शन को सुलगा दिया, और दोनों दलों के बीच की चर्चा विफल हो गयी जब याह्या खान ने ऑपरेशन सर्चलाईट के नाम से, पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई के आदेश दे दिए।[१७] इसके उत्तर में, आवामी लीग ने २६ मार्च १९७१ पउर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, और एक मुक्ति युद्ध की घोषणा कर दी, जिसका समर्थन करते हुए, भारत ने मुक्ति वाहिनी को सैन्य सहयोग प्रदान करना शुरू कर दिया।[१९] इसके बाद छिड़ा युद्ध, १६ दिसंबर १९७१ को खत्म हुआ, जब ढाका स्थित पाकिस्तानी सेना को भारत-बांग्लादेश की संयुक्त सेना द्वारा पददलित होना पड़ा, और आत्मसमर्पण के उपकरणों पर हस्ताक्षर करना पड़ा। इस युद्ध ने द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् सबसे अधिक युद्ध-बंदी तैयार किये थे।, [१९] अंत्यतः, १६ दिसंबर १९७१ को पूर्वी पाकिस्तान ने आधिकारिक रूप से बांग्लादेश के नाम से स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।[१९]

शासन प्रणाली

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ