एस. के. पाटिल

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सदाशिव कानोजी पाटिल (एस. के. पाटिल (1898 - 1981) : एक अनुभवी स्वतंत्रता सेनानी, वे एक योग्य पत्रकार, विद्वान और वक्ता थे। वे तीन बार बॉम्बे के मेयर चुने गए और उन्हें "बॉम्बे के बेताज बादशाह" के रूप में जाना जाता है। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी लोकसभा के सदस्य तथा देश के 7वें रेलमंत्री के रूप में कार्य किया।

जीवन परिचय

एस. के. पाटिल का जन्म, 14 अगस्त 1898 में सिंधुदुर्ग ज़िले के जराप गांव में हुआ था। उनके पिता कोल्हापुर राज्य में एक पुलिस अधिकारी थे। उन्होंने पूना में कानून का अध्ययन किया,

जब महात्मा गाँधी ने अपना प्रसिद्ध असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया तो उस समय वर्ष 1920 में एस. के. पाटिल ने 'सेंट जेवियर कॉलेज' छोड़ दिया। बाद के समय में जब महात्मा गाँधी ने आन्दोलन वापस लिया, तब एस. के. पाटिल ने 1921 में 23 साल की उम्र में बैरिस्टर वेलिंगकर के चैंबर्स में शामिल होने के लिए बॉम्बे चले गए।

उन्होंने 1929 में अपना स्वयं का कानून अभ्यास शुरू किया और मुख्य रूप से स्मॉल कॉज कोर्ट और सिटी सिविल कोर्ट, और बॉम्बे हाई कोर्ट के अपीलीय पक्ष पर कुछ सिविल अपील मामलों में अभ्यास किया।

1940 के दशक के मध्य में अपने सक्रिय अभ्यास के अंत तक, उन्हें उच्च न्यायालय के समक्ष प्रथम अपील में एक सशक्त प्लीडर के रूप में जाना जाने लगा। उन्हें अक्सर बॉम्बे राज्य के विभिन्न जिला न्यायालयों में पेश होने के लिए कहा जाता था।

राजनैतिक सफर

1946 में उन्हें बॉम्बे राज्य से भारत की संविधान सभा के लिए मनोनीत किए गए। स्वतंत्रता के बाद 1952, 1957, 1962 के संसदीय चुनावों में, मुम्बई-(साउथ) संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप चार बार लोकसभा के सदस्य चुने गए।

दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद वह नेहरू मंत्रिमंडल में नागरिक उड्डयन मंत्री बने और तीसरी बार चुनाव जीतने के बाद, वह लाल बहादुर शास्त्री तथा इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में (9 जून 1964 से 12 मार्च 1967) उन्होंने रेलमंत्री के रूप कार्य किया।

वह 1967 में चौथी लोकसभा के लिए मुंबई-(दक्षिण) (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) में जॉर्ज फर्नांडीस से हार गए थे। इसके बाद उन्होंने 1969 में गुजरात के बनासकांठा संसदीय सीट से उपचुनाव लड़ा और जीत कर फिर से चौथी लोकसभा में शामिल हो गए।

1969 में, कांग्रेस पार्टी में विभाजन के दौरान, वह मोरारजी देसाई और के. कामराज के साथ कांग्रेस (ओ) गुट के प्रमुख नेता बन गए। उन्होंने 1971 में बनासकांठा लोकसभा सीट से कांग्रेस (ओ) के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस (आर) के उम्मीदवार से हार गए।

चुनाव में हार के बाद वह सक्रिय राजनीति से दूर होने लगे, 24 मई 1981 को उनका निधन हो गया।