एनी बेसेन्ट

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
एनी बेसेन्ट
Annie Besant in 1897.JPG
एनी बेसेन्ट 1897 में
जन्म साँचा:birth date
लन्दन कलफम
मृत्यु साँचा:death date and age
अड्यार मद्रास
प्रसिद्धि कारण थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला
जीवनसाथी रेवरेण्ड फ्रैंक बीसेंट

डॉ एनी बेसेन्ट (1 अक्टूबर 1847 - 20 सितम्बर 1933) अग्रणी आध्यात्मिक, थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला थीं। सन 1917 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा भी बनीं। एनी बेसेंट से प्रेरणा पाकर भारत के कई समाज सेवकों को बल मिला।

जीवनी

डॉ॰ एनी बेसेन्ट (Dr. Annie Wood Besant) का जन्म लन्दन शहर में १८४७ में हुआ। इनके पिता अंग्रेज थे। पिता पेशे से डाक्टर थे। पिता की डाक्टरी पेशे से अलग गणित एवं दर्शन में गहरी रूचि थी। इनकी माता एक आदर्श आयरिस महिला थीं। डॉ॰ बेसेन्ट के ऊपर इनके माता पिता के धार्मिक विचारों का गहरा प्रभाव था। अपने पिता की मृत्यु के समय डॉ॰ बेसेन्ट मात्र पाँच वर्ष की थी। पिता की मृत्यु के बाद धनाभाव के कारण इनकी माता इन्हें हैरो ले गई। वहाँ मिस मेरियट के संरक्षण में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की। मिस मेरियट इन्हें अल्पायु में ही फ्रांस तथा जर्मनी ले गई तथा उन देशों की भाषा सीखीं। १७ वर्ष की आयु में अपनी माँ के पास वापस आ गईं।

युवावस्था में इनका परिचय रेवरेण्ड फ्रैंक नामक एक युवा पादरी से हुआ और १८६७ में उसी से एनी बुड का विवाह भी हो गया। पति के विचारों से असमानता के कारण दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा। संकुचित विचारों वाला पति असाधारण व्यक्तित्व सम्पन्न स्वतंत्र विचारों वाली आत्मविश्वासी महिला को साथ नहीं रख सके। १८७० तक वे दो बच्चों की माँ बन चुकी थीं। ईश्वर, बाइबिल और ईसाई धर्म पर से उनकी आस्था डिग गई। पादरी-पति और पत्नी का परस्पर निर्वाह कठिन हो गया और अन्ततोगत्वा १८७४ में सम्बन्ध-विच्छेद हो गया। तलाक के पश्चात् एनी बेसेन्ट को गम्भीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा और उन्हें स्वतंत्र विचार सम्बन्धी लेख लिखकर धनोपार्जन करना पड़ा।

डॉ॰ बेसेन्ट इसी समय चार्ल्स व्रेडला के सम्पर्क में आईं। अब वह सन्देहवादी के स्थान पर ईश्वरवादी हो गईं। कानून की सहायता से उनके पति दोनों बच्चों को प्राप्त करने में सफल हो गये। इस घटना से उन्हें हार्दिक कष्ट हुआ।

यह अत्यन्त अमानवीय कानून है जिसने बच्चों को उनकी माँ से अलग करवा दिया है। मैं अपने दु:खों का निवारण दूसरों के दु:ख दूर करके करुंगी और सब अनाथ एवं असहाय बच्चों की माँ बनूंगी।

— डॉ॰ बेसेन्ट, ब्रिटेन के कानून की निन्दा करते हुए

डॉ॰ बेसेन्ट ने अपने इस कथन को सत्य सिद्ध किया और अपना अधिकांश जीवन दीन-हीन अनाथों की सेवा में ही व्यतीत किया।

महान् ख्याति प्राप्त पत्रकार विलियन स्टीड के सम्पर्क में आने पर वे लेखन एवं प्रकाशन के कार्य में अधिक रुचि लेने लगीं। अपना अधिकांश समय मजदूरों, अकाल पीड़ितों तथा झुग्गी झोपड़ियों में रहने वालों को सुविधा दिलाने में व्यतीत किया। वह कई वर्षों तक इंग्लैण्ड की सर्वाधिक शक्तिशाली महिला ट्रेड यूनियन की सेक्रेटरी रहीं। वे अपने ज्ञान एवं शक्ति को सेवा के माध्यम से चारों ओर फैलाना नितान्त आवश्यक समझती थीं। उनका विचार था कि बिना स्वतंत्र विचारों के सत्य की खोज संभव नहीं है।

हेनरी ओल्कॉट (बायें) तथा चार्ल्स लीडबीटर (दायें) के साथ एनी बेसेन्त (अडयार, मद्रास, १९०५)

१८७८ में ही उन्होंने प्रथम बार भारतवर्ष के बारे में अपने विचार प्रकट किये। उनके लेख तथा विचारों ने भारतीयों के मन में उनके प्रति स्नेह उत्पन्न कर दिया। अब वे भारतीयों के बीच कार्य करने के बारे में दिन-रात सोचने लगीं। १८८३ में वे समाजवादी विचारधारा की ओर आकर्षित हुईं। उन्होंने 'सोसलिस्ट डिफेन्स संगठन' नाम की संस्था बनाई। इस संस्था में उनकी सेवाओं ने उन्हें काफी सम्मान दिया। इस संस्था ने उन मजदूरों को दण्ड मिलने से सुरक्षा प्रदान की जो लन्दन की सड़कों पर निकलने वाले जुलूस में हिस्सा लेते थे।

१८८९ में एनी बेसेन्ट थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुईं। उनके अन्दर एक शक्तिशाली अद्वितीय और विलक्षण भाषण देने की कला निहित थी। अत: बहुत शीघ्र उन्होंने अपने लिये थियोसोफिकल सोसायटी की एक प्रमुख वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को थियोसोफी की शाखाओं के माध्यम से एकता के सूत्र में बाधने का आजीवन प्रयास किया। उन्होंने भारत को थियोसोफी की गतिविधियों का केन्द्र बनाया।

उनका भारत आगमन १८९३ में हुआ। सन् १९०६ तक इनका अधिकांश समय वाराणसी में बीता। वे १९०७ में थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्षा निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिन्दू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने राष्ट्रीय पुनर्जागरण का कार्य प्रारम्भ किया। भारत के लिये राजनीतिक स्वतंत्रता आवश्यक है इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने 'होमरूल आन्दोलन' संगठित करके उसका नेतृत्व किया।

२० सितम्बर १९३३ को वे ब्रह्मलीन हो गई। आजीवन वाराणसी को ही हृदय से अपना घर मानने वाली बेसेन्ट की अस्थियाँ वाराणसी लाई गयीं और शान्ति-कुंज से निकले एक विशाल जन-समूह ने उन अपशेषों को ससम्मान सुरसरि को समर्पित कर दिया।

डॉ॰ एनी बेसेन्ट के विचार

भारत हितैषी एनी बेसेन्ट

डॉ॰ बेसेन्ट के जीवन का मूलमंत्र था 'कर्म'। वह जिस सिद्धान्त पर विश्वास करतीं उसे अपने जीवन में उतार कर उपदेश देतीं। वे भारत को अपनी मातृभूमि समझती थीं। वे जन्म से आयरिश, विवाह से अंग्रेज तथा भारत को अपना लेने के कारण भारतीय थीं। तिलक, जिन्ना एवं महात्मा गाँधी आदि ने उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा की। वे भारत की स्वतंत्रता के नाम पर अपना बलिदान करने को सदैव तत्पर रहती थीं।

वे भारतीय वर्ण व्यवस्था की प्रशंसक थीं। परन्तु उनके सामने समस्या थी कि इसे व्यवहारिक कैसे बनाया जाय ताकि सामाजिक तनाव कम हो। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए। शिक्षा में धार्मिक शिक्षा का समावेश हो। ऐसी शिक्षा देने के लिए उन्होंने १८९८ में वाराणसी में सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल की स्थापना की। सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जाति व्यवस्था, विधवा विवाह, विदेश यात्रा आदि को दूर करने के लिए उन्होंने 'ब्रदर्स ऑफ सर्विस' नामक संस्था का संगठन किया। इस संस्था की सदस्यता के लिये आवश्यक था कि उसे नीचे लिखे प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ता था -

(१) मैं जाति पाँति पर आधारित छुआछूत नहीं करुँगा।
(२) मैं अपने पुत्रों का विवाह १८ वर्ष से पहले नहीं करुँगा।
(३) मैं अपनी पुत्रियों का विवाह १६ वर्ष से पहले नहीं करुंगा।
(४) मैं पत्नी, पुत्रियों और कुटुम्ब की अन्य स्त्रियों को शिक्षा दिलाऊँगा; कन्या शिक्षा का प्रचार करुँगा। स्त्रियों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करुँगा।
(५) मैं जन साधारण में शिक्षा का प्रचार करुँगा।
(६) मैं सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में वर्ग पर आधारित भेद-भाव को मिटाने का प्रयास करुँगा।
(७) मैं सक्रिय रूप से उन सामाजिक बन्धनों का विरोध करुँगा जो विधवा, स्त्री के सामने आते हैं तो पुनर्विवाह करती हैं।
(८) मैं कार्यकर्ताओं में आध्यात्मिक शिक्षा एवं सामाजिक और राजनीतिक उन्नति के क्षेत्र में एकता लाने का प्रयत्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व व निर्देशन में करुंगा।

डॉ॰ एनी बेसेन्ट की मान्यता थी कि बिना राजनैतिक स्वतंत्रता के इन सभी कठिनाइयों का समाधान सम्भव नहीं है।

डॉ॰ एनी बेसेन्ट स्वभावतः धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। उनके राजनीतिक विचार की आधारशिला थी उनके आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्य। उनका विचार था कि अच्छाई के मार्ग का निर्धारण बिना अध्यात्म के संभव नहीं। कल्याणकारी जीवन प्राप्त करने के लिये मनुष्य की इच्छाओं को दैवी इच्छा के अधीन होना चाहिये। राष्ट्र का निर्माण एवं विकास तभी सम्भव है जब उस देश के विभिन्न धर्मों, मान्यताओं एवं संस्कृतियों में एकता स्थापित हो। सच्चे धर्म का ज्ञान आध्यात्मिक चेतना द्वारा ही मिलता है। उनके इन विचारों को महात्मा गाँधी ने भी स्वीकार किया। प्राचीन भारत की सभ्यता एवं संस्कृति का स्वरूप आध्यात्मिक था। यही आध्यात्मिकता उस समय के भारतीयों की निधि थी।

डॉ॰ बेसेन्ट का उद्देश्य था हिन्दू समाज एवं उसकी आध्यात्मिकता में आयी हुई विकृतियों को दूर करना। उन्होंने भारतीय पुनर्जन्म में विश्वास करना शुरू किया। उनका निश्चित मत था कि वह पिछले जन्म में हिन्दू थीं। वह धर्म और विज्ञान में कोई भेद नहीं मानती थीं। उनका धार्मिक सहिष्णुता में पूर्ण विश्वास था। उन्होंने भारतीय धर्म का गम्भीर अध्ययन किया। उनका भगवद्गीता का अनुवाद 'थाट्स आन दी स्टडी ऑफ दी भगवद्गीता' इस बात का प्रमाण है कि हिन्दू धर्म एवं दर्शन में उनकी गहरी आस्था थी। वे कहा करती थीं कि हिन्दू धर्म में इतने सम्प्रदायों का होना इस बात का प्रमाण है कि इसमें स्वतंत्र बौद्धिक विकास को प्रोत्साहन दिया जाता है। वे यह मानती थीं कि विश्व को मार्ग दर्शन करने की क्षमता केवल भारत में निहित है। वे भारत के सदियों से अन्धविश्वासों से ग्रस्त मानव को मुक्त करना चाहती थीं।

डॉ॰ बेसेन्ट ने निर्धनों की सेवा का आदर्श समाजवाद में देखा। गरीबी दूर करने के लिये उनका विश्वास था कि औद्योगीकरण हो। उन्होंने देखा कि नारी को किसी प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी। वे लोग भोग की वस्तु समझी जाती थीं। इस दु:खद स्थिति से डॉ॰ बेसेन्ट का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने नारी सुरक्षा का प्रश्न उठाया और जोर देकर कहा कि समाज में सर्वांगीण विकास के लिये नारी अधिकारों को सुरक्षित करना आवश्यक है। डॉ॰ बेसेन्ट प्राचीन धर्म आधारित वर्ण व्यवस्था की समर्थक थीं। वर्ण व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य कार्य विभाजन था जिसके अनुसार समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्यों को करने की योग्यता द्वारा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र का स्थान प्राप्त करता था। वे कहा करती थीं कि महाभारत के अनुसार ब्राह्मण में शूद्र के गुण हैं तो वह शूद्र है। शूद्र में अगर ब्राह्मण के गुण हैं तो वह ब्राह्मण समझा जायगा।

उस समय विदेश यात्रा को अधार्मिक समझा जाता था। उन्होंने बताया कि प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि श्याम, जावा, सुमात्रा, कम्बोज, लंका, तिब्बत तथा चीन आदि देशों में हिन्दू राज्य के चिह्न पाये गये हैं। अत: हिन्दूओं की विदेश यात्रा प्रमाणित हो जाती है। उन्होंने विदेश यात्रा को प्रोत्साहन दिये जाने का समर्थन किया। उनके अनुसार आध्यात्मिक बुद्धि एवं शारीरिक शक्ति के सम्मिश्रण से राष्ट्र का उत्थान करना प्राचीन भारत की विशेषता रही है।

वे विधवा विवाह को धर्म मानती थीं। उनकी धारणा थी कि प्रौढ़ विधवाओं को छोड़कर किशोर एवं युवावस्था की विधवाओं को सामाजिक बुराई रोकने के लिए विवाह करना आवश्यक है। वे अन्तर्जातीय विवाहों को भी धर्म सम्मत मानती थीं। बहु विवाह को वे नारी गौरव का अपमान एवं समाज का अभिशाप मानती थीं। किसी भी देश के निर्माण में प्रबुद्ध वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यह प्रबुद्ध वर्ग उस देश की शिक्षा का उपज होता है। अतः शिक्षा व्यवस्था को वे अत्यधिक महत्व देती थीं। उन्होंने शिक्षा पाठ्यक्रमों में धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा को अनिवार्य रूप से पढ़ाये जाने तथा उसे प्राचीन भारतीय आदर्शों पर आधारित होने के लिये जोर दिया। उनकी धारणा थी कि प्रत्येक भारतीय को संस्कृत तथा अंग्रेजी दोनों का ज्ञान होना चाहिये।

१९१३ से १९१९ तक वह भारतीय राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में थीं। सितम्बर १९१६ में उन्होंने होमरूल लीग (स्वाराज्य संघ) की स्थापना की और स्वराज्य के आदर्श को लोकप्रिय बनाने के लिये प्रचार किया किन्तु १९१९ के बाद वे अकेली पड़ गईं। इसका तात्कालिक कारण बाल गंगाधर तिलक से उनका विवाद होना था। जब गाँधी जी ने अपना सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्य धारा से और भी पृथक् हो गई। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि एनी बेसेन्ट ने गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन की अत्यन्त असंयमित भाषा में भर्त्सना करते हुये उनके आन्दोलन को क्रान्तिकारी, अराजकतावादी तथा घृणा और हिंसा को उभाड़ने वाला आन्दोलन निरूपित किया था। गाँधी के दर्शन एवं नेतृत्व को उन्होंने स्वतंत्रता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बताया था। उन्होंने गाँधी जी को अस्पष्ट स्वराज देखने वाला और रहस्यवादी राजनीतिज्ञ बताया। उन्हें इस बात से सन्देह था कि गाँधी जी सच्चे हृदय से पश्चाताप, उपवास, तपस्या आदि में विश्वास करते हैं। उन्होंने देश की जनता को चेतावनी दी थी कि यदि गाँधीवादी प्रणाली को अपनाया गया तो देश पुनः अराजकता के खड्ड में जा गिरेगा।

ईसाई धर्म की आलोचना

Christianity: Its Evidences, Its Origin, Its Morality, Its History
Authorएनी बेसेन्ट
Seriesद फ्रीथिंकर्स टेक्स्टबुक
Genreलुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
साँचा:longitemलुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
Pagesलुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
साँचा:longitemलुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
[[LCC (identifier)|साँचा:abbr]]लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
Preceded byPart I. by Charles Bradlaugh[१] 
साँचा:longitemसाँचा:lang at स्क्रिप्ट त्रुटि: "lang" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। Wikisourceसाँचा:main other

साँचा:template other

डॉ एनी बेसेन्ट का विचार था कि शताब्दियों से ईसाई धर्म के नेता स्त्रियों को 'आवश्यक बुराई' कहते चले आ रहे हैं और चर्च के सबसे महान सेन्ट वे हैं जो स्त्रियों से सर्वाधिक घृणा करते हैं। अपने 'क्रिस्चियानिटी' नामक ग्रन्थ में वे बताती हैं कि वे गास्पेल को विश्वसनीय क्यों नहीं मानतीं हैं।

प्रमुख कृतियाँ

प्रतिभा-सम्पन्न लेखिका और स्वतंत्र विचारक होने के नाते श्रीमती एनी बेसेन्ट ने थियोसॉफी (ब्रह्मविद्या) पर करीब २२० पुस्तकों व लेखों की बाढ़ लगा दी थी। 'अजैक्स' उपनाम से भी उनकी लेखनी चली थी। पूर्व-थियोसॉफिकल पुस्तकों एवं लेखों की संख्या लगभग १०५ है। १८९३ में उन्होंने अपनी आत्मकथा प्रकाशित की थी। उनकी जीवनीपरक कृतियों की संख्या ६ है। उन्होंने केवल एक साल के अन्दर १८९५ में सोलह पुस्तकें और अनेक पैम्प्लेट प्रकाशित किये जो ९०० पृष्ठों से भी अधिक थे। एनी बेसेन्ट ने भगवद्गीता का अंग्रेजी-अनुवाद किया तथा अन्य कृतियों के लिए प्रस्तावनाएँ भी लिखीं। उनके द्वारा क्वीन्स हॉल में दिये गये व्याख्यानों की संख्या प्राय: २० होगी। भारतीय संस्कृति, शिक्षा व सामाजिक सुधारों पर संभवतः ४८ ग्रंथों और पैम्प्लेटों की उन्होंने रचना की। भारतीय राजनीति पर करीबन ७७ पुष्प खिले। उनकी मौलिक कृतियों से चयनित लगभग २८ ग्रंथों का प्रणयन हुआ। समय-समय पर 'लूसिफेर', 'द कामनवील' व 'न्यू इंडिया' के संपादन भी एनी बेसेन्ट ने किये। उनके प्रसिद्ध ग्रंथ निम्नलिखित हैं :

सन १८९५ में एनी बेसेन्ट
(१) डेथ-ऐण्ड आफ्टर (थियोसॉफिकल मैन्युअल III) - १८९३
(२) आत्मकथा - १८९३
(३) इन द आउटर कोर्ट - १८९५
(४) कर्म (थियोसॉफिकल मैन्युअल IV) - १८९५ - कर्म-व्यवस्था का सुन्दर चित्रण।
(५) द सेल्फ ऐण्ड इट्स शीथ्स - १८९५
(६) मैन ऐण्ड हिज बौडीज (थियोसॉफिकल मैन्युअल VII) - १८९६
(७) द पाथ ऑफ डिसाइपिल्शिप - १८९६ - मुमुक्ष का मार्ग।
(८) द ऐंश्यिएण्ट विज्डम - १८९७
(९) फोर ग्रेट रेलिजन्स - १८९७ - धर्म पर प्रसिद्ध पुस्तक - कालान्तर में चार भागों में प्रकाशित - हिन्दूइज्म, जोरैस्ट्रियनिज्म, बुद्धिज्म, क्रिश्चियैनिटी।
(१०) एवोल्यूशन ऑफ लाइफ एण्ड फॉर्म - १८९९
(११) सम प्रॉब्लम्स ऑफ लाइफ - १९००
(१२) थॉट पावर : इट्स कण्ट्रोल ऐण्ड कल्चर - १९०१
(१३) रेलिजस प्रॉब्लम् इन इण्डिया - १९०२ - यह उनकी एक महान साहित्यिक कृति थी जो कालान्तर में चार भागों - इस्लाम, जैनिज्म, सिक्खिज्म, थियोसॉफी - में प्रकाशित हुई।
(१३) रेलिजस प्रॉब्लम् इन इण्डिया - १९०२ - यह उनकी एक महान साहित्यिक कृति थी जो कालान्तर में चार भागों - इस्लाम, जैनिज्म, सिक्खिज्म, थियोसॉफी - में प्रकाशित हुई।
(१४) द पेडिग्री ऑफ मैन - १९०४
(१५) ए स्टडी इन कौंसेस्नेस - १९०४
(१६) ए स्टडी इन कर्मा - १९१२ - कर्म-सिद्धान्त पर प्रणीत।
(१७) वेक अप, इण्डिया : ए प्ली फॉर सोशल रिफॉर्म - १९१३
(१८) इण्डिया ऐण्ड ए एम्पायर - १९१४
(१९) फॉर इण्डियाज अपलिफ्ट - १९१४
(२०) द कॉमनवील - १९१४ की जुलाई से निकालना शुरू किया (प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र)
(२१) न्यू इण्डिया - १९१५ - मद्रास (चेन्नई) से निकलने वाला दैनिक पत्र।
(२२) हाऊ इण्डिया रौट् फॉर फ्रीडम - १९१५ - यह प्रसिद्ध ग्रंथ आफिशियल रिकार्डों के आधार पर रचित राष्ट्रीय कांग्रेस की कहानी है।
(२३) इण्डिया : ए नेशन - १९१५ - द पीपुल्स बुक्स सिरीज की इस पुस्तक को १९१६ में अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया और एनी बेसेन्ट को अलगे वर्ष नजरबन्द कर दिया गया।
(२४) कांग्रेस स्पीचेज - १९१७
(२५) द बर्थ ऑफ न्यू इण्डिया - १९१७ - यह पुस्तक फॉर इण्डियाज अपलिफ्ट - १९१४, से मिलती जुलती है।
(२६) लेटर्स टू ए यंग इण्डियन प्रिन्स - १९२१ - इस ग्रंथ में छोटे-छोटे देशी राज्यों को आधुनिक तरीकों से पुनर्गणित करने की संस्तुति की गयी है।
(२७) द फ्यूचर ऑफ इण्डियन पॉलिटक्स - १९२२ - इसकी उपादेयता तत्कालीन समस्याओं को समझने के लिए रही है।
(२८) ब्रह्म विद्या - १९२३
(२९) इण्डियन आर्ट - १९२५ - भारतीय संस्कृति पर यह पुस्तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में दिये गये कमला लेक्चर पर आधारित है।
(३०) इण्डिया : बौण्ड ऑर फ्री? - १९२६ - यह पुस्तक अद्भुत साहित्यिक और माननीय रुचि का एक निजी दस्तावेज है। साथ ही साथ भारतीय इतिहास की एक अपूर्व निधि है। इसमें भारत के भूत, वर्तमान और भविष्य का व्यवस्थित सर्वेक्षण किया गया है।
एनी बेसेन्ट, सन १९२२ में

इस प्रकार कुल मिलाजुला कर करीबन ५०५ ग्रंथों व लेखों की मलिका डॉ॰ एनी बेसेन्ट ने 'हाऊ इण्डिया रौट् फॉर फ्रीडम' (१९१५) में भारत को अपनी मातृभूमि बतलाया है। 'इण्डिया : ए नेशन' नामक जो पुस्तक जब्त कर ली गयी थी उसमें उन्होंने स्वायत्त-शासन की विचार धारा प्रतिपादित की है। १९१७ में नजरबन्द किये जाने से पहले सत्तर वर्षीय वृद्धा ने अपने भारत के भाइयों और बहनों को आखिरी सन्देश दिया था : मैं वृद्धा हूँ, किन्तु मुझे विश्वास है कि मरने के पहले ही मैं देखूंगी कि भारत को स्वायत्त-शासन मिल गया।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

साँचा:navbox