उम्मेद सिंह (बहुविकल्पी)

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उम्मेद सिंह

(१) कोटा (राजस्थान) के राजा। इनके पिता का नाम गुमानसिंह था। 1827 ई. में गुमानसिंह की मृत्यु हुई तो उम्मेदसिंह मात्र 10 वर्ष के थे। अत: कोटा राज्य के प्रधान मंत्री जालिमसिंह के संरक्षण में इन्होंने राजगद्दी सँभाली। जालिमसिंह ने मराठों के उत्पात से कोटा राज्य को बचाए रखने के लिए अंग्रेजों से मित्रता की। 1860 ई. में कर्नल मानसन, युद्ध में होल्कर से हारकर, कोटा चले गए तो जालिमसिंह ने उनकी पूरी सहायता की, लेकिन होल्कर के नाराज हो जाने के डर से उन्हें नगर से दूर ही रखा। 1874 ई. में अंग्रेजी सरकार ने होल्कर के राज्य के चार परगने जालिमसिंह को पुरस्कारस्वरूप देने चाहे, परंतु उन्होंने उक्त परगने स्वयं न लेकर अपने स्वामी उम्मेदसिंह को दिलवा दिए।

(२) बूँदी (राजस्थान) के राजा। 1800 ई. में अपने पिता बुधसिंह की मृत्यु हो जाने पर इन्होंने बूँदी पर कब्जा कर लिया लेकिन अंबर के तत्कालीन महाराजा ईश्वरीसिंह ने इनपर चढ़ाई की और इन्हें मार भगाया। उम्मेदसिंह ने 1806 ई. में होल्कर की सहायता से ईश्वरसिंह को हराकर बूँदी पर पुन: अधिकार कर लिया। 1813 ई. में ये अपने पुत्र अजीतसिंह को शासनभार सौंपकर तीर्थाटन के लिए चले गए।

जयपुर के मानसिंह द्वितीय, उदयपुर के भूपाल सिंह, तथा जोधपुर के उम्मेद सिंह

(३) शाहपुरा (राजस्थान) के राजा। ये राजाधिराज नाहरसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। इनका विवाह खेतड़ी नरेश अजीतसिंह की पुत्री सूर्यकुमारी से हुआ था। सूर्यकुमारी से उत्पन्न इनका कोई भी संतान जीवित न रही, परंतु इन्होंने अपनी पत्नी के रहते दूसरा विवाह न किया। उनकी मृत्यु के बाद कृष्णगढ़ की राजकुमारी से इनका दूसरा विवाह हुआ जिससे इन्हें सुदर्शनदेव नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उम्मेदसिंह ने अपनी पहली पत्नी की स्मृति में उनके नाम पर नागरीप्रचारिणी सभा, काशी को 20 हजार रुपए देकर 'सूर्यकुमारी पुस्तकमाला' के प्रकाशन की व्यवस्था को जिसके अंतर्गत सभा अनेक आकर ग्रंथ छाप चुकी है। इसके अतिरिक्त इन्होंने 30 हजार रुपए के दान से गुरुकुल विश्वविद्यालय, कांगड़ी (हरिद्वार) में सूर्यकुमारी आर्यभाषा गद्दी (चेयर) तथा पाँच हजार रुपए देकर वहीं से 'सूर्यकुमारी ग्रंथावली' के प्रकाशन की व्यवस्था भी की। सन्‌ 1954 ई. में राजा उम्मेदसिंह का देहावसान हो गया।