इरावती (उपन्यास)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

इरावती ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर लिखित जयशंकर प्रसाद का तीसरा और अपूर्ण उपन्यास है, जिसका प्रकाशन सन् १९३८ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।[१]

परिचय

'इरावती' 'कामायनी' के बाद की कृति है। इस अपूर्ण उपन्यास का प्रकाशन प्रसाद जी के निधन के बाद हुआ। पुष्यमित्र शुंग के काल की कथावस्तु को आधार बनाकर प्रसाद जी ने इस उपन्यास में पाप-पुण्य के बजाय अच्छे और बुरे का विचार करते हुए 'कंकाल' की ही तरह इसमें भी प्रयोग करने वाले व्यक्ति की दृष्टि को निर्णायक माना है।

जिस ऐतिहासिक पद्धति पर प्रसाद जी ने नाटकों की रचना की थी उसी पद्धति पर उपन्यास के रूप में 'इरावती' की रचना का आरम्भ किया गया था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में "इसी पद्धति पर उपन्यास लिखने का अनुरोध हमने उनसे कई बार किया था जिसके अनुसार शुंगकाल (पुष्यमित्र, अग्निमित्र का समय) का चित्र उपस्थित करने वाला एक बड़ा मनोहर उपन्यास लिखने में उन्होंने हाथ भी लगाया था, पर साहित्य के दुर्भाग्य से उसे अधूरा छोड़कर ही चल बसे।"[२] इस उपन्यास के सन्दर्भ में डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र ने लिखा है : साँचा:quote

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. जयशंकर प्रसाद (विनिबंध), रमेशचन्द्र शाह, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, पुनर्मुद्रित संस्करण-२०१५, पृष्ठ-९४.
  2. हिंदी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण- विक्रमसंवत् २०५८ (२००१ ई॰) पृष्ठ-२९४.

बाहरी कड़ियाँ

साँचा:asbox