आभीर

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वेदों के अनुसार, आभीर या अभीरा क्षत्रिय प्राचीन भारतीय महाकाव्यों और धर्मग्रंथों में वर्णित एक जाति थी।[१]संक्षेप में, वह जो सभी ओर से भय को दूर कर सकता है, आभीर (निडर) कहलाता है।[२]

राजा रवी वर्मा द्वारा चित्रित आभीर कन्या श्री गायत्री देवी

प्राकृत-हिन्दी शब्दकोश के अनुसार अहिर, अहीर व अभीर समानार्थी शब्द हैं।[३] हिन्दी क्षेत्रों में अहीर तथा यादव शब्द प्रायः परस्पर समानार्थी माने जाते हैं।.[४]तमिल भाषा के एक-दो विद्वानों को छोडकर शेष सभी भारतीय विद्वान इस बात से सहमत हैं कि अहीर शब्द संस्कृत के अभीर शब्द का तद्भव रूप है।[५]

आभीर (हिंदी अहीर) एक कुलिन जाति थी।[६] यादव वंश प्रमुख रूप से आभीर (वर्तमान अहीर),[५] अंधक, व्रष्णि तथा सत्वत नामक समुदायों से मिलकर बना था, जो कि भगवान कृष्ण के वंशज थे। [७][८] आभीरों को वृत्य क्षत्रिय कहा जाता था।[९] महाभारत में भी युद्धप्रिय, घुमक्कड़, गोपाल अभीरों का उल्लेख मिलता है।[१०] आभीरों का उल्लेख अनेक शिलालेखों में पाया जाता है। शक राजाओं की सेनाओं में ये लोग सेनापति के पद पर नियुक्त थे। आभीर राजा ईश्वरसेन का उल्लेख नासिक के एक शिलालेख में मिलता है। ईस्वी सन्‌ की चौथी शताब्दी तक अभीरों का राज्य रहा। अंततोगत्वा कुछ अभीर नयी जाती राजपूत जाति में अंतर्मुक्त हुये व कुछ अहीर कहलाए।[११] कुछ विद्वान देवगिरि के यादवों को आभीर ही मानते हैं।[१२]

पद्म पुराण के अनुसार

पद्म पुराण में भगवान विष्णु वादा करते हैं वे आभीरों के बीच अष्टम अवतार के रूप में जन्म लेंगे एक वादा जो कृष्ण के जन्म में पूरा हुआ था वही पुराण आभीरों को महान तत्त्वज्ञान कहता है।[१३]

पाणिनि, चाणक्य और पतंजलि जैसे प्राचीन संस्कृत विद्वानों ने अहीरों को हिंदू धर्म के भागवत संप्रदाय के अनुयायी के रूप में वर्णित किया है।[१४]

महाभारत के सभा-पर्व और भीष्म-पर्व खंडों में अभीरा प्रांत का उल्लेख है जो प्राचीन सिंध में सरस्वती नदी के पास स्थित था, शास्त्रों में सुर और अभीरा को एक साथ सुरभीरा कहा गया है बाद के कार्यों ने दोनों के बीच भेदभाव नहीं किया कई विद्वानों ने ओफिर और सोफिर के बाइबिल संदर्भों के साथ भारतीय अभीरा और सुरभीर के बीच एक लिंक की मांग की है।

टॉलेमी ने लिखा है कि सिंधु नदी के मुहाने पर अभीरा नाम का एक देश था श्रीमद भागवतम ने इसी तरह का लेखा-जोखा दिया और सिंध के स्थान का मिलान किया इंडिश अल्टरथमस्कंडे, खंड के लेखक क्रिश्चियन लासेन (1800-1876) ने सोचा कि "ओफिर" भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर एक बंदरगाह था। श्रीमती मैनिंग ने कहा कि यह भारत के पश्चिमी तट पर स्थित है। गेसेनियस, सर इमर्सन टेनेन्ट और मैक्स मुलर ईसाई लस्सेन से सहमत दिखाई दिए। इस सापेक्ष सर्वसम्मति के कारण आम धारणा है कि अभीरा ओफिर के समकक्ष है जिसका उल्लेख बाइबिल में किया गया है। कॉप्टिक भाषा में सोफिर, भारत का नाम सुरभीर को संदर्भित करता है।

पुराणों के अनुसार

मार्कण्डेय ऋषि के अनुसार, परशुराम के नेतृत्व में हुए एक नरसंहार में सभी हैहेय क्षत्रिय हमलावर (योद्धा जाति) मारे गए थे। उस समय में, अहीर या तो हैहय के उप-कबीले थे या हैहय के पक्ष में थे। पहाड़ों के बीच गड्ढों में भागकर केवल आभीर ही बच गए। ऋषि मार्कंडेय ने टिप्पणी की कि "सभी हैहेय क्षत्रिय योद्धा मारे गए हैं लेकिन आभीर बच गए हैं, वे निश्चित रूप से कलियुग में पृथ्वी पर शासन करेंगे।" वात्स्यायन ने कामसूत्र में आभीर साम्राज्यों का भी उल्लेख किया है। आभीर के युधिष्ठिर द्वारा शासित राज्य के निवासी होने के संदर्भ भागवतम में पाए जाते हैं।[१५][१६]

गुप्त राजवंश का खाता भागवतम में वर्णित अभीरा राजाओं से मेल खाता है। कई विद्वानों का मानना ​​है कि गुप्त और मौर्य दोनों ही अभीर थे।[१७][१८]

आजकल की अहीर जाति ही प्राचीन काल के आभीर हैं।[६][१९] सौराष्ट्र के क्षत्रप शिलालेखों में भी प्रायः आभीरों का वर्णन मिलता है। पुराणों व बृहतसंहिता के अनुसार समुद्रगुप्त काल में भी दक्षिण में आभीरों का निवास था।[२०] उसके बाद यह जाति भारत के अन्य हिस्सों में भी बस गयी। मध्य प्रदेश के अहिरवाड़ा को भी आभीरों ने संभवतः बाद में ही विकसित किया। राजस्थान में आभीरों के निवास का प्रमाण जोधपुर शिलालेख (संवत 918) में मिलता है, जिसके अनुसार आभीर अपने हिंसक आचरण के कारण निकटवर्ती इलाकों के निवासियों के लिए आतंक बने हुये थे।[२१]

यद्यपि पुराणों में वर्णित अभीरों की विस्तृत संप्रभुता 6ठवीं शताब्दी तक नहीं टिक सकी, परंतु बाद के समय में भी आभीर राजकुमारों का वर्णन मिलता है, हेमचन्द्र के "दयाश्रय काव्य" में जूनागढ़ के निकट वनथली के चूड़ासमा राजकुमार गृहरिपु को यादव व आभीर कहा गया है। भाटों की श्रुतियों व लोक कथाओं में आज भी चूड़ासमा "अहीर राणा" कहे जाते हैं। अंबेरी के शिलालेख में सिंघण के ब्राह्मण सेनापति खोलेश्वर द्वारा आभीर राजा के विनाश का वर्णन तथा खानदेश में पाये गए गवली राज के प्राचीन अवशेष जिन्हें पुरातात्विक रूप से देवगिरि के यादवों के शासन काल का माना गया है, यह सभी प्रमाण इस तथ्य को बल देते हैं कि आभीर यादवों से संबन्धित थे। आज तक अहीरों में यदुवंशी अहीर नामक उप जाति का पाया जाना भी इसकी पुष्टि करता है।[२२]

इन्हें भी देखें

संदर्भ

  1. साँचा:cite book
  2. साँचा:cite book
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  4. साँचा:cite book Quote: Ahir: Caste title of North Indian non-elite 'peasant'-pastoralists, known also as Yadav."
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  6. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  7. Society and religion: from Rugveda to Puranas By Jayant Gadkari, URL((http://books.google.co.in/books?id=Zst_7qaatp8C&pg=PA184 स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।))
  8. While discussing about the Puranic accounts, Hem Chandra Raychaudhuri used the term, Yadava clans for the Andhakas, the Vrishnis and the Kukuras (Raychaudhuri, Hemchandra (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, p.447fn3). But Ramakrishna Gopal Bhandarkar used the term Yadava tribes for the Satvatas, the Andhakas and the Vrishnis (Bhandarkar, R. G. (1995). Vaisnavism, Saivism and Minor Religious Systems स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, Delhi: Asian Educational Service, ISBN 978-81-206-0122-2, p.11).
  9. रोमिल थापर कृत Ancient_Indian_Social_History:_Some_Interpretations स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, पृष्ट-149, ओरिएंट ब्लैकस्वान प्रकाशन, 1978, आइ॰एस॰बी॰एन॰- 9788125008088
  10. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  11. An̐dhere_ke_juganū स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। रांगेय राघव कृत, Publisher-Śabdakāra, 1974, Original from the University of California
  12. साँचा:cite web
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  20. साँचा:cite book
  21. साँचा:cite book
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