यदुवंश

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यदुवंश अथवा यदुवंशी क्षत्रिय शब्द भारत के उस जन-समुदाय के लिए प्रयुक्त होता है जो स्वयं को प्राचीन राजा यदु का वंशज बताते हैं। यदुवंशी क्षत्रिय मूलतः अहीर थे।[१] भारतीय मानव वैज्ञानिक कुमार सुरेश सिंह के अनुसार माधुरीपुत्र, ईश्वरसेन व शिवदत्त नामक कई विख्यात अहीर राजा कालांतर में राजपूतों मे सम्मिलित होकर यदुवंशी राजपूत कहलाए।[२] तिजारा के खानजादा मुस्लिम भी अपनी उत्पत्ति यदुवंशी राजपूतों से बताते हैं।[३] मैसूर साम्राज्य के हिन्दू राजवंश को भी यादव कुल का वंशज बताया गया है।[४][५] चूड़ासमा राजपूतों को भी विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों मे मूल रूप से सिंध प्रांत का आभीर,[६][७][८] या सिंध का यादव माना गया है, जो कि 9वीं शताब्दी में गुजरात में आए थे।[९]

जाहल, सोनल बाई के साथ देवत बोदार नामक अहीर सामंत का चूड़ासम राजकुमार नवघन की रक्षा हेतु स्वयं के पुत्र का वध करते हुये का ऐतिहासिक चित्र [१०]

यदुवंश पौराणिक कथा

यदु ऋग्वेद में वर्णित पाँच भारतीय आर्य जनों (पंचजन, पंचक्षत्रिय या पंचमानुष) में से एक है।[११]

हिन्दू महाकाव्य महाभारत, हरिवंश व पुराण में यदु को राजा ययाति व रानी देवयानी का पुत्र बताया गया है। राजकुमार यदु एक स्वाभिमानी व सुसंस्थापित शासक थे। विष्णु पुराण, भगवत पुराण व गरुण पुराण के अनुसार यदु के चार पुत्र थे, जबकि बाकी के पुराणो के अनुसार उनके पाँच पुत्र थे।[१२] बुध व ययाति के मध्य के सभी राजाओं को सोमवंशी या चंद्रवंशी कहा गया है। महाभारत व विष्णु पुराण के अनुसार यदु ने पिता ययाति को अपनी युवावस्था प्रदान करना स्वीकार नहीं किया था जिसके कारण ययाति ने यदु के किसी भी वंशज को अपने वंश व साम्राज्य मे शामिल न हो पाने का श्राप दिया था।[१३] इस कारण से यदु के वंशज सोमवंश से प्रथक हो गए व मात्र राजा पुरू के वंशज ही कालांतर में सोमवंशी कहे गए। इसके बाद महाराज यदु ने यह घोषणा की कि उनके वंशज भविष्य में यादव या यदुवंशी कहलएंगे।[१४] यदु के वंशजों ने अभूतपूर्व उन्नति की परंतु बाद मे वे दो भागों मे विभाजित हो गए।

उत्पत्ति

यदुवंशी अहीर कृष्ण के प्राचीन यादव जनजाति के वंशज माने जाते हैं।[१५] यदुवंशियो की उत्पत्ति पौराणिक राजा यदु से मानी जाती है।

वे टॉड की 36 राजवंशो की सूची में भी शामिल हैं। [१६]

विभिन्न हिंदू धर्मग्रंथों और पुराने लेखों से संकेत मिलता है कि भारत में उनकी मौजूदगी 6000 ई.पू. से भी पहले प्राचीन काल से है।[१७]

वंशज जातियाँ

राजा सहस्रजीत के वंश को हैहय वंश कहा गया व उनके पौत्र का नाम भी हैहय था।[१८] राजा क्रोष्टा के वंशजों को कोई विशेष नाम नही दिया गया वे समान्यतः यादव कहलाए।,[१८] पी॰ एल॰ भार्गव के अनुसार जब राज्य का विभाजन हुआ तो सिंधु नदी के पश्चिम का राज्य सहस्रजीत को मिला व पूर्व का भाग क्रोष्टा को दिया गया।[१९]

आधुनिक भारत की अनेक जातियाँ जैसे कि यादव,[२०] पंजाबी सैनी,[२१] आयर,[२२][२३] जडेजा, भाटी राजपूत,[२४] जादौन,[२४] तथा अहीर[२५][२६][२७][२८] इत्यादि स्वयं को यदु वंशज मानते हैं।

कुछ विद्वान चूड़ासमा, जाडेजादेवगिरि के यादवो को आभीर ही मानते हैं।[२९]

राजपूत, पांचवीं और छठी शताब्दीमें पहली बार चित्र में आये थे। इसलिए यह किसी की कल्पना और समझ से परे है कि कैसे करौली के यादव (अलवर जिले में), रतलाम (मध्य प्रदेश में) और बीकानेर के भाटी (राजस्थान) खुद को राजपूत जाति के साथ कैसे जोड़ते हैं। हालाँकि, यह संभव है कि विदेशी "मनगढ़ंत खानाबदोशों" द्वारा आक्रमण के दौरान और उनके द्वारा प्राप्त की गई लगातार जीत के चलते, छोटे यादव राज्योंने अन्य रियासतों के साथ गठन करते समय, अपनी पहचान विलय कर दी हो।[३०]

संदर्भ सूत्र

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विस्तृत अध्ययन

  • Dictionary of Hindu Lore and Legend (ISBN 0-500-51088-1) by Anna Dhallapiccola
  • David Frawley|Frawley David: The Rig Veda and the History of India, 2001.(Aditya Prakashan), ISBN 81-7742-039-9
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  4. Interaction of cultures: Indian and western painting, 1780-1910 : the Ehrenfeld collection
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  18. Pargiter, F.E. (1972). Ancient Indian Historical Tradition, Delhi: Motilal Banarsidass, p.87.
  19. Misra, V.S. (2007). Ancient Indian Dynasties, Mumbai: Bharatiya Vidya Bhavan, ISBN 81-7276-413-8, pp.162-3
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  22. Temples of Kr̥ṣṇa in South India: History, Art, and Traditions in Tamilnāḍu by T. Padmaja p.34
  23. Racial Synthesis in Hindu Culture by S.V. Viswanatha p.156
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