अरुण (हिन्दू धर्म)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अरुण को भगवान सूर्यनारायण का सारथी माना जाता है। वे प्रजापति कश्यप और विनता के पुत्र हैं। ये गरुड़ के बड़े भाई हैं जो पक्षियों के राजा हैं। रामायण में प्रसिद्ध सम्पाती और जटायु इन्हीं के पुत्र थे। अरुण की पत्नी का नाम श्येनी बताया गया है। अरुण को पुराणों और वेदों में एक गरुड़ पक्षी के रूप में वर्णित किया गया है और यह भी ग्रन्थों में बताया गया है कि अरुण के पैर और पंख नहीं हैं जिस कारण अरुण में अधिक बल नहीं है।

रथ चलाते हुए अरुण

अरुण देव का जन्म

महर्षि कश्यप की सत्रह पत्नियाँ थी। जिनमें उन्हें कद्रू और विनता से विशेष लगाव था। एक बार कद्रू ने कश्यप से हजार समान बलशाली नागों को पुत्र रूप में माँगा और विनता ने दो ऐसे पुत्रों की मांग कि जो कद्रू के सहस्र नागों से भी ज्यादा बलवान हो। वरदान के फल स्वरूप विनता ने दो और कद्रू ने हजार अंडे दिए। दोनों ने अपने अपने अंडों को गरम बर्तन में उबालने के लिए रख दिया। पांच सौ वर्ष बाद कद्रू के प्रथम अंडे में से शेषनाग , दूसरे से वासुकी , तीसरे से तक्षक और बाकी अंडों से अन्य नागों का जन्म हुआ किंतु विनता के दोनों अंडों में से एक अंडा भी नहीं फूटा। उतावली होकर विनता ने एक अण्डा स्वयं फोड़ दिया जिसमें एक बलशाली गरुड़ जाति का पक्षी शिशु था जिसके ऊपर का शरीर विकसित था लेकिन नीचे का शरीर कच्चा था। अपनी माता के इस कृत्य पर उसने अपनी माता को श्राप दिया कि "माता आपने अपनी बहन से बराबरी करने के लिए मुझे आधे शरीर का बना दिया है इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आपको पांच सौ वर्ष तक उसी सौत की दासी बनकर रहना होगा। अगर आपने दूसरा अण्डा भी फोड़ दिया तो आप सदा कद्रू की दासी बनकर रहेगी। अगर आपने प्रतीक्षा कि तो वही बालक आपको मेरे इस श्राप से मुक्त करेगा"। महर्षि कश्यप ने अपने उस पुत्र का नाम अरुण रखा। अरुण ने भगवान सूर्य की घोर तपस्या करके उनसे उनका सारथी बनने का वरदान मांगा था। समय आने पर दूसरे अंडे से गरुड़ की उत्पत्ति हुई और उन्होंने अपनी माता को श्राप से मुक्त किया। अपनी माता की भूल के कारण अरुण पक्षीराज नहीं बन पाए और न ही वे अपने छोटे भाई गरुड़ की तरह प्रसिद्ध नहीं हुए।

विवाह और सन्तान

अरुण और गरुड़ ने पक्षी कुल में दो बहनों से विवाह किया। बड़ी बहन श्येनी का विवाह अरुण के साथ हुआ और उन्होंने दो अंडे दिए जिससे संपाती और जटायु का जन्म हुआ। छोटी बहन उन्नति का विवाह गरुड़ के साथ हुआ और उन्होंने एक अंडा दिया जिससे सुमुख का जन्म हुआ।

अरुण देव द्वारा बालि और सुग्रीव का जन्म

ऐसा कहा जाता है कि रामायण में प्रसिद्ध वानर बन्धु बालि और सुग्रीव अरुण के ही पुत्र थे सुग्रीव के पिता सूर्य और माता अरुण थे तथा बालि के पिता इन्द्र और माता अरुण थे आखिर किस प्रकार इनका जन्म हुआ आइए जानतें हैं - सूर्य रोज सात सफ़ेद घोड़ों के रथ पर निकलतें हैं जिसका सन्चालन अरुण करते हैं एक बार एक ऋषि ने सूर्य को श्राप दिया कि वे पृथ्वी पर प्रकाशमान नहीं होंगे तभी से सूर्य ने रथ की सवारी बंद कर दी जिससे अरुणदेव के पास कोई काम नहीं रहा अरुणदेव की इच्छा स्वर्ग में जाकर अप्सराओं का दिव्य नृत्य देखने की इच्छा रहती थी उन्होंने इस अवसर का लाभ उठाकर एक युवती का वेष धारण किया और अप्सराओं का नृत्य देखने स्वर्ग लोक पहुँच गए। इन्द्र, जो कि इस नृत्य का आनन्द ले रहे थे, ने युवती रूपी अरुण को देखा और उसपर मोहित हो गये। दोनों ने समागम किया और कालांतर में अरुण ने एक बालक को जन्म दिया जिसके सुन्दर केश होने के कारण बालि नाम रखा गया अरुण ने ये बात सूर्यदेव से कही तो उन्होंने अरुणदेव को उनके उस अप्सरा रूप में आने को कहा अरुण अपने उस रूप में आ गए सूर्य भी उन पर मोहित हो गए दोनों ने समागम किया और कालान्तर में अरुण देव ने एक और बालक को जन्म दिया जिसकी सुन्दर ग्रीवा होने के कारण सुग्रीव नाम रखा गया। अरुण देव ने अपने पुत्र महर्षि गौतम तथा उनकी पत्नी अहल्या को सौंप दिए और दोनों ने बालि और सुग्रीव का पालन पोषण किया।

इन्हें भी देखें