हुसैन शहीद सुहरावर्दी
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हुसैन सुहरावर्दी
बचपन तथा राजनीतिक तरक़्क़ी
हुसेन सुहरावर्दी का जन्म ८ सितंबर को मिदनापुर नामक गाँव में हुआ था। उन्का परिवार एक बंगाली मुसलमान परिवार था। आज यह जगह पश्चिम बंगाल में है। उन्के पिता जाहिद सुहरावर्दी, एक न्यायदीश थे कलकत्ता उच्च न्यायालय मे। उन्की रुचि हमेशा से ही राजनिति में थी। उन्होने तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भाग,स्वराज्य दल में शामिल हुए। वह बंगाल संधि के एक मुख्य भाग थे। पाकिस्तान के आजादी के बाद उन्होने अपनी राजनीतिक कामो को पूर्वी बंगाल तक ही वर्जित रखा। वह जल्दी ही सन १९४५ में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री बनते ही राष्ट्रीय रेडियो पे एलान किया कि वह पाकिस्तान में एक बडी सेना बनाएगे जिसके माध्यम से वह भारत के खीलाफ हथियार उठात ने का वादा किया। इतने वादे करने के बाद,वह प्रधान मंत्री कुरसी पर सिर्फ १३ महिनो तक टिक पाया मृत्यु उन्होने ढाका में ख़्वाजा नज़ीमुद्दीन के कब्र के बगल में गाडा गया है।
निजी व राजनीतिक समस्याए
उन्के जगह पे इस्कंदर मिर्जा ने अपने हक्क जमाया।एसा माना जाता है कि मिर्जा हमेशा से हि नहि चाहते थे कि हुसैन राष्ट्र-पति बने। उन्होने हुसैन का नाम के लिए हा अधे दिल से ही बोला था। हुसैन शहीद कि जीवनी में एसा बताया गया है कि शहीद को अपने अंतिम समय में काफी त्रास हुआ था। वह कफि उदास ओर साथ ही साथ अकेले भी थे। इक्रमुलाह उन्की चचेरी बहन ने हुसैन की जीवनी में बाताया है कि उन्हे अपने जीवन में काफी निजि ओर रानैतीक समस्याएँ थी। उन्होने जो भी बताया है वो इसके हमे पाकिस्तान के राजनिति के बारे में पता चलता है। यह हमे दिखाता है कि कैसे पाकिस्तान के आजादी के बाद तुरन्त कितनी घटनाए हुई। भले ही सुहरावर्दी और मिर्जा में दुशमनी थी,पर एक बार सुहरावर्दी राष्ट्र-पति बना तो उन्की दोस्ती की शुरुआत हुई। एक और बात हुसेन के कुख्यात है और वो ये चाहते थे कि वो मुस्लिम लीग का भाग बने। वह उन्हे बंगाल प्रांत के मुख्य नेता बनान चहाते थे।उन्होने अपने राजनैतिक कारोबार से काफी आर्थिक मुनाफा कमाया। वह अपने रोजी रोटी के लिये वकालत करते थे ।
सुहरावर्दी और पाकिस्तान के साथ संघर्ष
सुहरावर्दी पे काफी गंभीर आरोप लगाय गये थे। उन्ह में से एक आरोप यह भि थ कि उन्होने पाकिस्तान के सात हाथ मिला लिए हैं और माहात्मा के खीलाफ है। । उन्हे " देशद्रोही " कहा गया। उन्हे अपने देश में आने से मना कर दिया गया।
उन्हे मुस्लिम लिग से भी बाहर निकाल दिया। इतना सब हो जाने के बाद भी सुहरावर्दी को फिर पाकिस्तान आने का मोका मिला। तब पाकिस्तान के नए गवर्नर जनरल गुलाम मोहम्मद ने वापस बुलाया। उन्हे अपने राजनैतीक कारोबार में उन्की मदद चहिए थी। उसकी मौत के कई दिन पहले से वह शय्याग्रस्त थे। उसकी मौत भी काफी संघर्ष के साथ हुई। उसकी मौत ५ दिसंबर १९६३ को हुई थी। उसकी मौत कि वजाह दिल का दोरा थी। उन्का मकबरा ढाका में है।
हुसेन सुहरावर्दी को पुरी दुनिया एक देशद्रोही, नाकाबिल, और बेईमान इसान के नाम पर याद रखेगी।