इस्कंदर मिर्ज़ा

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इस्कंदर मिर्ज़ा

सैयद इस्कंदर अली मिर्ज़ा, (१३ नवंबर १८९९-१३ नवंबर १९६९) पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति(१९५६-१९५८ तक) और अंतिम गवर्नर-जनरल थे। उनका गवर्नर-जनरल का कार्यकाल १९५५ से १९५६ तक था। वे मीर ज़फ़र के प्रपौत्र थे। वे पाकिस्तानी सेना में मेजर-जनरल के पद तक पहुंचे थे।[१][२][३]

पाकिस्तान की आज़ादी के बाद, वे पाकिस्तान के पहले रक्षा सचिव नियुक्त किये गए थे, जोकि एक अत्यंत महह्वपूर्ण औदा था। उनके कार्यकाल में उन्होंने बलोचिस्तान की समस्या और प्रथम भारत-पाकिस्तान युद्ध की सरपरस्ती की थी। साथ ही पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली भाषा आंदोलन से आई समस्या की भी उन्होंने निगरानी की थी। पाकिस्तान में एक इकाई व्यवस्था लागु करने में उनका महत्वपूर्ण स्थान था, और उसके लागु होने के बाद, उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री ख़्वाजा नज़ीमुद्दीन द्वारा पूर्वी पाकिस्तान का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया था।[४] १९५५ में वे मालिक ग़ुलाम मुहम्मद के उत्तराधिकारी के रूप में पाकिस्तान के अगले गवर्नर-जनरल नियुक्त हुए।[५]

१९५६ के संविधान के परवर्तन के बाद, उन्हें पाकिस्तान का पहला राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। उनका राष्ट्रपतित्व अत्यंत राजनैतिक अस्थिरता का पात्र रहा, और दो वर्षों के कल में ही चार प्रधानमंत्रीयों को बदला गया। अंत्यतः उन्होंने पाकिस्तान में सैन्य शासन लागु कर दिया। इसी के साथ मिर्ज़ा ने पाकिस्तान की राजनीति में सैन्य दखलंदाज़ी का प्रारंभ किया, जब उन्होंने अपने सेना प्रमुख अयूब खान को मुख्य सैन्य शासन प्रशासक नियुक्त किया। इस सैन्य शासन के दौरान, पाकिस्तानी सेना और व्यवस्थापिका के बीच बढ़ते मुठभेड़ के कारण बिगड़े हालातों के बाद, सैन्य शासन लागु होने के 20 दिनों के बाद ही अयूब खान ने राष्ट्रपतित्व से हटा दिया और देश से निष्काषित कर दिया। देश-निष्कासन के बाद वे लंदन चले गए, जहाँ उनकी मृत्यु १९६९ को हुई। मृत्यु के बाद, उनके शव को पाकिस्तान लाने से इनकार कर दिया गया, और अन्यतः उन्हें तेहरान में दफ़नाया गया।

जीवनी

प्राथमिक और पेशेवर जीवन

इस्कंदर मिर्ज़ा, १९२० की तस्वीर

सिकंद मिर्जा मीर जाफर के पड़पोते थे। उन पर दादा मीर जाफर ने नवाब सिराजुद्दौला से गद्दारी करके अंग्रेजों की जीत का मार्ग प्रशस्त किया था (इसलिए जब अय्यूब खान के हाथों सत्ता लिटा कर ब्रिटेन में निर्वासित हुए तो ब्रिटेन में जिस होटल में ठहरे थे उस होटल का कराीह मलकह बर्तानीह ने निभाई)। पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी और राजनेता थे। एलफिंस्टन कॉलेज, बम्बई में उन्होंने शिक्षा पाई।[१] कॉलेज शैक्षणिक जीवन में ही रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैंडहरसट में उन्हें दाखिला मिल गया। वहाँ सफल होकर 1919 में वापस हिंदुस्तान आए। 1921 में कोहाट के स्थान पर दूसरी स्कॉटिश राइफल रेजिमेंट में शरीक हुए और खुदादाद ख़ैल लड़ाई में भाग लिया। 1924 में वज़ीरिस्तान की लड़ाई में हिस्सा लिया। 1922 से 1924 तक पूना हॉर्स रेजिमेंट में रहे जिसका मुख्यालय झांसी था। 1926 में इंडियन पॉलिटिकल सर्विस के लिए निर्वाचित हुए और ऐबटाबाद, बन्नू, नौशहरा और टोंक में बतौर सहायक आयुक्त काम किया। 1931 के बाद से 1936 तक हज़ारा और मरदान में उपायुक्त रहे। 1938 में खैबर में पॉलिटिकल एजेंट नियुक्त हुए। प्रशासनिक योग्यता और आदिवासी मामलों में अनुभव के बाट 1940 में वे पेशावर के उपायुक्त नियुक्त हुए। यहाँ वे 1945 ई तक रहे। फिर उनका तबादला उड़ीसा हो गया। 1942 में ब्रिटिश सरकार के रक्षा मंत्रालय में जॉइंट सचिव नियुक्त हुए।[१][६][७][८][९]

पाकिस्तान की आज़ादी के बाद

पाकिस्तान की स्थापना के बाद वे पाकिस्तान सरकार के रक्षा मंत्रालय के पूर्व सचिव नामित हुए। वे मई 1954 में पूर्वी पाकिस्तान के राज्यपाल बनाए गए। फिर गृह मंत्री बने। राज्यों और आदिवासी क्षेत्रों विभाग भी उनके सुपुर्द किए गए। मालिक गुलाम मोहम्मद ने अपने स्वास्थ्य की खराबी के आधार पर उन्हें 6 अगस्त 1955 को कार्यवाहक राज्यपाल मनोनीत किया। 5 मार्च, 1956 को इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान के राष्ट्रपति चुने गए, और मार्च, 1956 को इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान के 1958 ई को राजनीतिक संकट के कारण देश में मार्शल लॉ लागू किया। 27 अक्टूबर को मार्शल ला के मुख्य प्रशासक, फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। और वह देश छोड़ कर अपनी पत्नी के साथ लंदन चले गए जहाँ उनकी मृत्यु हो गयी और वसीयत के अनुसार ईरान में दफन हुए। उनकी मृतयु दिल के दौरे के कारण हुई थी[१०]

लंदन में जीवन और मृत्यु

तेहरान में इस्कंदर मिर्ज़ा की राजकीय अंतिम यात्रा की तस्वीरें, 1969.

पाकिस्तान से निर्वासन के बाद उन्होंने अपनी शेष जीवन लंदन में बिताए उन्हें 3000 पाउंड पेंशन मिलती थी जिसमें उनका गुजर बसर संभव नहीं था लेकिन उनके ईरानी और ब्रिटिश सहयोगियों ने उनकी वित्तीय और आर्थिक सहायता जारी रखी जिससे उन्होंने बहतरज़नदगी गज़ारी.ापनी बीमारी के दिनों में उन्होंने अपनी पत्नी नाहीद मरज़ाको मखाठब होकर कहा "हम बीमारी के इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकते इसलिए मुझे मरने दो" 3 नवंबर, 1969 को उन्होंने दिल के रोगों से पीड़ित होकर मर गया। सदर पाकिस्तानी मोहम्मद याहया खान ने उनकी मृतक पाकिस्तानी लाने और यहां दफन करने से साफ इनकार करदयाान रिश्तेदारों को भी अंतिम संस्कार में भाग लेने से सख्ती से रोक दिया गया ईरानी राजा मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने विशेष विमान से सिकंदर मरज़ाकी मृतक तेहरान लाने आदेश दिया यहाँ राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार भुगतान गईं। उनकी अंत्येष्टि में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। 1979 ई क्रांति ईरान के बाद यह अफवाह प्रसारित करने लगी कि कुछ बदमाशों ने पूर्व राष्ट्रपति पाकिस्तान सिकंदर मिर्जा की कब्र को ध्वस्त कर दिया।

विरासत और सार्वजनिक चरित्र

चित्र:Iskander Mirza, Governor General of Pakistan, with his highness, Shah of Iran.jpg
गवर्नर-जनरल के रूप में ईरान के बादशाह के साथ, इस्कंदर मिर्ज़ा

इस्कंदर मिर्ज़ा, पाकिस्तान के विवादस्पद व्यक्तित्वों में गिने जाते हैं, और अक्सर पाकिस्तानी राजनीति में सैन्य दखलंदाज़ी की शुरुआत करने के लिए उनकी आलोचना की जाती है। वयक्तिगत रूप से भी वे पूर्णतः मुक्त लोकतंत्र के पक्षधर नहीं थे, उनकी राजनीतिक विचारधारा के अनुसार, शासन का एक सत्तावादी चरित्र होना चाहिए, और एक "नियंत्रित लोकतंत्र" स्थापित होनी चाहिए। क्योंकि उनका मानना था की तत्कालीन पाकिस्तान में अशक्षित्त के कारण , पाकिस्तान पूर्ण लोकतंत्र के लिए तैयार नहीं था।

इस्कंदर मिर्जा नौकरशाही और सेना परवरदा व्यक्ति थे इसलिए देश को लोकतंत्र से तानाशाही की ओर धकेलने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका निभाया की कोशिश की थी। ऐसा कहा जाता है कि वह राष्ट्रपति पद पर हमेशा विराजमान रहें इसलिए उन्होंने राजनेताओं का ऐसा समूह तैयार किया जिसने षड्यंत्र के कपड़े तैयार किए। उनकी राष्ट्रपतिज्ञता के दौरान सिकंदर मिर्जा के इशारों पर सरकारें बनती और टूटती रहीं। लेकिन उनके सत्ता को भी आग लगी घर के चिराग से अपने यार गुफा फील्ड मार्शल अयूब खान के हाथों देश से निर्वासित कर दिए गए।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
  2. London Gazette: (Supplement) no. 32005, p. 8141, 3 August 1920. Retrieved 10 June 2015.
  3. London Gazette: no. 32665, p. 2819, 7 April 1922. Retrieved 10 June 2015.
  4. साँचा:cite web
  5. साँचा:cite web
  6. साँचा:cite web
  7. London Gazette: no. 37747, p. 4946, 4 October 1946. Retrieved 10 June 2015.
  8. London Gazette: no. 34539, p. 5055, 5 August 1938. Retrieved 10 June 2015.
  9. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; record_list नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  10. साँचा:cite book

बाहरी कड़ियाँ