राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक | |||||
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मुख्यालय | मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत | ||||
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स्थापना | 12 जुलाई 1982[१] | ||||
प्रबंध निर्देशक | गोविंदा राजुलु चिन्तला[२] | ||||
केन्द्रीय बैंक | {{{bank_of}}} | ||||
मुद्रा | ₹ | ||||
आरक्षित | ₹८१,२२० करोड़ (US$१०.६६ अरब) (2007) | ||||
जालस्थल | Official Website | ||||
NABARD भारत का एक शीर्ष बैंक है |
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) मुम्बई, महाराष्ट्र अवस्थित भारत का एक शीर्ष बैंक है।[३] इसे "कृषि ऋण से जुड़े क्षेत्रों में, योजना और परिचालन के नीतिगत मामलों में तथा भारत के ग्रामीण अंचल की अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए मान्यता प्रदान की गयी है।
इतिहास
शिवरामन समिति (शिवरामन कमिटी) की सिफारिशों के आधार पर राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम 1981 को लागू करने के लिए संसद के एक अधिनियम के द्वारा 12 जुलाई 1982, को नाबार्ड की स्थापना की गयी। इसने कृषि ऋण विभाग (एसीडी (ACD) एवं भारतीय रिजर्व बैंक के ग्रामीण योजना और ऋण प्रकोष्ठ (रुरल प्लानिंग एंड क्रेडिट सेल) (आरपीसीसी (RPCC)) तथा कृषि पुनर्वित्त और विकास निगम (एआरडीसी (ARDC)) को प्रतिस्थापित कर अपनी जगह बनाई. यह ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण उपलब्ध कराने के लिए प्रमुख एजेंसियों में से एक है।
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक एक एेसा बैंक है जो ग्रामीणों को उनके विकास एवं अार्थिक रूप से उनकी जीवन स्तर सुधारने के लिए उनको ऋण उपलब्ध कराती है।
कृषि, लघु उद्योग, कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्पों के उन्नयन और विकास के लिए ऋण-प्रवाह सुविधाजनक बनाने के अधिदेश के साथ नाबार्ड 12 जुलाई 1982 को एक शीर्ष विकासात्मक बैंक के रूप में स्थापित किया गया था। उसे ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य संबंधित क्रियाकलापों को सहायता प्रदान करने, एकीकृत और सतत ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि सुनिश्चित करने का भी अधिदेश प्राप्त है।
भूमिका
ग्रामीण समृद्धि के फैसिलिटेटर के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करने के लिए नाबार्ड को निम्नलिखित जिम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं :
- ग्रामीण क्षेत्रों में ऋणदाता संस्थाओं को पुनर्वित्त उपलब्ध कराना
- संस्थागत विकास करना या उसे बढ़ावा देना
- क्लाइंट बैंकों का मूल्यांकन, निगरानी और निरीक्षण करना.
- ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए जो संस्थान निवेश और उत्पादन ऋण उपलब्ध कराते हैं उनके वित्तपोषण की एक शीर्ष एजेंसी के रूप में यह कार्य करता है।
- ऋण वितरण प्रणाली की अवशोषण क्षमता के लिए संस्थान के निर्माण की दिशा में उपाय करता है, जिसमे निगरानी, पुनर्वास योजनाओं के क्रियान्वयन, ऋण संस्थाओं के पुनर्गठन, कर्मियों के प्रशिक्षण में सुधार, इत्यादि शामिल हैं।
- सभी संस्थाएं जो मूलतः जमीनी स्तर पर विकास में लगे काम से जुडी हैं, उनकी ग्रामीण वित्तपोषण की गतिविधियों के साथ समन्वय रखता है, तथा भारत सरकार, राज्य सरकारों, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई (RBI)) एवं नीति निर्धारण के मामलों से जुडी अन्य राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं के साथ तालमेल बनाए रखता है।
- यह अपनी पुनर्वित्त परियोजनाओं की निगरानी एवं मूल्यांकन का उत्तरदायित्व ग्रहण करता है।
नाबार्ड का पुनर्वित्त राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों (SCARDBs), राज्य सहकारी बैंकों ((SCBs), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) बैंकों, वाणिज्यिक बैंकों (सीबीएस (CBS)) और आरबीआई अनुमोदित अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए उपलब्ध है। जबकि निवेश ऋण का अंतिम लाभार्थियों में व्यक्तियों, साझेदारी से संबंधित संस्थानों, कंपनियों, राज्य के स्वामित्व वाले निगमों, या सहकारी समितियों को शामिल किया जा सकता है, जबकि आम तौर पर उत्पादन ऋण व्यक्तियों को ही दिया जाता है।
नाबार्ड का अपना मुख्य कार्यालय मुंबई, भारत में है।
नाबार्ड अपने 28 क्षेत्रीय कार्यालय और एक उप कार्यालय, जो सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों की राजधानियों में स्थित हैं, के माध्यम से देश भर में परिचालित है। प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय [आरओ] में प्रधान कार्यकारी के रूप में एक मुख्य महाप्रबंधक [CGMs] है और प्रधान कार्यालय में कई शीर्ष अधिकारी कार्यकारी होते हैं जैसेकि कार्यकारी निदेशक [ईडी], प्रबंध निर्देशकों [एमडी] और अध्यक्ष.संपूर्ण देश में इसके 336 जिला कार्यालय, पोर्ट ब्लेयर में एक उप-कार्यालय और श्रीनगर में एक सेल है। इसके पास 6 प्रशिक्षण संस्थान भी हैं।
नाबार्ड को इसके 'एसएचजी (SHG) बैंक लिंकेज कार्यक्रम' के लिए भी जाना जाता है जो भारत के बैंकों को स्वावलंबी समूहों (एसएचजीज (SHGs)) उधार देने के लिए प्रोत्साहित करता है। क्योंकि एसएचजीज का गठन विशेषकर गरीब महिलाओं को लेकर किया गया है, इससे यह माइक्रोफाइनांस के लिए महत्वपूर्ण भारतीय उपकरण के रूप में विकसित हो गया है। इस कार्यक्रम के माध्यम से मार्च 2006 तक 33 मिलियन सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले 2200000 लाख स्वयं सहायता समूह ऋण से जुड़ चुके थे।[४]
नाबार्ड के पास प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कार्यक्रम का भी एक (विभाग) पोर्टफोलियो है जिसमें के एक समर्पित उद्देश्य के लिए स्थापित कोष के माध्यम से जल संभर विकास, आदिवासी विकास और नवोन्मेषी फार्म जैसे विभिन्न क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
ग्रामीण नवोन्मेष
भारत में ग्रामीण विकास के क्षेत्र में नाबार्ड की भूमिका अभूतपूर्व है।[५] कृषि, कुटीर उद्योग और ग्रामीण उद्योगों के विकास के लिए ऋण प्रवाह को सुविधाजनक बनाने और विकास को बढ़ावा देने के अधिदेश के साथ भारत सरकार ने राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना एक शीर्षस्थ विकास बैंक के रूप में की. नाबार्ड द्वारा कृषिगत गतिविधियों के लिए स्वीकृत ऋण प्रवाह (क्रेडिट फ्लो) 2005-2006 में 1574800 मिलियन रुपए तक पहुंच गया। कुल सकल घरेलू उत्पाद में 8.4 फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है। आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी सम्पूर्णता में उच्च विकास दर के लिए प्रस्तुत है। सामान्य रूप से भारत के समग्र विकास में तथा विशिष्टरूप से ग्रामीण एवं कृषि के विकास में नाबार्ड की भूमिका अहम रूप से निर्णायक रही है।
विकास और सहयोग के लिए स्विस एजेंसी की सहायता के माध्यम से, नाबार्ड ने ग्रामीण अवसंरचना विकास निधि की स्थापना की. आरआईडीएफ योजना के तहत 2,44,651 परियोजनाओं के लिए रू. 512830000000 मंजूर दी गई हैं जिसके अंतर्गत सिंचाई, ग्रामीण सड़कों और पुलों के निर्माण, स्वास्थ्य और शिक्षा, मिट्टी का संरक्षण, जल की परियोजनाएं इत्यादि शामिल हैं। ग्रामीण नवोन्मेष कोष एक ऐसा कोष है जिसे इस प्रकार डिजाइन किया गया है जिसमे नवोंमेश का समर्थन, जोखिम के प्रति मित्रवत व्यवहार, इन क्षेत्रों में अपरंपरागत प्रयोग करेगा जिसमे ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसर और रोजगार को बढ़ावा देने की क्षमता होगी.[६] व्यक्तियों, गैर सरकारी संगठनों, सहकारिता, स्वावलंबी समूहों और पंचायती राज संस्थाओं को सहायता के हाथ बढ़ा दिये गए हैं, जिनमे ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने की दक्षता और नवोन्मेषी विचारों को लागू करने की इच्छा है। लाख 2 करोर 50 लाख की सदस्यता के जरिये, 600000 सहकारिता संस्थाएं भारत में जमीनी मौलिक स्तर पर लगभग अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में काम कर रही हैं। स्वसहायता समूहों और अन्य प्रकार के संस्थानों के बीच सहकारी समितियों के साथ संबंध हैं।
आरआईडीएफ के प्रयोजन के लिए व्यावहारिक मतलब के माध्यम से ग्रामीण और कृषि क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देना है। कार्यक्रम की प्रभावशीलता कई कारकों पर निर्भर करती है, लेकिन जिस संगठन को सहायता दी जाती है गयी है उसके प्रकार, अनुकूलतम व्यावसायिक तरीके से विचारों को क्रियान्वित करने में विशेष रूप से जटिल है। सहकारी संस्था सामाजिक-आर्थिक उद्देश्य के लिए सदस्य प्रेरित औपचारिक संगठन है, जबकि एसएचजी एक अनौपचारिक संस्था है। स्वयंसेवी संस्था सामाजिक रंग में अधिक ढली है, जबकि पंचायती राज राजनीति से जुड़ा है। यह संस्थान क्या कानूनी स्थिति को बरकरार रखते हुए कार्यक्रम की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है? कैसे और किस हद तक? गैर सरकारी सहायता संगठनों (एनजीओ (NGO)), स्वसहायता समूहों एसजीएच (SHG) एवं पीआरआई (PRIs) की तुलना में सहकारी संगठन, (कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र) में कार्य करने में (वित्तीय क्षमता एवं प्रभावशीलता) में बेहतर है।[७]
वर्ष 2007-08 में हाल ही में, नाबार्ड ने 'प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए छतरी सुरक्षा कार्यक्रम (यूपीएनआरएम (UPNRM)) के तहत एक नया प्रत्यक्ष ऋण सुविधा शुरू कर दी है। इस सुविधा के अंतर्गत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन गतिविधियों के तहत ब्याज की उचित दर पर ऋण के रूप में वित्तीय समर्थन प्रदान किया जा सकता है। पहले से ही 35 परियोजनाओं को मंजूरी दे दी गयी है जिसमे ऋण की राशि लगभग 1000 मिलियन रूपये तक पहुंच गयी है। स्वीकृत परियोजनाओं के अंतर्गत महाराष्ट्र में आदिवासियों द्वारा शहद-संग्रह, कर्नाटक[८] में पर्यावरण-पर्यटन, एक महिला निर्माता कंपनी ('मसुता (MASUTA)') द्वारा तस्सर मूल्य श्रृंखला (tussar value chain) आदि शामिल हैं।[९][१०]
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
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- ↑ ईडीए (EDA) और एपीएमएएस (APMAS) सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स इन इंडिया: अ स्टडी ऑफ़ द लाइट्स एंड शेड्स, केयर (CARE), सीआरएस (CRS), यूएसएआईडी (USAID) एंड जीटीज़ेड (GTZ), 2006, पृष्ठ 11
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बाहरी कड़ियाँ