भारतीय पादप तथा वृक्ष
भारत में पादप अध्ययन प्रागैतिहासिक काल से चला आ रहा है। आयुर्वेद विज्ञान के अंतर्गत सहस्त्रों पौधों के आकार, प्राप्तिस्थान तथा उनके गुणों के बारे में कई हजार वर्ष पूर्व किए गए उल्लेख मिलते है। भारत का लगभग १९ प्रतिशत भूभाग वनों से ढका है। उत्तम कोटि के पादप, जैसे अनावृतबीजी तथा आवृतबीजी की लगभग ३०,००० जातियाँ इस देश में पाई जाती हैं। वनस्पति विज्ञान की आधुनिक रीति से क्लार्क (१८९८ ई०), हूकर (१८५५ तथा १९०७ ई०), इथी, हेंस, कांजीलाल, डी० चटर्जी जी० एस० पुरी इत्यादि ने भारतीय पौधों तथा वृक्षों का विशेष अध्ययन किया है, जैसे ‘वन’ के बारे में चैंपियन तथा ग्रिफिथ और जी० एस० पुरी, ‘घास’ तथा ‘चारागाह’ के बारे में रंगनाथन्, ह्वाइट तथा एन० एल० बोर, ने। औषधि में प्रयुक्त होने वाले पौधे तथा जहरीले पौधों के अध्ययन के लिये चोपड़ा, कीर्तिकर तथा बसु उल्लेखनीय हैं।
पत्रकार : अतिश कुमार मोबाइल : 9708352319
भारत के वानस्पतिक क्षेत्र
वनस्पति के विस्तार तथा प्रकार के विचार से भारत को कई वानस्पतिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है जो मुख्यत:
(१) पश्चिमी हिमालय,
(२) पूर्वी हिमालय,
(३) सिंध का मैदान,
(४) गंगा का मैदान,
(५) असम क्षेत्र,
(६) मध्य भारत तथा दख्खन और
(७) मलाबार हैं।
इनके अतिरिक्त अंदमान द्वीपसमूह भी एक अलग वनस्पति क्षेत्र है।
हिमालय पर्वत पर पौधों के प्रकार ऊँचाई के हिसाब से बदलते जाते हैं, जैसे ३,५०० फुट के नीचे के भागों में जो गरम और नम हैं, सदाबहार के जंगल उगते हैं। इससे अधिक ऊँचे स्थानों पर नुकीली पत्तीवाले चीड़ देवदार, पोडोकार्पस (Podocarpus), तथा चौड़ी पत्तीवाले बाँज, भुर्ज, सैलिक्स, चिनार (poplar) इत्यादि पाए जाते हैं। यहाँ के एक वर्षीय छोटे पौधे भारत के अन्य भागों के पौधों से काफी भिन्न हैं। गुलाब, रसभरी (Rubusidaeus), सेब, बदाम, अनार, बारबेरी इत्यादि अनेक प्रकार के पादप पाए जाते हैं। इस खंड को शीतोष्ण कटिबंध (Temperate zone) कहते हैं और यह १३,००० फुट की ऊँचाई तक विस्तृत है। इसके ऊपर ऐल्पीय क्षेत्र (Alpine region) है, जहाँ बड़े वृक्ष नहीं उगते। घास, छोटी झाड़ी या अन्य छोटे पौधे उगते हैं। यहाँ के झाड़ीवाले चिमूल या रोडोडेंड्रॉन (Rhododendron) अपनी सुंदरता के लिये विश्वविख्यात हैं। इनके अतिरिक्त कुछ जंगली गुलाब गुलदाऊदी, पोटेंटिला (Potentilla), प्रिमुला (Primula), रतनजोग (Anemone) इत्यादि सुंदर पौधे उगते हैं। १७,००० से १८,००० फुट की ऊँचाई के ऊपर बारहों महीने बर्फ जमी रहती है, किंतु फिर भीश् कुछ पौधे, जैसे सीडम हिमालेंसी (Sedum himalency), पोटेंटला माइक्रोफिला (Potentilla microphila) आदि ऐस्टर की जातियाँ उगते हैं। पूर्वी हिमालय विषुवत रेखा के समीप होने से अधिक गरम और नम है, जिससे यहाँ पौधों की सघनता तथा उनके प्रकार पश्चिमी हिमालय से अधिक हैं। पइनस खासिया (Pinus khasya), रोडोडेंड्रान की कुछ विशेष जातियाँ, रूबिएसिई (Rubiaceae) तथा प्रिमुलेसिई (Primulaceae) कुलों के अनेक पौधे, बाँस के जंगल इत्यादि, केवल पूर्वी भाग में नहीं पाई जातीं, जैसे पाइनस लॉंजिफोलिया (Pinus longifolia), पाइनस जिरारर्डियाना, क्यूप्रेसस टारुलोसा (Cupressus torulosa), देवदार तथा क्वरकस (Quercus) की जातियाँ, बाँज जैसे क्व० इनकाना (Q. incana) या क्व० सेमकार्पीफोलिया, (Q. semicarpifolia) इत्यादि।
सिंध के मैदानी वनस्पति क्षेत्र में वर्षा कम और गरमी अधिक होने से अधिक भाग बलुआ मरुस्थल है। मिट्टी में लवण की अधिकता के कारण उपज कम है। यहाँ निम्नलिखित पादप मिलते हैं: सैल्वाडॉरा (Salvadora), जंद या प्रोसोपिस (Prosopis), पेरू या ऐकेशिया ल्यूकोफिलया (Acacia leaucophloea), ऐ० अरेबिका (A. arabica), टैमरिक्स आर्टिकुलेटा (Tamrix articulata), कैपैरिस (Capparis), सुएडा (Suaeda), सलूनक, बूटी बरगद (Zizyphus jejuba), एफिड्रा, लेप्टाडीनिआ, नागफनी, शीशम, मदार, कैलगोनम इत्यादि और कुछ घास, जैसे काँस, मूँज, स्पोरोबोलस इत्यादि।
गंगा के मैदान का उत्तर प्रदेशवाला भाग कम वर्षा का क्षेत्र, बिहारवाला भाग मध्यम वर्षा का क्षेत्र है। अधिकांश भूमि खेती के लिये उत्तम है और इसलिए अधिकांश प्राकृतिक जंगल नष्ट कर दिए गए हैं। मुख्य पादप, जिनकी खेती की जाती है, निम्नलिखत हैं: गेहूँ, चना, मटर, मक्का, जौ, बाजरा, अरहर, मूँग, मसूर, उरद, ईख कपास, सन या सनई, जूट इत्यादि। बाग बाटिकाओं में फल के वृक्ष जैसे आम, इमली अमरूद लगाए जाते हैं वनों में ऊँचे, बड़े वृक्ष स्वत: उगते है, जिनके नाम इस प्रकार हैं: आँवला, बन सागैन या लेगरस्ट्रीमिया (Lagerstroemia), बबूल, बहेड़ा या टर्मिनेलिया बेलेरिका (Terminalia belerica), हड़ या टर्मिनेलिया चेबुला (Terminalia chebula), सिरिस या ऐलबिजिया प्रोसेरा (Albizzia procera), तथा सिरिन या एलबिजिया लेबेक, भुरकुल या हाइमिनोडिक्टयान एक्सेलसम (Hymenodictyan exelsum), विजैसाल या टीरोकारपस मारसूपियम (Pterocarpus marsupiam), चिलबिल या हॉलॉप्टीलिया इंटेग्रीफोलिया (Holoptelia integrifolia), गोंदनी या ब्रिडेलिया स्प० (Bridelia sp.), इमली, जिगना या लैनिया कोरोमैंडेलिका (Lannea coromandelica), खैर या ऐकेशिया कैटेशु (Acacia catechu), बीड़ी पत्ता या तेंदू या डाइऑसिपिरॉस मेलेनोजाइलान (Diospyros melanoxylon), सलई या बॉलवेलिया सरेटा (Boswellia serrote), पियार या चिरौंजी, लिसोड़ा या कॉर्डिया मिक्सा (Cordiamyxa) इत्यादि वृक्ष हैं बिहार राज्य के राजमहल, पारसनाथ तथा छोटानागपुर के वनों में ऊँचे ऊँचे साल या साखू के जंगल हैं। पारसनाथ की पहाड़ियाँ सीताफल या शरीफे के छोटे वृक्षों से भरी हैं। बंगाल क खाड़ी की तरफ दलदली भूमि में सुदंरवन है, जहाँ के पादप विशेष प्रकार के हैं जिन्हें मैंग्रोव (Mangrove), पादप कहते हैं। इसके उदाहरण हैं, :नारियल या कोकॉस नूसीफेरा (Cocal nucifera), बेत्त या कैलेमस टेनुइस (Calamus tenuis), ब्रूगेरा (Bruguiera), ऐविसेनिया (Avicennia), ऐकैंथस इलिसिफोलियस (Acanthus ilicifolius), सीरिऑप्स (Cerops), हिरिटिईरा (Heritiera), इत्यादि हैं। असम की पर्वतमाला संसार में सबसे अधिक वर्षावाला स्थान है। यहाँ सदाबहार प्रकार के जंगल में विविध प्रकार के ऊँचे घने वृक्ष उगते हैं। रबर की एक जाति आर्टोकारपस चैपलाशा (Artocarpus chaplasha), बहुत ऊँचे वृक्ष डिप्टेरोकारपस (Dipterocarpus), सेमल या सलमालिया (Salmalia), भूर्ज, बाँज (oak), बलूत (Abies), साखू या शोरिया रोबस्टा (Shorea robusta), शीशम या डैलबर्जिआ सिसू (Dalbergia sissoo), जंगली बादाम या स्टरकूलिया (Sterculia), इत्यादि हैं। नम दलदली जगहों में एरिऐंथस (Erianthus), नरई (Arundo), ्फ्रैगमाइटीज (Phragmites), तथा अनेक प्रकार के सेज (sedge), पाए जाते हैं। जल में एजोला, मारसिलिया (Marsilea), सैलविनियाँ (Salvinia), कमल, लिली, कुमुदनी, इत्यादि हैं। कुछ रोचक पौधे भी इस क्षेत्र में पाए जाते हैं, जैसे घटपर्णी, निपेनथीज खासियाना (Nepenthes khasiana), जिसकी पत्ती सुराही के आकार की होती है। इसमें कीड़े मकोड़े फँस जाते हैं, जिन्हें यह पौधा हजम कर जाता है। इसी प्रकार का एक और पौधा ड्रॉसेरा (Drosera) भी पाया जाता है।
भारत के मध्य तथा दक्षिण क्षेत्रों में सागौन या टेक्टोना ग्रैनडिस (Tectona grandis) और साखू के जंगल पाए जाते हैं। मैसूर के जंगल में भारत का विश्वविख्यात वृक्ष चंदन उगता है। मालाबार के भाग में जहाँ अधिक वर्षा होती है, घने जंगल पाए जाते हैं। यहाँ रबर की खेती होती है। मलाबार के समुद्रतट पर नारियल के पौधे बहुत उगते हैं, जिनसे अनेक प्रकार की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।
अगस्त या सेस्बैनिया ग्रैंडिफलोरा (Sesbania grandiflora)
यह लेग्यूमिनोसी कुल का मध्यम ऊँचाई का वृक्ष है, जिसे बगीचों में लगाया जाता है। इनके फूल बैंगनी या पीले, सफेद होते हैं। यह भारत के अधिकांश भाग में उगता है और मलाया तथा उत्तर आस्ट्रेलिया में भी होता है।
अमड़ा या स्पॉनडीऐस मैंगीफेरा (Spondias pinnata, syn. S. mangifera)
ऐनाकार्डीएसिई (Anacardiaceae), कुल का एक ऊँचा वृक्ष हैचकठखपतप68 , जिसमें वर्ष के तिहाई भाग में पत्तियाँ नहीं रहतीं। यह छोटा, हरा, खट्टा फल पैदा करता है, जो आम जैसा ही होता है। इसका अचार बनता है। जंगल में इसे हरिण तथा अन्य जानवर चाव से खाते हैं। (देखें आमड़ा)। (वर्गीकरण का स्रोत: [१][२])
आकाशनीम या मिलिंगटोनिया हॉरटेंसिस (Millingtonia hortensis)
बिगनोनिएसिई (Bignoniaceae) कुल का बहुत ऊँचा वृक्ष है। इसमें सफेद, सुगंधित पुष्प लगते हैं। इस वृक्ष की लकड़ी हलकी तथा मुलायम होने के कारण यह प्राय: ऑधियों में गिर जाता हैं। यह असम, बर्मा और मलाया में अधिक सुगमता से होता है।
कटहल या ऑर्टोकार्पस इटेग्रिफोलिया (Artocarpus integrifolia)
यह बड़ा वृक्ष अर्टकेसिई (Urticaceae) कुल का सदस्य है। यह भारत के हर एक भाग में होता है। इसके कच्चे फल की तरकारी बनाकर खाई जाती है और अचार बनता है। पक्के फल का कोआ खाया जाता है। पश्चिमी तट के जंगलो में यह स्वत: उगता है।
कंदा या शकरकंद (Ipomoea batatas)
पृथ्वी के नीचे जड़ के फूलने से बनता है। (देखें शकरकंद)।
कदंब या ऐंथोसिफैलस कदंबा (Neolamarckia cadamba, syn. Anthocephalus cadamba)
यह अत्यंत सुंदर, ऊँचा वृक्ष है, जो भारत के कई भागों में उगता है। यह कंपोजिटी कुल का सुंदर पौधा है। इसमें गेंद जैसे पीले सुदंर पुष्पुच्छ होते है, जो बढ़कर संयुक्त फल बनाते हैं। (देखें कदंब वृक्ष)। (वर्गीकरण का स्रोत: [३])
कैथ या फिरोनिआ एलिफैंटम (Limonia acidissima, syn. Feronia elephantum)
यह रूटेसिई कुल का ऊँचा तथा कंटीला वृक्ष है, जो उत्तर भारत में बहुत विस्तृत रूप से पाया जाता है। वृक्ष की छाल काली होती है, फल हरा, सफेद और कड़ा होता है, जिसे हाथी का सेब (Elephant apple), कहते हैं। इसके गूदे की चटनी बनती है और अवा के काम आता है। (वर्गीकरण का स्रोत: [४][२])
काजू या ऐनाकार्डियम ऑर्क्सिडेंटैली (Anacardium occidentale)
दक्षिण भारत में यह स्वत: उगता है तथा बाग में लगाया जाता है। इसका वृक्ष मध्यम आकार का है। इसका फल बड़ा होता है, जिसके सिरे पर एक कर्नेल होता है। उसके अंदर खानेवाला भाग होता है, जो बाजार में बिकता है। यह वृक्ष ऐनाकारडिएसिई कुल का सदस्य है।
खिरनी या माइमोसॉप्स हेक्जैंड्रा (Manilkara hexandra, syn. Mimusops hexandra)
यह ४०-५० फुट ऊँचा घना वृक्ष है, जो उत्तरी भारत मेंश् स्वत: उगता है, अथवा उगाया जाता है। इसमें पीले छोटे फल लगते हैं, जो खाने में काफी मीठे और स्वादिष्ठ होते हैं। वृक्ष की छाल औषधि के कार्य में आती है। बीज से तेल निकाला जाता है। (वर्गीकरण का स्रोत: [५])
चिरौजी या पियाल या कुकनानियाँ लैंजान (Buchananian lanzan)
यह ऐनाकारडिएसिई कुल का जंगली वृक्ष है। और उत्तर भारत के मिर्जापुर के जंगलों में स्वत: उगता है। इसका फल, जिसे जंगली लोग पियाल कहते हैं, खाया जाता है। बीज को तोड़कर चिरौंजी निकाली जाती है। यह बीज बहुत पौष्टिक होता है।
जामुन या यूजिनिया जांबोलाना (Syzygium cumini, syn. Eugenia jambolana)
यह ३० से ४० फुट ऊँचा वृक्ष भारत के अनेक भागों में उगता है। इसमें चौड़ी, मोटी पत्ती, सफेद पर काली चिप्पड़ जैसी छाल तथा पका हुआ काला या लाल फल होता है। इसकी अनेक जंगली जातियाँ पाई जाती हैं, जिनका, फल छोटा, कैसला तथा लाल होता है, परंतु बाग में लगाए जानेवाले वृक्ष में काले, बड़े रसभरे फल लगते हैं। फल से सिरका भी बनाया जाता है, अधिकांश फल ताजा खाया जाता है। फल गरमी के अंत तथा बरसात के शुरू में पकता है। (वर्गीकरण का स्रोत: [६])
झाऊ
दो प्रकार के पौधों को कहा जाता है, जो देखने में कुछ मिलते जुलते होते हैं। एक प्रकार है, जिसे टैमरिक्स गैलिका (Tamarix gallica) कहते हैं, जो एक झाड़ी है और २५-३० फुट तक ऊँचा होता है। यह नदी के किनारे अधिक उगता है, जिसमें पतली पत्ती जैसी टहनियाँ गुच्छे में निकलती हैं। दूसरा वृक्ष बहुत ऊँचा लगभग ५०-७० फुट या अधिक ऊँचा होता है। इसका नाम भी झाऊ या कैजुआरिना इक्वीजीटोफोलिया (Casuarina equisetifolia) है। यह उत्तर भारत मे काफी लगाया जाता है। बढ़ते हुए बालू के परिमाण को रोकने के लिये तथा मरुस्थल का बढ़ना रोकने के लिये, इसे भारत में बहुत से स्थानों पर लगाया गया है।
तेंदू या बीड़ी पत्ता
इसका वानस्पतिक नाम डाइऑस्पिरॉस मेलैनोजाइलान (Diospyros melanoxylon) हैं, जो ऐबिनेसिई कुल का सदस्य है। यह मध्यम श्रेणी का वृक्ष है, जिसका तना टेढ़ा मेढ़ा ऐंठा होता है। उत्तर भारत के जंगलों में यह वृक्ष स्वत: बहुत उगता है। इसकी पत्ती को तोड़कर सुखा लिया जाता है और तंबाकू की पत्ती के टुकड़ों को इसमें लपेटकर बीड़ी बनाई जाती है।
पलास या ढाक
इसका वानस्पतिक नाम ब्यूटिया मॉनोस्पर्मा (Butea monosperma) है। लेग्यूमिनोसिई कुल का यह लघु वृक्ष भारत में मैदानी जंगलों में उगता है। इसका पुष्प अत्यंत चमकीला लाल होता है और जब जंगल के जंगल फूल से भर जाते है तो दूर से बड़ा ही सुहावना लगता है। पुष्प से पीला रंग बनाया जाता है, छाल से लाल गोंद निकलती है और पत्ते दोने तथा पत्तल बनाने के काम आते हैं।
बेल
इसका वानस्पतिक नाम इग्लिमेरमिलॉस (Aegle marmelos) है। रूटेसिईकुल का यह वृक्ष है, जो ३० से ४० फुट ऊँचा होता है, पत्ती तीन तीन के गुच्छों में होती है, फल बड़ा, गोल तथा कड़ा होता है, अंदर गूदा मीठा तथा पौष्टिक होता है। पेड़ पर काँटे लगे होते हैं। यह भारत में अनेक स्थानों पर लगाया जाता है और हिंदू इसे धार्मिक दृष्टि से पवित्र समझते हैं। (देखें बिल्व)।
बबूल
इसका वानस्पतिक नाम ऐकेशिया अरेबिका (Acacia arabica) है। यह मध्यम वर्ग का काँटेदार वृक्ष बलुई जमीन में नदी के किनारे अधिक उगता है। इसकी छाल से निकला गोंद बहुत अच्छा होता है। लकड़ी मजबूत होती है और बैलगाड़ी बनाने के काम आती है।
आदरणीय भारत के राष्ट्रिय नागरिक महोदय व् नागरिक बन्धुओं हमारे भरत के नागरिकों पर राज करने वाले राष्ट्रिय नागरिकों से विनम्र अपील हमारे देश का कोई भी प्रधानमंत्री अगर किसी राज्य में बीस करोड़ की मदद देने की घोषणा करते है यह तो अच्चा है परन्तु मान लो की किसी राज्य की जनता पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने का व्यापर करने में सक्षम है तो प्रधानमन्त्री जी को यह घोषणा करने की करपा करनी चाहिए की केन्द्र सर्कार दस करोड़ नगद देगे और दस करोड़ के सालाना राज्य की जनता से पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने खरीदेंगे फिर देश की जनता को भोज के लिए हर गैस सरेण्डर के साथ मुफ्त देंगे जो देश की जनता जल पानी बर्बादी से जानलेवा मलेरिया व जल पानी बर्बादी से स्टील के बर्तन व् स्टील के ठीकरे धोनें पर चमड़ी कटने की बीमारी न हो जो जितना आमिर आदमी उतना बरबाद क्यों उसका इलाज ही नहीं होता स्टील के बर्तन को धोने वाले की परेशानी दूर बर्तन धोने वाले को रोज लगभग दोनों समय 150 ठकरे धोने से निजात मिलेगी स्टील के बरतन को धोने से जो जल बहता है जल बहने से मलेरिया के मछरों का आतंक मिट सकता है मलेरिया की बिमारियों पर परिवार बरबाद होने में कमी आएगी दवाइयों में शासनात्मक कमीशन बाजी व घोटाले बाजी जो देश को बरबाद करने में तुली हुई ह उसमें कमी आ सकती है यह योजना हर परिवार के पास पहुचती है तो हर परिवार ६ सदस्य ४० हजार रूपये की बचत व सरकार को मलेरिया के लिए परेशानी में कमी आएगी मानव व जानवरों को एलरजी नमक बिमारियों से छुटकारा पाने में मदद मिलेगी और किसी राज्य का मुख्यमंत्री जो अपने राज्य को मेहनतकस व महत्वाकान्सी आत्म शक्तिशाली बनाना चाहता है तो अपनी राज्य की जनता को पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने का व्यापर करवाने व पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने में खाने का प्रचार होना चाहिए सरकारें जनता नो पेड़ के पत्तों के पत्तल दोने का व्यापर का अनुदान देगी तो उस राज्य में हरियाली की कमी कभी नहीं आएगी
महुआ
इसका वानस्पतिक नाम बैसिआ लैटीफालिया (Bassia latifolia) या मधुका इंडिका (Madhuca indica) है। वर्तमान में Madhuca longifolia var. latifolia है।[७] यह उत्तर भारत में हर जगह उगता है। सैपोटेसिई कुल का यह पौधा ३०-४० फुट ऊँचा होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है तथा पत्तों से दोना पत्तल बनाए जाते हैं। इसका फूल गरमी के शुरू में झड़ता है, जो इकठ्टा कर खाया जाता है। इससे बहुत बड़े पैमाने पर शराब भी बनाई जाती है। (देखें महुआ)।
मदार
इसका वानस्पतिक नाम कैलोट्रॉपिस (Callotropis) है। इसकी कई जातियाँ भारत में पाई जाती हैं। यह एस्क्लीपीडिएसिई कुल का १०-१५ फुट ऊँचा वृक्ष पश्चिमी भारत में अधिक होता है। फल से औषधि बनती तथा रूई निकाली जाती है।
रेड़ी
इसका वानस्पतिक नाम रसिनस कम्यूनिस (Ricinus communis) है। यह यूफॉरबिएसिई कुल का छोटा झाड़ीदार वृक्ष है, जिसका बीज सुखाकर तेल निकालने के लिये पैदा किया जाता है। यह ओषधि के भी काम आता है।
शीशम
इसका वानस्पतिक नाम डैलबरजिया सिसू (Dalbergia sissoo) है। भारत में प्रथम श्रेणी की इमारती लकड़ी वाला यह वृक्ष लेग्लूमिनोसी कुल में रखा जाता है। गरमी के पहले इसकी पत्तियाँ झड़ जाती हैं। इसकी लाल रंग की लकड़ी बहुत भारी और मजबुत होती है, जिससे अच्छे किस्म के टिकाऊ सामान बनाए जाते हैं।
सलई
इसका वानस्पतिक नाम बॉजवेलिआ सेरेटा (Boswellia serrata) है। यह बरसरेसिई (Burseraceae) कुल का काफी फैला हुआ, मध्यम वर्ग का वृक्ष उत्तर तथा मध्य भागों में काफी उगता है। इस जंगली वृक्ष की हलकी लकड़ी दियासलाई कागज तथा पैकिंग केस बनाने के काम आती है।
सेमल
इसका वानस्पतिक नाम सालमालिया (Salmalia) है। यह बांबकेसी कुल का विशाल वृक्ष उत्तर भारत के जंगलो में पाया जाता है। इसका तना सफेद तथा लकड़ी हलकी होती है। पत्ती चौड़ी होती है और सहज ही झड़ जाती है। जब पूरा वृक्ष लाल भड़कीले पुष्पों से भर जाता है तब अत्यंत मनोहर लगता है। यह १००-१५० फुट तक आसानी से बढ़ता है। फल से रेशम जैसा सेमल निकलता है, जिसे तकिये में भरा जाता है।
सागौन
इसको सागवान या टीक (teak) कहते हैं। इसका वानस्पतिक नामश् टेक्टोना ग्रैंडिस (Tectona grandis) है। यह बर्बिनेसिई (Verbeneceae) कुल का ऊँचा वृक्ष भारत के कई जंगलों का प्रमुख वृक्ष है। वन विभाग की तरफ से इसके वन लगाए गए हैं। इस वृक्ष के पत्ते बड़े बड़े और खुरदरे होते हैं, जिनमें प्राय: बड़े छेद हो जाते हैं। लकड़ी बहुत ही अच्छी होती है। इमारती काम के लिये इस वृक्ष की लकड़ी प्रथम श्रेणी की मानी गई है।
अन्य
अंजीर, अखरोट, अडूसा, अजवायन, अनन्नास, अनार, अमरूद, अमलतास, अरहर (देखें दाल), आँवला, आम, आलू, आलूबुखारा, इंद्रायण, इमली, ईख, एरंड, कमल, कपास, करंज, करमकल्ला, करेला, कालीमिर्च, केला, केसर, कुचला, कुमारी, खैर (देखें कत्था), खस, खीरा, गांजा, गाजर, गेहुँ, गोखरू, चंदन, चंपा, चाय, चीड़, , टमाटर, तंबाकू, ताड़, तुलसी, दालचीनी, देवदार, नारियल, धान (देखें चावल), नासपाती, नीबू, नीम, पपीता, पालक, पोल, बरगद, बाँज, बदाम, बैंगन, मक्का, मेंहदी, लीची, शकरकंद, सलजम, शहतूत, संतरा, साखू तथा हल्दी बावली।
सन्दर्भ
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