अफ़्रीका का इतिहास

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अफ्रीका का इतिहास को मानव विकास का इतिहास भी कहा जा सकता है। मानव सभ्यता की नींव पूर्वी अफ्रीका में होमो सेपियन्स प्रजाति के वानर द्वारा रखी गयी। यही प्रजाती आज के आधुनिक मनुष्य की पूर्वज प्रजाति है। लिखित इतिहास में सबसे पहले वर्णन मिलता है मिस्र सभ्यता का जो नील नदी के समीप ईसा से ४००० वर्ष पूर्व प्रारंभ हुई।

प्रागैतिहास

मीसोज़ोइक युग के आरंब में, अफ्रीका पृथ्वी के पैन्जिया भूभाग के अन्य महाद्वीपों से जुड़ा।[१] अफ्रीका में भी इस सुपर-महाद्वीप के अपेक्षाकृत यूनीफॉर्म जंतु-जगत ही थे, जिनमं् थेरोपॉड्स, प्रोसॉरोपॉड्स एवं प्राचीन ऑर्निथिस्शियंस की बहुतायत थी। ऐसा ट्राइज़ियैक काल के अंत तक रहा।[१] अंतिम ट्राइज़ियैक कालीन जीवाश्म वैसे तो अफ्रीका पर्यन्त मिलते हैं, किंतु उत्तरी भाग की अपेक्षा दक्षिणी भाग में अधिक मिले हैं।[१] ट्राइज़ियैक और जुरासिक काल को पृथक करती समय सीमा विश्व के अन्य भागों के साथ ही यहां भी इनके विलुप्तिकरण को इंगित करती है, हालांकि अफ्रीका के इस काल के बारे में अभी अधिक गहन शोध नहीं हुए हैं।[१]

आरंभिक जुरासिक काल को भी अंतिम ट्रायज़ियैक काल की भांति ही बांटा गया है, जिसमें दक्षिणी भाग में अधिक पाये गए आउटक्रॉप्स एवं उत्तरी भाग में अपेक्शाकृत कम पाये गए जीवाश्म बेड्स रखे गये।[१] जुरासिक काल की प्रगति के साथ साथ ही डायनोसॉर्स के अधिक आयनिक समूह जैसे सॉरोपॉड्स एवं ऑर्निथोपॉड्स अफ्रीका में बढ़ने लगे।[१] मध्य जुरासिक काल को अफ्रीका के संदर्भ में ना तो अधिक दर्शाया गया ना अधिक अध्ययन ही किया गया है।[१] जुरासिक काल के अंतिम भाग को भी तंजानिया के तेंदुगुरु के आश्चर्यजनक जंतु-जगत के अलावा अधिक ध्यान से शोध नहीं किया गया है।[१] तेंदुगुरु के अंतिम जुरासिक कालीन जंतु पश्चिमी उत्तरी अमरीका के मॉरिस फॉर्मेशन से मेल खाते थे।[१]

मध्य मीसोज़ोइक काल में, लगभग १५०-१६० अरब वर्ष पूर्व, मैडागास्कर अफ्रीका महाद्वीप से अलग हुआ था, हालांकि वह भारत एवं शेष गोंडवाना भूमिखण्ड से जुड़ा रहा।[१] मैडागास्कर के जीवाश्मों में अबेलिसॉर्स एवं टाइटैनोसॉर्स थे।[१]

अफ्रीकी थेरोपॉड स्पाइनोसॉरस –सबसे बड़ा ज्ञात मांसाहारी डायनोसॉर था

बाद में आरंभिक क्रेटैशियस युग में, भारत-मैडागास्कर भूखंड स्थायी रूप से अलग होते हुए वर्तमान स्थिति में पहुंचे।[१]

मैडागास्कर की तुलना में अफ्रिका की मुख्य-भूमि मीसोज़ोइक युग पर्यन्त अपनी जगह पर अपेक्षाकृत अधिक स्थिर रही।[१] किंतु स्थिर रहने पर भी इसमें निरंतर दूर होते पैन्जिया के अन्य भूभागों से बहुत अंतर आया।[१] अंतिम क्रेटेशियस युग के आरंभ में दक्षिण अमरीका भी अफ्रीका से अलग हो गया था। इस तरह अंध महासागर का दक्षिणार्ध भाग पूर्ण हुआ।[१] इस घटाना का वैश्विक जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि इससे सागरीय धाराओं में बड़ा अंतर आया।[१]

क्रेटेशियस युग में अफ्रीका में अलोसॉरॉएड्स एवं स्पाइनोसॉरॉएड्स बढ़ते रहे। ये सबसे बड़े मांसभक्षियों में से थे।[१] इस प्रागैतिहासिक काल के ईकोसिस्टम में टाइटैनोसॉर्स खास शाकाहारी थे।[१] जुरासिक स्थलों की अपेक्षा क्रेटेशियस पुरातात्विक स्थल अधिक मिलते हैं, किंतु प्रायः रेडियो डेटिंग द्वारा इनकी कालगणना असंभव होती है। इस कारण इनकी सही-सही काल-स्थिति नहीं पता चल पाती है।[१] प्रागैतिहासज्ञ लुइ जैकब्स ने मालावी के मैदानों में अध्ययन करते हुए पाया कि साँचा:fix "अफ्रीकी भूमि और गहन अध्ययन मांगती है तथा यह खोज की खेती के लिए निश्चय ही उपजाऊ भूमि सिद्ध होगी।"[१]

पूर्व इतिहास

लूसी, एक ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफारेन्सिस कंकाल, जो २४ नवंबर, १९७४ को अवाश घाटी, इथियोपिया में अफार डिप्रेशन में मिला था।

अधिकांश पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा पृथ्वी का प्राचीनतम बसा क्षेत्र माना जाता है। यहां से ही मानव प्रजाति का उद्भव हुआ था।[२][३] बीसवीं शताब्दी के मध्य में पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा यहां ७० लाख वर्ष पुराने मानव अस्तित्व के प्रमाण स्वरूप जीवाश्म मिले हैं। कई जीवाश्म वनमानुष जैसे पुरामानवों के हैं, जिन्हें आज के मानव का पूर्वज माना जाता है। इनमें ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफारेन्सिस के जीवाश्म हैं, जिनकी काल-गणना (रेडियोमेट्री द्वारा) लगभग ३.९-३.० मिलियन वर्ष ई.पू. की हुई है।[४] पैरैन्थ्रोपस बोइसेइ (c. २.३–१.४ मिलियन वर्ष ई.पू.)[५] तथा होमो एस्गैस्टर (c. १.९  मिलियन–६०००,००० वर्ष ई.पू.) की भी खोज हुई है।[६]

मानवता के पूर्व-इतिहास भर में अफ्रीका में (अन्य महाद्वीपों की भांति) यहां कोई राष्ट्र या राज्य नहीं था, बल्कि शिकारी-बंजारों के समूह थे जैसे खोइ या सैन।[७][८][९]

हिम युग के अंत तक, लगभग १०,५०० ई.पू. में सहारा फिर से एक हरित उपजाऊ घाटी क्षेत्र बन गया था, एवं यहां की अफ़्रीकी आबादी अफ्रीका के आंतरिक एवं तटीय उच्च-भूमि क्षेत्रों से उप-सहारा अफ्रीका के क्षेत्रों में लौट आये।साँचा:fix हालांकि यहां के उष्ण और शुष्क होते जलवायु का यही संकेत था, कि ५००० ई.पू. तक यह क्षेत्र शुष्क एवं आवास-विरोधी हो जायेगा। तब यहां की आबादी सहारा क्षेत्र से नील नदी की घाटी की ओर बढ़ चली। यहीं पर इन्होंने अपने स्थायी और अर्ध-स्थायी आवास बनाये। जलवायु में बड़ी मंदी आयी और मध्य एवं पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्रों में भारी और लंबी वर्षा की कमी हो गई। इस समय तक पूर्वी अफ्रीका में सूखे की स्थिति आ गयी थी। यह खासकर अंतिम २०० वर्षों में इथियोपिया आदि में हुआ था।

अफ़्रीका में पशु-पालन कृषि से पहले आया था। यह बाद में भी आखेट-संग्रहण संस्कृति के साथ साथ चलता रहा। यह अनुमानित है कि ६००० ई.पू. के लगभग उत्तरी अफ्रीका में पशुपालन खूब चल रहा था।[१०] सहारा-नील क्षेत्रों में लोग कई पशुओं को पालने लगे थे, जैसे गधे, खास किस्म की बकरियां आदि जो अल्जीरिया से न्यूबिया क्षेत्र में खास देखा गया है। ४००० ई.पू. तक सहारा क्षेत्र की जलवायु द्रुतगति से शुष्कतर होती गयी।[११] इस मौसम परिवर्तन के कारण नदियां और झीलें सिकुड़ कर छोटी होती गयीं और मरुस्थलीकरण पैर पसारता गया। इस कारण से आबादी वाले क्षेत्रों से लोग पश्चिम अफ्रीका के कृषि-सहायक उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में स्थानांतरित होने लगे।[११]

प्रथम शताब्दी ई.पू तक उत्तरी अफ्रीका में लौह कार्य भी आरंभ हुए और सहारा के पार उप-सहारायी अफ़्रीका के उत्तरी क्षेत्रों तक फाइल गये।[१२] ५०० ई.पू. तक धातु-कार्य पश्चिम अफ़्रीका में आम बात हो गयी थी। ५०० ई.पू. तक धातु प्रयोग पूर्वी एवं पश्चिमी अफ़्रीका में भी ढंग से होने लगा था। हालांकि अन्य क्षेत्रों में ये कार्य ईसवीं की आरंभिक शताब्दियों तक भी नहीं पहुंचा था। मिस्र, उत्तरी अफ़्रीका, न्यूबिया एवं इथियोपिया की ताम्र निर्मित बर्तन आदि वस्तुएं पश्चिम अफ्रीका से खुदाई में निकली हैं। इनकी काल-गणना ५०० ई.पू. की बतायी गई है। इससे संकेत मिलते हैं कि सहारा-पार व्यापार के जाल इस समय तक फैल चुके थे।[११]

आरंभिक सभ्यताएं

सन्दर्भ

साँचा:reflist

  1. जैकब्स, लुइ एल. (१९९७). "अफ्रीकन डायनोसॉर्स" डायनासॉर्स का विश्वकोष संपादित: फिलिप जे. क्यूरी एवं लैविन पैडियन. ऐकेडेमिक प्रेस, पृ.२-४।
  2. जेनेटिक स्टडी रूट्स ह्यूमन्स इन अफ्रीका स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, बीबीसी समाचार | SCI/TECH
  3. Migration of Early Humans From Africa Aided By Wet Weather स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, sciencedaily.com
  4. Kimbel, William H. & Yoel Rak & Donald C. Johanson. (2004) ऑस्ट्रेलोपिथेकस अफारेन्सिस की खोपड़ी, ऑक्स्फोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, सं.राज्य, ISBN 0-19-515706-0.
  5. टज कॉलिन. (२००२) द वैरायटी ऑफ लाइफ़, ऑक्स्फोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, ISBN 0-19-860426-2.
  6. सायरे, अप्रैल पुले. (१९९९) अफ्रीका, ट्वेन्टी-फर्स्ट सेंचुरी बुक्स. ISBN 0-7613-1367-2.
  7. van Sertima, Ivan. (1995) Egypt: Child of Africa/S V12 (Ppr), Transaction Publishers. pp. 324–325. ISBN 1-56000-792-3.
  8. Mokhtar, G. (1990) UNESCO General History of Africa, Vol. II, Abridged Edition: Ancient Africa, University of California Press. ISBN 0-85255-092-8.
  9. Eyma, A. K. & C. J. Bennett. (2003) Delts-Man in Yebu: Occasional Volume of the Egyptologists' Electronic Forum No. 1, Universal Publishers. p. 210. SBN 1-58112-564-X.
  10. Diamond, Jared. (1999) "Guns, Germs and Steel: The Fates of Human Societies. New York:Norton, pp.167.
  11. O'Brien, Patrick K. (General Editor). Oxford Atlas of World History. New York: Oxford University Press, 2005. pp.22–23
  12. मार्टिन एवं ओ’मियरा "अफ्रीका, तृतीय संस्करण," इंडियाना: इंडियाना युनिवर्सिटी प्रेस, १९९५ [१] स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।