भट्टनारायण

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>SM7Bot द्वारा परिवर्तित ०३:५८, १८ नवम्बर २०२१ का अवतरण (→‎वेणीसंहार का परिचय: clean up)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

साँचा:distinguish

भट्ट नारायण संस्कृत के महान नाटककार थे। वे अपनी केवल एक कृति वेणीसंहार के द्वारा संस्कृत साहित्य में अमर हैं। संस्कृत वाङ्मय में समुपलब्ध नाटकों में इसका विशिष्ट स्थान है। विद्वज्जन इसे नाट्यशास्त्र के सिद्धांतों के अनुकूल दृष्टिकोण से लिखा गया नाटक मानते हैं इसीलिए इसके उदाहरणों को अपने लक्षणग्रंथों में वामन, विश्वनाथ आदि ने विशेष रूप से उद्धृत किया है।

जीवन वृत्त

भट्ट नारायण का जीवनवृत्त अनिश्चित है किंतु वामन और आनंदवर्धनाचार्य के ग्रंथों में वेणीसंहार के उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि यह उनसे पूर्ववर्ती हैं। वामन का समय बेल्वल्कर ने सप्तम शताब्दी का अंतिम भाग स्वीकृत किया है। इस प्रकार नारायण अष्टम शताब्दी से पूर्व के सिद्ध होते हैं। विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर की पारिवारिक परंपरा में यह बात स्वीकृत की जाती है कि सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में बंगाल के राजा आदिशूर ने इनको कान्यकुब्ज से बुलवाया था। आदिशूर ने बंगाल में पाल वंश से पूर्व राज्य किया था। एवं वे ठाकुर, कुशारी, बंद्योपाध्याय पदवी के आदिपुरूष हैं। उनके पिता का नाम क्षितीश हैं।

वेणीसंहार का परिचय

वेणीसंहार की कथावस्तु महाभारत से ली गई है। महाभारत के द्यूत प्रसंग में पांचाली द्रौपदी का भरीसभा में दु:शासन के द्वारा घोर अपमान हुआ था। दुर्योधन आदि की आज्ञा से दु:शासन उसे केश पकड़कर घसीट लाया था जिसपर उसने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक इस अपमान का बदला नहीं चुकाया जाएगा, मैं अपने इन केशों को नहीं बाँधूगी। बलशाली भीम ने उसकी यह प्रतिज्ञा पूर्ण की और दु:शासन का वध कर रुधिर से रंगे हुए हाथों से द्रोपदी की वेणी गूँथी जिससे उसका हृदय शांत हुआ। भट्ट नाररायण ने इस कथानक को परम रमणीय नाटक के रूप में प्रस्तुत किया है। उनके निशाचित्रण इतने सजीव हैं कि उनको मनीषिवर्ग ने "निशानारायण" की उपाधि से अलंकृत किया है। नाटकीय सिद्धांतों के निदर्शन का विशेष लक्ष्य होने के कारण ही यद्यपि इसमें गतिशीलता का अभाव माना गया है तथापि इसके पद्यों में रौद्र का जो सरस प्रवाह है वह सहृदय को प्रगतिशील बनाने के लिए पर्याप्त है।