डोईवाला

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Doiwala
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ऋषिकेश रोड, डोईवाला
ऋषिकेश रोड, डोईवाला
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ज़िलादेहरादून ज़िला
प्रान्तउत्तराखण्ड
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ऊँचाईसाँचा:infobox settlement/lengthdisp
जनसंख्या (2011)
 • कुल८,७०९
 • घनत्वसाँचा:infobox settlement/densdisp
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी, गढ़वाली

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डोईवाला (Doiwala) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के देहरादून ज़िले में स्थित एक नगर है। यहाँ एक रेलवे स्टेशन स्थित है।[१][२][३]


विवरण

प्राकृतिक वादियों में स्थित डोईवाला, उत्तराखण्ड का एक लघु पर्यटन स्थल है। यह आध्यात्मिक केन्द्र है और अपने पुराने बाजारों के लिए जाना जाता है। सोंग नदी के किनारे बसा यह शहर देहरादून के दक्षिण-पूर्व दिशा में है।

जलवायु

डोईवाला जाने का सबसे सही समय वसंत ऋतु और मानसून के बाद है। बारिश ज्यादातर जून और सितम्बर महीने के बीच ही होती है। जाड़े़ में यहां का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस रहता है, जबकि गर्मी में तापमान 44 डिग्री तक पहुंच जाता है।

निकाय और वार्ड

प्रशासनिक दृष्टि से डोईवाला 7 वार्डों में बंटा है।

इतिहास

गढ़वाल राजाओं के शासन काल में डोईवाला एक गांव था। लेकिन रेल लाइन के आगमान के बाद डोईवाला एक बाजार के रूप में रूपांतरित हो गया। गोरखा और गढ़वाल राजाओं के समय डोईवाला देहरादून क्षेत्र में स्थित एक छोटा सा गांव था। जब डोईवाला पर अंग्रजों का अधिकार हुआ, तब इस क्षेत्र के आसपास की भूमि पर कृषि कार्य प्रारंभ हुआ और इनका विकास ग्रांट के रूप हुआ। यही कारण है कि डोईवाला क्षेत्र में स्थित लच्छीवाला, रानीपोखरी, भोगपुर और घमंडपुर गांवों के आसपास कई ग्रांट हैं। इनमें मार्खम ग्रांट, माजरी ग्रांट और जॉली ग्रांट प्रमुख हैं। १ मार्च १९०० को हरिद्वार- देहरादून रेल मार्ग पर रेल गाड़ियां चलनी प्रारंभ हुईं। इसी दिन डोईवाला स्टेशन अस्तित्व में आया। धीरे-धीरे ग्रांट के आसपास के क्षेत्र विकसित होने लगे और डोईवाला एक छोटा सा बाजार बन गया। 1901 में डोईवाला में पहला विद्यालय खुला। इसी साल यहां के पहले अस्पताल की भी स्थापना हुई। 1933 में यहां जानकी चीनी मिल (रेलवे स्टेशन के नजदीक) स्थापित हुआ। इसकी स्थापना जब्बाल इस्टेट के शासकों और स्थानीय हवेलिया परिवार ने मिलकर किया था।

स्व. दुर्गा मल और कर्नल प्रीतम सिंह संधू जैसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों की जन्म भूमि भी डोईवाला ही है। गौरतलब है कि ये दोनों नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा गठित आजाद हिंद फौज की ओर से देश के उत्तर-पूर्वी सीमा पर अंग्रेजों के खिलाफ लड़े थे। बीते दशक में डोईवाला की बड़ी उपलब्धि रही है- जॉली ग्रांट हवाई अड्डे के पास “हिमालयन इंस्टीट्यूट अस्पताल” की स्थापना। इसकी स्थापना 1994 में स्वामीराम ने करवाया था। 750 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में प्राथमिक उपचार से लेकर गंभीर बीमारियों तक की आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं मौजूद हैं। इस अस्पताल से गढ़वाल क्षेत्र के लोग तो लाभान्वित हुए ही है, साथ ही यह उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती भागों के लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं के निदान में भी काफी सहायक सिद्ध हुआ है।

डोईवाला के नजदीक स्थित ग्रांट्स

  • मार्खम ग्रांट - सुसवा और सोंग नदी के बीच के क्षेत्र में स्थित इस ग्रांट में रेलवे स्टेशन के आसपास की 5000 हजार एकड़ भूमि आती है। 1838 में इसे कैप्टन किर्के और उनके साथियों को दान के रूप में दिया गया था। लेकिन इसका विकास 1844 में शुरू हुआ। 1858 में इसे कैप्टन थेलवाल को सौंप दिया गया। अनेक लोगों के स्वामित्व से गुजरने के बाद मार्खम ग्रांट और इसके पास स्थित गांवों (लच्छीवाला, डोईवाला, हांसुवाला एवं घिसारपारी) को बाबू ज्योतिष स्वरूप ने 75 हजार रुपये में खरीद लिया।
  • माजरी ग्रांट - सोंग और जाखन नदी के दक्षिणी क्षोर पर स्थित “माजरी ग्रांट” को 1902 में कुछ नृजातीय भारतीयों ने खरीद लिया। बाद में डुंगा के चौधरी शिवराम ने इसे 10 हजार रुपये में क्रय कर लिया। यही नहीं, इन्होंने आसपास के क्षेत्रों को भी 25,100 रुपये में खरीद लिया।
  • जॉली ग्रांट - जाखन नदी के पूरब व सोंग नदी के पश्चिम का क्षेत्र और थानो सरकारी वन एवं लच्छीवाला-भोगपुर मार्ग के उत्तर व दक्षिण का क्षेत्र “जॉली ग्रांट” के नाम से जाना जाता है।

1876 में इसे प्रायोगिक तौर पर कपास की खेती के लिए मेजर जेनरल शॉवर्स को दिया गया था। हवाई अड़्डा के लिए मशहूर इस ग्रांट को चौधरी शिवराम और कुछ लोगों ने मिलकर 32 हजार रुपये में खरीद लिया। बाद में चौधरी शिवराम ने अपना हिस्सा यहां के स्थानीय जमींदारों को बेंच दिया। आज यह स्थान “जॉली ग्रांट हवाई अड्डे” के रूप में प्रसिद्ध है।

धार्मिक महत्व

भगवान दत्तात्रेय के 2 शिष्यों की निवास भूमि है डोईवाला। यही नहीं, भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने भी यहीं प्रायश्चित किया था। यहां प्रचल‍ित कहानी के अनुसार, योगियों और संतों के महान गुरु भगवान दत्तात्रेय के 84 शिष्य थे, जिन्हें भगवान ने शिक्षा और अपनी शक्ति दी। इनमें से चार शिष्य देहरादून इलाके में ही बस गए। बाद में इन चारों के निवास स्थान (लक्ष्मण सिद्ध, कालू सिद्ध, मानक सिद्ध और मंदू सिद्ध) सिद्ध स्थान के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनमें से दो लक्ष्मण सिद्ध और कालू सिद्ध डोईवाला क्षेत्र में स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ब्रह्म हत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए “लक्ष्मण सिद्ध” आए थे।

कला और संस्कृति

विपरीत परिस्थितियों के बावजूद यहां के लोग काफी मेहनती हैं। यह बेहिचक कहा जा सकता है कि अगर डोईवाला पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध हुआ है, तो इसका काफी श्रेय यहां के लोगों को जाता है। यह मशहूर पंजाबी गजल लेखक गुरदीप सिंह का निवास स्थान है। गुरदीप के गजलों में संवेदना तो झलकती ही हैं, साथ ही जीवन का हर रूप भी बयां होता है। श्री सिंह 1959 से रेशम माजरी इलाके में रहते हैं। अभी तक गुरदीप सिंह की गजलों के पांच संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।

व्यवसाय

यहां के लोगों की जीविका का मुख्य साधन कृषि और पशुपालन है। गेहूं, मक्का, चावल, गन्ना और जौ डोईवाला के प्रमुख कृषि उत्पाद हैं। माजरी ग्रांट के आसपास स्थित क्षेत्र में लीची का उत्पादन भी होता है। पशुपालन का मुख्य उद्देश्य दूध प्राप्त करना है।

पर्यटन स्थल

यहां के प्रमुख स्थानीय आकर्षण इस प्रकार हैं।

लच्छीवाला

यह एक खूबसूरत पिकनिक स्थल है। डोईवाला से इसकी दूरी सिर्फ 3 किलोमीटर है। सोंग नदी के किनारे स्थित लच्छीवाला राजाजी नेशनल पार्क का विस्तार है और यह 12 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र पर फैला है। यह स्थल बच्चे और वृद्धों में काफी लोकप्रिय है। इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि यह बहुत ही सस्ता है और यहां पर हर तरह की आर्थिक स्थिति वाले लोग घूमने-फिरने का आनंद ले सकते हैं। यहां पर आप नौकायन का मजा ले सकते हैं। नौकायन का आनन्द लेने के लिए मामूली रकम अदा करनी पडे़गी। क्योंकि देय धनराशि पाँच रूपये में परिवर्तन समय के स्वाभविक हैं। हालांकि यहां पर सालों भर सैलानियों की भीड़ रहती है, लेकिन छुट्टियों के दिनों में यह भीड़ और बढ़ जाती है। यह पिकनिक स्थल शीत ऋतु (1 अक्टूबर से 31 मार्च तक) में सुबह 9 बजे से शाम के 5 बजे तक खुला रहता है, जबकि गर्मी के मौसम (1 अप्रैल से 30 सितम्बर) में इसके खुलने का समय 8 बजे सुबह से 6 बजे शाम तक है।

फन वैली

देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार के नजदीक स्थित यह पार्क अपने आप में खास है। इस पार्क में बच्चे लेजी रीवर, मल्टीपल वाटर स्लाइड, किड्स पुल और वाटर डिस्को का आनंद ले सकते हैं। इस मनोरंजन पार्क में रेसिंग कार, ड्रेगन कोस्टर, मिनी ट्रेन और क्वाइन गेम्स की सुविधाएं मौजूद हैं। यहां पर विवाह, जन्म दिन पार्टी, कॉर्पोरेट सम्मेलन व सेमिनार आयोजित करने की विशेष व्यवस्था है और इस पर छूट भी मिलती है।

लक्ष्मण सिद्ध मंदिर

लच्छीवाला के घने वन में स्थित यह मंदिर आध्यात्मिक प्रवृति वाले पर्यटकों में बहुत ही लोकप्रिय है। सुसवा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर के आसपास का दृश्य काफी मनोरम है। हर रविवार को यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है। प्रत्येक साल के अप्रैल महीने के अंतिम रविवार को यहां मेला का आयोजन होता है और मुफ्त में भोजन बांटा जाता है। इस अवसर पर लाखों लोग जुटते हैं। धार्मिक मान्यता है कि ब्राह्म हत्या के दोष से छुटकारा पाने के लिए भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने यहीं पर तपस्या की थी।

नीलकंठ माधव मंदिर

स्थानीय लोगों का मानना है कि पहले यहां पर एक नागराज मंदिर था। लगभग 300 साल पहले जाखन नदी से लाया गया शिवलिंग यहां स्थापित किया गया। इस अवसर पर यज्ञ हुआ और यहां पर शिव मंदिर का निर्माण हुआ। यज्ञ के समय 11 गाय दान के रूप में दी गईं। यह मंदिर 9 एकड़ क्षेत्र में है।

कालू सिद्ध मंदिर

लक्ष्मण सिद्ध मंदिर के समान ही यह मंदिर भी आध्यात्मिक प्रवृति वाले पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है। प्रत्येक वर्ष जून महीने के दूसरे रविवार को लगने वाले मेला के लिए भी, यह प्रसिद्ध है। इस मेला में लगभग 15 हजार लोग आते हैं और यहां पर मुफ्त भोजन का वितरण भी होता है। ऐसा विश्वास है कि भारत में स्थित 84 सिद्धपीठों में से यह सिद्धपीठ एक है। इसी स्थान पर श्री कालू सिद्ध बाबा ने साधना की थी। लोग ऐसा मानते हैं कि भगवान शिव ने श्री कालू सिद्ध बाबा को दर्शन दिया था।

मां इच्छा देवी मंदिर

श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के सहयोग से इस मंदिर का निर्माण हुआ है। प्रत्येक साल यहां पर 5 दिसम्बर से 14 दिसम्बर तक लगातार 10 दिनों तक अखंड सतचंडी यज्ञ का आयोजन होता है।

धार्मिक उत्सव

धार्मिक त्यौहारों पर आयोजित होने वाले स्थानीय मेले यहां के प्रमुख उत्सव हैं। प्रत्येक वर्ष अप्रैल महीने के अंतिम रविवार को लक्ष्मण सिद्ध मंदिर पर स्थानीय मेला का आयोजन होता है। मेले में काफी लोग आते हैं और मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। कालू सिद्ध मंदिर पर भी जून महीने के दूसरे रविवार को स्थानीय मेले का आयोजन होता है। मेले में लगभग 15 हजार लोग आते हैं। इस अवसर पर यहां भक्तो के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है।

पहुंचने के साधन

डोईवाला, रेल, बस और हवाई मार्ग के माध्यम से देश के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा़ हुआ है। यह बेहिचक कहा जा सकता है कि डोईवाला उत्तराखंड के ऐसे शहरों में शामिल है, जहां पहुंचना काफी आसान है। डोईवाला उत्तराखंड का ऐसा शहर है, जहां पहुंचना काफी आसान है। शहर में बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन तो हैं ही, जॉली ग्रांट हवाई अड्डा भी यहां से काफी नजदीक है।

  • सड़क मार्ग - डोईवाला से उत्तराखंड की राजधानी देहरादून सिर्फ 24 किलोमीटर है। ऋषिकेश की दूरी भी यहां से मात्र 20 किलोमीटर है। डोईवाला के लिए देहरादून और ऋषिकेश से बस और टैक्सी नियमित रूप से मिलती हैं। हरिद्वार यहां से 42 किलोमीटर है और बस के माध्यम से जाने पर लगभग 1 घंटे का समय लगता है। दिल्ली से डोईवाला की दूरी 251 किलोमीटर है और यहां से डोईवाला जाने में साढ़े 6 घंटे का समय लगता है।
  • रेल मार्ग - डोईवाला रेल स्टेशन 1900 ईस्वी में अस्तित्व में आया। देहरादून आने वाली रेल गाड़ियां यहां पर बहुत ही कम समय के लिए रुकती हैं। देहरादून से काफी नजदीक होने के कारण डोईवाला रेल मार्ग के जरिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ और वाराणसी जैसे प्रमुख नगरों से बहुत ही अच्छी तरह जुड़ा़ है। यही नहीं, रेलमार्ग के जरिए आप देश के किसी भी महत्वपूर्ण शहर से देहरादून, आसानी से पहुंच सकते हैं। कुछ प्रमुख रेलगाड़ियां -
    • शताब्दी एक्सप्रेस : दिल्ली से चलनेवाली यह रेलगाड़ी देहरादून पहुंचने में 5 घंटे का समय लेती है।
    • मसूरी एक्सप्रेस : दिल्ली से देहरादून पहुंचने में यह गाड़ी रात भर का समय लेती है।
    • दून एक्सप्रेस : यह गाड़ी भी दिल्ली से देहरादून पहुंचने में रात भर का समय लेती है। मतलब कि शाम के समय दिल्ली में बैठिए और सुबह देहरादून पहुंच जाइए।
    • देहरादून-मुंबई एक्सप्रेस : मुंबई और देहरादून के बीच का सफर तय करने में इस गाड़ी को लगभग 21 घंटे का समय लगता है।
  • हवाई मार्ग - नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट है और डोईवाला से इसकी दूरी सिर्फ 5 किलोमीटर है। देहरादून से यह हवाई अड्डा मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से देहरादून के लिए एयर डक्कन की प्रतिदिन उड़ान है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
  3. "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994