महिरावण

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कई पुराणों में महिरावण का जिक्र नहीं मिलता किन्तु वाल्मीकि रामायण और तुलसी रामायण में महिरावण का उल्लेख है जहां उसे महर्षि विश्रवा और कैकसी का पुत्र असुर नरेश रावण , कुंभकर्ण , वैश्रावण और विभीषण का भाई तो अहिरावण का जुड़वा भाई बताया गया है। महिरावण तथा अहिरावण दोनों राक्षस भाइयों का वध हनुमान जी महाराज ने किया था। ऐसा कहा जाता है कि अहिरावण तथा महिरावण के प्राण पांच दीपकों में स्थित थे। उन पांचों दीपकों को बुझाने से ही अहिरावण और महिरावण मारे जा सकते थे। इसलिए हनुमान जी महाराज ने गरुड़ , नरसिंह , हयग्रीव और वराह का पंचमुख स्वरूप धारण किया और पांचों दीपकों को एक साथ बुझा कर अहिरावण तथा महिरावण का वध कर भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को पाताल लोक से बंधन मुक्त कराकर ले आए। जहां से श्री बजरंग बली महाराज ने पाताल में प्रवेश था उस स्थान को उलटे हनुमान के मन्दिर के नाम से जाना जाता है।

महिरावण की एक प्राचीन मूर्ति