सुलभ इन्टरनेशनल

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सुलभ शौचालय एक सामाजिक-सेवा से जुडी स्वयंसेवी एवं लाभनिरपेक्ष संस्था है। यह संस्था पर्यावरण की स्वच्छता, अ-परम्परागत ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबन्ध, सामाजिक सुधार एवं मानवाधिकार को बढावा देने के क्षेत्र में काम करती है। इस संस्था से लगभग ५०,००० स्वयंसेवक जुडे हुए हैं।

सुलभ इन्टरनेशनल की स्थापना डॉ बिन्देश्वर पाठक ने सन १९70 में की।

इतिहास

सुलभ मूत्रालय
भारत के सुलभ शौचालयों में स्थित दो पर्यावरण-स्वच्छ शौच-स्लैब

डॉ॰ पाठक ने 1974 में बिहार में सुलभ इण्टरनेशनल (जो मूलत: सुलभ शौचालय संस्थान के रूप में जाना जाता रहा है) के नाम से एक स्वयंसेवी और लाभ निरपेक्षी संस्था की आधारशिला रखी। इसमें अनेक समर्पित कार्यकर्त्ता थे। इस संस्था ने डॉ॰ पाठक के सुयोग्य नेतृत्व में कमाऊ शौचालयों को कम लागत वाले फ्लश शौचालयों अर्थात् ‘सुलभ शौचालयों’ में बदलने का एक क्रान्तिकारी अभियान शुरू किया। परम्परागत कमाऊ शौचालय पर्यावरण को प्रदूषित करते थे और दुर्गन्ध फैलाते थे। साथ ही, उन्हें साफ करने के लिए सफाईकर्मियों की आवश्यकता पड़ती थी। कम लागत वाले सुलभ शौचालय उपयोग की दृष्टि से व्यावहारिक हैं, स्वास्थ्यकर हैं और इन्हें साफ करने के लिए सफाईकर्मियों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस प्रकार यह एक व्यवहार्य विकल्प है जो इसका उपयोग करनेवालों के साथ ही सफाईकर्मियों के लिए भी वरदान सिद्ध हुआ है।

सुलभ इण्टरनेशनल ने जनसाधारण की सुविधा के लिए व्यस्त और वाणिज्यिक क्षेत्रों में बहुत से सुलभ सामुदायिक परिसर भी स्थापित किए हैं ये लोगों को राहत पहुँचाने के साथ-साथ शहरों को प्रदूषण से बचाने में भी काफी हद तक सफल रहे हैं। अल्प अवधि में ही सुलभ इण्टरनेशनल सामाजिक परिवर्तन के उत्प्रेरक और अभिकर्ता के रूप में उभरकर सामने आया है जिसने लाखों कमाऊ शौचालयों को सुलभ शौचालय़ों में परिवर्तित किया है। साथ ही देश भर में सैकड़ों सुलभ सामुदायिक परिसर बनाए गए हैं। परिणाम स्वरूप हजारों सफाईकर्मियों मुक्त कराये जा चुके हैं। सुलभ इण्टरनेशनल ने मुक्त हुए सफाईकर्मियों को अलग-अलग व्यवसाय सिखाने का उत्तरदायित्व भी लिया है ताकि उन्हें बेकारी का सामना न करना पडे़ और वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

सुलभ इंटरनेशनल ने राज्य और केन्द्र सरकारों, देश-विदेश से स्वयंसेवी संस्थाओं और नगरपालिकाओं तथा नगरनिगमों का ध्यान आकर्षित किया है।

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ