मदारा महतो

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जीवन परिचय —

मदारा महतो का जन्म रांची जिला में हुआ था 21 नवंबर 1791ई मे एक कुड़मी परिवार मे हुआ था । मदारा महतो बच्चपन से काफी राढ़ स्वभाव के किन्तु एक कुशल तीरंदाज थे । कहा जाता है की युवाकाल आते-आते उनमे कुछ देवी कृपा मिल गई थी जिसके कारण वह एक अद्भुत संगठन करता के रूप मे उभरने लगा ।अंग्रेजो,दीकूओं, जमींदारो', साहुकारो के बड़ते अत्याचारो के खिलाफ मदारा महतो मन-ही-मन क्षुब्ध होकर इनके विरुद्ध गाँव-गाँव मे संघठन बनाने लगे तथा लगो को इनके दमनकारी नीतियों से परिचित कराने लगे थे । इस प्रकार इनका एक विशाल संघटन हिस्सा बन गया तथा इन्होने अपने साथी बुधू भगत और कुछ साथी से मिलकर 1831-32 ईस्वी मे ब्रिटिश हुकूमत, जमींदार के विरुद्ध खुट्टकटतीदर एवम भुइहरी व्यवस्था तथा कर न देने के विरुद्ध एक विद्रोह का सूत्रपात किया जिसको कोल विद्रोह के नाम से जाना जाता है । इन्होने अंग्रेजो के विरुद्ध विशाल संघटन बनाया तथा उसके प्रति प्रबल समर्पण रखा । इनका संघटन क्षेत्र – सिल्ली , टिक्कू , चोरिया , पिठोरिया , लोहरदगा तथा पलामू तक था । कहा जाता है कि इन क्षत्रो मे अंग्रोजो के लिए ये आतंक बन चूका था जिस कारण अंग्रेज इन क्षत्रो मे डर से नहीं आता था । मदारा महतो की लोकप्रियता तथा उनके द्वारा शुरु किया गया आन्दोलन से अंग्रेज बोखला गया था तथा अब किसी भी परिस्थिति मे मदारा महतो को गिरफ्तार करना चाहते था । मदारा महतो को पकड़ने के लिए अंग्रेजो ने अपने गुप्तचर छोड़ रखा था । जहा पर भी उनका कार्यक्रम होता ब्रिटिश प्रशासन आगे से वहा पहुंच जाता था । परन्तु मदारा महतो को पकड़ना इतना आसान नहीं था । मदारा महतो हर बार अंग्रेजो को चकमा देकर भाग जाता था । इसलिए ब्रिटिश सरकार बुधू भगत को पकड़ने के लिए 1000 रुपया इनाम रखा । मदारा महतो झारखण्ड के प्रथम आन्दोलनकारी थे जिनको पकड़ने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वरा इनाम रखा गया था । मदारा महतो को और उनके सेना के पास परंपरागत हथियार था परन्तु वे युद्धकला मे इतना पारंगत थे कि अंग्रेज उनके पास टिक नहीं पाते थे । मदारा महतो के विद्रोह को दबाने के लिए विलकिंसन को इस क्षेत्र मे भेजा गया परन्तु उसे सफलता नहीं मिला । कहा जाता हें की विलकिंसन एवं मदारा महतो कि सेना कि बिच मुठभेड मे विलकिंसन की सेना अन्दोलानकरिओ का कुछ बिगाड़ नहीं पाया क्यू की ब्रिटिश सेना के पास घुड सवार नहीं था । एक ब्रिटिश अधिकारी कप्तान मल्टावी ने यह चिंता जताया था कि ब्रिटिश सेना बिद्रोही सेनाओ के निकट जाने का हिम्मत नहीं कर पा रहा । इसी प्रकार मेजर सदरलेंड नामक अधिकारी ने भी कहा था कि मदारा महतो तथा उसके अन्दोलान्करियो कि युद्ध कुलशालता ब्रिटिश सेना से बेहतर है । ब्रिटिश सरकार अब किसी भी किमत मे मदारा महतो को पकड़ना तथा इस आन्दोलन का दमन करना चाहता था इसिलए कप्तान इम्पे को भेजा गया । कप्तान इम्पे बहुत ही क्रूर अधिकारी था जिसके दिल मे दया भाव नहीं था । वह अपने कम को अंजाम देने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था । कप्तान इम्पे ने अपने चालाकी तथा क्रूर नितियो से धोखा देकर अपने गुप्तचरों के सहयोग से मदारा महतो को तब पकड़ लिया गया जब वे किसी गुप्त स्थान पर अपने परिवार के साथ थे । मदारा महतो के साथ उनके कुछ साथियों को गिरफ्तार किया गया जो घर में आंदोलन को लेकर बातचीत कर रहे थे। मदारा महतो 5 जनवरी 1832 ईस्वी को शहीद हुआ था । अपना हक अधिकार के लिए आवाज उठाने वाला का अंग्रेज़ यही हस्र करती थी ।

© The Col rising on chhotanagpur . Book link :-https://www.jstor.org/stable/44145239