कोल विद्रोह
कोल विद्रोह कोल जनजाति द्वारा अंग्रेजी सरकार के अत्याचार के खिलाफ 1831 ईसवी में किया गया एक विद्रोह है। यह भारत में अंग्रेजों के खिलाफ किया गया एक महत्वपूर्ण विद्रोह है। यह विद्रोह अंग्रेजों के शोषण का बदला लेने के लिए किया गया था।[१] इस जाति के लोग छोटा नागपुर के पठार इलाकों में सदियों से शांतिपूर्वक रहते आए थे। उनकी जीविका का मुख्य आधार खेती और जंगल थे। ये जंगलों की सफाई कर बंजर जमीन को खेती लायक बनाकर उस पर खेती करते थे। इसलिए वे जमीन पर अपना नैसर्गिक अधिकार मानते थे। कोलों की जीवन शैली में मध्यकाल में परिवर्तन आने लगा।[२]
मुगल काल में बहुत से व्यापारी और अन्य लोग आकर आदिवासी इलाकों में बसने लगे। मुसलमान और सिक्ख व्यापारीयों का आगमन बड़ी संख्या में हुआ। इन लोगों ने धीरे-धीरे जमीन पर अपना अधिकार जमाना आरंभ किया परंतु मुगल काल तक कोल जाति के सामाजिक, आर्थिक जीवन पर इन परिवर्तन का कोई व्यापक असर नहीं पड़ा। बंगाल में अंग्रेजी शासन की स्थापना के साथ ही कोल जाति के लोगों के आर्थिक जीवन में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आ गया।[३] स्थाई बंदोबस्त के कारण इस क्षेत्र में नए जमींदार एवं महाजन का एक सबल वर्ग सामने आया। इसके साथ इनके कर्मचारी भी आए। इन सभी ने मिलकर कोल जाति के लोगों का शारीरिक एवं आर्थिक शोषण आरंभ कर दिया। लगान की रकम अदा न करने पर उनकी जमीन नीलाम करवा दी जाती थी। इन बाहरी लोगों ने कोल की बहू बेटियों की इज्जत भी लूटनी आरंभ कर दी। कोल के बेगारी भी करना पड़ता था एवं उनकी स्त्रियों को जमींदारों महाजनों के घर काम करने के लिए बाध्य किया जाता था।[४]
इन अत्याचारों से इनकी सुरक्षा करने वाला कोई नहीं था। थाना और न्यायालय भी जमींदारों एवं महाजनों का ही साथ देते थे। इस जाति का मुखिया नि:सहाय था। इनका जीवन एक अभिशाप बन गया था। उनका आक्रोश जमींदार, महाजन, पुलिस के विरुद्ध बढ़त गया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनकी भूमि को गैर आदिवासी लोगों को दे दिया। अतः उन पर जमींदारों, महाजनों और सूदखोरों का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा। अतः 1831 ईसवी में गैर आदिवासी जाति के लोगों के विरुद्ध उन्होंने विद्रोह कर दिया। कोल जाति के लोगों के इस विद्रोह का नेतृत्व बुधू भगत, जोआ भगत ने किया। कोल जाति के लोगों ने गैर आदिवासी जमींदारों, महाजनों और सूदखोरों की संपत्ति को नष्ट कर दिया। सरकारी खजाने को लूट लिया और कचहरियों और थानों पर आक्रमण किया। अंत में कंपनी ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सेना की एक विशाल टुकड़ी भेजी और बड़ी निर्दयता से इस विद्रोह को दबा दिया। बड़ी संख्या में कोल मारे गए। कोल अपने पारंपरिक हथियारों से अंग्रेजों की सेना का सामना करने में असमर्थ रहे।
पूर्वी भारत में शोषण के विरुद्ध कोलो ने पहली बार संगठित रूप से सरकार और उसके समर्थकों के विरुद्ध सशस्त्र आंदोलन आरंभ किया। कोलो ने जो रास्ता अपनाया। वह अन्य आदिवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। शीघ्र ही इस क्षेत्रों में संथालों का व्यापक आंदोलन आरंभ हुआ। कोल विद्रोह यदि असफल हो गया। लेकिन कोल का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। असमानता और शोषण के विरूद्ध संघर्ष विद्रोह के बाद भी जारी रहा।[५]