लहर (कविता-संग्रह)

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लहर जयशंकर प्रसाद का कविता-संग्रह है, जिसका प्रकाशन सन् १९३५ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।[१]

परिचय

'लहर' में १९३० से १९३५ ई॰ तक की रचनाएँ संकलित की गयी हैं।[२]'लहर' जयशंकर प्रसाद के प्रौढ़ रचनाकाल की सृष्टि है। इस संग्रह में कवि की सर्वोत्तम कविताएँ संकलित हैं।[३] यह प्रसाद जी का ऐसा एकमात्र कविता-संग्रह है जिसकी किसी कविता में प्रथम, द्वितीय या तृतीय किसी संस्करण में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। प्रौढ़ता का विश्वास इसके प्रकाशकीय ('सूचना' में भी झलकता है। 'सूचना' में लिखा गया था कि साहित्य क्षेत्र में यह संग्रह यदि अपना विशेष गौरव स्थापित करे तो हमें आश्चर्य न होगा, क्योंकि अनेक दृष्टियों से यह संग्रह कविता मर्मज्ञों को अपनी ओर आग्रहपूर्वक देखने के लिए बाध्य करेगा।[४]

संकलित कविताएँ

  1. उठ-उठ री लघु-लघु लोल लहर
  2. निज अलकों के अंधकार में तुम कैसे छिप आओगे
  3. मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी
  4. अरी वरुणा की शान्त कछार !
  5. ले चल वहाँ भुलावा देकर मेरे नाविक
  6. हे सागर संगम अरुण नील
  7. उस दिन जब जीवन के पथ में
  8. बीती विभावरी जाग री
  9. आँखों से अलख जगाने को
  10. आह रे वह अधीर यौवन
  11. तुम्हारी आँखों का बचपन
  12. अब जागो जीवन के प्रभात
  13. कोमल कुसुमों की मधुर रात
  14. कितने दिन जीवन जलनिधि में
  15. वे कुछ दिन कितने सुन्दर थे
  16. मेरी आँखों की पुतली में
  17. जग की सजल कालिमा रजनी में
  18. वसुधा के अंचल पर
  19. अपलक जगती हो एक रात
  20. जगती की मंगलमयी उषा बन
  21. चिर तृषित कंठ से तृप्त विधुर
  22. काली आँखों का अंधकार
  23. अरे कहीं देखा है तुमने
  24. शशि सी सुन्दर वह रूप विभा
  25. अरे आ गयी है भूली सी
  26. निधरक तूने ठुकराया तब
  27. ओ री मानस की गहराई
  28. मधुर माधवी संध्या में
  29. अंतरिक्ष में अभी सो रही है ऊषा मधुबाला
  30. अशोक की चिन्ता
  31. शेरसिंह का शस्त्र समर्पण
  32. पेशोला की प्रतिध्वनि
  33. प्रलय की छाया

समीक्षा

जिस प्रकार ब्रजभाषा में सूरदास की रचनाएँ आरम्भिक गीतात्मक सृष्टि होते हुए भी अपनी श्रेष्ठता के कारण आश्चर्य में डाल देती हैं उसी प्रकार 'झरना', 'लहर' और प्रसाद के नाटकों के गीतों को पढ़कर सहसा विश्वास नहीं होता कि खड़ी बोली हिंदी की ये पहली गीत रचनाएँ हैं।[५]

रमेशचन्द्र शाह के अनुसार "इस संग्रह की कविताएँ एक परिपक्व कवि-मन और उसकी विकसित संवेदना का गहरा प्रमाण देती है और इस तरह 'कामायनी' का पूर्वराग हमें उनमें सुनाई देने लगता है।"[६]

डॉ॰ प्रेमशंकर की मान्यता है कि 'लहर' में कवि एक चिन्तनशील कलाकार के रूप में सम्मुख आता है, जिसने अतीत की घटनाओं से प्रेरणा ग्रहण की है। प्रसाद के गीतों की विशेषता यही है कि उनमें केवल भावोच्छ्वास ही नहीं रहते, जिनमें प्रणय के विभिन्न व्यापार हों, किन्तु कई बार एक स्वस्थ जीवन-दर्शन की नियोजना भी होती है। कवि अनुभव के द्वारा सिद्धान्तों का निरूपण करता है और व्यक्तिगत अनुभूति व्यापक जीवन दर्शन की ओर उन्मुख होती है।[७]

'लहर' संग्रह के नाम एवं संकलित कविताओं के भाव एवं शिल्प के सन्दर्भ में डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र ने लिखा है : साँचा:quote

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. जयशंकर प्रसाद (विनिबंध), रमेशचन्द्र शाह, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, पुनर्मुद्रित संस्करण-२०१५, पृष्ठ-९३.
  2. जयशंकर प्रसाद ग्रन्थावली, भाग-१, संपादक- ओमप्रकाश सिंह, प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-२०१४, पृष्ठ-xx.
  3. हिन्दी साहित्य कोश, भाग-२, संपादक- धीरेन्द्र वर्मा एवं अन्य, पुनर्मुद्रित संस्करण-२०११, पृष्ठ-२१०.
  4. जयशंकर प्रसाद ग्रन्थावली, भाग-१, संपादक- ओमप्रकाश सिंह, प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-२०१४, पृष्ठ-२८९.
  5. हिन्दी काव्य का इतिहास (हिंदी काव्य-संवेदना का विकास), रामस्वरूप चतुर्वेदी, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, संस्करण-२००७, पृष्ठ-१७५-१७६.
  6. जयशंकर प्रसाद (विनिबंध), रमेशचन्द्र शाह, साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली, पुनर्मुद्रित संस्करण-२०१५, पृष्ठ-६४-६५.
  7. डॉ॰ प्रेमशंकर, प्रसाद का काव्य, राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली संस्करण-१९९८, पृष्ठ-१६२.

बाहरी कड़ियाँ