पश्चिम बंगाल का इतिहास

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पश्चिम बंगाल का इतिहास 1947 में शुरू हुआ, जब ब्रिटिश बंगाल प्रांत का हिंदू-बहुल पश्चिमी हिस्सा भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल बनाया गया।

1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो बंगाल का विभाजन धार्मिक आधार के साथ हुआ। पश्चिमी भाग भारत में चला गया (और इसका नाम पश्चिम बंगाल पड़ा), जबकि पूर्वी भाग पूर्वी बंगाल नाम से पाकिस्तान के एक प्रांत के रूप में शामिल हो गया (बाद में इसका नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान हो गया, और आगे 1971 में एक स्वतंत्र बांग्लादेश देश का जन्म हुआ)।[१]

बिधान चद्र रॉय युग (1947-1962)

पश्चिम बंगाल के साथ रियासत का विलय हुआ

1950 में, राजा जगदीपेंद्र नारायण के भारत के साथ विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद, कोच बिहार की रियासत का पश्चिम बंगाल में विलय हो गया। 1955 में, चंदननगर के पूर्व फ्रांसीसी एन्क्लेव, जो 1950 के बाद भारतीय नियंत्रण में था, को पश्चिम बंगाल में एकीकृत किया गया। बिहार के कुछ भागों को बाद में पश्चिम बंगाल में मिला दिया गया था।साँचा:ifsubst रॉय के मुख्यमंत्री-कार्यकाल के दौरान राज्य में बहुत कम विनिर्माण उद्योग स्थापित किए गए थे। 1954 में, जब डॉ. बीसी रॉय मुख्यमंत्री बने, राज्य को एक बड़े पैमाने पर खाद्य संकट से गुजरना पड़ा। बंगाल में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।साँचा:ifsubst

संयुक्त मोर्चा (1967)

1967 का आम चुनाव

1967 में हुए राज्य विधान सभा चुनावों के बाद, संयुक्त मोर्चा सरकार के गठन के पीछे माकपा मुख्य शक्ति थी। मुख्यमंत्री पद बंगला कांग्रेस के अजॉय मुखर्जी को दिया गया था।साँचा:ifsubst

नक्सलबाड़ी विद्रोह

1967 में उत्तरी पश्चिम बंगाल में नक्सलबाड़ी में एक किसान विद्रोह हुआ। उग्रवाद का नेतृत्व कट्टर जिला स्तरीय माकपा नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने किया था। नक्सलबाड़ी आंदोलन को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा हिंसक रूप से दबा दिया गया। 1970 और 1980 के दशक के दौरान, गंभीर बिजली की कमी, हड़ताल और एक हिंसक मार्क्सवादी-नक्सली आंदोलन ने राज्य के बुनियादी ढांचे को बहुत नुकसान पहुंचाया, जिससे आर्थिक ठहराव की अवधि आ गई।

1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल में लाखों शरणार्थियों आ गये, जिससे इसके बुनियादी ढांचे पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। 1974 की चेचक महामारी ने हजारों लोगों की जान ले ली। पश्चिम बंगाल की राजनीति ने एक बड़ा बदलाव तब आया जब वाम मोर्चा ने 1977 का विधानसभा चुनाव जीता, जिसमें उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को हराया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे ने बाद के तीन दशकों तक राज्य में शासन किया।[२]

संयुक्त मोर्चा सरकार का विघटन

नवंबर 1967 में, पश्चिम बंगाल संयुक्त मोर्चा सरकार को केंद्र सरकार ने बर्खास्त कर दिया था। प्रारंभ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रफुल्ल चंद्र घोष के नेतृत्व में अल्पसंख्यक सरकार का गठन किया, लेकिन यह मंत्रिमंडल लंबे समय तक नहीं चला। संयुक्त मोर्चा सरकार को समाप्त करने की उद्घोषणा के बाद, पूरे राज्य में 48 घंटे का हड़ताल प्रभावी था। घोष कैबिनेट के पतन के बाद, राज्य में राष्ट्रपति शासन लागु कर दिया गया था।साँचा:ifsubst

1969 विधानसभा चुनाव

1969 में पश्चिम बंगाल में नए चुनाव हुए। सीपीआई (एम) पश्चिम बंगाल विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। लेकिन सीपीआई और बंगला कांग्रेस के सक्रिय समर्थन से, अजोय मुखर्जी पुन: राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में लौटे। मुखर्जी ने 16 मार्च, 1970 को इस्तीफा दे दिया और राज्य पुन: राष्ट्रपति शासन के अधीन आ गया।साँचा:ifsubst

सिद्धार्थशंकर रे काल (1972-1977)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1972 विधानसभा चुनाव जीती, और इसके नेता सिद्धार्थ शंकर रे मुख्यमंत्री बने। इस अवधि के दौरान, भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी ने 1975 में देशव्यापी आपातकाल की घोषणा की।साँचा:ifsubst

इस अवधि में बड़े पैमाने पर हिंसा देखी गई, क्योंकि पुलिस बल की नक्सलियों के साथ कई झड़पे हुई और अंततः राज्य में आंदोलन को कुचल दिया गया।साँचा:ifsubst

वाम मोर्चा युग

ज्योति बसु (1977-2000)

1977 का चुनाव

राज्य विधायिका के 1977 के चुनाव में, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे ने 243 सीटें जीतीं, जिससे बहुमत हासिल हुआ। पहली वाममोर्चा सरकार की स्थापना मुख्यमंत्री के रूप में ज्योति बसु के साथ हुई थी। साँचा:ifsubst

मारीचजन्पी नरसंहार, 1979

26 जनवरी से 16 मई 1979 के बीच बंगाल में माकपा के शासन में हुए मारीचजंपी में नरसंहार, पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आए शरणार्थियों के जबरन बेदखली से संबंधित था, जिससे उनमें से एक बड़ी आबादी की मौत हो गई थी।साँचा:ifsubst

लगातार पांच कार्यकाल तक वाम मोर्चा सरकार का नेतृत्व करने के बाद, ज्योति बसु सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हो गए और बुद्धदेव भट्टाचार्जी को उनके उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया। पांच साल बाद, वाम मोर्चा भट्टाचार्य के साथ फिर से मुख्यमंत्री का पद संभालने के साथ सत्ता में वापस आया।[३]

बुद्धदेव भट्टाचार्य (2000-2011)

भारत में आर्थिक सुधारों के बाद राज्य की आर्थिक सुधार की गति 1990 के दशक में केंद्र सरकार द्वारा शुरू होकर, 2000 में एक नए सुधारवादी मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के आगमन से गति पकड़ी। 2007 तक, सशस्त्र कार्यकर्ता राज्य के कुछ हिस्सों में आतंकवादी हमलों का आयोजन करते रहे हैं,[४][५] जबकि औद्योगिक भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर प्रशासन के साथ कई संवेदनशील स्थानों पर जनता के साथ झड़पें हुई हैं।[६] [७]

नंदीग्राम हिंसा

नंदीग्राम हिंसा पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में हुई एक घटना थी, जिसमें वाममोर्चा सरकार के आदेश पर, पश्चिम बंगाल सरकार की नंदीग्राम क्षेत्र में स्क्रिप्ट त्रुटि: "convert" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। भूमि में प्रस्तावित विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के विरोध में आये हजारों लोगो पर 4,000 से अधिक सशस्त्र पुलिस ने जमकर उत्पात मचाया। पुलिस ने कम से कम 14 ग्रामीणों को गोली मार दी और 70 से अधिक घायल हो गए।

तृणमूल कांग्रेस का युग

2011 के पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में लेफ्ट फ्रंट को हरा कर तृणमूल कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल किया। तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनीं। 2013 के पंचायत चुनाव और 2014 के भारतीय आम चुनाव (जिसमें तृणमूल ने राज्य में 42 लोकसभा क्षेत्रों में से 34 में जीत हासिल की) में तृणमूल कांग्रेस ने सफलता को दोहराया।

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

सरकार
अन्य