खुटेल पट्टी
खुटेल पट्टी(खूटेल पट्टी)[१]मथुरा और भरतपुर जिले में अवस्थित है। मथुरा जिले की गोवर्धन तहसील,फराह और मथुरा व कोसी तहसील के कुछ भाग व भरतपुर जिले के कुम्हेर डीग तहसील के कुछ भाग खुटेल पट्टी के अंतर्गत आता है।वर्तमान समय मे खुटेल पट्टी में 500 से ज्यादा ग्राम आते हैं। जिनमे से 384 गाँव खुटेला तोमर जाटों के है। अन्य ग्रामो में से 4 सिनसिनवार जाटों के है।
नामकरण
तोमर जाटों को उनकी दबंगता के कारण खुटेल/खुटेला तोमर भी बोला जाता है। यह क्षेत्र तोमर जाटों द्वारा शासित होने के कारण खुटेल पट्टी कहलाता है।
इतिहास
खुटेल पट्टी की स्थापना का श्रेय जाट शासक अनंगपाल तोमर को जाता हैं। तोमर गोत्र पाण्डव वंशी है अतः यह लोग वर्तमान में कुन्तल,कौन्तेय (अर्जुन के नाम पर),पाण्डव और तोमर नाम से जाना जाता है।अनंगपाल देव तोमर 1051 ईस्वी में दिल्ली की गद्दी पर बैठे थे।
दिल्ली के राजा अनंगपाल ने मथुरा के गोपालपुर गाँव में संवंत 1074 में मन्सा देवी(तोमरो की कुल देवी) के मंदिर की स्थापना की। महाराजा अनंगपाल तोमर ने गोपालपुर के पास 1074 ईस्वी में मंदिर के समीप ही सोनोठगढ़ का निर्माण करवाया था।
महाराजा अनंगपाल तोमर की रानी हरको देवी के दो पुत्र हुए। बड़े सोहनपाल देव आजीवन ब्रह्मचारी रहे और छोटे जुरारदेव तोमर हुए
जुरारदेव तोमर के आठ पूत्र हुए जिन्होंने अलग अलग आठ गढ़ों पर राज्य किया था।[२]
1. सोनपाल देव तोमर - इन्होंने सोनोठ पर राज्य किया(इनको राजा सोहनपाल देव ने गोद लेकर इनका नाम सोहनपाल देव द्वितीय रखा)
2. मेघसिंह तोमर - इन्होंने मगोर्रा गढ़ पर राज किया
3. फोन्दा सिंह तोमर ने फोंडर गढ़
4. गन्नेशा (ज्ञानपाल सिंह) तोमर ने गुनसारा गढ़
5. अजयपाल तोमर ने अजय गढ़(अजान गढ़)
6. सुखराम तोमर ने सोंखगढ़
7. चेतनसिंह तोमर ने चेतोखेरा (चेतनगढ़)
8. बत्छराज ने बत्सगढ़(बछगांव) गढ़
इन आठ गढ़ो को खुटेल पट्टी के आठ खेड़ा बोलते हैं। इन आठ खेड़ों की पंचायत वर्ष अनंगपाल की पुण्यतिथि (प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला-पूर्णमासी ) पर कुल देवी माँ मनसा देवी के मंदिर अनंगपाल की समाधी और किले के निकट हज़ार वर्षो से होती आ रही है। इस का उद्देश्य पूरे वर्ष के सुख दुःख की बाते करना, अपनी कुल देवी पर छोटे बच्चो का मुंडन करवाना, साथ ही आपसी सहयोग से रणनीति बनाना था।[३]
मंशा देवी के मंदिर पर प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला-पूर्णमासी को एक विशाल मेला लगता है जिसमे सिर्फ तोमर वंशी कुन्तल जाते हैं।
- 1192 ईस्वी से से 1857 तक का संक्षिप्त इतिहास
खुटेल पट्टी का शासन आठ खेडो में विभाजित था लेकिन मुख्य शक्ति सोंख में केंद्रित थी। दिल्ली के जाट राजा विजयपाल के समय में जाट शासक जाजन सिंह तोमर (कुंतल) ने 1150 ईस्वी में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का भव्य निर्माण करवाया था। स्थानीय इतिहासकारो ने राजा जाजन सिंह को जण्ण और जज्ज नाम से भी सम्बोधित किया गया है। इनके वंशज आज जाजन पट्टी , नगला झींगा, नगला कटैलिया में निवास करते है।
खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से भी जाजन सिंह (जज्ज) के मंदिर बनाने का पता चलता है। शिलालेख के अनुसार मंदिर के व्यय के लिए दो मकान, छः दूकान और एक वाटिका भी दान दी गई दिल्ली के राजा के परामर्श से 14 व्यक्तियों का एक समूह बनाया गया जिसके प्रधान जाजन सिंह था।
सौंख गढ़ के राजा नाहरदेव का अलाउदीन ख़िलजी से 1304 ईस्वी में युद्ध हुआ था। इस युद्ध मे नाहरदेव की मृत्यु हो गई थी। इस युद्ध के बाद सुल्तान अलाउदीन ख़िलजी के मुँह से अनायास ही दरबार मे निकल पड़ा
"इन जाटों को नही छेड़ना चाहिए यह बहादुर लोग ततैये के छत्ते की तरह है,एक बार छेड़ने पर पीछा नही छोड़ते हैं"
इस युद्ध मे विजय के बाद ही अलाउदीन खिलजी ने ब्रज के मंदिरों का नष्ट किया ब्रज की सांस्कृतिक यात्रा नामक पुस्तक के लेखक प्रभुदयाल मित्तल के अनुसार संत घाट पर बने कृष्ण मंदिर को अलाउदीन खिलजी ने ही तोडा था| यह घटना सौंख युद्ध के समय की है| सौंख मथुरा विजय का अलाउद्दीन खिलजी का एक फारसी लेख मथुरा से प्राप्त हुआ है|
यह दो पंक्ति का है इसकी पहली पंक्ति में अलाउदीन शाह नाम और उपाधि सिकंदर सानी लिखा है| दूसरी पंक्ति में युद्ध के बाद बनी मस्जिद का ज़िक्र है| उलगु खान ने असिकुंड घाट के पास के मंदिर को तोड़ के मस्जिद बनाई थी|
इतिहासकार कृष्ण दत्त वाजपेयी लिखते है की अलाउदीन द्वारा बनाई मस्जिद कुछ समय बाद नष्ट हो गयी थी| राजा नाहरदेव सिंह के उत्तराधिकारियों ने अलाउद्दीन खिलजी की सन 1316 ईस्वी में मृत्यु होने के बाद कमजोर हुए खिलजी साम्राज्य से मथुरा का यह क्षेत्र पुनः जीत लिया था| उसके बाद ही सौंख के अधिपति प्रहलाद सिंह जाट (डूंगर सिंह) जो नाहरदेव सिंह के एक मात्र जीवित पुत्र थे| उन्होंने इस मस्जिद को नष्ट किया हो लेकिन कुछ लोग इस मस्जिद के यमुना की बाढ़ में नष्ट हुआ मानते है लेकिन एक मजबूत इमारत का यमुना की बाढ़ में नष्ट होने की सम्भावना कम ही प्रतीत होती है|[४] अंग्रेज़ी इतिहासकार ग्रोउस के अनुसार प्रहलाद सिंह ने अपने राज्य सौंख को बांट दिया था।[५] बत्सगढ़(बछगांव) के राजा सूरत सिंह का चित्तोड़ के राणा कुम्भा से अनिर्णायक युद्ध हुआ था। यह युद्ध सोमवार के दिन हुआ था ।इस युद्ध प्रत्येक सोमवार को राजा सूरतसिंह ने पशु मेले का आयोजन करवाना आरंभ किया था। तब से यह युद्ध भूमि पेठा नाम से प्रसिद्ध हुई थी महाराजा सूरजमल के समय उनके सेनापति सीताराम पेठा दुर्गपति थे। मुगल काल(औरंगजेब समकालीन) मे सौंख के राजा हठी सिंह बड़े प्रसिद्ध थे।[६] पंडित गोकुल प्रसाद में राजा हठी सिंह को ब्रज केसरी की उपाधि से सुशोभित किया था।है|[७]जाट-शासन-काल में मथुरा पांच भागों में बटा हुआ था - अडींग, सोसा, सांख, फरह और गोवर्धन[८]
राजा हठी सिंह ने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की थी।मुगलो पर मेवात विजय 1716 ईस्वी में उनकी एक बड़ी विजयो में से एक थी।[९] इनके पौत्र तोफा सिंह बड़े वीर थे समकालीन ग्रंथ गढ़ पथेना रासो में उनकी वीरता का वर्णन है। सन 1777 ईस्वी को हुए युद्ध मे वो वीरगति को प्राप्त हुए थे[१०] अडींग के शासकों का भी अपना स्थान रहा है। फौन्दा सिंह अडींग के प्रसिद्ध बड़े शासक हुए थे
खुटेल पट्टी के किले
खुटेल पट्टी पर आठ मुख्य किले और 52 गढ़ी होने के लिखित प्रमाण मिलते हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं।कुछ पुरातात्विक विभाग के अधीन है।
खुटेल पट्टी के अन्य दर्शनीय स्थल
जतीपुरा,अडीग,गोवर्धन पर्वत,आन्यौर, गोविन्द कुंड, पूंछरी का लोठा जतिपुरा राधाकुंड, कुसुम सरोवर, मानसी गंगा, दानघाटी मनसा देवी का मंदिर गोपालपुर,हरजी कुण्ड,रानी कुण्ड रारह,शाही तालाब गुंसारा,हरिदेव जी का मंदिर,जतीपुरा मुखारबिंद,श्रीनाथ जी का मंदिर,नसिंह भगवान मंदिर अजान
संदर्भ
- ↑ https://ufhnews.ufhtimes.com/uttar-pradesh-45498-a
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- ↑ मथुरा मेमायर्स, पृ. 376 ।
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- ↑ ब्रज वैभव
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- ↑ गढ़ पथेना रासो