आदिवासी (भारतीय)

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उडी़सा के जनजातीय कुटिया कोंध समूह की एक महिला

आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है। भारत की जनसंख्या का 8.6% (10 करोड़) जितना एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है। पुरातन लेखों में आदिवासियों को अत्विका कहा गया है (संस्कृत ग्रंथों में)। महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कह कर पुकारा है। भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए 'अनुसूचित जनजाति' पद का उपयोग किया गया है। भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में आंध, गोंड, खरवार, मुण्डा, खड़िया, बोडो, कोल, भील, कोली, सहरिया, संथाल, मीणा, भूमिज, उरांव, लोहरा, बिरहोर, पारधी, असुर, टाकणकार आदि हैं।

डूंगरपुर, राजस्थान की दो आदिवासी लडकियाँ

भारत में आदिवासियों को प्रायः 'जनजातीय लोग' के रूप में जाना जाता है। आदिवासी मुख्य रूप से भारतीय राज्यों उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान आदि में बहुसंख्यक व गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक है जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहुसंख्यक हैं, जैसे मिजोरम। भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में " अनुसूचित जनजातियों " के रूप में मान्यता दी है। अक्सर इन्हें अनुसूचित जातियों के साथ एक ही श्रेणी " अनुसूचित जाति एवं जनजाति " में रखा जाता है।

चंदा समिति ने सन् 1960 में अनुसूचति जातियों के अंर्तगत किसी भी जाति को शामिल करने के लिये 5 मानक निर्धारित किया:

1. भौगोलिक एकाकीपन
2. विशिष्ट संस्कृति
3. पिछड़ापन
4. संकुचित स्वभाव
5. आदिम जाति के लक्षण

बहुत से छोटे आदिवासी समूह आधुनिकीकरण के कारण हो रहे पारिस्थितिकी पतन के प्रति काफी संवेदनशील हैं। व्यवसायिक वानिकी और गहन कृषि दोनों ही उन जंगलों के लिए विनाशकारी साबित हुए हैं जो कई शताब्दियों से आदिवासियों के जीवन यापन का स्रोत रहे हैं।

आदिवासी भाषाएँ

भारत में सभी आदिवासी समुदायों की अपनी विशिष्ट भाषाएं है। भाषाविज्ञानियों ने भारत के सभी आदिवासी भाषाओं को मुख्यतः तीन भाषा परिवारों में रखा है-गोंडी, द्रविड़, आस्ट्रिक और लेकिन कुछ आदिवासी भाषाएं भारोपीय भाषा परिवार के अंतर्गत भी आती हैं। आदिवासी भाषाओं में ‘भीली’ बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है जबकि दूसरे स्थान पर ‘गोंडी’ भाषा और तीसरे स्थान पर ‘संताली’ भाषा है। भारतीय राज्यों में एकमात्र झारखण्ड में ही 5 आदिवासी भाषाओं - संताली, मुण्डारी, हो, कुड़ुख और खड़िया - को 2011 में द्वितीय राज्यभाषा का दर्जा प्रदान किया गया।

भारत की 114 मुख्य भाषाओं में से 22 को ही संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इनमें हाल में शामिल की गयी संताली और बोड़ो ही मात्र आदिवासी भाषाएं हैं। अनुसूची में शामिल संताली (0.62), सिंधी, नेपाली, बोड़ो (सभी 0.25), मिताइ (0.15), डोगरी और संस्कृत भाषाएं एक प्रतिशत से भी कम लोगों द्वारा बोली जाती हैं। जबकि भीली (0.67), गोंडी (0.25), टुलु (0.19) और कुड़ुख 0.17 प्रतिशत लोगों द्वारा व्यवहार में लाए जाने के बाद भी आठवीं अनुसूची में दर्ज नहीं की गयी हैं। (जनगणना 2001)

आदिवासियों के धार्मिक विश्वास

आदिवासियों का अपना धर्म भी है। ये प्रकृति-पूजक हैं और वन, पर्वत, नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं। आधुनिक काल में जबरन बाह्य संपर्क में आने के फलस्वरूप इन्होंने हिन्दू, ईसाई एवं इस्लाम धर्म को भी अपनाया है। अंग्रेजी राज के दौरान बड़ी संख्या में ये ईसाई बने तो आजादी के बाद इनके हिूंदकरण का प्रयास तेजी से हुआ है। परन्तु आज ये स्वयं की धार्मिक पहचान के लिए संगठित हो रहे हैं और भारत सरकार से जनगणना में अपने लिए अलग से धार्मिक कोड (कोया पुनेम) की मांग कर रहे हैं। माना जाए तो इनका धर्म हिन्दू धर्म से ज्यादा मेल खाता है क्युकी आदिवासी और हिन्दू दोनों लोग शंभूसेक (महादेव) को अपना अस्तित्व मानते है।

भारत में 1871 से लेकर 1941 तक हुई जनगणनाओं में आदिवासियों को अन्‍य धमों से अलग धर्म में गिना गया है, जिसे एबओरिजिन्स, एबोरिजिनल, एनिमिस्ट, ट्राइबल रिलिजन या ट्राइब्स इत्यादि नामों से वर्णित किया गया है। हालांकि 1951 की जनगणना के बाद से आदिवासियों को अलग से गिनना बन्‍द कर दिया गया है।

भारत में आदिवासियों को दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति।

हिन्दू और आदिवासी मे समानता

  • 1- हिन्दू और आदिवासी का महादेव मे विशेष विश्वास है
  • 2- हिन्दू और आदिवासी बिना मूर्ति के जलदेव(इंद्र देव) की पूजा करते है
  • 3- हिन्दू और आदिवासी पेड़ - पौधा(वासुदेव) की पूजा करते है
  • 4- हिन्दू और आदिवासी वायु(पवनदेव) की पूजा करते है
  • 5- हिन्दू और आदिवासी अग्नि(अग्निदेव) की पूजा करते है
  • 6- हिन्दू और आदिवासी गाय(गोमाता), सर्प(सेसनाग), कौआ(शनिदेव), इत्यादि पशु पक्षी की पूजा करता है
  • 7- हिन्दू और आदिवासी सूर्य(सूर्यदेव) की पूजा करता है

कुल मिलाकर आदिवासी प्रकृति की पूजा करता है और हिन्दू प्रकृति(33 प्रकार) देवी देवता का पूजा करता है।

भारत की प्रमुख जनजातियाँ

भारत में 461 जनजातियां हैं, जिसमें से 424 जनजातियों भारत के सात क्षेत्रों में बंटी हुई हैं:

उत्तरी क्षेत्र

जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड , हिमाचल प्रदेश

जातियाँ: लेपचा, भूटिया, थारू, बुक्सा, जॉन सारी, खाम्पटी, कनोटा।

इन सब में मंगोल जाति के लक्षण मिलते हैं। जैसे:- तिरछी छोटी आंखे (चाइनीज, तिब्बती), पीला रंग, सीधे बाल, चेहरा चौड़ा, चपटा नाक।

उत्तर प्रदेश

तराई जिलों में थारु, बोक्सा, भूटिया, राजी, जौनसारी,केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में गोंड़, धुरिया, नायक, ओझा, पठारी, राजगोड़, तथा देवरिया बलिया, वाराणसी, सोनभद्र में खरवार, व तलितपुर में सहरिया,सोनभद्र में बैगा, पनिका,पहडिया, पंखा, अगरिया, पतरी, चेरो भूइया।

बिहार

असुर, अगरिया, बैगा, बनजारा, बैठुडी, बेदिया, खरवार, भूमिज आदि।

पूर्वोत्तर क्षेत्र

नागा

पूर्वी क्षेत्र

  • उड़ीसा में:- जुआंग, खोड़, भूमिज, खरिया।
  • झारखण्ड में:- मुण्डा, उराँव, संथाल, भूमिज, बिरहोर, हो।
संथाल:- भारत की सबसे बड़ी जनजाति। संथालिय भाषा को संविधान में मान्यता प्राप्त हैं।
  • पश्चिम बंगाल में:- मुण्डा, संथाल, भूमिज, उराँव, कोड़ा।

पहचान : रंग काला, चॉकलेटी कलर, लंबा सिर, चौड़ी छोटी व चपटी नाक, हल्के घुंघराले बाल। यह सभी प्रोटो ऑस्टेलाइड प्रजाति से संबधित हैं।

मध्य क्षेत्र

गोंड, कोल, परधान, बैगा, मारिया, अबूझमाडिया, धनवार/धनुहार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, हल्बा,कंवर।

ये सभी प्रजातियां छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, पूर्वी आंध्र-प्रदेश में निवास करते हैं। ये सभी प्रोटो ऑस्टेलाइड प्रजाति से संबधित हैं।

पश्चिमी भारत में

गुजरात की एक आदिवासी महिला
  • गुजरात,( राजस्थान में विशेष कर उदयपुर सभांग में भील ; गरासिया व सिरोही कि आबुरोङ व पिण्डवाङा में भील *गरासिया बहुतायत आबूरोङ के भाखर पट्टे में सभी आदिवासी समुदाय रहते हैं पश्चिमी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र : भील, मीणा, गोंड़,धाणका भीलाला , बारेला इत्यादि

दक्षिण भारत में

  • कुरूंबा, कादर, चेंचु, पूलियान, नायक, चेट्टी ये सभी जनजातियां नीग्रिये से संबधित हैं।
  • विशेषताएं:- काला/गोरा रंग, बड़े होठ,बड़े नाक

द्विपीय क्षेत्र

  • अंडमान-निकोबार- जाखा, आन्गे, सेन्टलिस, सेम्पियन (शोम्पेन)

यह जातियां नीग्रिये प्रजाति से संबधित हैं। ये लुप्त होने के कगार पर हैं।

आदिवासी झण्‍डा

आदिवासी ध्वज

आदिवासी समाज के लोग अपने धार्मिक स्‍थलों, खेताें, घरों आदि में एक विशिष्‍ट प्रकार का झण्‍डा लगाते है, जो अन्‍य धमों के झण्‍डों से अलग होता है। आदिवासी झण्‍डें में सूरज, चांद, तारे इत्‍यादी सभी प्रतीक विद्यमान हैं। आदिवासी के झण्‍डे सभी रंग के होते है। वो किसी रंग विशेष से बंधे हुये नहीं होते। आदिवासी प्रकृति पूजक होते है। वे प्रकृति में पाये जाने वाले स्‍ाभी जीव, जन्‍तु, पर्वत, नदियां, नाले, खेत इन सभी जीवीत वस्‍तुओं की पूजा करते है। आदिवासी मानते है कि प्रकृति की हर एक वस्‍तु में जीवन होता है। भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्‍व के आदिवासी कहे जाने वाले आदिवासीयों के झण्‍डों में सूरज, चांद, तारे आदि कहीं ना कहीं बने हुये होते है।

आदिवासी राजा

  • महाराजा प्रताप धवलदेव, रोहतास गढ़
  • नागल कोल, रेवा रियासत
  • मदन साह, जलबपुर
  • कोल राजा, कोरबा रियासत


प्रमुख आदिवासी व्यक्ति

६वीं और ६ठी अनुसूची

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

आदिवासी पत्र-पत्रिकाएं

  • जोहार सहिया (आदिवासियों की लोकप्रिय मासिक पत्रिका नागपुरी-सादरी भाषा में)
  • जोहार दिसुम खबर (12 आदिवासी भाषाओं में प्रकाशित भारत का एकमात्र पाक्षिक अखबार)
  • अखड़ा (11 आदिवासी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका)
  • आदिवासी समाज (aadivasisamaj.com) - आदिवासी समाज की सामाजिक वेबसाईट