रूपा बाजवा

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रूपा बाजवा
Rupa Bajwa, Author.jpg
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व्यवसायलेखिका
उल्लेखनीय सम्मानसाहित्य अकादमी पुरस्कार (अंग्रेज़ी)

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रूपा बाजवा अमृतसर, पंजाब से एक भारतीय लेखिका है। उनकी उपन्यास द साड़ी शॉप को २००६ में अंग्रेज़ी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[१] वह विभिन्न भारतीय शहरों और कस्बों में अपना समय बिताती हैं। उन्होंने ग्रिनज़ेन कैवोर पुरस्कार, राष्ट्रमंडल पुरस्कार और भारत का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाली महिला हैं।

उपन्यास

2004 में, उन्होंने अपना पहला उपन्यास, द साड़ी शॉप प्रकाशित किया, जो उनके शहर और भारत की विभिन्न समाजिक स्तरों में अंतर की जाँच पड़ताल करता है। [२] समीक्षकों द्वारा इस उपन्यास के लिए लेखक की भूरी भूरी प्रशंशा की, इन्हे भारत की नई साहित्यिक खोज कहा गया है। 2004 में इस उपन्यास को ऑरेंज प्राइज के लिए लंबे समय से सूचीबद्ध किया गया था। इस उपन्यास ने जून 2005 में सर्वश्रेष्ठ पहला उपन्यास के लिए 26वां ग्रिनज़ेन कैवोर पुरस्कार जीता, 2005 में राष्ट्रमंडल पुरस्कार और 2006 में भारत का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया। द साड़ी शॉप का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है, उनमें से: फ्रेंच (ले वेंगिरियर डे साड़ियाँ), डच (डी सरीविंकेल) और सर्बियाई (प्रोडावनिका सरिजा) प्रमुख है।

रूपा बाजवा का दूसरा उपन्यास टेल मी ए स्टोरी, अप्रैल 2012 में प्रकाशित हुआ था। इस उपन्यास के लिए भी काफी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई जो की मिलीजुली प्रतिक्रिया थी। कुछ आलोचकों ने इस की सराहना की, उसी समय नई दिल्ली के कुछ साहित्यिक हलकों में विवाद पैदा हो गया, क्योंकि इस उपन्यास के एक हिस्से ने इन बहुत से लोगों पर व्यंग्य किया गया है। [३]


वर्तमान में, रूपा बाजवा अपने तीसरे उपन्यास पर काम कर रही हैं। [४][५][६]

कॉलम

हालांकि, वह एक सिख परिवार से हैं, लेकिन बाजवा ने दैनिक समाचार पत्र द डेली टेलीग्राफ में एक विवादास्पद लेख "डार्क थिंग्स डू हैपेन इन गुरुद्वारों सम टाइम " लिखा था। [७] इस लेख ने उनकी अपार आलोचना की और जिसके लिए उन्हें काफी हेट मेल प्राप्त हुए।

रूपा बाजवा द टेलीग्राफ, द ट्रिब्यून, टाइम आउट और इंडिया टुडे जैसे पत्रिकाओं में पुस्तक समीक्षा और अन्य रुचियों पर भी लेख लिखती हैं।

साहित्यक रचना

  • 2004 द साड़ी शॉप
  • 2012 टेल मी ए स्टोरी

इन्हें भी देखें

  • For a post-colonial perspective on Bajwa's award-winning-novel,The Sari Shop, one can consult the Raiganj University Professor Pinaki Roy's "Multicultural Differences: A Brief Rereading of Rupa Bajwa's The Sari Shop", in the Ketaki Dutta-edited Sahitya Akademi Award-winning English Collections: Critical Overviews and Insights (New Delhi: Authors Press, 2014, ISBN 978-81-7273-728-3स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।), pp. 272–86.

सन्दर्भ