रणवीर सेना
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रणवीर सेना, भारत का उच्च जातीय संगठन हैं, किसका मुख्य कार्य-क्षेत्र बिहार है। यह कोई आतंकवादी संगठन नहीं ब्लकि मीलिशिया है, क्योंकि यह मुख्यतः जाति आधारित "भूमिहार ब्राह्मणों" का संग़ठन है और इसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के किसानों के जमीनों की रक्षा करना है। जिन जमीनों पर नक्सलियों द्वारा अवैध कब्जा कर लिया जाता है और सवर्ण किसानों का सामुहिक नरसंहार कर दिया जाता रहा है।
रणवीर सेना की स्थापना 1994 में मध्य बिहार के भोजपुर जिले के गांव बेलाऊर में हुई।[१] दरअसल जिले के किसान भाकपा माले (लिबरेशन) नामक नक्सली संगठन के अत्याचारों से परेशान थे और किसी विकल्प की तलाश में थे। ऐसे किसानों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल पर छोटी-छोटी बैठकों के जरिये संगठन की रूपरेखा तैयार की। बेलाऊर के मध्य विद्यालय प्रांगण में एक बड़ी किसान रैली कर रणवीर किसान महसंघ के गठन का ऐलान किया गया। तब खोपिरा के पूर्व मुखिया बरमेश्वर सिंह, बरतियर के कांग्रेसी नेता जनार्दन राय, एकवारी के भोला सिंह, तीर्थकौल के प्रोफेसर देवेन्द्र सिंह, भटौली के युगेश्वर सिंह, बेलाउर के वकील चौधरी, धनछूहां के कांग्रेसी नेता डॉ. कमलाकांत शर्मा और खण्डौल के मुखिया अवधेश कुमार सिंह ने प्रमुख भूमिका निभाई। इन लोगों ने गांव-गांव जाकर किसानों को माले के अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए प्रेरित किया। आरंभ में इनके साथ लाईसेंसी हथियार वाले लोग हीं जुटे। फिर अवैध हथियारों का जखीरा भी जमा होने लगा। भोजपुर में वैसे किसान आगे थे जो नक्सली की आर्थिक नाकेबंदी झेल रहे थे। जिस समय रणवीर किसान संघ बना उस वक्त भोजपुर के कई गांवो में भाकपा माले लिबरेशन ने मध्यम और लघु किसानों के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी लगा रखा था। करीब पांच हजार एकड़ जमीन परती पड़ी थी। खेती बारी पर रोक लगा दी गयी थी और मजदूरों को खेतों में काम करने से जबरन रोक दिया जाता था। कई गांवों में फसलें जलायी जा रही थीं और किसानों को शादी-व्याह जैसे समारोह आयोजित करने में दिक्कतें आ रही थीं । इन परिस्थितियों ने किसानों को एकजुट होकर प्रतिकार करने के लिए माहौल तैयार किया। रणवीर सेना के गठन की ये जमीनी हकीकत है।
भोजपुर में संगठन बनने के बाद पहला नरसंहार हुआ सरथुआं गांव में, जहां एक साथ पांच मुसहर जाति के लोगों की हत्या कर दी गयी। बाद में तो नरसंहारों का सिलसिला ही चल पड़ा। बिहार सरकार ने सवर्णों की इस किसान सेना को तत्काल प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन हिंसक गतिविधियां जारी रहीं । प्रतिबंध के बाद रणवीर संग्राम समिति के नाम से इसका हथियारबंद दस्ता विचरण करने लगा। दरअसल भाकपा माले ही इस संगठन को रणवीर सेना का नाम दे दिया। और इसे सवर्ण सामंतों की बर्बर सेना कहा जाने लगा। एक तरफ भाकपा माले का हत्यारा दस्ता खून बहाता रहा तो प्रतिशोध में रणवीर सेना के लड़ाके भी खून की होली खेलते रहे। करीब पांच साल तक चली हिंसा-प्रतिहिंसा की लड़ाई के बाद घीरे-घीरे शांति लौटी। लेकिन इस बीच मध्य बिहार के जहानाबाद, अरवल, गया औरंगाबाद, रोहतास, बक्सर और कैमूर जिलों में रणवीर सेना ने प्रभाव बढ़ा लिया। बाद के दिनों में राष्ट्रवादी किसान महासंघ नामक संगठन का निर्माण किया गया। महासंघ ने आरा के रमना मैदान में कई रैलियां की और कुछ गांवों में भी बड़े-बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम हुए। जगदीशपुर के इचरी निवासी राजपूत जाति के किसान रंगबहादुर सिंह को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया। आरा लोकसभा सीट से रंगबहादुर सिंह ने चुनाव भी लड़ा और एक लाख के आसपास वोट पाया। रणवीर सेना के संस्थापक सुप्रीमो बरमेश्वर सिंह उर्फ मुखियाजी पटना में नाटकीय तरीके से पकड़ लिये गये। पकड़े जाने के बाद वे आरा जेल में रहे। जेल में रहते हुए उन्होंने भी लोकसभा का चुनाव लड़ा और डेड़ लाख वोट लाकर अपनी ताकत का एहसास कराया। आज की तारीख में रणवीर सेना की गतिविधियां बंद सी हो गयी हैं। इसके कई कैडर या तो मारे गये या फिर जेलों में बंद हैं। सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया की साल 1 जून 2012 को कुछ कुख्यात अपराधियों ने हत्या कर दी।
सन्दर्भ