चिरांद
चिरांद | |
— पुरातत्व स्थल — | |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | साँचा:flag |
ज़िला | सारण |
आधिकारिक भाषा(एँ) | हिन्दी, मगही, मैथिली, भोजपुरी, अंगिका, |
छपरा से ११ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में डोरीगंज बाजार के निकट स्थित चिरांद सारण जिला का सबसे महत्वपूर्ण पुरातत्व स्थल है।[१][२][३] घाघरा नदी के किनारे बने स्तूपनुमा भराव को हिंदू, बौद्ध तथा मुस्लिम प्रभाव एवं उतार-चढाव से जोड़कर देखा जाता है।[४] भारत में यह नव पाषाण काल का पहला ज्ञात स्थल है। यहाँ हुए खुदाई से यह पता चला है कि यह स्थान नव-पाषाण काल (२५००-१३४५ ईसा पूर्व) तथा ताम्र युग में आबाद था।[५][६] खुदाई में यहाँ से हडडियाँ, गेंहूँ की बालियाँ तथा पत्थर के औजार मिले हैं जिससे यह पता चलता है कि यहाँ बसे लोग कृषि, पशुपालन एवं आखेट में संलग्न थे।[७][८] बुर्ज़होम (कश्मीर) को छोड़कर भारत में अन्य किसी पुरातात्त्विक स्थल से इतनी अधिक मात्रा में नवपाषाणकालीन उपकरण नहीं मिले, जितने कि चिरांद ग्राम से प्राप्त हुए हैं। स्थानीय लोग चिरांद टीले को द्वापर युग में ईश्वर के परम भक्त तथा यहाँ के चेरो वशिं राजा मौर्यध्वज (मयूरध्वज) के किले का अवशेष एवं च्यवन ऋषि का आश्रम मानते हैं। १९६० के दशक में हुए खुदाई में यहाँ से बुद्ध की मूर्तियाँ एवं धम्म से जुड़ी कई चीजें मिली है जिससे चिरांद के बौद्ध धर्म से लगाव में कोई सन्देह नहीं।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ [१] स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। Historically speaking Chirand is the most important place in Saran district, which is connected with antiquity. The ruins of the ancient mounds tell that it has seen the rise and fall of the Buddhism, Hinduism and the Muslims
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ [२] स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। The Neolithic occupation (2500-1345 BC) contains evidence of small circular huts, and small scale farming of wheat, rice, mung, masur, and peas.
- ↑ साँचा:cite web