एकीकृत मार्गदर्शित मिसाइल विकास कार्यक्रम
एकीकृत मार्गदर्शित मिसाइल विकास कार्यक्रम (अंग्रेज़ी: Integrated Guided Missile Develoment Program-IGMDP ; इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम) घोषित परमाणु राज्यों (चीन, ब्रिटेन, फ़्रांस, रूस, और संयुक्त राज्य अमेरिका) के बाद के मिसाइल कार्यक्रमों में से एक है। भारत अपने परिष्कृत मिसाइल और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के साथ, देश में ही लंबी दूरी की परमाणु मिसाइलों के विकास में तकनीकी रूप से सक्षम है। बैलिस्टिक मिसाइलों में भारत का अनुसंधान 1960 के दशक में शुरू हुआ। जुलाई 1983 में भारत ने स्वदेशी मिसाइल के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के उद्देश्य के साथ समन्वित निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम (इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम-IGMDP) की शुरुआत की। आईजीएमडीपी द्वारा देश में ही विकसित सबसे पहली मिसाइल पृथ्वी थी। भारत की दूसरी बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली अग्नि मिसाइलों की श्रृंखला है जिसकी मारक क्षमता पृथ्वी मिसाइलों से ज्यादा है।
मिसाइल कार्यक्रम
भारत की विभिन्न मिसाइलें उसकी सुरक्षा प्रणाली का बेहद अहम हिस्सा हैं अग्नि मिसाइलें भारतीय मिसाइल प्रणाली की रीढ़ हैं भारत की कुछ प्रमुख मिसाइलें इस प्रकार हैं-
बैलिस्टिक मिसाइल
- पृथ्वी मिसाइल प्रणाली: भारत में सबसे पहले कम दूरी के लिए पृथ्वी मिसाइलों का विकास शुरू किया इन मिसाइलों का विकास 1983 में
हैदराबाद में शुरू किया गया और इसका पहला परीक्षण श्रीहरिकोटा, शार केंद्र (अब सतीश धवन स्पेस सेंटर) नेल्लोर जिला, आंध्र प्रदेश से 25 फ़रवरी 1988 को किया गया पृथ्वी-1 भारत में विकसित स्वदेशी तकनीकी से बनी बैलिस्टिक मिसाइल थी, जिसकी क्षमता 150 किलोमीटर थी। पृथ्वी मिसाइलों के कई संस्करण हैं जिनमे पहला था SS-150 या P1, जिसकी क्षमता 150 किलोमीटर है।
दूसरा संस्करण SS-250 या P2 है, जिसकी क्षमता 250 किलोमीटर तक है। 350 किमी तक मारक क्षमता वाली पृथ्वी-III मिसाइलों का परीक्षण सन 2004 में किया गया पृथ्वी-1 मिसाइलों का प्रयोग भारतीय थल सेना द्वारा किया जाता रहा और पृथ्वी-II मिसाइलों का प्रयोग भारतीय वायुसेना द्वारा किया जाता है पृथ्वी मिसाइलों के नौसैनिक संस्करण को धनुष मिसाइल के नाम से भी जाना जाता है जो पृथ्वी-1 और पृथ्वी-2 मिसाइलों का ही विकसित रूप है वास्तव में पृथ्वी मिसाइलों का विकास नाभिकीय अस्त्र (न्यूक्लियर वेपन) ले जाने के लिए किया गया था परन्तु अधिक उन्नत अग्नि मिसाइलों के सफल परीक्षण के बाद इन मिसाइलो पर नाभिकीय अस्त्रों की आवश्यकता नहीं रह गयी धनुष मिसाइलों का पनडुब्बी संस्करण भी विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है पृथ्वी-I व पृथ्वी-II मिसाइलें तरल ईंधनों से युक्त थीं पृथ्वी-III मिसाइलें एक चरण वाले ठोस ईंधनो से युक्त होती हैं, जिससे ये मिसाइलें विभिन्न स्थानों और परिस्थितियों में बहुत ही कम समय में तैयार करके दागी जा सकती हैं पृथ्वी-1 मिसाइलें 1994 में भारतीय सेना में शामिल की गयीं जिनका संचालन सिकंदराबाद में भारतीय सेना के 333वें मिसाइल समूह द्वारा किया जाता रहा। 444वें मिसाइल समूह की स्थापना मई 2002 में की गयी जो पृथ्वी और अग्नि-1 मिसाइलों के संचालन की देख-रेख करता है पृथ्वी मिसाइलों के SS-150 का उत्पादन 1993 में शुरू हुआ, और 1999 तक लगभग 60 मिसाइलें बनायीं गयीं इनके प्रक्षेपण के लिए 35 प्रक्षेपण वाहनों (ट्रांसपोर्ट इरेक्टर लॉन्चर-TEL) का भी निर्माण किया गया पृथ्वी-II या SS-250 को भारतीय वायु सेना में 1999 में शामिल किया गया और एक अनुमान के अनुसार लगभग 70 मिसाइलों का निर्माण किया गया बाद में इनका नियंत्रण, मिसाइल संचालन करने वाले थल सेना के समूह को दे दिया गया, जो अपने लक्ष्यों के लिए वायुसेना के संपर्क में रहता है।पृथ्वी-III मिसाइलों परीक्षण नवम्बर 1993 और अप्रैल 2001 में किया गया, परन्तु अभी यह निश्चित नहीं है की इनका विकास आगे किया जा रहा है या नहीं, युद्ध-पोतों से प्रक्षेपित की जा सकने वाली पृथ्वी मिसाइलों के नौसैनिक संस्करण धनुष का परीक्षण आई.एन.एस. सुभद्रा से अप्रैल 2000 में किया गया यह परीक्षण असफल रहा इसके दूसरे परीक्षण दिसम्बर 2000 और सितम्बर 2001 में किये गए, जिसमें इन मिसाइलों ने 150 किलोमीटर की निर्धारित दूरी तय की पृथ्वी मिसाइलें सभी प्रकार के पारंपरिक और सामरिक हथियार ले जाने में सक्षम हैं।
पृथ्वी मिसाइल प्रणाली
मिसाइल | प्रकार | वॉरहेड | पेलोड (किग्रा) | मारक दूरी (किमी) | आयाम (मी) | ईधन/चरण | वजन (किग्रा) | सेवा में | CEP (मी) |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
पृथ्वी-I | टैक्टिकल | परमाणु, HE, सबमुनिशन्स, FAE, रासायनिक | 1,000 | 150 | 8.55X1.1 | एकल चरण तरल | 4,400 | 1988 | 30–50 |
पृथ्वी-II | टैक्टिकल | परमाणु, HE, सबमुनिशन्स, FAE, रासायनिक | 350–750 | 350 | 8.55X1.1 | एकल चरण तरल | 4,600 | 1996 | 10–15 |
पृथ्वी-III | टैक्टिकल | परमाणु, HE, सबमुनिशन्स, FAE, रासायनिक | 500–1,000 | 350–600 | 8.55X1 | एकल चरण ठोस | 5,600 | 2004 | 10–15 |
अग्नि मिसाइल प्राणाली
मिसाइल | परियोजन | प्रकार | पेलोड | पेलोड (किग्रा) | मारक दूरी (किमी) | आयाम (मी०) | ईधन/चरण | भार (किग्रा०) | सेवा में | CEP (मी०) |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
अग्नि-1 | IGMDP | SRBM | परमाणु, HE, penetration, sub-munitions, FAE | 1,000 | 700–1,250[१] | 15X1 | एकल चरण ठोस | 12,000 | 2002 | 25[२] |
अग्नि-2 | IGMDP | MRBM | परमाणु, HE, penetration, sub-munitions, FAE | 750–1,000 | 2,000–3,500[३] | 20X1 | ढाई चरण ठोस | 16,000 | 1999 | 30 |
अग्नि-3 | IGMDP | IRBM | परमाणु, HE, penetration, sub-munitions, FAE | 2,000–2,500 | 3,500–5,000[४] | 17X2 | Two stage solid | 44,000 22,000 (latest version)[५] |
2011 | 40 |
अग्नि-4 | अग्नि-IV | IRBM | परमाणु, HE, penetration, sub-munitions, FAE | 800–1,000 | 3,000–4,000 | 20X1 | दो चरण ठोस | 17,000 | 2014 | |
अग्नि-5 | अग्नी-V | ICBM | परमाणु, HE, penetration, sub-munitions, FAE | 1,500 (3–10 MIRV) | 5,500–8,000 | 17X2 | तीन चरण ठोस | 50,000 | 2017 | <10 m[५] |
अग्नि-6 | अग्नी-VI | ICBM | परमाणु, HE, penetration, sub-munitions, FAE | 1,000 (10 MIRV) | 10,000+[६] | 40X1.1[६] | तीन चरण ठोस | 55,000[६] | विकास में |
अग्नि मिसाइल प्रणाली
भारत ने मध्यम दूरी की, सतह से सतह पर मार करने वाली, अग्नि मिसाइल प्रणाली पर 1979 में कम शुरू किया और इनका पहला परीक्षण 1989 में किया गया परन्तु उत्तरोत्तर सरकारों ने अन्तर्राष्ट्रीय दबावों में इसके आगे परीक्षण नहीं किये
- अग्नि -1 (TD) का परीक्षण 1990 के मध्य में किया गया और इसे प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (टेक्नोलॉजी डेमोन्सट्रेटर) बताया गया। 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार ने अग्नि मिसाइलों के विकास को नई दिशा दी।
- अग्नि –2 (TD) सन् 2002 में अग्नि-2 का भी परीक्षण किया गया अग्नि मिसाइलें अंतरवर्ती दूरी (Intermediate-Range Ballistic Missile-IRBM) तक प्रहार करने वाला
बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र है इसमें मुख्य रूप से ठोस प्रणोंदकों का ही इस्तेमाल होता है (SLV-3 के समान)। अग्नि मिसाइलों का ताप परिरक्षक (Heat Shield) कार्बन सम्मिश्रणों (composite) का बना होता है जिसके कारण ये उच्च तापमान (लगभग 5000 °C), को भी सहन कर सकती हैं अमेरिका, रूस, फ्रांस, इजराइल और चीन के बाद भारत ऐसी प्रणाली विकसित करने वाला 6वां देश है।
- अग्नि-1 कम दूरी के लिए अग्नि-I का विकास 1999 में शुरू हुआ यह 1990 में परीक्षण की गयी
अग्नि मिसाइलों पर ही आधारित था अपने पेलोड के साथ इसकी मारक क्षमता 1200 किलोमीटर तक है अग्नि-I का विकास कम समय में परमाणु क्षमता प्रदान करने के लिए किया गया है परमाणु क्षमता संपन्न अग्नि - 1 प्रक्षेपास्त्र का ताजा परीक्षण 25 नवंबर 2010 एवं दिसंबर 2011 में किया गया अग्नि- 1 को पहले ही भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया है लेकिन सेना से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए इसका समय-समय पर प्रायोगिक परीक्षण किया जाता है
- अग्नि-2 2000 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली अग्नि – II मिसाइलों का सबसे पहले परीक्षण अप्रैल 1999 में किया गया था 2009 में इनका दो बार परीक्षण असफल हो गया था मई 2010 में इसका सफल परीक्षण किया गया ये एक टन तक का पेलोड ले जा सकती है सितंबर 2011 में एक बार फिर अग्नि-2 का सफल परीक्षण
किया गया. अग्नि-2 भारतीय सेना में शामिल की जा चुकी है।
- अग्नि-3
3500 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली, और 1.5 टन तक का पेलोड ले जा सकने में सक्षम अग्नि-3 मिसाइलों को 2006 में परीक्षण किया जिसे आंशिक रूप से ही सफल बताया गया।2007 और 2008 में अग्नि-3 का सफल लॉन्च किया गया अग्नि-3 का चौथा परीक्षण फरवरी 2010 में उड़ीसा के पास व्हीलर आईलैंड में किया गया था।
- अग्नि–4 3000 किलोमीटर से अधिक मारक
क्षमता, 1000 किग्रा. से अधिक पेलोड ले जाने में सक्षम अग्नि-4 मिसाइलों का सफल प्रक्षेपण नवंबर 2011 में किया गया। ये मिसाइलें अपने पूर्ववर्ती संस्करणों से हल्की परन्तु तकनीकी रूप से अधिक उन्नत हैं। इनका पहला परीक्षण दिसम्बर 2010 में हुआ था परन्तु तकनीकी कारणों से ये परीक्षण असफल रहा था। अग्नि-3 मिसाइलें अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) हैं। अग्नि मिसाइलें सभी प्रकार के पारंपरिक और सामरिक हथियार ले जाने में सक्षम हैं नई तकनीकों जैसे अति आधुनिक कम्प्यूटर और नेवीगेशन सिस्टम के इस्तेमाल के कारण ये मिसाइलें लगभग अचूक हैं अग्नि मिसाइलों की श्रृंखला को डीआरडीओद्वारा विकसित किया गया है और भारत डायनामिक्स लिमिटेड द्वारा इनका निर्माण किया जाता है।
- अग्नि-5 भारत ने अपनी पहली अंतरमहाद्वीपीय दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का परीक्षण अप्रैल 2012 में किया। 5000-8000 किमी
की मारक क्षमता वाली इस मिसाइल को भी MIRV के रूप में विकसित किया गया है, जो एक बार में 3 से ज्यादा हथियारों को ले जाने में सक्षम है।
- अग्नि-6 इनके आलावा अग्नि-VI का विकास, 2008 में आईजीएमडीपी कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद, डीआरडीओ द्वारा किए गए नीति में परिवर्तन के अनुसार स्वतंत्र परियोजनाओं के तहत किया जा रहा है अग्नि-VI को भी मल्टीपल इंडिपेंडिबल री-एंट्री व्हीकल यानी एमआईआरवी (MIRV) के रूप में
विकसित करने के प्रयास किये जा रहें हैं जो एक बार में 4-6 हथियार ले जाने में सक्षम होगा।
त्रिशुल मिसाइल प्रणाली
त्रिशूल मिसाइल प्रणाली: त्रिशूल मिसाइल सतह से हवा में मार करने वाली पहला स्वदेशी सक्षम प्रक्षेपास्त्र है। इसे सेना के तीनों अंग प्रयोग कर सकते हैं। इसकी मारक क्षमता 500 मी० से लेकर 12 किलोमीटर तक है यह 5.5 किग्रा० तक के विस्फोटकों को ले जा सकती है इलेक्ट्रॉनिक संसूचकों (डिटेक्टर) की मदद से लक्ष्य के करीब इनमें विस्फोट होता है। इनमें ठोस प्रणोदकों (इग्नाइटर) का इस्तेमाल होता है। भारत ने आधिकारिक तौर पर 27 फ़रवरी 2008 के बाद त्रिशूल मिसाइल परियोजना बंद कर दी, परन्तु तकनीकी दक्षता हासिल करने के लिए इसका परीक्षण किया जा सकता है।
धनुष मिसाइल
पृथ्वी और अग्नि मिसाइल की सफलता के बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने समुद्र से सतह पर प्रहार करने वाली धनुष मिसाइल को विकसित किया यह मिसाइल पृथ्वी मिसाइल का ही नौसैनिक संस्करण है। इसे डीआरडीओ ने विकसित किया है और भारत डाइनेमिक्स लिमिटिड द्वारा इसका निर्माण किया जाता है यह 500 किग्रा० तक के पेलोड ले जाने में सक्षम है।
आकाश मिसाइल प्रणाली
आकाश मिसाइल प्रणाली सतह से हवा में मार करने में सक्षम आकाश मिसाइलें मध्यम दूरी की मिसाइल हैं जिनकी मारक क्षमता 25-30 किलोमीटर है। आकाश मिसाइलों का विकास 1990 में शुरू किया गया था और इनका पहला परीक्षण मार्च 1997 में किया गया था। ये मिसाइलें 2.5 मैक की सुपर सॉनिक (पराध्वनिक) रफ़्तार पर उड़ती हैं। ये 18 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक भी जा सकती हैं। ये मिसाइलें 55 किग्रा० तक के वॉरहेड्स का वहन कर सकती हैं। ये मिसाइलें रैमजेट तकनीक पर आधारित हैं इनमें दो चरणों वाले ठोस प्रणोदकों का इस्तेमाल होता है। आकाश मिसाइलें देश में ही विकसित राजेन्द्र राडार से एकीकृत होती हैं जिनके द्वारा इन्हें निर्देश दिया जाता है इस मिसाइलों का पूर्ण रूप से राडार द्वारा ही नियंत्रण किया जाता है।
नाग मिसाइल प्रणाली
नाग मिसाइल दागो और भूल जाओ (Fire-and-forget) के सिद्धांत पर विकसित नाग मिसाइल एक टैंक रोधी (anti-tank missile) है, जिसकी क्षमता 3-7 किमी है इसमें ठोस प्रणोदकों का इस्तेमाल होता है नाग मिसाइलों में अवरक्त प्रतिविम्ब प्रणाली (Imaging Infra-Red, IIR) का प्रयोग किया जाता है जिसके कारन दिन और रात दोनों समय इससे अचूक निशाना लगाया जा सकता है नाग मिसाइलों का हेलीकाप्टर में प्रयोग किया जा सकने वाला संस्करण भी विकसित किया जा चुका है जिसे हेलिना (HELINA-HELIcopter NAg) के नाम से जाना जाता है इसे HAL द्वारा विकसित ध्रुव हेलीकाप्टरों में लगाया गया है इन मिसाइलों के प्रक्षेपण के लिए एक थर्मल इमेजर से लैस विशेष वाहन नामिका (NAMICA-Nag Missile Carrier) का भी विकास किया गया है।
पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लांचर
'पिनाका मल्टी बैरल राकेट लांचर पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट प्रणाली को जिसे भारतीय सेना के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित किया गया है ये प्रणाली अधिकतम 40-65 किलोमीटर तक के पाने लक्ष्यों को भेद सकती है इस प्रणाली से 44 सेकंड में 72 रॉकेट दागे जा सकते हैं जो 4 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को तबाह कर सकते हैं इसके अलग-अलग राकेटों को अलग-अलग दिशा में भी दागा जा सकता है इस प्रणाली की गतिशीलता के लिए इसे एक टाट्रा (Tatra) ट्रक पर लगाया जाता है पिनाका मिसाइल प्रणाली का विकास 1986 में शुरू हुआ था और दिसम्बर 1992 में इस पर काम पूरा हुआ।
निर्भय मिसाइल
निर्भय मिसाइल 17 अक्टूबर, 2014 को भारत ने DRDO द्वारा स्वदेशी तकनीकी से विकसित देश की पहली अध्वनिक (subsonic) मिसाइल निर्भय का परीक्षण किया टर्बोजेट इंजन और ठोस प्रणोदकों पर आधारित इस मिसाइल की रफ़्तार 0.65 मैक है यह मिसाइल 450 किग्रा. तक के पेलोड के साथ 800-1000 किलोमीटर की दूरी तक मार करने में सक्षम है इस मिसाइल में एक खास तरह का फायर एंड फोरगेट सिस्टम लगा है जिसे जाम नहीं किया जा सकता यह मिसाइल उच्च तकनीक पर आधारित है इसे सामान्य मिसाइलों की तरह ही प्रक्षेपित किया जाता है लेकिन एक निश्चित ऊंचाई पर पहुँचने के बाद इसमें लगे पंख खुल जाते हैं और यह एक विमान की तरह काम करने लगती है| निर्भय मिसाइल कई विशेषताओं से युक्त है, जैसे यह कम ऊंचाई पर उडती है जिसकी वजह से यस राडार के पकड़ में आसानी से नहीं आती इसे दूर से नियंत्रित किया जा सकता है, लक्ष्य के पास पहुँचाने के बाद ये उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगा सकती है और सटीक मौके पर हमला कर सकती है ये मिसाइलें काफी कुशल हैं जिन्हें भिन्न-भिन्न पेलोड के साथ विभिन्न प्लेटफार्म से प्रक्षेपित किया जा सकता है इस मिसाइल को प्रमुख तौर पर वायु सेना और नौसेना के लिए विकसित करने की योजना है।
प्रहार मिसाइल
प्रहार मिसाइल प्रहार कम दूरी की (Short-Range Ballistic Missile,SRBM) बैलिस्टिक मिसाइल है जिसे तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिया विकसित किया गया है यह मिसाइल 250 सेकेंड के भीतर, 150 किमी की दूरी तक अपने लक्ष्यों को भेद सकती है इस नई मिसाइल से वर्तमान मल्टी बैरल रॉकेट प्रणाली वाली पिनाका और परमाणु सामग्री ले जाने में सक्षम पृथ्वी मिसाइलों के बीच के अंतर को दूर किया जा सकेगा। पिनाका 40 किलोमीटर तक जबकि पृथ्वी 350 किलोमीटर तक के लक्ष्य को भेद सकती है। एक चरण वाले ठोस ईंधनों से युक्त यह मिसाइल 200 किग्रा. तक का पेलोड ले जा सकने में सक्षम है इस मिसाइल का पहला परीक्षण जुलाई 2011 में किया गया था।
शौर्य मिसाइल
शौर्य मिसाइल सतह से सतह पर वार करने में सक्षम मध्यम दूरी की मारक क्षमता वाली बैलिस्टिक मिसाइल शौर्य का सफलतापूर्वक परीक्षण सितम्बर 2011 में किया गया था इस मिसाइल का पहला परीक्षण 2004 में किया गया था शौर्य मिसाइलों की मारक क्षमता 700 किलोमीटर है दो चरणों वाले ठोस प्रणोदकों से युक्त यह मिसाइल 500-800 किग्रा. तक का पेलोड ले जा सकती है यह मिसाइल जमीन के अलावा पानी के भीतर से भी छोड़ी जा सकती है
सागरिका मिसाइल
सागरिका के -15 मिसाइल भारत ने समुद्र से प्रक्षेपित की जा सकने वाली बैलिस्टिक मिसाइल (Sea Launched Ballistic Missile, SLBM) का भी विकास किया है सागरिका का परीक्षण 2008 में किया गया था DRDO द्वारा विकसित यह मिसाइल 500-800 किग्रा. के पेलोड के साथ 700 किलोमीटर की दूरी तक के लक्ष्यों को निशाना बना सकती है इसमें दो चरणों वाले ठोस प्रणोदकों का इस्तेमाल होता है शौर्य मिसाइल इसका जमीनी संस्करण ही है।
सूर्य मिसाइल प्रणाली
सूर्य मिसाइल भारत एक अंतर-महाद्वीपीय दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (Intercontinental Range Ballistic Missile-IRBM) विकसित करने का प्रयास कर रहा है जो एक MIRV मिसाइल होगी यह मिसाइल 2500 किलोग्राम के पेलोड के साथ 8000-10000 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्यों को भेदने में सक्षम होगी।
ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली
साँचा:main ब्रह्योस मिसाइल ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस के द्वारा विकसित की गयी पराध्वनिक (supersonic) मिसाइल है यह अब तक की सबसे आधुनिक मिसाइल प्रणाली है, जिसने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया है इसकी गति और सटीकता के कारण ब्रह्मोस को सबसे दुर्जेय क्रूज मिसाइलों में से एक माना जाता है। 12 फरवरी 1998 को भारत में डीआरडीओ और रूस के एनपीओ मशीनोस्त्रोयेनि शिया (DRDO and Mashinostroyenia-NPOM) के बीच एक समझौता हुआ और ब्रह्मोस एयरोस्पेस (BrahMos Aerospace) का गठन किया गया ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा (Brahmaputra and Moscow) नदी पर रखा गया है इस सयुंक्त उपक्रम का उद्देश्य था विश्व के सबसे पसले सुपरसोनिक मिसाइलों को विकसित करना और बेचना डीआरडीओ के डा. ए. शिवथानु पिल्लई (Dr. A. Shivathanu Pillai) और एनपीओ के डॉ. हर्बर्ट येफ्रेमोव (Dr. Herbert Yefremov) ने इस मिसाइल को विकसित करने में अहम् भूमिका निभाई ब्रह्मोस मिसाइलका पहला परीक्षण 12 जून 2001 को, उड़ीसा तटीय क्षेत्र में चाँदीपुर के एकीकृत परीक्षण स्थल (Interim Test Range off The Chandipur coast in Orissa -ITR) से किया गया अब तक इसके कई संस्करण विकसित किये जा चुके हैं रैमजेट तकनीक पर आधारित ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल 200-300 किग्रा पेलोड के साथ 300 किलोमीटर की दूरी पर अपने लक्ष्यों को भेद सकती है इस मिसाइल को जमीन से, हवा से, पनडुब्बियों से, युद्ध पोतो से अर्थात कहीं से भी प्रक्षेपित किया जा सकता है ब्रह्मोस के मेनुवरेबल संस्करण का भी परीक्षण किया जा चुका है जिससे प्रक्षेपित किये जाने के बाद अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही इसका मार्ग बदला जा सकता है भारत की भविष्य में ब्रह्मोस-2 नाम से हाइपर सोनिक मिसाइल मिसाइल बनाने की भी योजना है, जो 7 मैक की गति से अपने लक्ष्यों को भेदने में सक्षम होगी इस मिसाइल का विकास भारत को बिना रूस की सहायता से अपने दम पर करना होगा, क्योंकि रूस ने अंतरराष्ट्रीय मिसाइल तकनीक नियंत्रण संधि (Missile Technology Control Regime- MTCR) पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके कारण वह 300 किमी से अधिक मारक क्षमता वाली मिसाइल के विकास में अन्य देशों को मदद नहीं दे सकता है। ब्रह्मोस मिसाइलों को थल सेना एवं नौसेना में शामिल किया जा चुका है।2016 से भारत mtcr का सदस्य बन चुका है। अब रूस के सहयोग से ब्रह्मोस 2 का निर्माण किया जायेगा