जिगर मुरादाबादी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>InternetArchiveBot द्वारा परिवर्तित ०२:४३, ३ अक्टूबर २०२० का अवतरण (Rescuing 1 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.7)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
जिगर मुरादाबादी
जन्मनामअली सिकंदर
जन्मसाँचा:br separated entries
मृत्युसाँचा:br separated entries
शैलियांग़ज़ल
कवि

साँचा:template otherसाँचा:ns0

जिगर मुरादाबादी (उर्दू: جِگر مُرادآبادی‎), एक और नाम: अली सिकंदर (1890–1960), 20 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवि और उर्दू गजल के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक। [१][२] उनकी अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह "आतिश-ए-गुल" के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।

प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा

जिगर का जन्म 6 अप्रैल 1890 को शायर पिता मौलाना अली 'नज़र' के घर में हुआ। शुरुआती शिक्षा तो उन्होने प्राप्त कर ली लेकिन घोर अस्वस्थता के साथ-साथ कुछ घरेलू परेशानियों के कारण उन्होने आगे की पढ़ाई नहीं की। वैसे भी किताबी पढ़ाई को शायरी के लिए वे नुकसानदेह समझते थे। हालांकि अपने व्यक्तिगत शौक़ के कारण उन्होंने घर पर ही फ़ारसी की पढ़ाई पूरी की। इस समय तक उनका नाम अली सिकंदर था। उनके पुर्वज मौलवी मुहम्मद समीअ़ दिल्ली निवासी थे और शाहजहाँ बादशाह के शिक्षक थे। किसी कारण से बादशाह के कोप-भाजन बन गए। अतः वे दिल्ली छोड़कर मुरादाबाद जा बसे थे। ‘जिगर’ के दादा हाफ़िज़ मुहम्मदनूर ‘नूर’ भी शायर थे। [३]

साहित्यिक जीवन

अली सिकंदर से जिगर मुरादाबादी हो जाने तक की यात्रा उनके लिए सहज और सरल नहीं रही थी। हालांकि शायरी उन्हें विरासत में मिली थी। अंग्रेज़ी से बस वाकिफ़ भर थे। पेट पालने के लिए कभी स्टेशन-स्टेशन चश्मे बेचते, कभी कोई और काम कर लिया करते। ‘जिगर’ साहब का शेर पढ़ने का ढंग कुछ ऐसा था कि उस समय के युवा शायर उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ को अपनाने की कोशिश किया करते थे। इतना ही नहीं उनके जैसा होने के लिए नए शायरों की पौध उनकी ही तरह रंग-रूप करने का जतन करती थी। [४]

‘जिगर’ पहले मिर्ज़ा ‘दाग’ के शिष्य थे। बाद में ‘तसलीम’ के शिष्य हुए। इस युग की शायरी के नमूने ‘दागे़जिगर’ में पाये जाते हैं। असग़र’ की संगत के कारण उनके जीवन में बहुत बडा़ परिवर्तन आया। पहले उनके यहाँ हल्के और आम कलाम की भरमार थी। अब उनके कलाम में गम्भीरता, उच्चता और स्थायित्व आ गया। उनके पढ़ने का ढंग इतना दिलकश और मोहक था कि सैंकड़ो शायर उसकी कॉपी करने का प्रयत्न करते थे। [५]

व्यक्तिगत जीवन

उन्होने आगरा की तवायफ वहीदन से प्रेम विवाह किया और शीघ्र ही बेमेल मिज़ाज के कारण उनका तलाक भी हो गया। उसके बाद उन्होने मैनपुरी की एक गायिका शीरज़न से प्रेम विवाह किया, किन्तु उसका भी हस्र पहले जैसा ही हुआ। एक बार मशहूर गायिका अख़्तरी बाई फैजाबादी (बेगम अख़्तर) के शादी के पैग़ाम को भी वे ठुकरा चुके थे। [६]

निधन

जिगर का निधन गोंडा में 9 सितंबर 1960 को हो गया। उनके निधन के पश्चात गोंडा शहर में एक छोटे से आवासीय कॉलोनी का नाम उनकी स्मृति में जिगरगंज रखा गया, जो उनके घर के काफी करीब था। साथ ही वहाँ के एक इंटर्मेडिएट कॉलेज का नाम भी उनके नाम पर "दि जिगर मेमोरियल इंटर कॉलेज" रखा गया। मज़ार-ए-जिगर मुरदाबादी, तोपखाना, गोंडा में स्थित है। [७]

सन्दर्भ

साँचा:reflist

बाहरी कड़ियाँ

  1. साँचा:cite web
  2. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  3. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  4. http://www.thehindu.com/life-and-style/metroplus/article1514638.ece
  5. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  6. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  7. http://urducouncil.nic.in/gia5.pdfसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]