नून मीम राशिद

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नून मीम राशिद
नजर मुहम्मद राशिद
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व्यवसायउर्दु शायर
राष्ट्रीयतापाकिस्तानी
उच्च शिक्षागवर्नमेंट कॉलेज लाहौर, पाकिस्तान
उल्लेखनीय कार्यsमावरा (शायरी)
जीवनसाथीसाफिया राशिद, शहला राशिद

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नजर मुहम्मद राशिद (उर्दू: نذرِ مُحَمَّد راشِد‎), (अगस्त 1910 – 9 अक्तूबर 1975) नून मीम राशीद (उर्दू: ن۔ م۔ راشد) के नाम से विख्यात आधुनिक उर्दू शायरी के एक प्रभावशाली पाकिस्तानी कवि थे। जिन्होंने उर्दू शायरी को छंद और बहर के पारंपरिक बंधनों से आज़ाद करने का बड़ा काम किया। उन्होने सिर्फ शिल्‍प की दृष्टि से ही उर्दू कविता को आज़ाद नहीं किया बल्कि उर्दू काव्‍य में उन भावों और संवेदनाओं को भी दाखिला दिलाया, जो इससे पहले असंभव माना जाता था।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

01 अगस्‍त, 1910 को पंजाब में गुजरांवाला के कोटभागा गांव के अलीपुर चट्ठा में उनका जन्‍म हुआ। [१] उनका पूरा नाम राजा नज़र मुहम्‍मद जंजुआ था। उनके दादाजी और पिताजी भी उूर्द अदब में खासा दखल रखते थे। उनकी आरंभिक शिक्षा गुजरांवाला में हुई। उनके पिता राजा फ़ैजल इलाही चिश्‍ती ने हाफ़िज़ शिराज़ी, सादी ग़ालिब और मुहम्मद इक़बाल की शायरी से उनका परिचय करवाया। बाद में वे लाहौर आ गए, जहां गवर्नमेंट कॉलेज से इकोनॉमिक्‍स में स्नातकोत्तर करने के बाद उन्‍होंने स्‍वतंत्र रूप से शायरी और चित्रकला की ओर रुख किया। कॉलेज में उन्‍हें छात्रों की पत्रिका ‘रावी’ के उर्दू सेक्‍शन का एडिटर बनाया गया था।[२]

करियर

राशिद ने कुछ वक्‍त तक ताजवर नजीबाबादी की उर्दू पत्रिका ‘शाहकार’ का संपादन किया। एक वक्‍त वे मुल्‍तान के कमिश्‍नर ऑफिस में भी कारकुन रहे। यहीं उन्‍होंने अपनी पहली मुक्‍त छंद की कविता ‘जुर्रते परवाज़’ लिखी। 1939 में वे ऑल इंडिया रेडियो के समाचार संपादक बन गए और आगे चलकर प्रोग्राम डाइरेक्‍टर हुए। कुछ समय के लिए उन्‍होंने सेना में भी काम किया। 1940 में उनका पहला काव्‍य संग्रह ‘मावरा’ प्रकाशित हुआ। विभाजन के बाद वे पाकिस्‍तान रेडियो के रीजनल डाइरेक्‍टर हुए। उसके बाद उन्‍हें संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ में काम करने का अवसर मिला और वे न्‍यूयॉर्क चले गए। उन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ के लिए कई देशों में नौकरी की और 1973 में इंग्लैण्ड में सेवानिवृत हुए और वहीं रह गए।

उर्दू शायरी में योगदान

... जब सारे नौजवान अंग्रेजी सीखने की धुन में लगे हुए थे, उन दिनों राशिद पर चित्रकला का नशा छाया हुआ था। लेखन के शुरुआती दौर में वे उस दौर के मशहूर पाश्‍चात्‍य कवियों में जॉन कीट्स, मैथ्‍यू आर्नोल्‍ड और रॉबर्ट ब्राउनिंग से खासे प्रभावित थे। आरंभ में राशिद ने उनकी तर्ज पर लिखने की कोशिशें भी कीं। लेकिन जल्‍द ही उन्‍हें समझ में आ गया कि पश्चिम की राह पर चलने के बजाय अपनी राह बनानी चाहिए और वो अपने सफर पर अकेले चल निकले। इसीलिए उनकी शायरी में जदीदियत और उर्दू की मिठास का अद्भुत संगम है, जो पाठक को ताज़गी भी देता है और नई तरह से सोचने का सलीका भी।

जि़या मुहिउद्दीन
पाकिस्तानी आलोचक

वे उर्दू साहित्य के पहले कवि थे जिन्‍होंने उस रचनात्‍मकता को मुख्‍य स्‍वर दिया जो किसी भी सर्जनात्‍मक कला का मुख्‍य ध्‍येय होता है। अर्थात उर्दू शायरी को छंद और बहर के पारंपरिक बंधनों से आज़ाद करने का बड़ा काम किया। इस लिहाज से देखा जाए तो नून मीम राशिद और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ अपने युग के दो ऐसे उर्दू शायर हुये हैं जिन्‍होंने उूर्द शायरी को पुरानी सोच से आज़ाद किया।

राशिद की पहली पुस्तक ‘मावरा’ 1940 में प्रकाशित हुई। जिस उर्दू शायरी को इश्‍क़, महबूब, कासिद, विसाल, रकीब, ख़ुदा, सनम वगैरह के बिना मानीखेज नहीं माना जाता था, वहां इन लफ्जों के बिना उन्होने नई और आधुनिक शायरी को संभव किया। यही वजह है कि वे अपने पहले संग्रह के प्रकाशन से पहले ही खासे लोकप्रिय हो गए थे। [३]

ग्रंथ सूची

  • मावरा
  • ईरान में अजनवी
  • ला मुसावी इंसान
  • गुमान का मुमकीन

बॉलीवुड

उनकी कविता "ज़िंदगी से डरती हो" को वर्ष 2010 में बॉलीवुड फिल्म, पीपली लाइव में भारतीय बैंड इंडियन ओशन के द्वारा शामिल किया गया था। [४][५]

निधन

उनका निधन लंदन, इंग्लैण्ड में 9 अक्तूबर 1975 को हुआ। उनके विचार इस कदर क्रांतिकारी थे कि वो अपनी वसीयत में लिख गए थे कि मरने के बाद उन्‍हें दफनाया ना जाए बल्कि उनकी देह का दाह संस्‍कार किया जाए। अनकी इच्‍छा के अनुसार लंदन में उनका अंतिम संस्‍कार किया गया। उनके मरने के बाद पाकिस्तान के गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर के एक सभागार का नाम "नून मीम राशिद हॉल" के कर दिया गया। [२]

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ

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