स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>SM7 द्वारा परिवर्तित १५:०९, १७ नवम्बर २०२१ का अवतरण (सुधार किया गया, कृपया आधार टैग सबसे अंत में श्रेणियों के बाद जोड़ें)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
स्पेक्ट्रमी दूरदर्शी का कार्य-सिद्धान्त

स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी या एकवर्ण सूर्यदर्शक (स्पेक्ट्रोहेलियोस्कोप) एक प्रकार का सौर दूरदर्शी है जो किसी चुने हुए तरंगदैर्घ्य में सूर्य को देखने के लिए उपयोग किया जाता है। इसका विकास १९२४ में जॉर्ज एलरी ने किया था।

परिचय

स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री में जिस सिद्धांत का उपयोग हुआ है उसी के आधार पर हेल ने १९२४ में दृष्टि द्वारा निरीक्षण के लिए एकवर्ण सूर्यदर्शक यंत्र बनाया।

इस यंत्र में सूर्य का प्रकाश एक स्थिरदर्शी (सीलोस्टैट) के द्वारा क्षैतिज दिशा में परावर्तित होकर एक ताल पर गिरता है जो सूर्य का प्रतिबिंब एक छिद्र पर बनाता है। इस छिद्र से होकर बाहर जानेवाला प्रकाश एक अवतल दर्पण पर गिरता है जो उसे एक समांतर प्रकाश-किरण-समूह के रूप में लगभग क्षैतिज दिशा में एक समतल व्यांभग झरझरी (डफ्रैिक्शन ग्रेटिंग) की ओर परावर्तित करता है। यह झरझरी परावर्तनवाली होती हैं और छिद्र के ठीक नीचे लगी रहती है। व्याभंजित (डिफ्रैक्टेड) किरण दूसरे अवतल दर्पण पर पड़ती है, जो पहले दर्पण के नीचे लगा रहता है और इसके कारण किरणें दूसरे छिद्र के धरातल में, जो पहले छिद्र के नीचे होता है, संगमित (फ़ोकस) हो जाती हैं। दोनों छिद्र एक ही पटरी पर आरोपित रहते हैं और एक मोटर द्वारा क्षैतिज समतल में वेग से दोलन करते हैं। घुमाए जानेवाले छिद्रों के स्थान में दो आयताकार त्रिपार्श्वा का भी प्रयोग किया जा सकता है, जो स्थिर छिद्रों के सामने लगे रहते हैं और एक ही अक्ष पर आरोपित रहते हैं, जिसे मोटर द्वारा घुमाया जाता है। पहले त्रिपार्श्व के घूमने से पहले छिद्र पर सौर प्रतिबिंब के विविध भाग पड़ते हैं और फिर परिणामस्वरूप वर्णविभंजन के पश्चात् दूसरे छिद्र पर पड़ते हैं। इस दूसरे त्रिपार्श्व के घूमने के कारण एकवर्णीय प्रकाश में बड़ा सौर प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है जो अक्षुताल द्वारा देखा और जाँचा जा सकता है। टिमटिमाहट को दूर करने के लिए त्रिपार्श्वा को बड़े वेग से घुमाते हैं। दृष्टिस्थिरता के कारण निरीक्षक को सूर्य का एक समूचा भाग एकवर्णीय प्रकाश में दिखलाई पड़ता है। इस यंत्र से सौर वायुमंडल की कोमल रचना दृश्य हो जाती है और इस प्रकार यह यंत्र नित्य परिवर्तित होती रहनेवाली सौर घटनाओं के अध्ययन में बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है।

ऊपर जो कुछ वर्णन किया गया है उससे पता चलता है कि एकवर्णसूर्यचित्रक और एकवर्ण सूर्यदर्शक वास्तव में एकवर्णी हैं, क्योंकि वे वर्णक्रम से एक विकिरण को अलग कर लेते हैं। वर्तमान समय में भिन्न भिन्न प्रकार के ऐसे वर्णावरोधक बनाकर भी यह प्रश्न सुलझाया गया है जो वर्णक्रम से बहुत ही सूक्ष्म पट्ट (बैंड) बाहर आने देते हैं। पट्ट की सूक्ष्मता ०.५ ऐंगस्ट्रम तक हो सकती है। इस प्रकार के वर्णविरोधकों का निर्माण व्यतिकरण (इंटरफ़ियरेंस) और ध्रवण (पोलैराइज़ेशन) के भौतिक सिद्धांतों पर आधृत है। जब सूर्य के लिए इन वर्णाविरोधकों का प्रयोग किया जाता है तो ज्योतिविद् सूर्य के समूचे भाग या अंश का फोटो एकवर्णीय प्रकाश में ले सकते हैं। समूचा फोटोग्राफ़ एक सेकेंड के अल्प खंड में ही उतारा जा सकता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:asbox