स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री
स्पेक्ट्रम सूर्यचित्री या एकवर्ण सूर्यचित्रक (स्पेक्ट्रोहीलियोग्राफ़) वह यंत्र है जिसके द्वारा सूर्य के समूचे भाग या किसी एक भाग की विशेषताओं का चित्रांकन किसी भी तरंगदैर्घ्य के प्रकाश द्वारा किया जा सकता है। इसका उपयोग खगोलिकी में किया जाता है। यह वास्तव में एक रश्मिचित्रांकक (स्पेक्ट्रोग्राफ़) है जो एक विशेष तरंगदैर्घ्य के विकिरण को (उदाहरणत: एक फ्राउनहोफ़र रेखा को) अलग कर लेता है और इस प्रकार सूर्य के समूचे भाग की जाँच इस रेखा के प्रकाश में करने की क्षमता प्रदान करता है।
एक साधारण स्पेक्ट्रोग्राफ़ की कल्पना कीजिए जिसके अंतिम भाग में, जहाँ वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) का फोटोग्राफ़ अंकित किया जाता है, एक दूसरा सँकरा छिद्र लगा हो। इस छिद्र के द्वारा कोई विशिष्ट वर्णक्रम रेखा (या उसका एक भाग) अलग हो सकता है। यह छिद्र इस प्रकार सारे विकिरण का वही भाग बाहर आने देता है जो एक विशेष तरंगदैर्घ्य का है और उस छिद्र पर पड़ रहा है। यदि फोटो खींचनेवाली पट्टिका इस दूसरे छिद्र के साथ सटाकर रख दी जाए तो इस छिद्र से होकर बाहर आनेवाले विकिरण का फोटो लिया जा सकता है। अब यदि सारा यंत्र धीरे धीरे बराबर, किंतु नियंत्रित गति से, इस प्रकार चलाया जाए कि यंत्र का अक्ष सूर्य के समूचे प्रतिबिंब को पार कर सके और छिद्र की सभी अनुगामी स्थितियाँ एक दूसरे के समांतर रह सकें, तो पट्टिका पर एक पूरा प्रतिबिंब बनेगा जो एकवर्णीय कहा जा सकता है। यदि प्रथम छिद्र सूर्यप्रतिबिंब के व्यास से बड़ा हो तो फोटो की पट्टिका पर बना प्रतिबिंब वास्तव में सूर्य के समूचे भाग में चित्र होगा। यह प्रथम छिद्र द्वारा लिए गए, रेखा के समान सँकरे, अनेक चित्रों का एकीकरण होगा।
इतिहास
जैन्सेन ने १८६९ ई. में स्पेक्ट्रम सूर्यचित्रक के बारे में मौलिक विचार प्रकट किए, किंतु हेल ने हारवर्ड में काम करते हुए १८९१ ई. में इसे पहली बार बनाया। म्यूडान में डेलैंड्र भी इस समय इसी प्रश्न को लेकर व्यस्त था। उसका यंत्र वास्तव में स्पेक्ट्रम सूर्यचित्रकों में अग्रणी है।
स्पेक्ट्रम सूर्यचित्रक कई प्रकार के होते हैं। ये सभी सौर प्रतिबिंब के विविध भागों को बारी बारी से देखने अर्थात् अण्ववलोकन की विधियों में एक दूसरे से भिन्न हैं। इनमें जो साधारणतया प्रचलित हैं उनका वर्णन नीचे किया जा रहा है-
१. रश्मि चित्रांकक एक आवर्तक दूरदर्शी (रिफ्रैक्टर) से संलग्न किया जाता है। यह दूरदर्शी विषुवतीय रूप से आरोपित रहता है, परंतु ऐसी गति से घुमाया जाता है जो सौर दैनिक गति से भिन्न है; या क्रांति (डेक्लिनेशन) में घुमाया जाता है, जब कि फोटो की पट्टिका को द्वितीय छिद्र के आर पार चलाया जाता है।
२. स्थिर रश्मिचित्रांकक का प्रयोग चलदर्पण (सीलोस्टैट या साइडरोस्टैट) के साथ किया जाता है और दूरदर्शी के वस्तुताल (ऑब्जेक्टिव) को अपने धरातल में चलाया जाता है, जब कि फोटो की पट्टिका अलग से रश्मिचित्रांकक के आर पार चलाई जाती हैं।
३. वस्तुताल, फोटो प्लेट और रश्मिचित्रांकक के मुख्य भाग स्थिर रहते हैं, किंतु छिद्रों को प्रकाशकिरण के आर पार अपने समांतर एक बगल चलाय जाता है।
४. समूचा रश्मिचित्रांकक चलता है, जब कि दूरदर्शी का वस्तुताल और फोटो प्लेट स्थिर रहते हैं। इस प्रकार का एक यंत्र ज्योतिभौतिकी वेधशाला, कोदईकनाल में है।
अच्छे एकवर्ण सूर्यचित्रकों के लिए स्निग्ध और समानवेग अणुअवलोकी गति की नितांत आवश्यकता है। इसके लिए कुछ यंत्रों में बिजली के मोटर का प्रयोग किया जाता है। कुछ अन्य में इसी काम के लिए गिरते भार का प्रयोग किया जाता है। यंत्र के गुरुत्वजन्य त्वरण को मिटाने के लिए उसे एक तेलभरी पिचकारी के पिस्टन से संयुक्त कर दिया जाता है और बहुत ही गाढ़े तेल का प्रयोग किया जाता है।
एकवर्ण सूर्यचित्रक के लिए त्रिपार्श्व एवं चौकोर ग्रेटिंग दोनों का ही प्रयोग वर्णविभंजन के लिए किया जाता है। एकवर्ण सूर्यचित्र सूर्यवर्णक्रम की कई फ़ाउनहोफ़र रेखाओं से सफलता के साथ लिए जा सकते हैं, किंतु साधारणतया आयनीकृत कैल्सियम की के (k) रेखा और हाइड्रोजन की एच-ऐल्फ़ा रेखा ही प्रयुक्त होती हैं। ये रेखाएँ फोटो निरीक्षण के लिए आदर्श हैं, क्योंकि ये बहुत तीव्र हैं और इनके अगल बगल चौड़े अँधेरे पट्ट (बैंड) होते हैं जो बिखर कर आए प्रकाश को बहुत कम कर देते हैं।
जो सूर्यचित्र आयनीकृत कैल्सियम के प्रकाश में लिए जाते हैं, वे हाइड्रोजन के लाल प्रकाश में लिए गए चित्रों से सर्वथा भिन्न होते हैं। उनमें कैल्सियम वाष्प की चमकीली धज्जियाँ दिखाई पड़ती हैं, यही इनकी बड़ी विशेषता है। इसके विपरीत, हाइड्रोजन में लिए गए चित्र सौर वायुमंडल का सूक्ष्म ब्योरा उपस्थित करते हैं। इनमें बहुत सी सँकरी लंबी धज्जियाँ दिखाई पड़ती हैं जो मिलकर भ्रमिमय रचना करती हुई जान पड़ती हैं।
इन्हें भी देखें
- स्पेक्ट्रमी सूर्यदर्शी (स्पेक्ट्रोहेलियोस्कोप)