नूर इनायत ख़ान

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नूर इनायत ख़ान
उपनाम मेडेलिन (1943, जासूसी के दौरान नर्स के रूप में)
जन्म साँचा:br separated entries
देहांत साँचा:br separated entries
निष्ठा यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस
सेवा/शाखा महिला सहायक वायु सेना (Women's Auxiliary Air Force,डब्लू॰ ए॰ ए॰ एफ॰[१]),
विशेष अभियान के कार्यकारी (Special Operations Executive,एस॰ ओ॰ ई॰[२])
प्राथमिक चिकित्सा नर्सिंग क्षेत्र (First Aid Nursing Yeomanry[३]
सेवा वर्ष 1940-1944 (डब्लू॰ ए॰ ए॰ एफ॰)
1943–1944 (एस॰ ओ॰ ई॰)
उपाधि सहायक अनुभाग अधिकारी (Women's Auxiliary Air Force, डब्लू॰ ए॰ ए॰ एफ॰)
प्रतीक चिन्ह [Ensign] (First Aid Nursing Yeomanry, एफ॰ ए॰ एन॰ वाई॰)
दस्ता सिनेमा
सम्मान जॉर्ज क्रॉस, क्रोक्स डी गेयर, मेंसंड इन डिस्पैचिज
हिन्दी उच्चारण:नूर इनायत ख़ान

नूर-उन-निसा इनायत ख़ान (प्रचलित: नूर इनायत ख़ान; उर्दू: نور عنایت خان, अँग्रेजी: Noor Inayat Khan; 1 जनवरी 1914 – 13 सितम्बर 1944) भारतीय मूल की ब्रिटिश गुप्तचर थीं, जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र देशों के लिए जासूसी की। ब्रिटेन के स्पेशल ऑपरेशंस एक्जीक्यूटिव के रूप में प्रशिक्षित नूर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांस के नाज़ी अधिकार क्षेत्र में जाने वाली पहली महिला वायरलेस ऑपरेटर थीं। जर्मनी द्वारा गिरफ़्तार कर यातनायें दिए जाने और गोली मारकर उनकी हत्या किए जाने से पहले द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वे फ्रांस में एक गुप्त अभियान के अंतर्गत नर्स का काम करती थीं। फ्रांस में उनके इस कार्यकाल तथा उसके बाद आगामी 10 महीनों तक उन्हें यातनायें दी गईं और पूछताछ की गयी, किन्तु पूछताछ करने वाली नाज़ी जर्मनी की ख़ुफिया पुलिस गेस्टापो द्वारा उनसे कोई राज़ नहीं उगलवाया जा सका। उनके बलिदान और साहस की गाथा युनाइटेड किंगडम और फ्रांस में प्रचलित है। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें युनाइटेड किंगडम एवं अन्य राष्ट्रमंडल देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मान जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया गया। उनकी स्मृति में लंदन के गॉर्डन स्क्वेयर में स्मारक बनाया गया है, जो इंग्लैण्ड में किसी मुसलमान को समर्पित और किसी एशियाई महिला के सम्मान में इस तरह का पहला स्मारक है।

प्रारम्भिक जीवन

डकाऊ मेमोरियल हॉल में नूर की स्मारक पट्टिका

नूर इनायत का जन्म 1 जनवरी 1914 को मॉस्को, रूस में हुआ था। उनका पूरा नाम नूर-उन-निसा इनायत ख़ान था। वे चार भाई-बहन थे, भाई विलायत का जन्म 1916, हिदायत का जन्म 1917 और बहन ख़ैर-उन-निसा का जन्म 1919 में हुआ था।[४] उनके पिता भारतीय और माँ अमेरिकी थीं। उनके पिता हज़रत इनायत ख़ान 18वीं सदी में मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान के पड़पोते थे, जिन्होंने भारत के सूफ़ीवाद को पश्चिमी देशों तक पहुँचाया था। वे एक धार्मिक शिक्षक थे, जो परिवार के साथ पहले लंदन और फिर पेरिस में बस गए थे।[५][४][६] नूर की रूचि भी उनके पिता के समान पश्चिमी देशों में अपनी कला को आगे बढ़ाने की थी। नूर संगीतकार भी थीं और उन्हें वीणा बजाने का शौक़ था। वहाँ उन्होंने बच्चों के लिए कहानियाँ भी लिखी और जातक कथाओं पर उनकी एक किताब भी छपी थी।[७]

प्रथम विश्वयुद्ध के तुरन्त बाद उनका परिवार मॉस्को से लंदन, इंग्लैण्ड आ गया था, जहाँ नूर का बचपन बीता।[५][४] वहाँ नॉटिंग हिल में स्थित एक नर्सरी स्कूल में दाख़िले के साथ उनकी शिक्षा आरम्भ हुई। 1920 में वे फ्रांस चली गईं, जहाँ वे पेरिस के निकट सुरेसनेस के एक घर में अपने परिवार के साथ रहने लगीं जो उन्हें सूफ़ी आंदोलन के एक अनुयायी के द्वारा उपहार में मिला था।[५] 1927 में पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर माँ और छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी आ गई।[४] स्वभाव से शांत, शर्मीली और संवेदनशील नूर संगीत को जीविका के रूप में इस्तेमाल करने लगी और पियानो की धुन पर सूफ़ी संगीत का प्रचार-प्रसार करने लगी। कवितायें और बच्चों की कहानियाँ लिखकर अपने कैरियर को सँवारने लगीं; साथ ही फ्रेंच रेडियो में नियमित योगदान भी देने लगीं।[५] 1939 में बौद्धों की जातक कथाओं से प्रभावित होकर उन्होंने एक पुस्तक ट्वेंटी जातका टेल्स[क १] नाम से लंदन से प्रकाशित की।[८]द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ने के बाद, फ्रांस और जर्मनी की लड़ाई के दौरान वे 22 जून 1940 को अपने परिवार के साथ समुद्री मार्ग से ब्रिटेन के फ़ॉलमाउथ, कॉर्नवाल लौट आयीं।[५][४]

महिला सहकर्मी, वायु सेना

अपने पिता की शांतिवाद की शिक्षा से प्रभावित नूर को नाज़ियों के अत्याचार से गहरा सदमा लगा।[५] जब फ्रांस पर नाज़ी जर्मनी ने हमला किया तो उनके दिमाग़ में उसके ख़िलाफ़ वैचारिक उबाल आ गया। उन्होंने अपने भाई विलायत के साथ मिलकर नाज़ी अत्याचार को कुचलने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा था कि- साँचा:quote 19 नवम्बर 1940 को वे वायु सेना में द्वितीय श्रेणी एयरक्राफ्ट अधिकारी के रूप में शामिल हुईं, जहाँ उन्हें "वायरलेस ऑपरेटर" के रूप में प्रशिक्षण हेतु भेजा गया। जून 1941 में उन्होंने आरएएफ बॉम्बर कमान के बॉम्बर प्रशिक्षण विद्यालय में आयोग के समक्ष "सशस्त्र बल अधिकारी" के लिए आवेदन किया, जहाँ उन्हें सहायक अनुभाग अधिकारी के रूप में पदोन्नति प्राप्त हुई।[५][४]वे अपने तीन उपनामों क्रमश:"नोरा बेकर"[९]"मेडेलीन"[५] और 'जीन-मरी रेनिया'[१०] के रूप में भी जानी जाती हैं।

विशेष अभियान के कार्यकारी एफ़ सेक्शन एजेंट के रूप में जासूसी

नूर की पहचान का जिम्मेदार डकाऊ का पूर्व कैदी माइकल पेल्लिस।
"भारत में अंग्रेज़ी साम्राज्य से लोहा लेने वाले हैदर अली और टीपू सुल्तान के ख़ानदान की एक महिला ने बहादुरी के लिए ब्रिटेन में सम्मान हासिल किया।”
महबूब ख़ान, बीबीसी संवाददाता[७]

बाद में नूर को स्पेशल ऑपरेशंस कार्यकारी के रूप में एफ़ (फ्रांस) की सेक्शन में जुड़ने हेतु भर्ती किया गया और फरवरी 1943 में उन्हें वायु सेना मन्त्रालय में तैनात किया गया।[११] उनके वरिष्ठों में गुप्त युद्ध के लिए उनकी उपयुक्तता पर मिश्रित राय बनी और यह महसूस किया गया कि अभी उनका प्रशिक्षण अधूरा है, किन्तु फ़्रान्सीसी भाषा की अच्छी जानकारी और बोलने की क्षमता ने स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप का ध्यान उन्होंने अपनी ओर आकर्षित कर लिया, फलत: उन्हें वायरलेस ऑपरेशन युग्मित अनुभवी एजेंटों की श्रेणी में एक वांछनीय उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत किया गया। फिर वह बतौर जासूस काम करने के लिए तैयार की गईं और 16-17 जून 1943 में उन्हें जासूसी के लिए रेडियो ऑपरेटर बनाकर फ्रांस भेज दिया गया। उनका कोड नाम 'मेडेलिन' रखा गया।[५] वे भेष बदलकर अलग-अलग जगह से संदेश भेजती रहीं।

उन्होंने दो अन्य महिलाओं क्रमश: डायना राउडेन (पादरी कोड नाम) और सेसीली लेफ़ोर्ट (ऐलिस शिक्षक/कोड नाम) के साथ फ्रांस की यात्रा की, जहाँ वे फ्रांसिस सुततील (प्रोस्पर कोड नाम) के नेतृत्व में एक नर्स के रूप में चिकित्सकीय नेटवर्क में शामिल हो गईं। डेढ़ महीने बाद ही चिकित्सकीय नेटवर्क से जुड़े रेडियो ऑपरेटरों को जर्मनी की सुरक्षा सेवा (एस डी) के द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। वे द्वितीय विश्वयुद्ध में पहली एशियन सीक्रेट एजेंट थी। एक कामरेड की गर्लफ्रेंड ने जलन के मारे उनकी मुखबिरी की और वे पकड़ी गईं।[५][४]

सीक्रेट एजेंट के रूप में करियर

ब्रिटिश वायु सेना द्वारा इंग्लैंड में नूर की स्मृति में संस्थापित शिलालेख

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नूर विंस्टन चर्चिल के विश्वसनीय लोगों में से एक थीं। उन्हें सीक्रेट एजेंट बनाकर नाज़ियों के क़ब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। नूर ने पेरिस में तीन महीने से ज़्यादा वक़्त तक सफलतापूर्वक अपना ख़ुफिया नेटवर्क चलाया और नाज़ियों की जानकारी ब्रिटेन तक पहुँचाई। पेरिस में 13 अक्टूबर 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया। इस दौरान ख़तरनाक क़ैदी के रूप में उनके साथ व्यवहार किया जाता था। हालांकि इस दौरान उन्होंने दो बार जेल से भागने की कोशिश की, लेकिन विफल रहीं।[४]

डकाऊ स्थित नूर का प्रतिरोध स्मारक

गेस्टापो के पूर्व अधिकारी हैंस किफ़र ने उनसे गुप्त सूचनाएँ प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 25 नवम्बर 1943 को इनायत एसओई एजेंट जॉन रेनशॉ और लियॉन के साथ सिचरहिट्सडिन्ट्स (एसडी), पेरिस के हेडक्वार्टर से भाग निकलीं, लेकिन वे ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। 27 नवम्बर 1943 को नूर को पेरिस से जर्मनी ले जाया गया। नवम्बर 1943 में उन्हें जर्मनी के फ़ॉर्जेम जेल भेजा गया। इस दौरान भी अधिकारियों ने उनसे ख़ूब पूछताछ की, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया।[४][१२]

उन्हें दस महीने तक घोर यातनायें दी गईं, फिर भी उन्होंने किसी भी प्रकार की सूचना देने से मना कर दिया।[५][४]

नूर की जब गोली मारकर हत्या की गई, तो उनके होंठों पर शब्द था -"स्वतन्त्रता"।[घ][५][४] अत्यधिक प्रयास के बावज़ूद जर्मन सैनिक उनका असली नाम भी नहीं जान पाये।[१३][१४][१५]

लंदन में नूर की तांबे की प्रतिमा, जिसका अनावरण दिनांक 8 नवम्बर 2012 को हुआ

प्रशंसक

नूर एक राष्ट्रवादी महिला थीं और गाँधी तथा नेहरू की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं।[१६]

मृत्यु

11 सिंतबर 1944 को उन्हें और उनके तीन साथियों को जर्मनी के डकाऊ प्रताड़ना शिविर ले जाया गया, जहाँ 13 सितम्बर 1944 की सुबह चारों के सिर पर गोली मारने का आदेश सुनाया गया। यद्यपि सबसे पहले नूर को छोडकर उनके तीनों साथियों के सिर पर गोली मार कर हत्या की गई। तत्पश्चात नूर को डराया गया कि वे जिस सूचना को इकट्ठा करने के लिए ब्रिटेन से आई थीं, वे उसे बता दें। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया, अन्तत: उनके भी सिर पर गोली मारकर हत्या कर दी गई। उसके बाद सभी को शवदाहगृह में दफना दिया गया। मृत्यु के समय उनकी उम्र 30 वर्ष थी।[७][१७][१८][१९]

स्मृति शेष

ब्रिटेन का सर्वोच्च जॉर्ज क्रॉस सम्मान
फ्रांस का सर्वोच्च क्रोक्स डी गेयर सम्मान

डाक टिकट

ब्रिटेन की डाक सेवा, रॉयल मेल के द्वारा नूर की स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया है। ‘उल्लेखनीय लोगों’ की श्रृंखला में नूर पर नौ अन्य लोगों के साथ डाक टिकट जारी किया गया जिसमें अभिनेता सर एलेक गिनीज़ और कवि डिलन थॉमस शामिल हैं।[२०]

स्मारक

लंदन में उनकी तांबे की प्रतिमा लगाई गई है। यह पहला मौका है जब ब्रिटेन में किसी मुस्लिम या फिर एशियाई महिला की प्रतिमा लगी है। गॉर्डन स्क्वेयर गार्डन्स में उस मक़ान के नज़दीक प्रतिमा स्थापित की गई है जहां वह बचपन में रहा करती थीं। प्रतिमा का अनावरण दिनांक 8 नवम्बर 2012 को महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की बेटी राजकुमारी एनी ने किया।[२१][२२][१६]

फिल्म "धोबी घाट" की निर्माता के तौर पर पहली फिल्म करने वाली, जाने-माने हिन्दी फिल्म अभिनेता आमिर खान की पत्नी, किरण राव ने इस फिल्म की स्क्रीनिंग से मिलने वाली राशि को नूर इनायत ख़ान के लंदन स्मारक को दान किया था। उल्लेखनीय है कि नूर की स्मृति में बनने वाला लंदन का गार्डन स्क्वायर ब्रिटेन में किसी भारतीय महिला और किसी मुस्लिम महिला की स्मृति में बनने वाला पहला स्मारक है।[२३]

इस प्रतिमा को लंदन के कलाकार न्यूमैन ने बनाया है।[२४]

सम्मान

  • ब्रिटेन द्वारा इस भारतीय महिला सैनिक को मरणोपरांत 1949 में जॉर्ज क्रॉस से नवाज़ा गया।[२५][२६]

विमर्श

नूर इनायत ख़ान: एक नज़र में

नागरिक पहचान

  • नागरिक नाम: नूर-उन-निशा इनायत ख़ान
  • एस॰ ई॰ ओ॰ एजेंट के रूप में, सेक्शन एफ:
    • उपनाम : « मेडेलीन »
    • आपरेशनल कोड नाम : नर्स
    • कवर पहचान : जीनी मारी रेगनीर, नानी
    • छद्म नाम : नोरा बेकर

पूर्वज

  • जुमा शाह, पंद्रहवीं सदी के सूफ़ी संत।
  • टीपू सुल्तान(1749-1799), प्राचीन मैसूर राज्य के शासक।

पारिवार के सदस्य

  • पिता: पीर-ओ-मुरशिद हज़रत इनायत ख़ान, (प्रसिद्ध भारतीय सूफ़ी फ़क़ीर, जिन्होने भारत के सूफ़ीवाद को पश्चिमी देशों तक पहुँचाया)
  • माँ: ओरा रे बेकर (अमेरिकी महिला, जिन्होने 1912 में मुस्लिम घूंघट अपनाया)
  • भाई:
विलायत इनायत ख़ान (1916-2004)
हिदायत इनायत ख़ान (1917)
  • बहन: खैर-उन-निशा इनायत ख़ान (1919), उपनाम: क्लेयर रे हार्पर, जो अँग्रेजी के प्रसिद्ध उपन्यासकर डेविड हार्पर की माँ हैं।

सैन्य करियर

  • नवम्बर 1940, महिला सहायक वायु सेना ; 424598 एसीडब्ल्यू
  • 8 फ़रवरी 1943, एस॰ ई॰ ओ॰, सेक्शन एफ; ग्रेड: सेक्शन ऑफिसर; रेजिमेंट: 9901
स्त्रोत: श्राबणी बासु की पुस्तक "स्पाई प्रिंसेस यानी जासूस राजकुमारी- नूर इनायत ख़ान" से

ब्रितानी साम्राज्य की विरोधी होने के बावज़ूद नूर ने ब्रिटेन के लिए जासूसी की और एक नई मिसाल क़ायम भी की, लेकिन क्या उन्हें इतिहास में वो मुक़ाम हासिल है जिसकी वो हक़दार थीं? दिलचस्प सवाल ये है कि सूफ़ी संगीत प्रेमी और बेहद ख़ूबसूरत महिला नूर द्वितीय विश्व युद्ध के समय में जासूस कैसे बन गईं? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब लंदन में रहने वाली भारतीय मूल की एक पत्रकार श्राबणी बासु ने अपनी किताब "स्पाई प्रिंसेस यानी जासूस राजकुमारी- नूर इनायत ख़ान" के ज़रिए तलाश करने की कोशिश की है।[२९]नूर की आत्मकथा ‘स्पाई प्रिंसेस’ लिखने वाली श्राबणी बासु को ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री डेविड कैमरुन और दूसरे सांसदों की सहायता मिली। शामी चक्रवर्ती, गुरिंदर चड्ढा, अनुष्का शंकर और नीना वाडिया जैसी हस्तियों ने भी उनका साथ दिया।[१७]

"जब मैंने उनकी कहानी पर शोध शुरू किया, मुझे पता चला कि वह सूफ़ी थीं और अहिंसा और धार्मिक समन्वय में विश्वास करती थीं।”
श्राबणी बासु, लेखिका, 'नूर स्मारक ट्रस्ट' की संस्थापक'

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आयाम

भारतीय फिल्मकार तबरेज़ नूरानी व ज़फर हई, नूर की कहानी को बड़े पर्दे पर पेश करने जा रहे हैं। हई व नूरानी ने लंदन में रहने वाली भारतीय व पत्रकार से लेखिका बनी श्राबणी बासु की किताब 'स्पाई प्रिंसेस यानी जासूस राजकुमारी- नूर इनायत ख़ान' पर फिल्म बनाने के अधिकार खरीद लिए हैं। नूरानी जहाँ लॉस ऐन्जेलिस में रहते हैं, वहीं हई मुम्बई में रहते हैं।[३०] हालांकि इसके पूर्व भारत के जाने-माने फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल भी इस भारतीय महिला जासूस पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की फिल्म बनाने की घोषणा कर चुके हैं।[३१]

प्रकाशित कृति/अनुवाद

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सन्दर्भ-ग्रंथ

  • "विट्वीन सिल्क एंड साइनाइड: ए कोडमेकर्स स्टोरी 1941-1945" (अँग्रेजी), लियोपोल्ड शमूएल मार्क्स (1998), हार्पर कॉलिन्स, 2000. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰0- 684-86780
  • "स्पाई प्रिंसेस : द लाईफ ऑफ नूर इनायत ख़ान"(जीवनी, अँग्रेजी, श्राबणी बासु, ओमेगा प्रकाशन, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰10: 0930872789/आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰13: 978-0930872786, सूट्टोंन पब्लिशिंग, 2006, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰0-7509-3965-6 (आत्मकथा)
  • श्राबणी बासु[३५]
  • "नूर-उन-निशा इनायत ख़ान: मेडलीन" (जीवनी, अँग्रेजी), जीन ओवर्टन फुलर (1988), प्रकाशक: ईस्ट-वेस्ट पब्लिकेशन, लंदन।
  • "दि वुमेन हू लिव्ड फॉर डेंजर: दि वुमेन एजेंट्स ऑफ एस ओ ई इन दि सेकेंड वर्ल्ड वार" (अँग्रेजी), मार्कस बिन्नी (2003), प्रकाशक: क्रोनेट बूक।
  • "ए लाइफ इन सेक्रेट्स: दि स्टोरी ऑफ वेरा अटकींस एंड दि लॉस्ट एजेंट्स ऑफ एस ओ ई" (अँग्रेजी), साराह हेल्म (2005), प्रकाशक:अबैकस,आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰0316724971
  • "ऑफ एस ओ ई इन फ्रांस" (आधिकारिक इतिहास, अँग्रेजी), एम. आर.डी. फुट, प्रकाशक: फ्रैंक कास प्रकाशन (2004),(पहले एच.एम.एस.ओ.लंदन से 1966 में प्रकाशित)।साँचा:hide in printसाँचा:only in print
  • "दि टाइगर क्लाव" (जीवन पर आधारित एक उपन्यास, अँग्रेजी), शौना सिंह बाल्डविन, नोफ कनाडा, (2004), 592 पृष्ठ, पेपर बैक: विंटेज कनाडा (26 जुलाई 2005), आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-676-97621-2
  • "ला प्रिंसेज औबली" (नूर के जीवन पर आधारित उपन्यास, फ्रेंच), आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0434010634, लौरेंत जोफ्रीन (2004)।
  • "ए मैन कौल्ड इट्रेप्ड" (अँग्रेजी, विलियम स्टीवेंसन, प्रकाशक: ल्योंस प्रेस, 1976, भाग द्वितीय, अध्याय 27, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰0151567956

उद्धरण

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टीका-टिप्पणी

   क.    ^ सभी कहानियाँ 'जातकमाला' (संस्कृत) से आयेरे कुरान द्वारा चयनित और अनुवादित है, पाली भाषा से नूर इनायत ख़ान द्वारा इसे पुन: अनूदित और विलविक ली मायर द्वारा चित्रित किया गया है।

   ख.    ^ (अनूदित: लिंक, इव; चित्रित: विलविक ली मायर, हेनरीट्ट), आईएसटी वेस्ट पब्लिकेशन, दि हग, प्रकाशन वर्ष: 1978, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-90-70104-30-6

   ग.    ^ (अनूदित: फुशलीन, पूरन, चित्रित: मट्टीओली, स्टेफेनिया प्रकाशन: पेरतामा परियोजना) आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-907643-11-2

   घ.   ^ जब उन्हे गोली मारी गई थी, तो उस समय उसके होठों से जो अन्तिम शब्द फूटे थे वह फ्रांसीसी भाषा में "लिबरेते" था, जिसका हिन्दी में अर्थ है "स्वतन्त्रता"।

सन्दर्भ

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बाहरी कड़ियाँ



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  14. साँचा:cite web
  15. London Gazette: (Supplement) no. 38578, p. 1703, 5 अप्रैल 1949. Retrieved 29 मार्च 2014.
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  25. "George Cross, George Medal and the Medal of the Order of the British Empire (military): Air Ministry recommendation to the Selection Committee and correspondence (Assistant Section Officer Nora Inayat-Khan, Women's Auxiliary Air Force)", T 351/47, National Archives, Kew.
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  28. डकर्स, पीटर (2010) "ब्रिटिश गैलेन्ट्री अवार्ड 1855 – 2000." ऑक्सफोर्ड: शायर पब्लिकेशन. पृष्ठ: 54. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7478-0516-8.
  29. साँचा:cite book
  30. साँचा:cite webसाँचा:category handlerसाँचा:main otherसाँचा:main other[dead link]
  31. साँचा:cite web
  32. पुस्तक, मूल अँग्रेजी नाम: Twenty Jātaka Tales, प्रकाशक: जी॰ जी॰ हर्राप लंदन, प्रकाशन वर्ष : 1939, आईएसबीएन संख्या 978-0892813230
  33. पुस्तक, मूल स्वाहिली नाम का अँग्रेजी अनुवाद:Twenty Jātaka tale, प्रकाशक: ईस्ट-वेस्ट पब्लिकेशन फंड दि हग, प्रकाशन वर्ष: 1978 आईएसबीएन संख्या: 978-90-70104-30-6
  34. पुस्तक, मूल जर्मन नाम का अँग्रेजी अनुवाद:Twenty Jātaka stories, प्रकाशन: पेतमा प्रोजेक्ट ज्यूरिख, प्रकाशन: 6 अक्टूबर 2009, आईएसबीएन संख्या: 978-3-907643-11-2
  35. साँचा:cite web


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