कीनियाई भारतीय
विशेष निवासक्षेत्र | |
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नैरोबी, मोम्बासा | |
भाषाएँ | |
गुजराती, पंजाबी, हिन्दी | |
धर्म | |
हिन्दू · इस्लाम · सिख · ईसाई |
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कीनियाई भारतीय कीनिया के वो नागरिक हैं जिन के पूर्वज दक्षिण एशियाई राष्ट्र भारत के मूल निवासी थे। शुरुआत में अधिकतर भारतीयों को गिरमिटिया मजदूरों के तौर पर कीनिया लाया गया था। वर्तमान समय में हजारों कीनियाई अपनी पैतृक जड़ें भारत से जुड़ी पाते हैं। ये मुख्यतः देश की राजधानी नैरोबी और दूसरे सबसे बड़े शहर मोम्बासा के प्रमुख शहरी क्षेत्रों में और कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। 1963 में देश को ब्रटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई, परन्तु इसके पश्चात भारतीयों को वहाँ नस्लीय उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले भारतीयों की कानूनी स्थिति में समय के साथ-साथ सुधार आया है।
इतिहास
भारतीयों ने आधुनिक कीनिया में प्रव्रजन 1896 से 1901 के बीच युगांडा रेलवे के निर्माण के साथ आरम्भ किया, जब लगभग 32,000 गिरमिटिया मजदूरों को ब्रिटिश भारत से इस परियोजना के लिए विशेष रूप से पूर्वी अफ़्रीका लाया गया था। यह रेलवे अभियांत्रिकी की उल्लेखनीय उपलब्धि साबित हुई, परन्तु इसकी वजह से 2,500 या हर एक मील ट्रैक बिछाने में चार मजदूरों की मृत्यु हुई।[१]
रेलवे के निर्माण के पश्चात इनमें से कई मजदूरों ने यहीं बसने का निर्णय लिया और अपने परिवारों को भारत से तब के पूर्वी अफ़्रीकी संरक्षित राज्य में ले आए। ये शुरुआती आबादकार मुख्य रूप से भारत के गुजरात और पंजाब राज्यों के मूल निवासी थे। रेलवे के निर्माण के कारण राज्य के अंदरुनी क्षेत्र भी व्यापार के लिए उपलब्ध हो गए और कई तटीय शहरों को छोड़ कर उधर जाने लगे। अधिकतर ने नैरोबी को अपना घर बनाया जो 1905 से ब्रिटिश संरक्षित राज्य की राजधानी थी। काले अफ़्रीकी मूल निवासियों की तुलना में भारतीयों को नैरोबी में रहने की कानूनी तौर पर अनुमति थी, जो कि उस समय तेजी से बढ़ता सफ़ेद आबादकारों का नगर था।[२]
1920 के दशक तक कीनियाई भारतीयों की आबादी में काफ़ी इज़ाफ़ा हो चुका था और उन्होंने कीनिया उपनिवेश के विकासशील राजनीतिक जीवन में अपनी भूमिका की माँग की। 1920 में भारतीयों ने अंग्रेज़ो द्वारा विधान परिषद में प्रस्तावित दो सीटों को लेने से इनकार कर दिया क्योंकि यह उपनिवेश में उनकी कुल आबादी के अनुपात से कम थीं। 1927 तक यूरोपीय और भारतीय प्रतिनिधियों के बीच तनाव बना रहा और इसका अंत तब हुआ जब भारतीयों के लिए परिषद में यूरोपीय लोगों की ग्यारह सीटों की तुलना में पाँच सीटें आरक्षित की गईं। दोनों ही दलों ने अफ़्रीकी प्रतिनिधित्व पर प्रतिबंध रखा।[३]
स्वतंत्रता
कीनिया को केन्या (1963-1964) केन्या (1963-1964)1963 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई और इसके पश्चात अफ़्रीकी और भारतीयों के सम्बन्धों में अस्थिरता बढ़ती चली गई। भारतीयों और यूरोपीय लोगों को सरकार द्वारा दो वर्ष का समय दिया गया जिसमें उन से कीनियाई नागरिकता स्वीकार करने और ब्रिटिश पासपोर्ट त्यागने के लिए कहा गया। उस समय कीनिया में उपस्थिति 180,000 भारतीयों and 42,000 यूरोपीयों में से समय सीमा तक केवल 20,000 ही नागरिकता के लिए आवेदन कर पाए। परिणामस्वरूप अफ़्रीकी नागरिकों के मन में भारतीयों और यूरोपीयों के प्रति द्वेष और अविश्वास बढ़ने लगा और जिन्होंने कीनियाई नागरिकता स्वीकार नहीं की उन्हें देशद्रोही माना जाने लगा।[४][५]
जिन्होंने कीनियाई नागरिकता ली उन्हें उस समय शासन कर रही सरकार द्वारा भेदभाव का शिकार होना पड़ा। सिविल सेवाओं में भारतीयों को बर्खास्त कर अफ्रीकियों को भर्ती किया जाने लगा। इस प्रकार के उत्पीड़न के कारण कई भारतीय अपने ब्रिटिश पासपोर्ट के आधार पर यूनाइटेड किंगडम में बस गए। अब लंदन और लेस्टर में अच्छी संख्या में कीनियाई भारतीय रहते हैं।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान समय में कीनिया में 100,000 से अधिक भारतीय रहते हैं। समय के साथ-साथ उनकी कानूनी स्थिति में सुधार हुआ है। देश की कुल जनसंख्या में एक प्रतिशत से भी कम होने के बावजूद भारतीयों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अहम योगदान है। मुख्यतः आबादी व्यापार और खुदरा क्षेत्र में संलग्न है और इनकी अपेक्षाकृत समृद्ध स्थिति है।[६][७]