विद्याधर शास्त्री
विद्याधर शास्त्री (१९०१-१९८३) संस्कृत कवि और संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं के विद्वान थे। आपका जन्म राजस्थान के चूरू शहर में हुआ था। पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर) से शास्त्री की परीक्षा आपने सोलह वर्ष की आयु में उत्तीर्ण की थी। आगरा विश्वविद्यालय (वर्तमान डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय) से आपने संस्कृत कला अधिस्नातक परीक्षा में सफलता प्राप्त की। शिक्षण कार्य और अकादमिक प्रयासों के दौरान आपने बीकानेर शहर में जीवन व्यतीत किया। १९६२ में भारत के राष्ट्रपति द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से आपको सम्मानित किया गया था।
पारिवारिक पृष्ठभूमि
विद्याधर शास्त्री सुप्रसिद्ध भाष्याचार्य हरनामदत्त शास्त्री के पौत्र थे। बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने आपके पिता विद्यावाचस्पति देवीप्रसाद शास्त्री को राज पंडित के रूप में नियुक्त किया था। इतिहासकार दशरथ शर्मा और न्यायाधीश भानु प्रकाश शर्मा उनके छोटे भाई थे। आपके बड़े पुत्र दिवाकर शर्मा भी संस्कृत विद्वान थे और छोटे पुत्र गिरिजा शंकर शर्मा इतिहासकार और हिंदी तथा राजस्थानी भाषा के विद्वान हैं।
शैक्षणिक नियुक्तियाँ
१९२८ में आपको डूंगर महाविद्यालय (बीकानेर) में संस्कृत व्याख्याता नियुक्त किया गया, १९३६ में आप संस्कृत विभाग के अध्यक्ष बने। १९५६ में डूंगर महाविद्यालय से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात आप हीरालाल बारहसैनी महाविद्यालय (अलीगढ़) में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रहे। १९५८ में संस्कृत, हिंदी और राजस्थानी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए आपने हिंदी विश्व भारती (बीकानेर) की स्थापना की। आपने जीवन पर्यन्त इस संस्था का नेतृत्व किया।
शिष्य वर्ग
बीकानेर के राजपरिवार के गुरु होने के अलावा शास्त्रीजी ने कई छात्रों को प्रेरित किया। इन छात्रों की प्रमुख नामों में नरोत्तमदास स्वामी, डॉ ब्रह्मानंद शर्मा, श्री काशीराम शर्मा, श्रीमती कृष्णा मेहता और श्री रावत सारस्वत शामिल हैं।
ग्रन्थकारिता
संस्कृत महाकाव्य, हरनामाम्रितम् केवल पितामह का जीवन चरित नहीं बल्कि उदारचेता प्रशांताभाव विद्वानों का चरित चिंतन है। महाकाव्य पाठकों को प्रेरित करने के लिए हैं जिससे वह विश्वकल्याण के लिए स्वयं को समर्पित करें। महाकाव्य विश्वमानवीयम् में कवि आधुनिकीकरण और १९६९ चन्द्र अभियान के प्रभाव को संबोधित करता है।विक्रमाभिनन्दनम् में कवि ने चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं का चित्रण किया है। आदि शंकर, रानी पद्मिनी, राणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह, शिवाजी इत्यादि महान पुरुषों का चरित्र स्मरण है। वैचित्र्य लहरी अपने अनर्गल व्यवहार पर प्रतिबिंबित करने के लिए जनता को एक विनती है।मत्त लहरी कवि की व्यंग्य कृति है। मत्त लहरी का नायक एक मद्यप (शराबी) है जो सभी को मधुशाला में समाज के बंधन से मुक्ति का आश्वासन देता है।. आनंद मंदाकिनी मत्त लहरी की पूरक है। यहां शराबी का साथी उसे चेत्रित करता है कि मदिरापान में व्यतीत समय असाध्य होगा। हिमाद्रि माहात्य़म् मदन मोहन मालवीय शताब्दी उत्सव के वर्ष में में लिखी गयी थी। उसी वर्ष चीन ने भारत पर आक्रमण किया था। कविता में मदन मोहन मालवीय सभी भारतीयों से हिमालय की रक्षा का निवेदन करते हुए कहते हैं कि हिमालय के महत्व को न भूलें। शाकुन्तल विज्ञानम् कालिदास नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम् पर टिप्पणी है, कवि के अनुसार नाटक में प्रेम भावना का सामर्थ्य दर्शित किया गया है।
शिव पुष्पांजलि १९१५ में प्रकाशित हुई थी, कवि की यह प्राथमिक प्रकाशित रचना है। इसमें कवि ने कई छंदों का उपयोग किया है तथा ग़ज़ल और कव्वाली की शैली का भी प्रयोग है। सूर्य स्तवन तथा शिव पुष्पांजलि साथ ही प्रकाशित हुई थी, इस रचना में भी कई छंदों का उपयोग है। लीला लहरी में कवि भारतीय दर्शन की सभी शाखाओं के साथ पाठक को परिचित कराता है परन्तु अद्वैत को प्रधान मानता है।
पूर्णानन्दम्
संस्कृत नाटक पूर्णानन्दम् एक प्रसिद्ध लोक कथा पर आधारित है। नायक पूर्णमल का शीतलकोट शहर के राजकुमार रूप में जन्म होता है। प्रतिकूल ग्रहों के कारण राजा को उसे सोलह साल के लिए महल से बाहर भेजना पड़ता है। इस अन्तरकाल में राजा एक युवती नवीना से विवाह कर लेता है। जब पूर्णमल महल वापस पहुँचता है तो नवीना उसपर आसक्त हो जाती है। पूर्णमल जब नवीना को ठुकराता है तो नवीना उसको राजा से मृत्यु दंड दिलवा देती है। वधिक (जल्लाद) जंगल में पूर्णमल को कुँए में गिरा कर राजा के पास वापस चले जाते हैं। गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य कुँए से पूर्णमल को बचाकर अपने आश्रम ले जाते हैं। शिक्षा ग्रहण कर पूर्णमल गुरु के आज्ञानुसार शीतलकोट वापस लौटता है। वृद्ध राजा पूर्णमल को छाती से लगा कर दहाड़ मार कर रो उठता है। पूर्णमल की माता अक्षरा की प्रार्थना के कारण गुरु गोरखनाथ प्रकट होते हैं। गुरु गोरखनाथ अपने शिष्य पूर्णमल को जब तक नवीना का पुत्र योग्य न हो तब तक राज्य भार का कार्य संभालने का आदेश देकर अन्तर्धान हो जाते हैं। इस नाटक में भौतिक जीवन से अध्यात्मिक जीवन की श्रेष्ठता प्रतिपादित की गयी है।
प्रमुख सम्मान
- भारतीय विद्या भवन, मुंबई द्वारा आयोजित 'संस्कृत विश्व परिषद्' के वाराणसी अधिवेशन में आपको राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने संस्कृत भाषा में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया।
- राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर ने आपको अपनी सर्वोच्च उपाधि साहित्य मनीषी से सम्मानित किया।
- अखिल भारतीय संस्कृत सम्मलेन के स्वर्णजयंती के अवसर पर तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने आपको विद्यावाचस्पति उपाधि देकर सम्मान प्रदान किया।
- भारत की स्वतंत्रता के रजत जयंती वर्ष में राष्ट्रपति वी॰ वी॰ गिरि ने आपको एक संस्कृत विद्वान के रूप में सम्मानित किया।
- अखिल भारतीय संस्कृत प्रचार सभा, दिल्ली ने कवि सम्राट की उपाधि से सम्मानित किया।
- भारतीय गणतंत्र की रजत जयंती पर आप राष्ट्रीय संस्कृत मनीषी के रूप में सम्मानित हुए।
- १९८२ में महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन उदयपुर के हरित ऋषि की स्मृति में दिए जाने वाले सम्मान से आप सम्मानित हुए।
ग्रंथ सूची
संस्कृत महाकाव्य
- हरनामाम्रितम्
- विश्वमानवियम्
संस्कृत कविताएँ
- विक्रमाभिनन्दनम्
- वैचित्र्य लहरी
- मत्त लहरी
- आनंद मंदाकिनी
- हिमाद्रि माहात्य़म्
- शाकुन्तल विज्ञानम्
- अलिदुर्ग दर्शनम्
स्तवन काव्य
- शिव पुष्पांजलि
- सूर्य स्तवन
- लीला लहरी
संस्कृत नाटक
- पूर्णानन्दम्
- कलिदैन्य़म्
- दुर्बल बलम्
चम्पूकाव्य (चम्पूकाव्य में गद्य और पद्य मिश्रित होते हैं)
- विक्रमाभ्य़ुदय़म्
ग्रन्थ संग्रह
- विद्याधर ग्रंथावली प्रकाशक: राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर १९७७
संपादित
- कृष्णग्रंथावली (तुलसीदास रचित कविताएँ), संपादक: नरोत्तमदास स्वामी तथा विद्याधर शास्त्री, १९३१ में प्रकाशित
स्रोत सामग्री
- सारस्वत, परमानन्द (१९८४) साहित्य़स्रष्टा श्री विद्याधर शास्त्री, गनु प्रकाशन, बीकानेर