वी॰ वी॰ गिरि
वराहगिरी वेंकट गिरी | |
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कार्यकाल 24 अगस्त 1969 – 24 अगस्त 1974[१] | |
उपराष्ट्रपति | गोपाल स्वरूप पाठक |
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पूर्व अधिकारी | मुहम्मद हिदायतुल्लाह |
उत्तराधिकारी | फ़ख़रुद्दीन अली अहमद |
कार्यकारी
भारत के राष्ट्रपति | |
कार्यकाल 3 मई 1969 – 20 जुलाई 1969 | |
पूर्व अधिकारी | ज़ाकिर हुसैन |
उत्तराधिकारी | मुहम्मद हिदायतुल्लाह |
कार्यकाल 13 मई 1967 – 3 मई 1969 [२] | |
राष्ट्रपति | ज़ाकिर हुसैन |
पूर्व अधिकारी | ज़ाकिर हुसैन |
उत्तराधिकारी | गोपाल स्वरूप पाठक |
जन्म | साँचा:birth date ब्रह्मपुर, गंजाम जिला, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | साँचा:death date and age मद्रास, तमिल नाडु |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राजनैतिक पार्टी | निर्दलीय |
जीवन संगी | श्रीमती सरस्वती बाई गिरि |
वराहगिरी वेंकट गिरी या वी वी गिरी (10 अगस्त 1894 - 24 जून 1980) भारत के राजनेता एवं देश के तीसरे उपराष्ट्रपति तथा चौथे राष्ट्रपति थे। उनका जन्म ब्रह्मपुर, ओड़िशा में हुआ था। उन्हें 1975 में भारत के सर्वोच्च नागरिक अलंकरण भारत रत्न से सम्मानित किया गया।[३]
प्रारंभिक जीवन
वि वि गिरी का जन्म 10 अगस्त 1894 को के मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रह्मपुर में हुआ, जो अब ओड़िशा राज्य का हिस्सा है । उनके पिता का नाम श्री जोगिह पन्तुलु था और पेशे से वो वकील थे। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने ब्रह्मपुर से ही प्राप्त की। 1913 में कानून का अध्ययन करने के लिए वो डबलिन यूनिवर्सिटी चले गए, परन्तु आइरिश नेशनल मूवमेंट में शामिल होने के वजह से 1916 में आयरलैंड से निष्कासित कर दिया गया। भारत वापिस आकर उन्होंने मद्रास में वकालत शुरू कर दी।[४]
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान
भारत लौटने के बाद वह श्रम आंदोलन से जुड़े और साथ में कांग्रेस से भी जुड़ गए। उन्होंने मद्रास और नागपुर का रेलवे मजदूर ट्रेड यूनियन गठित की जो आगे चलकर अखिल भारतीय रेल कर्मचारी संघ के नाम से जाना जाने लगा।[५] उन्होंने जिनेवा में 1927 में हुई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर कांफ्रेंस में मजदूरों के तरफ से हिस्सा लिया।
1937-39 और 1946-47 के बीच वो मद्रास सरकार में श्रम, उद्योग, सहकारिता और वाणिज्य विभागों के मंत्री रहे।[६] उसके बाद दूसरे विश्वयुद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वो जेल भी गये।[७]
स्वतंत्रता आंदोलन के बाद राजनितिक जीवन
1947-51 के बीच वो सीलोन में भारत के उच्चायुक्त के रूप में नियुक्त रहे।[६] 1952 के पहले आम चुनाव में सांसद चुने गए एवं कांग्रेस पार्टी की सरकार में वो पहले श्रम मंत्री बनाये गए। वीवी गिरि की समाजवादी राजनैतिक विचारधारा मजदूरों पर केंद्रित थी। उन्होंने श्रम मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया परंतु 1957 का चुनाव वो हार गए।
भारतीय सोसायटी श्रम अर्थशास्त्र (Isle) के 1957 में शिक्षाविदों के एक विशिष्ट समूह और सार्वजनिक पुरुषों श्रम और औद्योगिक संबंधों के अध्ययन को बढ़ावा देने में लगे द्वारा स्थापित किया गया। इस टीम में श्री गिरि के नेतृत्व में किया गया।
वह सफलतापूर्वक उत्तर प्रदेश (1957-1960), केरल (1960-1965) और मैसूर (1965-1967) के राज्यपाल के रूप में सेवा की। वह 1967 में भारत के उप राष्ट्रपति के रूप में चुने गए।
राष्ट्रपति के रूप में
जाकिर हुसैन का 1969 में कार्यालय में निधन होने पर राष्ट्रपति चुनाव हुए।[८] राष्ट्रपति के चुनाव और चुनाव परिणाम के मध्य कुछ दिनों के लिए भारत के तत्कालीन मुख्या न्यायाधीश मुहम्मद हिदायतुल्लाह कार्यवाहक राष्ट्रपति रहे। कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए नीलिमा संजीव रेड्डी को नामांकित किया और वी वी गिरी ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा। भारतीय इतिहास में पहली बार वी वी गिरी कांग्रेस उमीदवार को हरा कर राष्ट्रपति चुनाव जीते।[९]
उनके सम्मान में भारतीय डाक एवं तार विभाग ने 25 पैसे का डाक टिकट भी जारी किया था।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
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