स्तीफेन जार्ज

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स्टीफन जार्ज (१९१०)

स्तीफेन जार्ज (Stephan George 1863-1933) जर्मन कवि, सम्पादक और अनुवादक थे।

परिचय

स्तीफेन जार्ज ने उस समय लिखना प्रारंभ किया जब साहित्य में यथार्थवाद का बोलबला था। अपने गुरु नीत्से (Nietzsche) की भाँति इन्होंने अनुभव किया कि यथार्थवादी प्रवृत्ति साहित्य के लिए घातक सिद्ध हो रही है तथा इसके कुप्रभाव से सौंदर्यबोध एवं सर्जनात्मकता का ह्रास हो रहा है। यथार्थवाद की वेगवती धारा को रोकना इनके साहित्यिक जीवन का मुख्य ध्येय था। सर्वप्रथम इन्होंने भाषा को परिष्कृत करने का कार्य हाथ में लिया।

ईसाई धर्म में विनम्रता, कष्ट सहन करने की क्षमता तथा दीन और निर्बल की सेवा पर जोर दिया गया है। नीत्से ने इस धर्म के उपर्युक्त आदर्शों को दासमनोवृत्ति का परिचायक बताया और उनकी कटु आलोचना की। ईसाई धर्म के विपरीत उसने एक नया जीवन दर्शन दिया जिसमें शक्ति की महत्ता पर बल दिया गया था। उसके अनुसार महापुरुष नैतिकता अनैतिकता के धरातल से ऊपर उठकर दृढ़ संकल्प के साथ कार्य करने में ही जीवन की सार्थकता देखते हैं। नीत्से के प्रभाव के फलस्वरूप ही जर्मनी में फासिज्म और हिटलर का प्रादुर्भाव हुआ।

स्तीफेन जार्ज ने नीत्से के जीवनदर्शन को साहित्य के क्षेत्र में स्वीकार किया। पराक्रमी पुरुषों में दैवी शक्ति भी निहित होती है। ऐसी ही विभूतियाँ जीवन के चरम मूल्यों की स्थापना कर पाती हैं। जहाँ साधारण प्राणी बहुधा सही गलत की उधेड़बुन में फँस जाते हैं और उनकी क्रियाशीलता किसी न किसी अंश में नष्ट हो जाती है, पराक्रमी पुरुष एकनिष्ठ भाव से अपने लक्ष्य की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। उनमें जीवन और समाज को अपनी धारणाओं के अनुसार नए साँचे में ढालने के लिए अदम्य उत्साह होता है। जार्ज स्तीफेन ने काव्य को आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का सर्वोत्कृष्ट रूप माना। श्रेष्ठ कवि बाह्य क्रियाकलाप के आवरण के नीचे छिपे जीवन के मूल तत्वों को प्रकाश में लाता है। उसका काम स्थूल दृष्टि को भोंडी दिखनेवाली चीजों में निहित सौंदर्य को निखारना है। सन् १८९० से १९२८ तक इनकी कविताओं के कई संग्रह निकले। इन कविताओं में इन्होंने एक नए जर्मन साम्राज्य की कल्पना प्रस्तुत की जिसमें नेता का आदेश सर्वोपरि होगा। इन्हें जनतंत्र में विश्वास नहीं था और सबके लिए समान अधिकार का सिद्धांत इन्होंने कभी नहीं स्वीकार किया। नया साम्राज्य किसी एक पराक्रमी व्यक्ति के निर्देश में काम करनेवाले कुछ गिने चुने लोगों द्वारा ही स्थापित हो सकता था। जार्ज स्तीफेन ने उस नेता की कल्पना एक कवि के रूप में की और स्वयं को सर्वथा उपयुक्त पाते हुए अपने ईद गिर्द कवियों के एक गिरोह को भी खड़ा कर लिया। इनके शिष्यों में गंडोल्फ (Friedrich Gundolf) भी थे, जिन्होंने हिटलरी शासन में प्रचारमंत्री डॉ॰ गोबेल्स को पढ़ाया था।

बाहरी कड़ियाँ