भूतसंख्या पद्धति
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भूतसंख्या पद्धति संख्याओं को शब्दों के रूप में अभिव्यक्त करने की एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसमें ऐसे साधारण शब्दों का प्रयोग किया जाता है जो किसी निश्चित संख्या से संबन्धित हों। यह पद्धति प्राचीन काल से ही भारतीय खगोलशास्त्रियों एवं गणितज्ञों में प्रचलित थी। यहाँ 'भूत' का अर्थ है - 'सृष्टि का कोई जड़ या चेतन, अचर या चर पदार्थ या प्राणी'।
उदाहरण के लिये संख्या २ के लिये 'नयन' का उपयोग भूतसंख्या का एक छोटा सा उदाहरण है। नयन (= आँख) २ से सम्बन्धित है क्योंकि मानव एवं अन्य अधिकांश प्राणियों की दो आँखें होती हैं। इसी प्रकार 'पृथ्वी' शब्द का उपयोग १ (एक) के लिये किया जा सकता है।
- उदाहरण
- (1) निम्नलिखित श्लोक में माधव ने वृत्त की परिधि और उसके व्यास का सम्बन्ध (अर्थात पाई का मान) बताया है जो इस श्लोक में भूतसंख्या के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है-
- विबुधनेत्रगजाहिहुताशनत्रिगुणवेदाभवारणबाहवः
- नवनिखर्वमितेवृतिविस्तरे परिधिमानमिदं जगदुर्बुधः
इसका अर्थ है- 9 x 1011 व्यास वाले वृत्त की परिधि 2872433388233होगी।
33 2 8 8 विबुध (देव) नेत्र गज अहि (नाग) 3 3 3 हुताशन (अग्नि) त्रि गुण 4 27 8 2 वेदा भ (नक्षत्र) वारण (गज) बाहवै (भुजाएँ)
- (2) निम्नलिखिद पद्य में सूरदास ने भूतसंख्याओं का उपयोग कर अत्यन्त सुन्दर प्रभाव का सृजन किया है-
- कहत कत परदेसी की बात।
- मंदिर अरध अवधि बदि हमसौं , हरि अहार चलि जात।
- ससि-रिपु बरष , सूर-रिपु जुग बर , हर-रिपु कीन्हौ घात।
- मघ पंचक लै गयौ साँवरौ , तातैं अति अकुलात।
- नखत , वेद , ग्रह , जोरि , अर्ध करि , सोई बनत अब खात।
- सूरदास बस भई बिरह के , कर मींजैं पछितात ॥
- संकेत : मंदिर अरध = पक्ष (१५ दिन) , हरि अहार = मास (३० दिन), नखत = नक्षत्र = २७, वेद = ४, ग्रह = ९ आदि
- (3) इस पद्धति का उपयोग पुराताविक अभिलेखों में भी खूब देखने को मिलता है जिसमें तिथि और वर्ष को भूतसंख्याओं में लिखा जाता था। उदाहरण के लिये, एक अभिलेख में तिथि लिखी है- बाण-व्योम-धराधर-इन्दु-गणिते शके -- जिसका अर्थ है १७०५ शकाब्द में। बाण = ५, व्योम = ०, धराधर = पर्वत = ७, इन्दु = चन्द्रमा = १, (संख्याओं को उल्टे क्रम में लेना है।)