देवी तथा देवता (अभारतीय)
असीरी, सुमेरी, तथा बाबुली
मेसोपोटोमिया (प्राचीन इराक) अपनी हजारों वर्षों की सभ्यता में अनेक जातियों की लीलाभूमि रही है, जहाँ सुमेरी सभ्यताओं में मुख्य असूरी-बावुली सभ्यता का श्रीगणेश ईसा से दो सहस्त्र वर्ष पूर्व सेमियों द्वारा हो चुका था। तीन हजार वर्ष पहले से वे अनेक देवताओं की उपासना करते चले आ रहे थे और उन्हीं ने मेसोपोटामियावासियों में देवोपासना का क्रम चलाया था। कहते हैं कि, ऐसा कोई दूसरा समाज नहीं है जिसमें धर्म ने इतना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया हो क्योंकि देवताओं की इच्छा पर किसी भी समाज का मनुष्य इतना अधिक अवलंबित न था। असल में, सुमेरी सभ्यता का निर्माण देवताओं के मंदिरों के बीच हुआ।
मेसोपोटामियाई धार्मिक और नैतिक स्थिति का ज्ञान हमें अनेक सूत्रों से होता है। ये सूत्र हैं महाकाव्यात्मक कथाएँ, पौराणिक गाथाएँ, आचार, स्तुतियाँ, प्रार्थनाएँ, देवकुल की सूचियाँ, कहावतें आदि। निप्पुर, अस्सुर और निनवे के ग्रंथागारों से प्राप्त सामग्रियाँ भी इन्हीं में हैं जिनकी रचना ई.पू. तीसरी सहस्त्राब्दी से लेकर ईसा के कुछ पहले की शताब्दियों तक हुई है। इसके अतिरिक्त मौखिक परंपरा से चली आती अनेक सूचनाओं तथा पुरातत्व सामग्रियों से सुमेरी बाबुली सभ्यता की धार्मिक स्थिति का अनुमान होता है।
संभवत: मेसोपोटामिया के निचले भाग के मूल निवासियों द्वारा बाबुली असूरी सभ्यता का बीजारोपण हुआ जिनमें आगे चलकर मृत्यु तथा मृत्युपरांत जीवन की समस्याएँ उठ खड़ी हुई थीं। धार्मिक तथा नैतिक विश्वासों के आधार पर क्रमश: पौराणिक आख्यानों और अलौकिक चरित्रों का विकास हुआ जो अनेक संप्रदायों में मान्य स्थानीय देवताओं और देवियों से जुड़ता रहा। पहले अनेक स्थानीय देवताओं की अपनी अपनी पुराकथाएँ तथा चरित्र थे किंतु बाद में समाज की इन धार्मिक इकाइयों में एकरूपता आने लगी और सार्वजनिक रूप से सर्वनिष्ठ देवताओं और देवियों की पूजा के विधान और आख्यान बनने लगे। उनके असंख्य देवताओं के स्थान पर कुछ देवताओं और देवियों को मुख्यता प्राप्त हुई। गौण देवताओं के गुण तथा चरित्र इन मुख्य देवताओं में समाहित हो गए। इन देवताओं में अतिमानवीय धरातल पर मानवीय प्रकृति के दुर्गुणों तथा सत्गुणों की योजना की गई।
बाबुली असीरी धर्म की मुख्य विशेषता थी बहुदेववाद। दजला फरात की घाटी में, जिसके निचले भाग को 'चंद्र किरीट' कहा गया है, ई.पू. तीसरी सहस्त्राब्दी से अनेक छोटे छोटे स्थानीय देवताओं की पूजा प्रचलित थी और सुमेरी, बाबुली तथा अक्कादी सभ्यता के अंतर्गत क्रमश: विकसित धर्म की प्रधान बात थी। आगे चलकर, राजनीतिक दृष्टि से भी, बाबुली तथा असीरी जातियों के प्रभुत्व के साथ प्रधान तथा गौण देवताओं और देवियों की कल्पना चरितार्थ हुई। भिन्न भिन्न जातियों में पूजित देवताओं के बीच तीन मुख्य देवताओं के गुट की कल्पना मेसोपोटामिया में विकसित धर्मों की परवर्ती विशेषता थी।
इस प्रकार आदिम समाज की पूजाभावना से व्युत्पन्न प्राकृतिक तत्वों का दैवीकरण हुआ और उनमें कुछ तो स्वर्ग, कुछ पृथ्वी और कुछ जल के अधिष्ठित देवता माने गए। इनमें उन देवताओं के तीन मुख्य प्रतिनिधि-क्रमश: ऐन, बेल और इया देवता बने। स्वर्ग, पृथ्वी और जल की महान् शक्तियों के आधार पर बननेवाले इस गुटके अंतर्गत शेष सभी देवता समाहित हो गए। यह बाबुली देवताओं की प्रथम त्रिमूर्ति या त्रिदेव कल्पना थी। दूसरी बाबुली त्रिदेव कल्पना सूर्य देवता शम्श, चंद्रदेवता सिन और शुक्रदेवी इश्तर के त्रिगुट में चरितार्थ हुई। इन्हीं दो मुख्य त्रिगुटों के छह देवताओं से बाबुली धर्मव्यवस्था रूपायित हुई। इनके अतिरिक्त प्राकृतिक तत्वों के अन्य छोटे बड़े देवताओं के समूह भी मान्य थे। इनमें अतिरिक्त प्राकृतिक तत्वों के अन्य छोटे बड़े देवताओं के समूह भी मान्य थे। इनमें मुख्य थे रम्मन, निनिव, मरदूक नेर्गल, नेबु आदि। इन देवताओं और देवियों में विशिष्ट गुण धर्म आरोपित किए गए। इस क्रम में यह भी ध्यान देने योग्य है कि बाबुली कस्बों के स्थानीय देवता या नगरदेवता भी थे जिनकी संबंधित क्षेत्रों में सर्वोच्च मान्यता प्राप्त थी और इन देवताओं के उपासकों तथा पुजारियों के अलग अलग संप्रदाय और मत विकसित हुए लेकिन वे एक दूसरे के प्रति अनुदार न थे। आगे ज्यो ज्यों एक के बाद दूसरे नगर राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते गए त्यों त्यों उनके देवता के मतावलंबियों का क्षेत्र और देवता की महती शक्ति का प्रभाव बढ़ता गया। सामंतवाद के युग में यहाँ के राजों और शासकों द्वारा वे विधिवत् पूजे गए। उनकी प्रतिष्ठा राजा की विजय के साथ बढ़ी और विजेता जाति के मुख्य देवता की स्थिति परिणामत: सर्वमान्य एवं सर्वपूज्य हो गई। बाबीलोनिया में असीरियों के देवता अ---ुर या अशुर की सर्वमान्यता इसी प्रकार स्थापित हुई।
मेसोपोटामिया के सभी देवता समान स्तर के नहीं थे। इनमें से अनेक गौण, साधारण, महत्वहीन और स्थानीय थे। कुछ देवता नगर राज्यों- उम्मा तथा किश आदि- केरक्षक होने के कारण वस्तुत: महत्वशाली थे। कुछ देवता जो मुख्यत: नगर देवता थे, अपने संप्रदायवालों के चलते गुण और कार्य में विशिष्ट समझे गए और उनकी महत्ता सर्वोपरि समझी गई। जैसे ऊर के चंद्रदेवता सिन (नन्ना) तथा सिप्पर और लर्स के सूर्यदेवता शम्श (उतु)। इसी वर्ग में वीर देवता निनुर्त, प्रेमदेवी इश्तर (इनन्ना), वनस्पतियों के देवता ताम्मूज (दुमुजी) भी हैं। सुमेरी-बाबुली देवकुल में तीन अन्य देवता ऐन, एनलिल और ऐंकी- भी प्रधान थे। इनके अतिरिक्त देवराज मरदूक जो बाबुल के देवता थे और जिन्हें असीरियों ने बशुर नाम से पुकारा, असीरी बाबुली सृष्टिकथा एवं देवकुल में अत्यंत महत्व के हैं। नीचे मेसोपोटामिया के मुख्य देवताओं का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
अन, अनु
बाबुली सर्वोच्च त्रिदेवों- अनु, एनलिन तथा इया में प्रथम जिसका अर्थ है स्वर्ग; इसी आधार पर ये स्वर्ग के देवता बने, शेष देवता क्रमश: भूदेवता और जल देवता के रूप में मान्य हुए: ये देवाधिदेव, देवजनक और देवराज कहे गए हैं। अनु का उपासनास्थल उरूक था, बाद में अश्शुर में इनका मंदिर बना। पुराकथाओं में इनके कुछ चरित्र इन्हें संसार की सभी घटनाओं का नियंता सिद्ध करते हैं।
=== अशुर, अश्शुर === - (सुमेरी मरदूक मूलत: एनलिल) असीरियों के जातीय देवता जो प्रारंभ में स्थानीय देवता से बढ़कर बाबुल के सर्वशक्तिमान् ईश्वर बन गए। इसका कारण यह था कि ये असीरी राजाओं को शत्रुओं पर विजय दिलानेवाले युद्धदेवता के रूप में प्रतिष्ठित हुए और क्रमश: विजयी असीरी राजाओं की विजय के साथ इनका देशव्यापी प्रभुत्व तथा लोकप्रियता स्थापित हो गई। बाबुली महान् देवताओं अनु, एनलिल तथा मरदूक के संपूर्ण चरित्र तथा गुण असूरी काल में अश्शुर में अंतर्मुक्त हो गए। ये असीरिया के जातीय देवता और एकमात्र सर्वमहान् देवता बने।
इया
बाबुली असीरी सर्वोच्च त्रिदेव गुट के तृतीय देवता तथा जलाशयों और समुद्रों के शासक जिनका उपासनास्थल ईदू में था। बाबुलीधर्म तथा पुराण में, मरदूक के पिता होने के नाते इनका बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। ये मानवजाति के संरक्षक तथा ज्ञान देवता बताए गए हैं।
इश्तर (सुमेरी नाम इनन्ना) - बाबुली देवकुल की महत्वशालिनी देवी जो देव त्रिगुट में सिन तथा शम्श के बाद तृतीय है। प्रारंभ में ये साधारण स्थानीय देवी मात्र थीं किंतु आगे चलकर इनका महत्व सर्वोपरि हो गया (जो उरूक में नना तथा अक्काद में अनुनीतु नाम से पूजित थीं) और परंपरा से मान्य अनेक देवियाँ इनमें समाहित हो गई। यह स्वर्ग की सम्राज्ञी कही जाती है। इनका प्रधान स्थल अथवा मंदिर उरूक, निनवे और अरबैला में था। यह एक ओर प्रेम और अखिल निसर्ग की देवी, तो दूसरी ओर युद्ध की देवी थीं। संभवत: इनके युद्धदेवी का स्वरूप युद्धप्रिय असीरी राजाओं के समय विकसित हुआ। इनका पवित्र पशु शेर था। बाबुली पुराकथाओं में यह सर्वशक्तिमती, दयालु, मानवजाति की संरक्षिका तथा आधिव्याधि से मुक्ति देनेवाली कही गई हैं।
एनलिल
सर्वोच्च बाबुली असूरी त्रिदेव गुट के द्वितीय देवता जो थे। विश्वनिर्माण संबंधी बाबुली पुराकथा के महान् पर्वत पर इनका निवास कल्पित था। ये निप्पुर के नगरदेवता थे। वहाँ इनके मंदिर के अवशेष मिले हैं। बाबुली पुराणों तथा प्राचीन पद्यों में इनकी बड़ी महिमा वर्णित है।
तम्मूज
सुमेरी दुमुजी का बाबिलोनी नाम तथा बाबिलोनी देवकुल के विलक्षण सदस्य। ये वनस्पतियों का वर्धन तथा संरक्षण करनेवाले देवता थे। बाबुली तम्मूज संप्रदाय में ये मानव जीवन के पतन तथा उत्थान के देवता माने गए हैं। विशेष दे. 'ताम्मूज़।'
निनिव
बाबुली-असूरी देवताओं में मुख्य, जिनका स्थान निप्पुर में था। प्राचीन बाबुली त्रिदेवों (पिता, माता तथा पुत्र) में से तीसरे तथा एनलिल के पुत्र माने गए हैं। पहले इनका चरित्र, सभी विरोधी शक्तियों के विजेता के रूप में महान् शक्तिशाली योद्धा का था जिसके सदर्भ में ये असीरियों के युद्ध के देवता रूप में प्रसिद्ध हुए। ये किश के 'जमम' से अभिन्न माने गए और उसी प्रकार अपनी पत्नी गुला (दे. 'गुला') के गुण से पूर्ण स्वास्थ्य देवता के रूप में प्रतिष्ठित हुए। आगे चलकर लगश के नगर देवता निंगिरसु से अभिन्न माने गए।
नेबू, नेबो
मरदूक के पुत्र, बारसिप (वारसिप्पा) के नगर देवता जो भाग्य का लेखा जोखा रखते थे। नेबू केवल भाग्य लेखाकार ही नहीं बल्कि विज्ञान तथा लेखन कला के देवता भी हैं। इनका जिक्र कभी कभी वनस्पति के देवता के रूप में भी होता है। बाबिलोनी युग के पूर्व इनका संबंध बृहस्पति ग्रह से जुड़ा था, बाद में बुध से जुड़ गया। फसलों की देवी निसब तथा नेबु इनकी पत्नियों के रूप में उल्लिखित हैं।
नेर्गल
कुतु के नगरदेवता का सुमेरी नाम। बाबुली देवकुल तथा पुराकथा शास्त्र में इनकी स्थिति बड़ी विलक्षण है जिनमें इन्हें पाताल लोक का देवता, मृतात्माओं के लोक का शासक तथा अधोलोक की देवमहिषी एरेख किंगल का पति बताया गया है। कभी कभी ये महामारी (ताऊन) देवता इरा से अभिन्न और निनिब की भाँति युद्ध के देवता माने गए हैं। बाबुली युग में ग्रहों में सूर्य, बुध तथा मंगल से ये संबधित थे। इनका प्रतीक शेर था।
मरदूक
सुमेरी नगरदेवता। इनका असीरी नाम अशुर है जो मूलत: एनलिल से अभिन्न है। लेकिन राजनीतिक दृष्टि से ज्यों ज्यों सुमेर का महत्व बढ़ता गया, त्यों त्यों ये अनेक देवों के स्थानापन्न प्रतिनिधि बनते गए और आगे चलकर बाबुली देवकुल में इसका मुख्य स्थान बन गया। इस क्रम में ये अनेक देवताओं के गुण तथा कार्य से संपन्न होते गए। अब ये उत्पादक, संरक्षक, सृष्टिकारी आदि अनेक रूपों में मान्य बन गए थे। इनका संबंध बृहस्पतिग्रह से जुड़ जाने पर ये सर्वोच्च शक्तिमान् और देवताओं के राजा बने।
रम्मन
बाबुलियों के तूफान तथा गर्जन के देवता जिनका दूसरा नाम अदद है। ये दोनों नाम असूरियों तथा बाबुलियों में प्रसिद्ध हैं जिनका मूल संभवत: सेमेटिक है। बाबुली देवकुलशास्त्र तथा पुराकथा-शास्त्र में इनका बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। बाबुली त्रिदेव- सिन, शम्स तथा अदद में इनका तीसरा स्थान था। तूफान के देवता की स्थिति से वर्षा नियंत्रक महान् देवता थे। वज्रपात तथा गर्जन के देवता की स्थिति से ये प्रबल शत्रुसंहारक भी थे। वज्र इनका प्रतीक और बैल पवित्र पशु है।
शम्स (सुमेरी 'उतु')
बुली-असूरी सूर्य देवता और देवसूची में सिन के पुत्र के रूप में, उनके बाद दूसरे। इनके मंदिर लूसं तथा सिपर में निर्मित थे। ये मानवजाति के सहायक, ज्योतिदाता और दुष्ट शक्तियों से रक्षा करनेवाले कल्याणकारी देवता के रूप में पूजित थे। ये विशेष रूप से स्वर्ग तथा पृथ्वी के सबसे महान् न्यायमूर्ति माने गए।
सिन
बाबुली चंद्रदेवता तथा ऊर के नगरदेवता जहाँ इनका मंदिर स्थापित था। शम्स इनका पुत्र तथा इश्तर पुत्री बताई गई है। (श्या.ति.)
यूनानी देवीदेवता
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प्राचीन यूनान का देवपरिवार बड़ा समृद्ध था। होमर के अनुसार यूनानी देव-परिवार का सर्वप्रथम देवता ओसीआनस था, जो नदियों का देवता कहा जाता था। इसकी सहचरी थीटिस थी, जिसकी मान्यता प्रमुख मातृदेवी के रूप में थी। ओसीआनास और थीटिस ही यूनानी देवपरिवार के आदि पिता और माता है। यूनान की प्रारंभिक देव कल्पना में निक्स, हिरण्यगर्भ (रजत अंड के रूप में) और इरोस (वायु) का भी महत्व है। इरोस की कल्पना भारतीय कामदेव से मिलती जुलती है। आकाशदेवता के रूप में क्रोनस् तथा भू देवी के रूप में गाइया का भी विशेष मान था। ज्यूस, जो कालांतर में यूनानी देवमंडल का प्रधान बना, इन्हीं का पुत्र था। यूनानी देवमंडल में ज्यूस सहित 13 देवी देवता हैं, जो किसी न किसी रूप में ज्यूस से ही संबधित है।
क्रोनस् अत्याचारी था, जिसे पछाड़कर ज्यूस ने अपने भाई बहनों की रक्षा की थी। इसे अपने पिता तथा उसके सहयोगी टाइटेनों (दैत्यों) के साथ दस वर्षो तक युद्ध करना पड़ा था। आरंभ में ज्यूस तथा उसके अन्य दो भाई पोसाइडान और हेडीज़ समानरूप से विश्व के अधिपति थे यद्यपि तीनों ने अपनी अधिकार सीमा विभाजित कर ली थी। इस प्रकार ज्यूस द्युलोक का, पोसाइडान समुद्र और हेडीज़ पाताल लोक का स्वामी बना। पृथ्वी पर सबका समान अधिकार माना गया। किंतु ज्यूस ने आपने कोशल और पराक्रम से पृथ्वी लोक पर विशेष अधिकार स्थापित कर लिया और देवमंडल का प्रधान बन बैठा।
ज्यूस की कल्पना भारतीय इंद्र से मिलती जुलती है। उसका भी आयुध वज्र तथा दंड था। यह वज्र दैत्यों से युद्ध करने के लिए इसे साइक्लोप्स नामक देवता से प्राप्त हुआ था। टाइटेनों (दैत्यों) से इसका निरंतर विरोध था, जिसके संबंध में यूनानी परंपराओं में अनेक कहानियाँ हैं। देवासुर संग्राम की भारतीय कथा ज्यूस और टाइटैनों के संघर्ष की कहानियों से काफी मिलती जुलती है। इंद्र की तरह ही यह परस्त्रीगामी तथा कामुक था। इसकी अनेक पत्नियाँ थीं, जिनमें हिरा, जो इसकी बहिन भी थी, प्रधान थी। इंद्राणी की ही तरह हिरा सापत्न्य भाव से पीड़ित रहती थी तथा ज्यूस से द्वेष करती थी। यूनानी समाज में हिरा की उपासना पुत्रदा के रूप में प्रचलित थी।
यूनानी कल्पना में ज्यूस की ओलंपियन देवसृष्टि और मनुज सृष्टि का आदि जनक है तथा इसी के अधीन विश्व का शासन चलता रहता है। भूलोक के सभी राजा इसी की व्यवस्था के अंतर्गत शासन संचालन करते रहते हैं। यही मानव मात्र का भाग्य विधाता, न्याय और दंड का व्यवस्थापक है। पाप पुण्य की विवेचना भी यही करता है। अपने वज्र से मेघों को नियंत्रित करके भूमंडल को जलसिंचित करता तथा मनुष्यों के अनियंत्रित और अव्यवस्थित जीवन से क्रुद्ध होकर पृथ्वी का विनाश करने के लिए अतिवृष्टि द्वारा महाप्लावन भी करता है, दे.'प्रलय' और 'ज्यूस'।
देवी अथीना, यूनानी देव परिवार में, ज्यूस की ही तरह महत्वशालिनी थी। यह नैतिकता, सामाजिकता और लोक कल्याण की भावना को प्रश्रय देती थी, तथा इन्हीं की स्थापना इसके पूजाविधान का महत्वपूर्ण अंग था। यह युद्ध की भी देवी थी किंतु यह केवल धर्मयुद्धों में ही भाग लेती थी। ज्यूस की भाँति इसका प्रधान आयुध वज्र था, यद्यपि इसके हाथों में मशाल भी सुशोभित होती थी। यह ज्यूस की ही तरह द्युलोक की स्वामिनी थी और कृषि, वाणिज्य, उद्योग, कला तथा रूप और यौवन की संरक्षिका मानी जाती थी।
एक यूनानी परंपरा के अनुसार यह पोसाइडान की पुत्री थी किंतु पोसाइडान से इसकी तनिक भी न पटती थी। इसे ज्यूस ने पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था। इसके नाम के साथ 'पल्लस' जुड़ा रहता है। पल्लस के विषय में यूनान में अनेक परंपराएँ हैं, जो परस्पर विरोधी भी हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि पल्लस अथीना की उपाधि मात्र है।
ज्यूस का भाई, पोसाइडान, समुद्र और नौपरिवहन का संरक्षक था। भारतीय देवता वरुण से इसकी समता की जा सकती है। यूनानी धारणा के अनुसार यह सागर में रहता था और विशेष अवसरों पर ही पृथ्वी पर आता था। समुद्र में यह निरंतर मत्स्यकन्याओं के साथ जलविहार और आखेट करता था। यह अश्वों का भी स्वामी माना जाता था। अथीना की इससे विशेष प्रतिद्वंद्विता थी, अतएव यह कभी रोष में आकर जलप्लावन द्वारा पृथ्वी के स्थल भाग का अपहरण भी किया करता था। इसका आयुध त्रिशूल है, तथा इसके हाथ में मत्स्य भी रहता है।
जललोक के स्वामी पोसाइडान की तरह हेडीज भी ज्यूस का भाई था। यूनानी परंपरा के अनुसार यह अदृश्य देवता है और सदैव पाताल लोक ही में रहता है। ज्यूस की पुत्री पर्सेफोन का इसने अपहरण कर लिया था। पर्सेफोन इसे चाहती न थी और कभी कभी ही पत्नी भाव से हेडीज के पास जाती थी। धरती पर इस देवता का मान कम था।
हेस्तिया शांति और सौख्य भावना की देवी थी। युद्ध और विवाद इसे प्रिय न था। इसके सौंदर्य पर अनुरक्त होकर अपोलो और पोसाइडान इसे चाहने लगे। अपोलो और पोसाइडान में बड़ी शत्रुता बढ़ गई और युद्ध की नौबत आने को हुई, जिसे दूर करने के लिए इसने आजीवन कौमार्य ्व्रात धारण कर लिया। यह गृहाग्नि और थलाग्नि की संरक्षिका थी अतएव अग्निदेवी के रूप में यूनानी समाज में घर घर आदर पाती रही।
हंसवाहिनी ऐफ्रोडाइटि प्रेम और सौंदर्य की देवी थी। जीव और वनस्पति जगत् में जनन-उत्पादन-क्षमता की यह संरक्षिका थी। गर्भ की रक्षा तथा प्रजनन का नियंत्रण यह अपने वाहन हेबी देवी के साथ करती थी। हेबी वसंत की स्वामिनी थी। ऐफ्रोडाइटि का विवाह ज्यूस ने हेफेस्टस से कर दिया था किंतु ये उससे अनुरक्त न थीं और युद्ध देवता एरीज़ से प्रेम करती थी। इसीसे इन्हें दो पुत्र फोवस (भय) और डेमोस (आतंक) उत्पन्न हुए थे। पोसाइडान भी इनका प्रेमी था। इस देवी को गुलाब विशेष प्रिय था।
ज्यूस से उत्पन्न आर्तेमिस् और अपोलो जुड़वाँ बहनभाई थे और दोनों ही आयुध के रूप में चाँदी का धनुष बाण धारण करते थे। दे. 'आर्तेमिस्'। अपोलो संगीत, कविता, नृत्य आदि कलाओं के साथ ही साथ विज्ञान और दर्शन का भी संरक्षक, ऋतुओं का अधिष्ठाता तथा सूर्य का प्रतिरूप भी माना जाता था। यह हाथों में वीणा और धनुष धारण करता था। दे. 'अपोलो'।
हर्मीज़ की ख्याति देवदूत के रूप में विशेष रूप से थी। यह भी पशुधन, वाणिज्य, कला और विज्ञान का संरक्षक था। संतान की कामनावालों का यह विशेष आराध्य था। यूनानी कल्पना के अनुसार यह पंख-युक्त जूते धारण करता है तथा इसका मुख सुंदर और स्मश्रु युक्त है। भारतीय देवता स्कंद की तरह यह चोरों का देवता भी माना जाता है।
एरीज़ को युद्ध और विभीषिका ही प्रिय थी। जीवन और जगत् की कुंठाओं और वीभत्सों का संरक्षक होने के नाते यूनानी समाज इससे डरता जरूर था किंतु इसका आदर न करता था। इसे कुत्तों की बलि दी जाती थी। यह हाथ में मशाल धारण करता था। माला इसे विशेष प्रिय थी।
हेफेस्टस् यूनानी देवताओं का विश्वकर्मा था। यह उद्योग का संरक्षक माना जाता था और आयुध बनाने में विशेष पटु था।
इन देवताओं के अतिरिक्त, यूनानी समाज में अन्य देवी-देवता भी पूजित थे। इनमें हिराक्लीज़ डाइओनाइसस् और डिमीटर का विशेष मान था। हिराक्लीज के द्वादश पराक्रम यूनानी आख्यानों में विशेष लोकप्रिय हैं। यह पराक्रम और पौरुष का प्रतीक समझा जाता था। डिमीटर देवी मानवोचित सद्गुणों की सरंक्षिका के रूप में समादर पाती थी। डाइओनाइसस्, यूनानी सभ्यता का प्रचारक था और शराब का आविष्कारक समझा जाता था।
रोमी (रोमन) देवीदेवता
प्राचीन रोम के देववाद पर यूनानी देववाद का प्रभूत प्रभाव था। बहुत तरह से यूनानी देवी देवता नाम परिवर्तन के साथ रोम के देववाद में संमानित हुए। उनके गुण और आयुध भी उसी प्रकार माने जाते थे। नीचे की सूची से ऐसे यूनानी देवताओं का परिचय प्राप्त किया जा सकता है जो कि रोम में नाम परिवर्तन के साथ प्रचलित हुए -
- यूनानी देवता -- रोम के देवता
ज़्यूस -- जुपिटर
अथीना -- मिनर्वा
डिमीटर -- केरस
पोसाइडान -- नेपचून
हिरा -- जूनो
हेस्तिया -- वेस्ता
हीबी -- जुविंतास
ऐफ्रोडाइटी -- वीनस
आर्तेमिस् -- डायना
हर्मीज़ -- मर्करी
हिराक्लीज़ -- हर्कुलीज़
इन देवताओं के अतिरिक्त यूनानी देववाद के अपोलो आदि कुछ देवता गुण, आयुध और स्वरूप के साथ ही साथ यूनानी नामों के साथ ही विख्यात हुए। जैसे यूनानी देववाद में ज़्यूस की मान्यता थी, उसी प्रकार रोम के देववाद में जुपिटर की। जूनो का रोम के नारीसमाज में विशेष आदर था और नेपचून वरुण के समान जलदेवता थे। रोम का देववाद कल्पना और विविधता की दृष्टि से यूनानियों से भी व्यापक था। यूट्रस्कन सभ्यता के प्रभाव से रोम में द्वादश देव की कल्पना थी, जिनमें तिनिया (द्युमंडल का स्वामी) और मंतुस विशिष्ट थे। उसी प्रकार कनिया, (पाताल लोक की स्वामिनी) लस (भाग्य देवी) आदि देवियाँ भी बड़ा प्रभाव रखती थीं। मार्स देवता कृषि और वाणिज्य के संरक्षक माने जाते थे तथा क्लीरिनस उदात्त और परिष्कृत वृत्तियोंवाले ऐसे देवता थे जिनका रोम के नागर समाज में विशेष आदर था। लघु देवी देवताओं के रूप में ईरानी म्थ्राि, (युद्ध के देवता) इटाली लाइवर पेटर (सुरा देवी) वद्याल (सूर्य देवता) मा और आइसिस, लेनस और वोल्कनेस की बड़ी मान्यता थी। रोम के लोग अपने जीवन और धारणाओं से संबंधित सभी मूर्त और अमूर्त वस्तुओं में देवत्व का आरोप करते थे।
मिस्री देवीदेवता
प्राचीन मिस्र के लोग बहुदेववाद में विश्वास करते थे, यद्यपि उनके धार्मिक जीवन और पूजाविधान में सूर्य का सर्वाधिक महत्व था। वे प्रकृति के प्रत्येक उपादान में देवत्व की कल्पना करते थे, अतएव नदी, पर्वत, ग्रह, नक्षत्र, वन, वृक्ष, सभी में देवत्व का आरोप करते थे। पशुओं में भी वे देवता का अंश मानते थे और या तो उन्हें देवता के वाहन के रूप में या देवता के प्रतीक के रूप में सम्मान देते थे। बैल और बकरे को बहुत पूज्य मानते थे, यद्यपि गाय, कुत्ता, बिल्ली, श्रृंगाल आदि पशुओं, बाज, हंस आदि पक्षियों तथा मकर, मत्स्य आदि जलचरों को भी वे पूजायोग्य समझते थे।
मिस्री परंपरा के अनुसार द्युलोक एक विशाल गो की तरह है जिसके अंगोपांग के रूप में पृथ्वी, आकाश, समुद्र आदि हैं। कुछ परंपरा में आकाश देवता को नारी रूप में मान्यता प्राप्त हैं। कल्पना जो भी थी (गाय या नारी), सूर्य वत्स या बालक के रूप में इसी विशाल द्युलोक से प्रकट होता माना जाता था, जो एक विशाल बाल पक्षी की तरह द्यावा पृथ्वी का चक्कर मारा करता था। इसी कल्पना के आधार पर मिस्र में सूर्य की आदिकल्पना तथा मूर्तिविधान में सूर्य को सपक्ष आभामंडल (्ध्रत्दढ़ड्ढड्ड द्मद्वद ड्डत्द्मत्त्) के रूप में माना गया। कालांतर में यह प्रतीक मिस्र के धर्म और लोकजीवन में विशेष मान्य हुआ। पृथ्वी का भी आदिदेव कल्पना में मूर्त रूप माना गया। आकाशरूपी नारी, मिस्र की प्राचीन धारणा के अनुसार शु अथवा पवन देवता के आधार पर टिकी है, जिसके नीचे पृथ्वीरूपी नर उटंग लेटा है। पृथ्वी देवता को मिस्र में केब कहा जाता था।
एक भिन्न परंपरा के अनुसार मिस्र के देवपरिवार का उद्गम 'अंड' से है। इसी अंड से सूर्य उत्पन्न होता है। सूर्य की चार संतानें थीं, जिनके नाम शू, तेहनूत, केब और नूत थे। शू और तेहनूत द्युलोक के स्वामी मूर्तरूप में और केब तथा नूत क्रमश: पृथ्वी और आकाश के रूप में व्यक्त हुए। केब और नूत से ओसिरिस, इसिस, सेत और नेफथीस उत्पन्न हुए। इस प्रकार मिस्र के प्राचीन देवमंडल में सूर्य सहित कुल नौ सदस्य थे। मरने के बाद जीवन जिस स्थल में विश्राम पाता है, उसका स्वामी ओसिरिस माना जाता था। ओसिरिस अपनी बहन इसिस की सहायता से, जो उसकी पत्नी भी थीं, पृथ्वी का भी आधिपत्य करता हुआ माना जाता था। यद्यपि ये सुयोग्य और धार्मिंक माना जाता था तथापि मिस्र की एक किंवदंती के अनुसार इसकी हत्या सेत नामक देवता ने कर दी थी। इसिस ने इसे पुन: श्रृगालमुख देव की कृपा और सहयोग से जीवित कर लिया और कालांतर में इसिस ने होरस नामक पुत्र उत्पन्न किया। होरस बड़ा प्रतापी हुआ और अपने पिता की ही भाँति पृथ्वी लोक का अधिपति बना। इसकी आनुवंशिक शत्रुता सेत तथा उसके सहयोगी 'अशुर' देवता थोथ से निरतर बनी रही। मिस्र की परंपरा में होरस को आदर्श पुत्र और इसिस को आदर्श पत्नी के रूप में माना जाता था। इसिस का माता के रूप में व्यापक प्रभाव था और ये जीव मात्र की जननी के रूप में पूजित होती थीं। किंतु ओरस के प्रति मिस्री लोकभावना में इन सबसे भी अधिक आदर था और इसकी उपासना डेड्ड, एवीडोस आदि नगरों में विशेष रूप से होती थी। इनके सम्मान में स्तंभ खड़े किए जाते थे। इसे ऋतुओं का अधिष्ठाता और मरणोत्तर जीवन का नियामक माना जाता था। काल और घड़ी के नियामक के रूप में चंद्रमा की मान्यता थी जिसे इविस भी कहते थे। यही 'अक्षर'का आविष्कारक और संरक्षक तथा प्रज्ञा का स्वामी भी माना जाता था। उल्लास, आनंद ओर प्रेम की देवी नूत मिस्र की लोकपरंपरा और उपासना में समान रूप से आदर पाती थीं। वे विभिन्न नगरों में विभिन्न नामों तथा स्वरूपों से पूजी जाती थीं। देंदरेह में ये गोमाता, जिन्हें हथोर कहते थे, साईस नगर में नेत के नाम से, बबस्तिस में बिल्ली के रूप में तथा मेंफिस में सिंहिनी के रूप में पूजी जाती थीं।
सूर्य मिस्र का प्रधान देवता था और इसकी पूजा मिस्र के धार्मिकजीवन का महत्वपूर्ण अंग थी। नील नदी के मुहाने पर स्थित 'ओन' नगर में सूर्य की पूजा री अथवा रे नाम से होती थी। सूर्य का बिंब रूप में दर्शन पुनीत माना जाता था। सूर्य के अन्य रूपों के आधार पर भी मिस्र की देवकल्पना पल्लवित हुई। इस प्रकार सूर्य के उदयरूप के आधार पर खेप्री और अस्तरूप के आधार पर अतुम की कल्पना की गई। मध्यराजत्वकाल (2132-1777 ई.पू.) में सूर्यपूजा अमोन के नाम से विशेष प्रचलित हुई। अमोन सूर्य के विशिष्ट स्वरूप का मूर्तरूप था। कालांतर में रे और अमोन दोनों ही सूर्य के रूपों को एक में मिला दिया गया और इस प्रकार 'अमोनरे' अथवा 'राअमों' के समन्वित सूर्य-पूजा-विधान और देवस्वरूप को बड़ी मान्यता मिली। एमेनोहतेप तृतीय के शासनकाल ही में, मिस्र के साम्राज्यवाद से प्रभावित होकर, ऐकेश्वरवाद की लहर मिस्र में दौड़ पड़ी। सूर्य के विभिन्न रूपों की अपेक्षा केवल एक ही रूप को विशिष्ट समझा जाने लगा। इसके उत्तराधिकारी एमेनोहोतेप चतुर्थ, जिसने 1375 ई.पू. में राज्यारोहरण किया, अतोन नामक विशिष्ट सूर्य की कल्पना की और इसे ही विश्वोपरि सर्वोत्तम, सर्वशक्तिमान, सार्वभौम और एक ईश्वर माना। विश्व के इतिहास में सार्वभौम विश्वदेव की कल्पना का यह प्रथम और अनूठा उदाहरण है। 'अतोन' के प्रति भक्ति की भावातिरेकता के कारण वह पारंपरिक सूर्य देवता अमोन रे से घृणा करने लगा और इसकी पूजा राजाज्ञा द्वारा बंद करा दी, किंतु इसके मरने पर पुन: अमोन रे की पूजा प्रचलित हो गयी।
मिस्र में नील नदी तथा उसकी धाराओं में देवत्व का आरोप किया गया और पूजा होने लगी थी। साथ ही अन्य भी बहुत से छोटे छोटे देवरूपों की कल्पना की गई थी। इम्होतेप, छोटे देवताओं में विशिष्ट था, जिसे भारतीय विश्वकर्मा के समान समझना चाहिए।