अयन गति
अयन गति या अयन चलन किसी घूर्णन (रोटेशन) करती खगोलीय वस्तु में गुरुत्वाकर्षक प्रभावों से अक्ष (ऐक्सिस) की ढलान में धीरे-धीरे होने वाले बदलाव को कहा जाता है।
अगर किसी लट्टू को चलने के बाद उसकी डंडी को हल्का सा हिला दिया जाए तो घूर्णन करने के साथ-साथ थोड़ा सा झूमने भी लगता है। इस झूमने से उसकी डंडी (जो उसका अक्ष होता है) तेज़ी से घुमते हुए लट्टू के ऊपर दो कोण-जैसा अकार बनाने का भ्रम पैदा कर देती है। लट्टू कभी एक तरफ़ रुझान करके घूमता है और फिर दूसरी तरफ़। उसी तरह पृथ्वी भी सूरज के इर्द-गिर्द अपनी कक्षा (अर्बिट) में परिक्रमा करती हुई अपने अक्ष पर घूमती है लेकिन साथ-साथ इधर-उधर झूमती भी है। लेकिन पृथ्वी का यह झूमना बहुत ही धीमी गति से होता है और किसी एक रुझान से झूमते हुए वापस उस स्थिति में आने में पृथ्वी को २५,७११ वर्ष (यानि लगभग २६ हज़ार वर्ष) लगते हैं। अगर पृथ्वी का अक्ष पृथ्वी के ऊपर काल्पनिक रूप से निकला जाए और अंतरिक्ष से २६,००० वर्षों के काल तक देखा जाए तो कभी वह पहले एक दिशा में दिखेगा फिर धीरे-धीरे पृथ्वी टेढ़ी होती हुई दिखेगी जिस से अक्ष की दिशा बदलेगी और क़रीब २६,००० वर्ष बाद वहीँ पहुँच जाएगी जहाँ से शुरू हुई थी।
अन्य भाषाओँ में
अयन गति को अंग्रेजी में "ऐक्सियल प्रीसॅशन" (Axial precession) कहते हैं। पृथ्वी के सन्दर्भ में इसे कभी-कभी "प्रीसॅशन ऑफ़ दी इक्विनॉक्सिज़" (precession of the equinoxes) भी कहते हैं। पृथ्वी के "घूर्णन" को "रोटेशन" (rotation) और उसके अक्ष के झूमने को "वॉबल" (wobble) कहा जाता है।
ध्रुव तारे पर प्रभाव
पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के ऊपर जो भी तारा होता है उसे ध्रुव तारा कहते हैं। अयन गति की वजह से पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव अलग-अलग समय पर भिन्न तारों की ओर अपना मुख करता है। वर्तमान युग का ध्रुव तारा धीरे-धीरे पृथ्वी का ध्रुव तारा नहीं रहेगा। सन् ३००० से सन् ५२०० तक वृषपर्वा तारामंडल का गामा सॅफ़ॅई (γ Cephei) तारा पृथ्वी का नया ध्रुव तारा बनेगा। सन् १०००० में हन्स तारा ध्रुव तारा बन चूका होगा। सन् १४००० में अभिजीत तारा हमारा ध्रुव तारा बनेगा। ध्यान रहे के सन् १२००० ईसापूर्व में भी अभिजीत हमारा ध्रुव तारा था और ठीक २६००० साल बाद दुबारा बन जाएगा। हमारा वर्तमान ध्रुव तारा सन् २७८०० ईसवी में दुबारा हमारा ध्रुव तारा बनेगा।[१]
भास्कराचार्य का अनुमान
१२वीं सदी ईसवी में भारतीय खगोलशास्त्री और गणितज्ञ भास्कराचार्य ने पृथ्वी के अयनांश काल का अनुमान २५,४६१ वर्ष लगाया था जो कि आधुनिक २५,७७१ वर्षों के अनुमान के काफ़ी पास है।[२]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ सिद्धांत-शिरोमणि, गोलाध्याय, भाग ६, श्लोक १७-१९