स्वर्णिम मध्य (दर्शन)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

दर्शनशास्त्र में स्वर्णिम मध्य (golden mean) दो चरम विकल्पों के मध्य के श्रेष्ठ विकल्प को कहते हैं। उदाहरण के लिए दर्शन के कई व्याख्यान में साहस यदी कम हो तो व्यक्ति कायर होता है और यदी अत्याधिक हो तो वह वास्तविक संकटों से असावधान और लापरवाह हो जाता है। उसी तरह व्यक्ति का भार अधिक हो या कम हो तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।[१]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ