सोहन सिंह भकना
This article needs additional citations for verification. (जुलाई 2018) |
बाबा सोहन सिंह भकना (२२ जनवरी, १८७०, अमृतसर - २० दिसम्बर, १९६८)) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। वे गदर पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष थे तथा सन् १९१५ के गदर आन्दोलन के प्रमुख सूत्रधार थे। लाहौर षडयंत्र केस में बाबा को आजीवन कारावास हुआ और सोलह वर्ष तक जेल में रहने के बाद सन् १९३० में रिहा हुए। बाद में वे भारतीय मजदूर आन्दोलन से जुड़े तथा किसान सभा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को अपना अधिकांश समय दिया।
जीवन परिचय
जन्म तथा शिक्षा
बाबा सोहन सिंह भकना का जन्म 22 जनवरी, 1870 ई. में पंजाब के अमृतसर जिले के 'खुतराई खुर्द' नामक गाँव में एक शेरगिल जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भाई करम सिंह और माँ का नाम राम कौर था। सोहन सिंह जी को अपने पिता का प्यार अधिक समय तक प्राप्त नहीं हो सका। जब वे मात्र एक वर्ष के थे, तभी पिता का देहान्त हो गया। उनकी माँ रानी कौर ने ही उनका पालन-पोषण किया। आरम्भ में गाँव के ही गुरुद्वारे से उन्होने धार्मिक शिक्षा पायी। ग्यारह वर्ष की उम्र में प्राइमरी स्कूल में भर्ती होकर उन्होंने उर्दू पढ़ना आंरभ किया।
जब सोहन सिंह दस वर्ष के थे, तभी उनका विवाह बिशन कौर के साथ हो गया, जो लाहौर के समीप के एक जमींदार कुशल सिंह की पुत्री थीं। सोहन सिंह जी ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फ़ारसी में दक्ष थे। युवा होने पर सोहन सिंह बुरे लोगों की संगत में पड़ गये। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य व्यर्थ के कार्यों में गवाँ दी। कुछ समय बाद उनका संपर्क बाबा केशवसिंह से हुआ। उनसे मिलने के बाद उन्होंने शराब आदि का त्याग कर दिया।
सन १९०७ में ४० वर्ष की उम्र में आजीविका की खोज में अब सोहन सिंह अमेरिका जा पहुँचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय आदि अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक बाबा सोहन सिंह के कानों तक भी पहुँच चुकी थी। वहाँ उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 200 पंजाब निवासी वहाँ पहले से ही काम कर रहे थे। किन्तु इन लोगों को वेतन बहुत कम मिलता था और विदेशी उन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे। सोहन सिंह जी को यह समझते देर नहीं लगी कि उनका यह अपमान भारत में अंग्रेजों की गुलामी के कारण हो रहा है। अतः उन्होंने देश की स्वतन्त्रता के लिए स्वयं के संगठन का निर्माण करना आरम्भ कर दिया।
क्रांतिकारी लाला हरदयाल अमेरिका में ही थे। उन्होंने 'पैसिफ़िक कोस्ट हिन्दी एसोसियेशन' नामक एक संस्था बनाई। बाबा सोहन सिंह उसके अधयक्ष और स्वयं मंत्री बने। सब भारतीय इस संस्था में सम्मिलित हो गए। सन १८५७ के स्वाधीनता संग्राम की स्मृति में इस संस्था ने 'गदर' नाम का पत्र भी प्रकाशित किया। इसके अतिरिक्त 'ऐलाने जंग', 'नया जमाना' जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी 'ग़दर पार्टी' कर दिया गया। 'गदर पार्टी' के अंतर्गत बाबा सोहन सिंह ने क्रांतिकारियों को संगाठित करने तथा अस्त्र-शस्त्र एकत्र करके भारत भेजने की योजना को कार्यन्वित करने में आगे बढ़ कर भाग लिया। 'कामागाटामारू प्रकरण' भी इस सिलसिले का ही एक हिस्सा थी।
भारतीय सेना की कुछ टुकड़ियों को क्रांति में भाग लेने के तैयार किया गया था। किन्तु मुखबिरों और कुछ देशद्रोहियों द्वारा भेद खोल देने से यह सारा किया धरा बेकार गया। बाबा सोहन सिंह भकना एक अन्य जहाज से कोलकाता पहुँचे थे। १३ अक्टूबर, १९१४ ई. को उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। यहाँ से उन्हें पूछताछ के लिए लाहौर जेल भेज दिया गया। इन सब क्रांतिकारियों पर लाहौर में मुकदमा चलाया गया, जो 'प्रथम लाहौर षड़यंत्र केस' के नाम से प्रसिद्ध है।
बाबा सोहन सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अण्डमान भेज दिया गया। वहाँ से वे कोयम्बटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहाँ महात्मा गाँधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लम्बे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
१६ वर्ष जेल मे बिताने पर भी अंग्रेज सरकार का इरादा उन्हें जेल में ही सड़ा डालने का था। इस पर बाबा सोहन सिंह ने अनशन आरम्भ कर दिया। इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। यह देखकर अततः अंग्रेज सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया।
रिहाई के बाद बाबा सोहन सिंह 'कम्युनिस्ट पार्टी' का प्रचार करने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध आंरभ होने पर सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन सन १९४३ में रिहा कर दिया। २० दिसम्बर, १९६८ को बाबा सोहन सिंह भकना का देहान्त हो गया।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- गदर पार्टी का इतिहास (गूगल पुस्तक ; लेखक - प्रीतम सिंह 'पंछी')