सेंटूर

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अश्वनर (यूनानी: Κένταυρος, लातिन: centaurus), जिसे हिप्पोसेंटूर भी कहा जाता है, यूनानी पुराण का एक काल्पनिक जीव है जिसके शरीर का ऊपरी हिस्सा एक मनुष्य का और निचला हिस्सा एक घोड़े का है। [१][२]

कहा जाता है कि अश्वनर को जन्म इक्सिओन और नेफेले ने दिया था। एक दूसरे कहानी के अनुसार, वे सेंटूरस नामक व्यक्ति के पुत्र हैं, जिसने मैग्नीशिया के घोड़ियों के साथ समागम किया था। सेंटूरस स्वयं इक्सिओन और नेफेले का पुत्र था, या अपोलो और स्टिलबे (नदी देव पेन्यूस की पुत्री) का। इस कहानी में, सेंटूरस का जुड़वाँ भाई था लापिथेस, जो लापिथ समुदाय का पूर्वज था, अर्थात् आपस में लड़ने वाले सेंटूर और लापिथ दरअसल भाई थे। 

कहा जाता था कि अश्वनर थेस्सालिया के मैग्नीशिया और पेलिओन चोटी, एलिस के फ़ोलोई के बाँज के जंगल और दक्षिण लाकोनिया के मालेया प्रायद्वीप में रहते थे।  

अश्वनर की एक और जनजाति साइप्रस में रहती थी, ऐसा कहा जाता है। नोन्नोस के अनुसार, उनकी परवरिश ज़्यूस ने की थी, जब ऐफ़्रोडाइटी ने उन्हें धोखा दिया था। साइप्रस के सेंटूर के सींग हुआ करते थे।[३][४]

रोमन पुराण में अश्वनर के अनेक उल्लेख हैं, और मध्यकालीन दंतकथाओं में वे आम तौर पर दिखते थे। आधुनिक विलक्षण साहित्य में भी वे हमेशा दिखाई देते हैं। उनके आधे-मनुष्य और आधे-घोड़े के बनावट के कारण, कई लेखक उन्हें अवसीमीय जीव मानते हैं, जो दो विपरीत प्रवृत्तियों के बीच में फँसे हैं, जिनका चित्रण दोनों तरह से होता है - पहला है, जंगली और खूँखार, जब उन्होंने अपने भाइयों यानि लापिथ से युद्ध किया था, और दूसरा है, सभ्य और शिक्षक की तरह, जैसे काइरोन था। 

सेंटूर युद्ध

एक मिट्टी के प्याले में सेंटूर युद्ध का लाल कुम्भकला, ४८० ईसापूर्व

सेंटूर लापिथ के ख़िलाफ़ युद्ध के लिए प्रसिद्ध हैं, जो शुरू हुई जब उन्होंने हिप्पोदामिया और पैरिथौस के शादी के दिन, हिप्पोदामिया और अन्य लापिथ औरतों का अपहरण करने की कोशिश की थी। माना जाता है कि इन भाइयों के यह जंग मनुष्यों के नीच इच्छाओं और सभ्य व्यवहार के अंतर को दर्शाता है। थेस्यूस, नायक और शहरों का स्थापक, जो वहाँ उपस्थित था, ने पैरिथौस को सहारा दिया और संतुलन को व्यवस्था की तरफ़ झुका दिया। सेंटूर हमलावरों को भगा दिया गया या मार डाला गया। [५][६][७] एक अन्य लापिथ नायक था कैन्यूस जो हथियारों से अविनाशी था। उसे सेंटूरों ने पत्थरों और शाखाओं से पीट-पीट कर धरती में गाड़ दिया। सेंटूरों को कई यूनानी मिथकों में जंगली घोड़ों जैसे असभ्य समझा जाता है। टाइटन युद्ध की तरह, जहाँ ओलंपियाई देवों ने टाइटनों को हराया था, सेंटूरों के युद्ध सभ्यता और असभ्ता के संघर्ष को दर्शाते हैं। 

सेंटूर युद्ध को पार्थेनन में फैदियास और माइकल एंजेलो के एक मूर्ति में दिखाया गया है, जो इस युद्ध के सबसे प्रसिद्ध चित्रण हैं। 

शास्त्रीय कला में अन्य चित्रण 

बियोशिया का कांथारोस

उग़ारित में पाए गए मिकेने के टेराकोटा मूर्तियों को सेंटूर पहचाना गया है, जिससे संभव है कि इन जीवों के मिथकों का मूल कांस्य युग में हुआ था।[८] 

यूनानी काला में, सेंटूर के तीन प्रकार के चित्रण हैं। कुछ में मनुष्य का कमर वहाँ जुड़ता है जहाँ घोड़े का गला होता है, जिसे "क्लास ए" कहा जाता है, और उनका सबसे प्रसिद्ध रूप है। कुछ के शरीर और पैर मनुष्यों जैसे हैं, और कमर में उनका शरीर घोड़े के शरीर से जुड़ा है, जिसे "क्लास बी" कहते हैं। "क्लास सी" में सेंटूर के आगे के पैर मनुष्य जैसे हैं, पर उनमें खुर लगे हैं। [९] बाद के कुछ तस्वीरों में पंखों वाले सेंटूर भी दिखाए गए हैं। 

सेंटूर रोमन काला में भी बहुत दिखाई देते हैं। इसका सबसे मशहूर उदहारण है जहाँ कोन्स्टान्टिन प्रथम के रथ को दो सेंटूर खींच रहे हैं, जो उनके ईसाई चित्रण से बिलकुल अलग है। [१०][११]

मूल के सिद्धांत

सेंटूर के मूल का सबसे सामान्य सिद्धात यह है कि जब घोड़ों के न पालने वाले संस्कृति का सामना घुड़सवारों से होती है, तो उनकी प्रतिक्रिया यह होती है। इस सिद्धांत के अनुसार ऐसे घुड़सवार आधे-मनुष्य और आधे-पशु नज़र आते हैं। कहा जाता है एज़टेक लोगों को भी स्पेनी घुड़सवारों के बारे में यही ग़लतफ़हमी थी।[१२] घोड़ों को पालना और घुड़सवारी सबसे पहले मध्य एशिया के स्टेपी मैदानों में शुरू हुई थी, आज जहाँ क़ज़ाख़स्तान स्थित है।  

थेस्सालिया के लापिथ जनजाति, जो मिथकों में सेंटूर  के भाई थे, उन्हें यूनानी लेखकों द्वारा घुड़सवारी का आविष्कारक माना जाता है। थेस्सालिया के जनजाति भी यह मानते थे कि उनके घोड़े सेंटूर के वंशज हैं। 

पेरिस में निम्फ का अपहरण करता एक सेंटूर की मूर्ति। 

सेंटूर को हिन्दी भाषा में नरश्व भी कहा जाता है जो प्राय: अर्द्ध नर व अर्द्ध अश्व होते हैं।

References

  1. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  2. Webster's Third New International Dictionary, G. & C. Merriam Company (1961), s.v. hippocentaur.
  3. Nonnus, Dionysiaca, v. 611 ff, xiv. 193 ff, xxxii. 65 ff.
  4. स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  5. Plutarch, Theseus, 30.
  6. Ovid, Metamorphoses xii. 210.
  7. Diodorus Siculusiv. pp. 69-70.
  8. Ione Mylonas Shear, "Mycenaean Centaurs at Ugarit" The Journal of Hellenic Studies (2002:147–153); but see the interpretation relating them to "abbreviated group" figures at the Bronze-Age sanctuary of Aphaia and elsewhere, presented by Korinna Pilafidis-Williams, "No Mycenaean Centaurs Yet", The Journal of Hellenic Studies 124 (2004), p. 165, which concludes "we had perhaps do best not to raise hopes of a continuity of images across the divide between the Bronze Age and the historical period."
  9. Paul V. C. Baur, Centaurs in Ancient Art: The Archaic Period, Karl Curtius, Berlin (1912), pp. 5–7.
  10. The Great Cameo of Constantine, formerly in the collection of Peter Paul Rubens and now in the Geld en Bankmuseum, Utrecht, is illustrated, for instance, in Paul Stephenson, Constantine, Roman Emperor, Christian Victor, 2010:fig. 53.
  11. Iain Ferris, The Arch of Constantine: Inspired by the Divine, Amberley Publishing (2009).
  12. Stuart Chase, Mexico: A Study of Two Americas, Chapter IV (University of Virginia Hypertext स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।).