शहीद (1965 फ़िल्म)
शहीद (1965 फ़िल्म) | |
---|---|
चित्र:Shaheed 1965 film.jpg 1965 में बनी शहीद फिल्म का पोस्टर | |
निर्देशक | एस. राम शर्मा |
निर्माता | केवल कश्यप |
लेखक | बटुकेश्वर दत्त |
पटकथा | दीनदयाल शर्मा |
अभिनेता |
कामिनी कौशल, मनोज कुमार, निरूपा रॉय, प्रेम चोपड़ा, मनमोहन, प्राण, मदन पुरी, असित सेन, राजा, अनवर हुसैन, कमाल कपूर, कृष्ण धवन, |
संगीतकार | प्रेम धवन |
प्रदर्शन साँचा:nowrap | 1965 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
शहीद (1965 फ़िल्म) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर हिन्दी भाषा की फिल्म है। भगत सिंह के जीवन पर 1965 में बनी यह देशभक्ति की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। जिसकी कहानी स्वयं भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त ने लिखी थी। इस फ़िल्म में अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' के गीत थे। मनोज कुमार ने इस फिल्म में शहीद भगत सिंह का जीवन्त अभिनय किया था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर आधारित यह अब तक की सर्वश्रेष्ठ प्रामाणिक फ़िल्म है।
13वें राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड की सूची में इस फ़िल्म ने हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के पुरस्कार के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये नर्गिस दत्त पुरस्कार भी अपने नाम किया। बटुकेश्वर दत्त की कहानी पर आधारित सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन के लिये दीनदयाल शर्मा को पुरस्कृत किया गया था। यह भी महज़ एक संयोग ही है कि जिस साल यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी उसी साल बटुकेश्वर दत्त का निधन भी हुआ।
संक्षेप
फ़िल्म की कहानी सन् 1911 के हिन्दुस्तान की पृष्ठभूमि में सरदार किशन सिंह और उनके परिवार के साथ शुरू होती है जिसमे उनके छोटे भाई अजित सिंह को ब्रिटिश राज के खिलाफ़ बगावत के कारण पुलिस गिरफ़्तार कर ले जाती है। भगत सिंह जो अभी तीन चार साल का बच्चा है अपनी आँखों से यह सब देखता रह जाता है। भगत सिंह युवा होते ही अपने चाचा के नक्शे-कदम पर चलकर साइमन कमीशन के विरोध में चल रहे आन्दोलन में शामिल हो जाता है। पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मौत हो जाती है। सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि मिलकर लालाजी की मौत का बदला लेने की योजना को अंजाम देते हैं।
पुलिस की गिरफ़्तारी से बचने के लिये भगत सिंह अपने केश कटा देता है और सिर पर सिक्खों की पगड़ी की जगह यूरोपियन हैट लगाकर मौका-ए-वारदात से दुर्गा भाभी के साथ फरार हो जाता है।
अगले दृश्य में यही हैटधारी भगतसिंह बटुकेश्वर दत्त के साथ दिल्ली असेम्बली में बम विस्फोट करके गिरफ़्तार हो जाता है। शेष कहानी पूरे मुकदमें व जेल में यातनाओं के दृश्यों के साथ देशभक्ति के गानों से भरपूर है जिसमें सभी कलाकार अपने-अपने अभिनय की छाप छोड़ते नज़र आते हैं। पूरी फ़िल्म की कहानी सुखदेव-राजगुरु-भगतसिंह की फाँसी के साथ पूरे क्लाइमेक्स पर जाकर खत्म होती है।
चरित्र
यूँ तो इस फ़िल्म में मनोज कुमार का ही प्रमुख रोल था क्योंकि सारी कहानी शहीद भगत सिंह के इर्द-गिर्द घूमती है परन्तु भगत सिंह के परिजनों सहित उनके साथियों, जेलर एवं लोक-अभियोजकों (पब्लिक प्रॉसीक्यूटर्स) की भूमिका में प्राय: सभी कलाकारों का अभिनय प्रभावशाली रहा। फ़िल्म के मुख्य कलाकारों के रोल इस प्रकार हैं:
मुख्य कलाकार और उनके रोल
- कामिनी कौशल - विद्यावती (भगत सिंह की माँ)
- मनोज कुमार - भगत सिंह
- निरूपा रॉय - दुर्गा भाभी (भगत सिंह की पत्नी के रोल में)
- प्रेम चोपड़ा - सुखदेव
- अनन्त मराठे - राजगुरु
- मनमोहन - चन्द्रशेखर आज़ाद
- प्राण - डाकू केहर सिंह
- मदन पुरी - जेलर
- असित सेन - धनीराम
- अनवर हुसैन - छतर सिंह
- कमाल कपूर - पब्लिक प्रॉसीक्यूटर (दिल्ली असेम्बली केस)
- इफ़्तेखार - पब्लिक प्रॉसीक्यूटर (लाहौर केस)
- कृष्ण धवन - सरदार अजित सिंह (भगत सिंह के चाचा)
- सप्रू - सरदार किशन सिंह (भगत सिंह के पिता)
- राज किशोर - जयगोपाल
- इन्द्राणी मुखर्जी - सुशीला दीदी
दल
फ़िल्म का निर्माण एस. राम शर्मा के निर्देशन में केवल कश्यप ने किया था। इसकी पटकथा बी. के. दत्त की मूल कहानी को आधार बनाकर दीन दयाल शर्मा ने लिखी थी। शर्मा ने ही इसके संवाद भी लिखे थे। तीनों शहीदों की प्रमुख भूमिका मनोज कुमार, प्रेम चोपड़ा और अनन्त पुरुषोत्तम मराठे ने निभायी थी। प्रेम धवन ने पूरी फ़िल्म का न केवल संगीत दिया था अपितु कुछ गीत भी लिखे थे। सिनेमैटोग्राफी की थी रंजोत ठाकुर ने जबकि इसका सम्पादन बी.एस. ग्लाड एवं विष्णु कुमार सिंह ने किया था।
गीत और संगीत
पण्डित रामप्रसाद 'बिस्मिल' और प्रेम धवन के लिखे गीतों को संगीत दिया था स्वयं प्रेम धवन ने ही। जबकि मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर और लता मंगेशकर ने इन गीतों को अपनी आवाज़ देकर अमर बनाया। सभी गीतों की साउण्ड ट्रैक तालिका नीचे दी गयी है:
# | गीत का मुखड़ा | गीतकार | गायक/गायिका |
---|---|---|---|
1 | "ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम" | प्रेम धवन | मोहम्मद रफ़ी |
2 | "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" | राम प्रसाद 'बिस्मिल' | मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी एवं राजेन्द्र मेहता |
3 | "जोगी हम तो लुट गये तेरे प्यार में " | प्रेम धवन | लता मंगेशकर |
4 | "ओ मेरा रंग दे बसन्ती चोला" | राम प्रसाद 'बिस्मिल' | मुकेश, महेन्द्र कपूर, लता मंगेशकर एवं राजेन्द्र मेहता |
5 | "पगड़ी सम्हाल जट्टा पगड़ी सम्हाल रे" | इंस्पेक्टर बाँके दयाल/प्रेम धवन | मोहम्मद रफ़ी |
6 | "वतन पे मरने वाले जिन्दा रहेगा तेरा नाम" | प्रेम धवन | मोहम्मद रफ़ी |
रोचक तथ्य
भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त, जिन्होंने दिल्ली असेम्बली में बम विस्फोट किया था, उन्हीं की कहानी पर आधारित इस फिल्म की पटकथा पण्डित दीनदयाल शर्मा ने लिखी थी। यह भी महज़ एक संयोग कहा जायेगा कि जिस साल सन् 1965 में यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी उसी साल बटुकेश्वर दत्त का निधन हो गया। इस कारण कहानी और पटकथा लेखन के लिये बाद में दीनदयाल शर्मा को अकेले ही पुरस्कृत किया गया था।[१]
इस फ़िल्म में "जोगी हम तो लुट गये तेरे प्यार में जाने तुझको खबर कब होगी" गाने में मनोज कुमार की पत्नी शशि गोस्वामी ने ढोलक पर टांकी लगायी थी। केवल इतना ही नहीं, पूरा दृश्य भगत सिंह की होने वाली बीबी के रूप में शशि के चेहरे पर फ़िल्माया गया था।
नामांकन और पुरस्कार
13वें राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड की सूची में शहीद फ़िल्म ने हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार जीता। इसके अलावा इस फ़िल्म ने राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये नर्गिस दत्त पुरस्कार भी अपने नाम किया। यही नहीं, सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिये बटुकेश्वर दत्त और उसी कहानी पर आधारित सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन के लिये दीनदयाल शर्मा को यह पुरस्कार दिया गया क्योंकि बटुकेश्वर दत्त का सन् 1965 में निधन हो चुका था।[२][३]
सन्दर्भ
- ↑ देशभक्त बटुकेश्वर दत्त: जिन्हें आजादी के बाद मिली गुमनाम जिंदगी स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। 21 मार्च 2011 को नई दिल्ली से एजेंसी द्वारा हिन्दुस्तान लाइव में प्रकाशित अभिगमन तिथि 17 जनवरी 2014
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
बाहरी कड़ियाँ
- साँचा:imdb title
- पगड़ी सम्हाल जट्टा पगड़ी सम्हाल रे- यू ट्यूब पर
- सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है- यू ट्यूब पर
- मेरा रँग दे बसन्ती चोला - यू ट्यूब पर