विभवमापी (मापक उपकरण)

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विभवमापी (potentiometer) एक विद्युत उपकरण है जो किसी परिपथ के दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर मापने के काम आता है। जब तक चल कुण्डली वोल्टमापी या आंकिक वोल्टमापी का विकास नहीं हुआ था, तब तक विभवमापी से ही विभवान्तर मापा जाता था। इसी लिए इसके नाम में 'मीटर' या 'मापी' आया हुआ है। विभवान्तर मापन की यह विधि सन् १८४१ में जोनन क्रिश्चियन पोगेनड्रॉफ द्वारा बतायी गयी थी। विभवमापी एक आदर्श वोल्टमीटर का कार्य करता हैं।

दिष्ट धारा विभवमापी (Direct current Potentiometer)

विभवमापी द्वारा विभवान्तर का मापन

यह यंत्र विभवांतर नापने के प्रयोग में तो लाया ही जाता है किंतु साथ ही साथ इससे धारामान एवं प्रतिरोध भी ज्ञात किया जा सकता है। यदि एक स्थिर धारा एक लंबे और समान तार से प्रवाहित हो और उस तार की एक एक लंबाई का प्रतिरोध प हो, तो तार की एक लंबाई का विभवांतर व = ध x प (ओम के नियम से) तार के एक समान रहने के कारण उस तार की लंबाई ल का विभवांतर = ध x प x ल। अब यदि हम किसी सेल (Cell) को, जिसका विद्युत् वाहक बल ब है, किसी गैलवैनोमीटर से श्रेणीबद्ध करके विभवमापी के बिंदु क और ख के बीच जोड़ दें तो उस धारामापी में कुछ धरा बहेगी और विक्षेप होगा। यह धारा विभवमापी के बिंदुओं के विभवांतर और सल के विभवांतर के अंतर की समानुपाती होगी, क्योंकि दोनों विभव एक दूसरे विपरीत दिशा में धारा भेजने का काम कर रहे हैं। यदि बिंदु ख को तार पर खिसकाया जाए, तो बिंदुओं क और ख के बीच का विभवांतर बद लेगा। इस प्रकार तार की एक ऐसी लंबाई होगी जब विंदुओं क और ख के बीच विभवांतर ठीक सेल के विद्युत वाहक बल क बराबर होगा और उस समय धारामापी में कोई विक्षेप नहीं होगा। यदि उस तार की लंबाई ल१ हो, तो व१ = ध x प x ल१। इसी प्रकार यदि किसी प्रामाणिक सेल से, जिसका विद्युतवाक बल व२ है, प्रयोग किया जाए और गैलवैनोमापी में शून्य विक्षेप के लिए आवश्यक तार की लंबाई ल२ हो तो व२ = ध x प x ल२ अस्तु, यदि धारा दोनों प्रयोगों में स्थिर रहे तो

व१ / व२ = ल१ / ल२
(V1 / V2 = l1 / l2)

और अज्ञात विद्युत् वाहक बल का विभवांतर,

व१ = व२ (ल१ / ल२)

किसी विभवमापी से जितना न्यूनतम विभवांतर नप सकता है उस यंत्र की 'सुग्राहिता' कहलाता है और जो उच्चतम विभवांतर नपता है उसे परास (Range) कहते हैं। यदि किसी विभवमापी के १०० सेमी. तार का प्रतिरोध १० ओम हो और उसमें ०.०१ ऐंपियर की धारा प्रवाहित हो तो सार के दोनों सिरों के बीच की वोल्टता ०.१ वोल्ट होगी। उस में तार को नापने योग्य न्यूनतम लंबाई (मान लें एक मिमी.) के सिरों के बीच का विभवांतर ०.०००१ वोल्ट होगा, जिसे विभवमापी की सुग्राहिता कहेंगे। सन् १८८५ में फ्लेमिंग ने एक अत्यंत यथार्थ और सुग्राही विभवमापी का सिद्धांत बताया। उसी सिद्धांत पर क्रांपटन ने एक विभवमापी बनाया जो क्रांपटन विभवमापी के नाम से प्रसिद्ध है। यह अत्यंत यथार्थ और सुग्राही होता है।

प्रत्यावर्ती धारा विभव मापी (Alternting Current Potentiometer)

दिष्ट धारा विभवमापी की भांति ही प्रत्यावर्त्ती धारा विभवमापी भी विभवांतर नापता है। दोनों प्रकार के यंत्रों में, अज्ञात विभावंतर को विभवमापी के मुख्य परिपथ के आंशिक विभवांतर से पूर्णतया संतुलित कर लिया जाता है, किंतु प्रत्यावर्ती धारा का विभवमापी में संतुलन से लाया हुआ विभव केवल परिमाण में ही बराबर नहीं होना चाहिए वरन् प्रावस्था (phase) में विपरीत दिशा में भी होना चाहिए और इसके लिए दो स्वतंत्र समंजन आवश्यक हैं। प्रत्यावर्ती धारा विभवमापी दो वर्गों में विभाजित किए जा सकते हैं जिन्हें हम ध्रुवीय (Polar) और निर्देंशांकी (Coordinate) कहते हैं।

इन्हें भी देखें

  • विभवमापी - जो परिवर्ती प्रतिरोध प्रदान करने वाला एक एलेक्ट्रानिक अवयव है।